मदर इंडिया

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भारतीय समाज की नैतिकता व समाज सुधारकों का असल इतिहास देखा जाएं तो माथा पकड़कर बैठ जाओगे!

भारतीय शिक्षा पाठ्यक्रम में पढ़ाये जाने वाले न्यायविद व समाज सुधारक जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे का नाम बड़ा चर्चित है और सब उनको सम्मान की नजर से देखते है।जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे ने 11 साल की लड़की से शादी की थी, उस वक्त रानाडे की उम्र 30 साल थी। 

इसी तरह पहले नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर्ता रबिन्द्रनाथ टैगोर जिन्होंने महारानी विक्टोरिया के सम्मान में जो गीत गाया था उसका आधा भाग राष्ट्रीय गान के रूप में गाया जा रहा है उन्होंने भी 10 साल की लड़की से शादी की थी जब वो 21 साल के थे और शादी के 3 साल बाद पहला बच्चा हुआ था यानी जब उनकी पत्नी 13 साल की थी।

अमेरिकन स्कॉलर कैथरीन मेयो ने उस समय भारत मे इस पर रिसर्च किया था और किताब लिखी थी "मदर इंडिया"!जब यह किताब छपी तो रानाडे, टैगोर के वंशजों ने बहुत हंगामा किया था और अंततः गाँधीजी की अंग्रेज सरकार से अपील के बाद यह किताब भारत मे बैन कर दी गई!

स्वामी दयानंद अर्थात मूलशंकर तिवारी ने भी इसी तरह की शादी की वकालत सत्यार्थ प्रकाश में की थी।भला हो अंग्रेजी सरकार का भारत की बच्चियों को इन धार्मिक दलालों के चंगुल से बाहर करने का प्रयास किया और सती प्रथा जैसी घिनौनी व स्त्रियों के विनाशवादी संस्कृति को कानून के डंडे के हवाले किया था।

कैथरीन मेयो 1920-25 के आसपास भारत के विभिन्न मैटरनिटी अस्पतालों में घूमी थी और जो प्रसव के लिए अस्पतालों में लड़कियां भर्ती हुई उसके बयान,हालात देखकर किताब लिखी थी।मैंने उस किताब का हिंदी व अंग्रेजी वर्जन पढ़ा है।

अगर उस किताब को ठीक से भारतीय जनमानस पढ़ ले तो आजादी के पहले के समाज सुधारक मानसिकता के मोड़ पर ही निपट लेंगे।

मानव सभ्यता में इतिहास कभी भी वर्तमान से बेहतर नहीं होता।मानवता की बेहतरी के लिए रचनात्मक कार्य करने में नाकाबिल लोग सदा इतिहास को गौरव का विषय बताते है।इतिहास कभी भी गौरव का विषय नहीं होता है बल्कि सबक का विषय होता है।वर्तमान से बेहतर संस्कृति व वर्तमान से बेहतर रामराज्य की गपोड़ कथाएं फिजाओं में तेराई जाती है बल्कि हकीकत के धरातल पर ऐसा कुछ नहीं होता है।

मदर इंडिया किताब जब ठीक से पढ़ लोगे तो भारतीय समाज सुधारकों का दिमाग पर उठाए घूम रहे बोझ को भी हल्का महसूस करने लग जाओगे!

जय मूलनिवासी 

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