तभी तक समझो मैं तुम्हारी हूं.तुमसे लड़ रही हूं तुम्हारे लिए..!

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जब तक 
बोलती हूं 
टोकती हूं
बहस करती हूं
उलझती हूं
तुनकती हूं
झगड़ती हूं
तभी तक समझो मैं तुम्हारी हूं
तुमसे लड़ रही हूं तुम्हारे लिए
मन से साथ जिसके चलना ही नहीं
उससे फिर कैसी तकरार
एक कान से सुनना 
और दो टूक जवाब देना 
किसी रिश्ते को खींचने ढोने के लिए पर्याप्त है
और प्रेम को सूखा कर मारने के लिए भी
मेरी नज़रों में खामोशी पसरने लगी है
तुम्हें दिखाई पड़ी क्या ? 

जब तक
मुस्कुराती हूं 
खिलखिलाती हूं
चहकती हूं
महकती हूं
बहकती हूं
लहकती हूं
तभी तक तुम्हें अपना समझती हूं
जीती हूं तब तक तुम्हारे लिए
जिसे देख दिल धड़के ही नहीं
उससे फिर कैसा लगाव
तुम्हारी सुनना 
और अपनी न कहना
इस रिश्ते को खोखला करने के लिए पर्याप्त है
और प्रेम को सूखा कर मारने के लिए भी
मेरी नज़रों में खामोशी पसरने लगी है
तुम्हें दिखाई पड़ी क्या ? 

💔 जय मूलनिवासी 

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