"संक्रांति" बौद्ध उत्सव है|

0
"संक्रांति" बौद्ध उत्सव है|

संक्रांति उत्सव वास्तव में तथागत बुद्ध के महापरिनिर्वाण और उससे आधारित शक संवत से संबंधित है| (Maha Yazawin Gyi, (in Burmese), 2006, Kala, vol. 1, p. 38) 

"संक्रांति" इस संस्कृत शब्द का मूल शब्द "सांगकेन" है, जो शाक्यमुनि बुद्ध से संबंधित है और सांगकेन का मूल शब्द "सामकेन" और "साक्यन" है, जिसका मूल अर्थ "साक्यमुनि बुद्ध" होता है| (Theravada Buddhism in North-East India, Chow Chandra Mantche, p. 33) 

तथागत बुद्ध के महापरिनिर्वाण की याद में संक्रांति उत्सव मनाया जाता है| (Ayotitacar Cintanaigal II, Ayothi Thass, 1907/2011b, p. 53) तथागत बुद्ध का महापरिनिर्वाण फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को हुआ था और उनके शरीर का दाहसंस्कार फाल्गुन पुर्णिमा को हुआ था| दाहसंस्कार के बाद चैत्र कृष्ण अष्टमी को बुद्ध की अस्थियों पर महास्तुप बनवाए गए थे| उन महास्तुपों के उद्घाटन के तौर पर "महा संक्रांति" उत्सव मनाया जाता है| (भारतीय लोक परंपराओं में भगवान बुद्ध और उनका धम्म, इंजि. गिरिष चंद्र सिंह, 2021, p. 183) 

सभी जनपदों ने बुद्ध की अस्थियों को आठ भागों में विभाजित किया और उसके उपर आठ महास्तुप बनवाएं| आज भी बौद्ध राष्ट्रों में उन स्तुपों की याद में छोटा सा स्तुप (Kyongfra) बनाया जाता है और अस्थियों की जगह पर बुद्ध मुर्तियों को उसके अंदर रखा जाता है| फिर उन मुर्तियों पर पानी डालकर उन्हें धोया जाता है और उन्हें नया चकाचौंध बनाकर उत्सव मनाया जाता है| 

स्तुप के अंदर रखीं बुद्ध मुर्तियाँ बुद्ध के महापरिनिर्वाण का और पुराने साल का प्रतीक है| पहले उनकी पूजा की जाती है और पुराने साल का शुक्रिया (Thanks giving) मनाया जाता है| फिर बाद में उन्हें धोकर चकाचौंध करना बुद्ध की याद में नये बुद्ध मुर्ति निर्माण का और नये उभरते साल का प्रतीक है| 

नये साल के स्वागत के तौर पर खुशीयां मनाई जाती है और मिठाई बांटी जाती है| तीन दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है| पहले दिन पिछले साल का शुक्रिया, दुसरे दिन बुद्ध मुर्तियों की पुजा और तिसरे उन धोये हुए मुर्तियों को फिर से स्तुपों के अंदर स्थापित कर लोग नये साल का जश्न मनाते है| रंग और पानी एकदुसरे पर डालकर तथा मिठाई बनाकर नये साल का स्वागत किया जाता है| 

तथागत बुद्ध के महापरिनिर्वाण के आधार पर प्राचीन बौद्ध कैलेंडर बनाया गया था, जिसे शाक्यमुनि बुद्ध की याद में उसे सकराज अर्थात "शाक्य संवत या शक संवत" कहा जाता था| इस संवत में बुद्ध के महापरिनिर्वाण का दिन आरंभिक दिन मानकर कालगणना की जाती है| (Ashtronomy in mainland South East Asia, Ohashi, 2007, p. 354-55) 

बौद्ध कालगणना पद्धति चंद्रमा पर आधारित है लेकिन उसका साल सुर्य की गति पर आधारित होता है| सुरज जब मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है, तब बौद्ध शक संवत का नया साल शुरू होता है| (Southeast Asian Ephemeris, J. C. Eade, 1995, p. 15) बौद्ध शक संवत को महासक बुद्ध की याद में "महासकराज संवत" कहा जाता है, जिसे म्यानमार के प्यू राज्य ने सन 80 (80 AD) में भारत के बौद्धों से अपनाया था|

भारत में शक संवत के आधार पर 9 वी सदीं में कोसल प्रदेश में विक्रम संवत बनाया गया| मालवा का काल्पनिक राजा विक्रमादित्य के नाम से यह संवत ब्राह्मणों ने बनवाया था| (Indian Epigraphy, Richard Solomon, 1998, p. 182-83) बौद्ध शक संवत का इतिहास मिटाने के लिए ब्राम्हणों ने काल्पनिक राजा विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत शुरू कर दिया था, ऐसा विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार व्हिंसेंट स्मिथ और आर. जी. भंडारकर का मानना है| लेकिन होर्नले के अनुसार मालवा का बौद्ध राजा यशोधर्मन् ने विक्रम संवत शुरू कर दिया था, जिसका जिक्र कल्हाण की राजतरंगिणी में है| (History of classical Sanskrit Literature, M. Srinivasachariar, 1974, p. 94-111) 

बौद्ध राष्ट्रों में संक्रांति उत्सव इस तरह साल के पहले माह चैत्र में बुद्ध की याद में मानाया जाता है, जिससे उसे "सोंगकेन, साक्येन या संक्रांति" कहा जाता है| भारत में यह उत्सव चैत्र की बजाए पौष- माघ महिने में मनाया जाता है, जब सुर्य मकर राशि में प्रवेश कर अपना उत्तरायण शुरू कर देता है| मकर राशि से भारत में बौद्ध उत्सव "संक्रांति" को "मकर संक्रांति" कहा जाता है| माघी, पोंगल, सोंगकेन, संक्रांति ऐसे अलग अलग नामों से भारत के अलग अलग राज्यों में यह उत्सव मनाया जाता है| नये साल के जश्न में मकर संक्रांति उत्सव मनाया जाता है| लेकिन, भारत में बौद्ध इतिहास खत्म होने के कारण बुद्ध मुर्तियों की बजाए सुर्य की पुजा कर यह उत्सव मनाया जाता है| संक्रांत किंक्रात और शंकासूर की बनावट काल्पनिक कथा का संक्रांति उत्सव से कोई संबंध नहीं है|

इस तरह, संक्रांति वास्तव में बौद्ध उत्सव है और बुद्ध के महापरिनिर्वाण की याद में जो शक संवत शुरू किया गया था उसके नये साल के स्वागत के तौर पर यह उत्सव मनाया जाता है| 

जय मूलनिवासी 

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
To Top