#बेशर्म_सरकार
जो नहीं तनिक शर्मिंदा है
देखो क्या वो जिंदा है?
कुर्सी पर बैठा घड़ियाल
लगता कोई दरिंदा है।
प्रजा उसको बंदर ही दिखती
जैसे देश किष्किंधा है।
उसके आँसू नमक के माफ़िक़
गल रहा बाशिंदा है।
छीन ली जाती है आज़ादी
लुटता रोज़ परिंदा है।
जब मन की बात सुने न कोई
करता तभी वो निंदा है।
रंज नहीं ज़रा भी उसको
सब राधे-गोविंद है।
~जय मूलनिवासी
#Nayak1