विदेशी ब्राह्मण ही ओबीसी के असली दुश्मन हैं : प्रदीप अंबेडकर

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उत्तराखंड का 16वां बामसेफ एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ

 संयुक्त राज्य अधिवेशन
विदेशी ब्राह्मण ही ओबीसी के असली दुश्मन हैं : प्रदीप अंबेडकर

   बामसेफयूनिवर्सिटी ऑफ थॉट
हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज को उसके ही इतिहास के बारे में जानकारी नहीं है. इतिहास में क्या होता है? हारने वाले लोग इतिहास नहीं लिखते हैं, जितने वाले लोग ही इतिहास लिखते हैं और जीतने वाले लोग अपने ढंग से इतिहास लिखते हैं. अब सवाल है कि क्या हारने वाले लोगों का इतिहास नहीं होता है? हारने वाले लोगों का भी इतिहास होता है. मगर, जीतने वाले लोगों ने जो इतिहास लिखा होता है उसी इतिहास में हारने वाले लोगों का भी इतिहास छिपा होता है. बस उसे ढूंढने और खोजने की नजरिया चाहिए. बामसेफ पूरे देश भर में मूलनिवासी बहुजन समाज को एक नजरिया देने का काम कर रहा है. एक स्कूल ऑफ एजुकेशन होता है. स्कूल ऑफ एजुकेशन में नर्सरी से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई होती है. दूसरा होता है स्कूल ऑफ थॉट. यहां विचारधारा की पढ़ाई होती है. इसी तरह से बामसेफ भी एक यूनिवर्सिटी आफ थॉट है, जहां विचारधारा की पढ़ाई होती है.

दोस्त और दुश्मनों की पहचान करना ही जागृति कहलाती है. एससी, एसटी, ओबीसी को उसके इतिहास की जानकारी नहीं है कि वे आपस में बिछड़े हुए भाई हैं. अब तक ओबीसी यही जानता था कि एससी, एसटी ही उसका असली दुश्मन हैं. जबकि एससी, एसटी, ओबीसी का दुश्मन नहीं है, ओबीसी का असली दुश्मन ब्राह्मण है. क्योंकि, ब्राह्मणों द्वारा ओबीसी के दिमांग में बार-बार डाला जाता रहा है कि एससी, ओबीसी के दुश्मन हैं. लेकिन, बामसेफ की वजह से ओबीसी समाज के लोग अब जागृति हो रहे हैं. इसलिए ओबीसी के लोगों को जानकारी होने लगी है कि ओबीसी का असली दुश्मन एससी नहीं, ब्राह्मण हैं. यह बात इंडियन इंजीनियर प्रोफेशनल एसोसिएशन (आइईपीए) के राष्ट्रीय प्रभारी प्रदीप अंबेडकर ने 15 अगस्त 2020 को उत्तराखंड राज्य के बामसेफ एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ का 16वाँ संयुक्त एवं प्रथम वर्चुअल राज्य अधिवेशन के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए कही. इस वर्चुअल राज्य अधिवेशन का उद्घाटन डॉ. धर्मेंन्द्र कुमार ने किया. वहीं वक्ताओं के रूप में हर्ष पति एवं विजय पाल सिंह ने संबोधित किया.


प्रदीप अंबेडकर ने कहा कि भारत के संविधान के अनुसार आर्टिकल 82 के अनुसार परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है, परिसीमन आयोग हर 10 साल बाद गठन किया जाता है. क्योंकि 10 साल के बाद जनगणना होती है और उस जनगणना में जनसंख्या को आधार बनाकर परिसीमन आयोग गठन करते हैं. इसमें एमएलए, एमपी, जिला पंचायत और प्रधान का भी सीमा निर्धारण होता है. जिसका उद्देश्य जहां जिसकी जितनी जनसंख्या है उसको उसकी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व होनी चाहिए. लेकिन उत्तराखंड में क्या हुआ? परिसीमन के अनुसार देखने से पता चलता है कि 2014 में क्षेत्र पंचायतों की जो सीटें ओबीसी की थी वह 2019 में शेड्यूल्ड कास्ट का हो गया. इसी तरह से जो सीटें 2014 में शेड्यूल्ड कास्ट की थी वे सीटें 2019 में ओबीसी की हो गई तो कहीं महिला रिजर्व सीट हो गया. यानी बहुजन समाज में एससी, एसटी, ओबीसी के लोग लड़ने भिड़ने के लिए तैयार थे उनको भौगोलिक आधार पर बंटवारा करके सीटें चेंज कर दी गई. इस तरह से हमारे लोगों के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी किया गया.
ओबीसी की जाति आधारित गिनती को लेकर प्रदीप अम्बेडकर ने कहा कि इतिहास के क्रम में जाते 1871 में पहली बार गिनती हुई थी. 1871 से तय हुआ कि हर 10 साल के बाद जनगणना की जाएगी. इस तरीके से 1871 से लेकर 1931 तक गिनती हुई. इस जनगणना से क्या फायदा हुआ? एक उदाहरण के माध्यम से बताना चाहता हूँ. 1902 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने राज्य में 50 फीसदी रिजर्वेशन पिछड़ों को बहाल किया. क्योंकि कास्ट सेंसस से पता चल गया कि कौन-कौन सी जातियां पिछड़ी है, कौन सी कौन सी जातियां दबी कुचली है. इससे एक आंकड़ा पता चल गया उस आंकड़े के आधार पर उन्होंने 1902 में 50 प्रतिशत रिजर्वेशन बहाल किया. यह किस आधार पर हुआ? 1901 में हुई जाति आधारित गिनती के आधार पर हुआ. यानी शाहूजी महाराज ने कास्ट सेंसस का फायदा लिया. उन्होंने कहा देश में 1931 तक अंतिम बार जाति आधारित गिनती हुई. 1931 के बाद जब 1941 में जाति आधारित गिनती का मामला आया, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के कारण गिनती नहीं सकी. इसके बाद 15 अगस्त 1947 को सत्ता का हस्तानांतरण हुआ, एक विदेशी अंग्रेज चले गये और जाते-जाते देश की सत्ता दूसरे विदेशी ब्राह्मणों के हाथ में दे गए.

प्रदीप अम्बेडकर ने कहा, अंग्रेजों के जाने के बाद ब्राह्मणों को सत्ता मिली. आज 15 अगस्त है, पूरा देश आजादी का जश्न मना रहे हैं. लेकिन, क्या यह हमारे आजादी का दिन है? जो 15 अगस्त 1947 की आजादी है वह तथाकथित आजादी है. क्योंकि, 1947 में सत्ता का हस्तानांतरण हुआ था. लॉर्ड माउंटबेटन ने जो बिल पारित किया था वह ‘‘ट्रांसफर ऑफ द पावर’’ इस ट्रांसफर ऑफ पावर बिल की वजह से अंग्रेज विदेशी चला गया और दूसरा विदेशी ब्राह्मण इस देश का हुक्मरान हो गया और ब्राह्मणों ने घोषणा कर दिया हमारा देश आजाद हो गया. मगर, इस देश का मूलनिवासी समाज आज भी गुलाम का गुलाम रह गया. अंग्रेजों के जाने बाद नेहरू प्रधानमंत्री बने और नेहरू ने 1951 और 1961 में होने वाली जाति आधारित गिनती को रोक दिया. 1971 और 1981 इंदिरा गांधी ने रोकी. 1991 पीवी नरसिम्हा राव ने रोका, 2001 में अटल बिहारी बाजपेई ने रोका, 2011 में मनमोहन सिंह पीएम थे, मगर वे सारे फैसले लेने का अधिकार प्रणब मुखर्जी को दिया था. इसलिए प्रणव मुखर्जी ने जाति आधारित गिनती पर रोक लगा दी. यानी देश में होने वाली जाति आधारित गिनती को केवल ब्राह्मणों ने रोकने का काम किया है. अब 2021 में गिनती होनी चाहिए, इसके लिए हम लोग आंदोलन और लड़ाई की तैयारी जन जागरण के माध्यम से कर रहे हैं.

 उन्होंने कहा बाबसाहब अंबेडकर अकेले ओबीसी की लड़ाई लड़ रहे थे. किस लिए क्योकि ओबीसी को संवैधानिक अधिकार मिलना चाहिए. इसलिए उनकी लड़ाई लड़ रहे थे. यही नहीं ओबीसी को अधिकार मिलना चाहिए, इसलिए बाबासाहब ने अपने कानून मंत्री पद से इस्तिफा दे दिया था. 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की बैठक हुई, संविधान सभा की बैठक में जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव दिया कि संविधान के अंदर ओबीसी को अधिकार दिए जाएंगे. मगर, 29 अगस्त 1947 की जब संविधान सभा की बैठक हुई, जिसमें बाबासाहब अंबेडकर को ड्राफ्टिंग कमिटी का चेयरमैन बनाया गया. उसमें नेहरू ने कहा की ओबीसी को कुछ नहीं दिया जायेगा. इसके पीछे बजह यह थी कि है उस समय यानी 1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन होने वाला था. उस विभाजन में बड़े पैमाने पर दंगे होने वाले थे. उस दंगे में ओबीसी का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ लड़ाने के लिए करने वाले थे. इसीलिए उसने आश्वासन दिया था कि ओबीसी को अधिकार दिया जाएगा. लेकिन, 29 अगस्त तक देखा कि अब ओबीसी को लड़ाने भिड़ाने का मामला खत्म हो गया, अब उन्हें ओबीसी की जरूरत नहीं है तब नेहरू कहता है कि ओबीसी को अधिकार नहीं दिए जाएंगे. इसका मतलब है कि 1947 के बाद ओबीसी के साथ धोखेबाजी करने का काम नेहरू ने किया और 1947 के पहले  मोहनदास करमचंद गांधी ने किया है.
प्रदीप अम्बेडकर ने आगे कहा, इस तरह से जाति आधारित गिनती रोकने का काम ब्राह्मणों ने किया. इसलिए हमारा दुश्मन ब्राह्मण हैं. इसलिए हमें दोस्त और दुश्मन की पहचान करनी होगी. आगे उन्होंने कहा ओबीसी की गिनती ओबीसी के नाम पर नहीं, हिंदू के नाम पर की जाती है. जबकि, एससी, एसटी की गिनती जाति के आधार पर होती है. यह बात ओेबीसी को समझने की जरूरत है. जिस दिन ओबीसी को यह बात समझ में आ जायेगी कि उनकी गिनती ओबीसी के नाम पर नहीं हिंदू के नाम पर की जाती है उसी दिन उनको यह भी समझ में आ जायेगा कि उनके साथ धोखेबाजी की जा रही है. उनको यह भी समझ में आ जायेगा कि उनको हिन्दू के नाम पर ब्राह्मणों का गुलाम बनाया जा रहा है. यही उनको यह भी समझ में आ जायेगा कि हिन्दू शब्द एक षड््यंत्र है. अगर ऐसा हुआ तो देश में नई क्रांति शुरू हो जायेगी. ब्राह्मण हमेशा क्रांति से घबराता है. ब्राह्मण परिवर्तन से घबराता है. क्योंकि, जब परिवर्तन होगा तो सबसे ज्यादा नुकसान ब्राह्मणों का होगा. क्योकि उन्होंने जिन व्यवस्थाओं का निर्माण किया है उस व्यवस्था में ब्राह्मण सबसे ऊपर है. सारे अधिकारों पर उसका कब्जा है. अगर उसमें परिवर्तन हुआ तो ब्राह्मण ऊपर से सीधे नीचे गिर जाएगा और सभी अधिकारों पर से उसका नाजायज कब्जा हट जायेगा. इसका मतलब है कि परिवर्तन होगा तो सबसे ज्यादा नुकसान ब्राह्मणों का होगा. इसलिए ब्राह्मण नुकसान नहीं उठाना चाहते है. यही कारण है कि ब्राह्मण ओबीसी की जाति आधारित गिनती नहीं करना चाहते हैं.
अंत में उन्होंने कहा, बामसेफ निरंतर पिछड़े वर्ग को जगाने का काम कर रहा है. इस जागृति का बड़े पैमाने पर कामयाबी मिल रही है. बामसेफ के माध्यम से देशभर में पिछड़ा वर्ग समाज जागृत हो रहा है. हम मूलनिवासी बहुजन समाज से अपील करते हैं 2021 में जाति आधारित गिनती होनी चाहिए. इसके लिए सारे पिछड़े वर्ग के लोगों को एकजुट होकर सड़कों पर आने की जरूरत है. इस देश में एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है. बामसेफ इस दिशा में काम कर रहा है. इस आंदोलन में एससी, एसटी, ओबीसी, मायनॉरिटी को साथ सहयोग देने ही जरूरत है. तभी हम ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्त हो सकते हैं.@Nayak1

 

 

 

Uttarakhand 16th BAMCEF National Indigenous union 

Joint State Convention

 Foreign Brahmins are the real enemies of OBC: Pradeep Ambedkar

 Bamcef, University of Thought

 Our indigenous Bahujan society does not know about its own history. What happens in history? Losers do not write history, only those who write history write and those who win write history in their own way. Now the question is, don't the losers have a history? Losers also have a history. However, the history that the winning people have written, in the same history, the history of the losers is hidden. Just looking for and looking for it. BAMCEF is working to give a vision to the indigenous Bahujan Samaj throughout the country. There is a school of education. School of education consists of studies from nursery to PhD. The second is school of thought. Ideology is taught here. Similarly, BAMCEF is also a university of thought, where ideology studies.

 Identifying friends and enemies is called awakening. SC, ST, OBC are not aware of his history that they are estranged brothers. Till now, the OBC knew that SC and ST are its real enemies. While SC, ST and OBC are not enemies, the real enemy of OBC is Brahmins. Because, the Brahmins have been repeatedly putting in the OBC's mind that SCs are enemies of the OBCs. But, because of BAMCEF, people of OBC society are now awakening. Therefore, people of OBC are beginning to know that the real enemy of OBC is not SC but Brahmin. This was stated by Pradeep Ambedkar, national in-charge of the Indian Engineer Professional Association (IEPA) while addressing the first session of the 16th Joint and First Virtual State Session of BAMCEF and Rashtriya Moolnivasi Sangh of Uttarakhand state on 15 August 2020. This virtual state session was inaugurated by Dr. Dharmendra Kumar. At the same time, Harsh Pati and Vijay Pal Singh addressed as speakers.

                

Pradeep Ambedkar said that according to the Constitution of India, Delimitation Commission is constituted as per Article 82, Delimitation Commission is constituted after every 10 years.Because after 10 years the census takes place and in that census, based on the population, delimitation commissions are formed.In this, MLA, MP, Zilla Panchayat and Pradhan are also demarcated.Whose purpose is to be represented on the basis of the population whose population it is.But what happened in Uttarakhand? According to the delimitation, it shows that in 2014, the seats of the OBCs of the area panchayats were in the scheduled cast in 2019.Similarly, the seats which were cast in 2014 became OBCs in 2019 and then became women reserve seats.That is, in Bahujan society, the people of SC, ST, OBC were ready to fight, they were divided on the basis of geographical and seats were changed.In this way our people were subjected to a huge fraud.

 Regarding caste-based counting of OBCs, Pradeep Ambedkar said that counting was done for the first time in 1871 going in the sequence of history. From 1871, it was decided that a census would be done after every 10 years. In this way, counting was done from 1871 to 1931. What did this census benefit? Want to tell you through an example. In 1902, Chhatrapati Shahuji Maharaj restored 50 percent of the reservation backward in the state. Because from the cast census it is known which castes are backward, which castes are suppressed. From this, a figure was found out, based on that figure, he restored the 50 percent reservation in 1902. On what basis did this happen? In 1901, based on caste-based counting. That is, Shahuji Maharaj took advantage of cast censuses. He said that till 1931, caste-based counting was done for the last time in the country. After 1931, when the case of caste-based counting came in 1941, but due to the Second World War, the counting could not be done. After this, the transfer of power took place on August 15, 1947, a foreigner went to the British and on the way passed the power of the country to other foreign Brahmins.

 Pradeep Ambedkar said, Brahmins got power after the British left. Today is 15 August, the whole country is celebrating independence. But, is it our day of independence? The freedom that was born on August 15, 1947 is the so-called freedom. Because, there was a transfer of power in 1947. The bill that Lord Mountbatten passed was "Transfer of the Power". Due to this Transfer of Power Bill, the British went overseas and the other foreign Brahmin ruled this country and the Brahmins declared our country independent. . However, the indigenous society of this country remains a slave even today. Nehru became Prime Minister after the British left and Nehru stopped the caste-based counting of 1951 and 1961. 1971 and 1981 were stopped by Indira Gandhi. 1991 PV Narasimha Rao stopped, in 2001 Atal Bihari Bajpai stopped, in 2011 Manmohan Singh was the PM, but he gave the right to take all decisions to Pranab Mukherjee. Therefore, Pranab Mukherjee banned caste-based counting. That is, only Brahmins have done work to prevent caste-based counting in the country. Now should be counted in 2021, for this we are preparing the movement and fight through mass awareness.

 He said that Babasaheb Ambedkar was fighting the battle of OBCs alone. Why because OBC should get constitutional rights. Therefore, they were fighting their battle. Not only this, OBC should get the right, so Babasaheb had resigned from his post of Law Minister. On 13 December 1946, the Constituent Assembly met, at the Constituent Assembly meeting, Jawaharlal Nehru proposed that OBCs be given powers within the Constitution. However, on 29 August 1947, when the Constituent Assembly met, Babasaheb Ambedkar was made the chairman of the drafting committee. In it, Nehru said that nothing will be given to OBCs. The buzz behind this was that at that time, India-Pakistan was going to be partitioned in 1947. There were going to be large-scale riots in that division. In that riot, OBCs were to be used to fight against Muslims. That is why he assured that the OBC would be empowered. But, till August 29, it was seen that now the case of fighting OBC is over, now they do not need OBC, then Nehru says that OBC will not be given rights. This means that after 1947, Nehru did fraud with OBC and before 1947 Mohandas Karamchand Gandhi did it.

 Pradeep Ambedkar further said, in this way, Brahmins did the job of stopping caste-based counting. Therefore our enemies are Brahmins. So we have to identify friend and foe. He further said that OBC is counted in the name of Hindu and not in the name of OBC. Whereas, SC and ST count on the basis of caste. This is what the OBC needs to understand. The day the OBCs will understand that they are counted in the name of Hindu, not in the name of OBC, on the same day they will also understand that they are being cheated. They will also understand that they are being enslaved by Brahmins in the name of Hindu. They will also understand that the word Hindu is a conspiracy. If this happens then a new revolution will start in the country. The Brahmin is always afraid of revolution. The Brahmin is afraid of change. Because, when change happens, the Brahmins will suffer the most. Because Brahmins are at the top of the arrangements they have made. He holds all the rights. If there is a change in it, then the Brahmin will fall straight down from above and his illegitimate occupation will be removed from all rights. This means that if change happens, the Brahmins will suffer the most. Therefore, Brahmins do not want to suffer. This is the reason why Brahmins do not want to count caste based OBCs.

 In the end, he said, BAMCEF is constantly working to awaken the backward class. This awakening is getting massive success. Backward class society is being awakened through BAMCEF across the country. We appeal to the indigenous Bahujan Samaj in 2021, caste-based counting should be done. For this, all backward class people need to come together on the streets. There is a need to create a nationwide movement in this country. BAMCEF is working in this direction. There is a need to cooperate with SC, ST, OBC and minorities in this movement. Only then can we be free from the slavery of Brahmins. 

@ Nayak1


 उत्तराखंड 16 वां बामसेफ आणि राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ संयुक्त राज्य अधिवेशन

विदेशी ब्राह्मण ही ओबीसी वास्तविक दुश्मन आहेत: प्रदीप अंबेडकर

बामसेफ, विचार विद्यापीठ

आपल्या मूळ इतिहासातील आपल्या बहुजन समाजाला माहिती नाही. इतिहासात काय होते? तोट्याचा इतिहास लिहित नाही, जे इतिहास लिहितात तेच लिहितात आणि जे जिंकतात त्यांच्या स्वत: च्या मार्गाने इतिहास लिहितात. आता प्रश्न असा आहे की पराभूत झालेल्यांचा इतिहास नाही? हरवलेल्यांचा देखील इतिहास असतो. तथापि, जिंकलेल्या लोकांनी लिहिलेला इतिहास, त्याच इतिहासात, पराभूत झालेल्यांचा इतिहास लपलेला आहे. फक्त शोधत आहे आणि शोधत आहे. बीएएमसीईएफ देशी बहुजन समाजाला देशभरात दृष्टी देण्यासाठी काम करीत आहे. शिक्षणाची शाळा आहे. शिक्षण प्रशालेत नर्सरी ते पीएचडी पर्यंतचा अभ्यास असतो. दुसरा विचार शाळा आहे. येथे विचारधारा शिकविली जाते. त्याचप्रमाणे, बीएएमएसईएफ देखील विचारांचे विद्यापीठ आहे, जेथे विचारसरणीचा अभ्यास केला जातो.

मित्र आणि शत्रू ओळखणे याला जागृत करणे म्हणतात. एससी, एसटी, ओबीसी यांना इतिहासाची माहिती नाही की ते परदेशी आहेत. आतापर्यंत ओबीसीला माहित होते की एससी आणि एसटी हे त्याचे खरे शत्रू आहेत. एससी, एसटी आणि ओबीसी हे शत्रू नसले तरी ओबीसीचा खरा शत्रू ब्राह्मण आहे. कारण, अनुसूचित जाती ओबीसींचे शत्रू आहेत हे ब्राह्मण वारंवार ओबीसीच्या मनात आणत आहेत. पण, बामसेफमुळे ओबीसी समाजातील लोक आता जागृत होत आहेत. म्हणून ओबीसी लोकांना हे समजू लागले आहे की ओबीसीचा खरा शत्रू हा एससी नाही तर ब्राह्मण आहे. भारतीय अभियंता व्यावसायिक संघटनेचे (आयईपीए) राष्ट्रीय प्रभारी प्रदीप आंबेडकर यांनी 15 ऑगस्ट 2020 रोजी उत्तराखंड राज्यातील बीएएमसीईएफ आणि राष्ट्रीय मूलनिवासी संघाच्या 16 व्या संयुक्त आणि पहिल्या आभासी राज्य अधिवेशनाच्या पहिल्या सत्राला संबोधित करताना हे सांगितले. या आभासी राज्य सत्राचे उद्घाटन डॉ धर्मेंद्र कुमार यांच्या हस्ते झाले. त्याचवेळी हर्ष पाटी व विजय पाल सिंह यांनी वक्ते म्हणून संबोधित केले.

       

प्रदीप आंबेडकर म्हणाले की, भारतीय राज्यघटनेनुसार लेख 82 सीमांकन आयोग तयार केल्यानुसार, प्रत्येक 10 मध्ये परिसीमन आयोग एक वर्षानंतर तयार होते. कारण 10 वर्षानंतर जनगणना होते आणि त्या जनगणनेनुसार लोकसंख्येच्या आधारे मर्यादा आयोग तयार होतात. यामध्ये आमदार, खासदार, जिल्हा पंचायत व प्रधान यांचेही सीमांकन केले आहे. ज्याचा हेतू कोणत्या लोकसंख्येच्या लोकसंख्येच्या आधारावर प्रतिनिधित्व करणे आहे. पण उत्तराखंडमध्ये काय झाले? मर्यादेनुसार, हे दृश्य 2014 दर्शविते अनुसूचित जातीच्या क्षेत्र पंचायत क्षेत्रातील ओबीसींच्या जागा 2019 मध्ये बनल्या. त्याचप्रमाणे कोणत्या जागा 2014 त्या जागा टाकण्यात आल्या 2019 जेव्हा मी ओबीसी होतो, तेथे महिला राखीव जागा होती. म्हणजेच बहुजन समाजात एससी, एसटी, ओबीसीमधील लोक लढायला तयार होते, ते भौगोलिक आधारे विभाजित झाले आणि जागा बदलण्यात आल्या. अशाप्रकारे आपल्या लोकांवर प्रचंड घोटाळा झाला.

ओबीसीच्या जात-आधारित मतमोजणीबद्दल प्रदीप आंबेडकर म्हणाले 1871 मध्ये प्रथमच त्याची गणना केली गेली.1871 दर दहा वर्षांनी जनगणना करण्यात येईल, असा निर्णय घेण्यात आला. अशा प्रकारे 1871 ते 1931 पर्यंत मतमोजणी केली गेली. या जनगणनेचा काय फायदा? एखाद्या उदाहरणाद्वारे सांगू इच्छितो.1902 छत्रपती शाहूजी महाराजांनी राज्यात 50 टक्के मागासवर्गीय आरक्षण पूर्ववत केले. कारण कास्ट जनगणनेपासून हे ज्ञात आहे की कोणत्या जाती मागासलेल्या आहेत, कोणत्या जाती दडपल्या गेल्या आहेत. यावरून एक आकृती सापडली, त्या आकडेवारीच्या आधारे त्यांनी 1902 मध्ये 50 टक्के आरक्षण पुनर्संचयित केले. हे कोणत्या आधारावर घडले? 1901 मध्ये जात-आधारित मोजणीवर आधारित. म्हणजेच कास्ट जनगणनेचा फायदा शाहूजी महाराजांनी घेतला. ते म्हणाले देशात 1931 शेवटपर्यंत जातनिहाय मतमोजणी झाली. 1931नंतर कधी 1941 जाती-आधारित मतमोजणीच्या बाबतीत, परंतु दुसर्‍या महायुद्धामुळे मोजले जाऊ शकले नाही. यानंतर 15 ऑगस्ट 1947 रोजी सत्ता हस्तांतरित झाली, एक परदेशी इंग्रज तेथून निघून गेला आणि वाटेत त्याने देशाची सत्ता इतर विदेशी ब्राह्मणांच्या ताब्यात दिली.

प्रदीप आंबेडकर म्हणाले, ब्रिटीश सोडल्यानंतर ब्राह्मणांना सत्ता मिळाली. आज 15 ऑगस्ट रोजी संपूर्ण देश स्वातंत्र्याचा उत्सव साजरा करीत आहे. पण, हा आपला स्वातंत्र्याचा दिवस आहे? 15 ऑगस्ट 1947 रोजी जन्माला आलेले स्वातंत्र्य म्हणजे तथाकथित स्वातंत्र्य. कारण, 1947मध्ये सत्ता हस्तांतरण होते लॉर्ड माउंटबॅटन यांनी हे विधेयक मंजूर केले ते म्हणजे "ट्रान्सफर ऑफ द पॉवर". या ट्रान्सफर विधेयकामुळे ब्रिटिश परदेशात गेले आणि दुसर्‍या परदेशी ब्राह्मणांनी या देशात राज्य केले आणि ब्राह्मणांनी आमचा देश स्वतंत्र घोषित केला. . तथापि, या देशातील स्वदेशी समाज आजही गुलाम आहे. ब्रिटिश निघून गेल्यानंतर नेहरू पंतप्रधान आणि नेहरू बनले 1951 आणि 1961 ची जात-आधारित मोजणी थांबविली. 1971 आणि 1981 इंदिरा गांधींनी थांबवले होते.1991 पीव्ही नरसिंहराव थांबले, अटलबिहारी बाजपेयी 2001 मध्ये थांबले, मनमोहन सिंग हे 2011 मध्ये पंतप्रधान होते, परंतु त्यांनी प्रणव मुखर्जी यांना सर्व निर्णय घेण्याचा अधिकार दिला. म्हणून प्रणव मुखर्जी यांनी जात-आधारित मोजणीवर बंदी घातली. म्हणजेच देशात जातीय मतमोजणी रोखण्यासाठी केवळ ब्राह्मणांनीच काम केले आहे. आता 2021 मध्ये मोजले पाहिजे, यासाठी आम्ही जनजागृतीद्वारे चळवळ आणि संघर्षाची तयारी करत आहोत.

ते म्हणाले की बाबासाहेब आंबेडकर एकट्या ओबीसींची लढाई लढत होते. कारण ओबीसीला घटनात्मक हक्क मिळायलाच हवेत. म्हणून, ते त्यांची लढाई लढत होते. एवढेच नव्हे तर ओबीसीलाही हक्क मिळायला हवा, म्हणून बाबासाहेबांनी कायदामंत्रीपदाचा राजीनामा दिला होता. 13 डिसेंबर 1946 घटना समितीच्या बैठकीत जवाहरलाल नेहरू यांनी संविधान सभामध्ये ओबीसींना घटनेत अधिकार देण्यात येतील असा प्रस्ताव मांडला. परंतु, 29 ऑगस्ट 1947 संविधानसभा बैठक झाली तेव्हा बाबासाहेब आंबेडकर यांना मसुदा समितीचा अध्यक्ष बनविण्यात आला. त्यात नेहरू म्हणाले की ओबीसींना काहीही दिले जाणार नाही. यामागची चर्चा अशी होती की त्यावेळी 1947-मध्ये भारत-पाकिस्तानचे विभाजन होणार होते. त्या प्रभागात मोठ्या प्रमाणात दंगली होणार आहेत. त्या दंगलीत ओबीसींचा वापर मुस्लिमांविरूद्ध लढण्यासाठी केला जायचा. म्हणूनच ओबीसीला अधिकार देण्यात येतील, अशी ग्वाही त्यांनी दिली. पण, 29 ऑगस्टपर्यंत हे समजले की ओबीसीशी लढा देण्याचे प्रकरण संपले आहे, आता त्यांना ओबीसीची गरज नाही, मग नेहरू म्हणतात ओबीसींना अधिकार दिले जाणार नाहीत. याचा अर्थ असा की 1947 नंतर नेहरूंनी ओबीसीबरोबर फसवणूक केली आणि 1947 पूर्वी मोहनदास करमचंद गांधी यांनी केले.

प्रदीप आंबेडकर पुढे म्हणाले, जाती-आधारित मतमोजणी थांबविण्याचे काम या प्रकारे ब्राम्हणांनी केले. म्हणून आपले शत्रू ब्राह्मण आहेत. म्हणून आम्हाला मित्र आणि शत्रू ओळखणे आवश्यक आहे. ते पुढे म्हणाले की ओबीसी ही ओबीसीच्या नावाने नव्हे तर हिंदूंच्या नावावर मोजली जाते. तर एससी आणि एसटी जातीच्या आधारे मोजले जातात. हे ओबीसीला समजून घेणे आवश्यक आहे. ज्या दिवशी ओबीसींना समजेल की ते ओबीसीच्या नावाने नव्हे तर हिंदूंच्या नावावर मोजले जातात त्याच दिवशी त्यांना समजेल की आपली फसवणूक केली जात आहे. त्यांना हेही समजेल की ते हिंदूंच्या नावाने ब्राह्मणांनी गुलाम केले आहेत. त्यांना हे देखील समजेल की हिंदू हा शब्द एक कट आहे. असे झाल्यास देशात नवीन क्रांती सुरू होईल. ब्राह्मण नेहमी क्रांतीला घाबरत असतो. ब्राह्मण बदलाची भीती बाळगतो. कारण, जेव्हा बदल होईल, तेव्हा सर्वात जास्त त्रास ब्राह्मणांना होईल. कारण त्यांनी केलेल्या व्यवस्थेमध्ये ब्राह्मण सर्वात वर आहेत. त्याच्याकडे सर्व हक्क आहेत. जर त्यात बदल झाला तर ब्राह्मण वरुन थेट खाली पडेल आणि त्याचा अवैधानिक व्यवसाय सर्व अधिकारांपासून दूर केला जाईल. याचा अर्थ असा की जर बदल झाला तर सर्वात जास्त त्रास ब्राह्मणांना होईल. म्हणून, ब्राह्मणांना त्रास होऊ इच्छित नाही. हेच कारण आहे की ब्राह्मणांना जाती आधारित ओबीसी मोजण्याची इच्छा नाही.

शेवटी ते म्हणाले, बामसेफ सतत मागासवर्गीयांना जागृत करण्यासाठी कार्यरत आहे. या प्रबोधनास मोठ्या प्रमाणात यश मिळत आहे. बीएएमसीईएफच्या माध्यमातून देशभर मागासवर्गीय समाज जागृत होत आहे. आम्ही आदिवासी बहुजन समाजाला आवाहन करीत आहोत. २०२१ मध्ये जातीनिहाय मतमोजणी करावी. यासाठी सर्व मागासवर्गीय लोकांनी रस्त्यावर एकत्र येण्याची गरज आहे. या देशात देशव्यापी चळवळ निर्माण करण्याची गरज आहे. बीएएमसीईएफ या दिशेने काम करीत आहे. या आंदोलनात एससी, एसटी, ओबीसी आणि अल्पसंख्याकांना सहकार्य करण्याची आवश्यकता आहे. तरच आम्ही ब्राह्मणांच्या गुलामगिरीतून मुक्त होऊ शकतो. @ Nayak1

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