अम्बेडकरवाद एक जंग

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देश में जब छुआ-छूत का प्रभाव जोर-शोर से सारे देश में फैला हुआ था, उस समय एक ऐसे महाज्ञानी का जन्म हुआ जो देश ही नहीं, बल्कि विदेशों को एक नई दिशा दी, जिस पर देश तो नहीं, परन्तु, विदेश उस दिशा पर नितंर चलते हुए राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर राजनीतिक विशेषज्ञ, कुशल नेता, वकील, भारतीय विधिवेत्ता, भारतीय संविधान के निर्माणकर्ता और एक महान विचारवादी क्रांतिकारी थे. जिन्होंने विचार क्रांति से मूलनिवासी बहुजन समाज को हर तरह के अधिकार देकर उनको ब्राह्मणवाद के दलदल से निकालने का काम किया. 


डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर ने अपना सारा जीवन ब्राह्मणवादी व्यवस्था में गुलाम बनाकर रखे गये 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को आजाद कराने में बिता दिया. क्योंकि, ब्राह्मणों ने मूलनिवासी बहुजन समाज को ‘‘रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा’’ आदि सभी मानवीय अधिकार छीनकर उन्हें न केवल जानवर से बद्तर जीवन जीने के लिए मजबूर किया. बल्कि उनके ऊपर अन्याय और अत्याचार की सभी हदें भी पार कर चुके थे. कई सामाजिक और वित्तीय बाधाएं पार कर डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की. कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी अर्जित कीं. 


कई उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश में गये आंबेडकर वापस अपने देश एक प्रसिद्ध विद्वान के रूप में लौट आए और इसके बाद कुछ साल तक उन्होंने वकालत का अभ्यास किया. इसके बाद उन्होंने कुछ पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, जिनके द्वारा उन्होंने भारतीय अस्पृश्यों के राजनैतिक अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की. यह जानकर हैरानी होगी कि डॉ.बाबासाहब अंबेडकर के शोध का विषय ‘‘भारत का राष्ट्रीय लाभ’’ था. इस शोध के कारण उनकी बहुत प्रशंसा हुई. उनकी छात्रवृत्ति एक वर्ष के लिये और बढा दी गई. 


चार वर्ष पूर्ण होने पर जब भारत वापस आये तो बड़ौदा में उन्हें उच्च पद दिया गया, किन्तु कुछ सामाजिक भेदभाव के कारण उन्हें नौकरी छोङकर बम्बई जाना पड़ा. बम्बई में सीडेनहम कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए किन्तु कुछ संकीर्ण विचारधारा के कारण वहाँ भी परेशानियों का सामना करना पड़ा. 1919 में वे पुनः लंदन चले गये. अपने अथक परिश्रम से एमएससी, डीएससी तथा बैरिस्ट्री की डिग्री प्राप्त कर भारत लौटे. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पहले एमए तथा बाद में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. हालांकि, उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व नहीं कहा. लेकिन, जीवन पर्यन्त वे तथागत बुद्ध के माध्य मार्ग पर चलने के लिए मूलनिवासी बहुजनों के लिए मार्ग प्रसस्त करते रहे. 


यही नहीं डॉ.बाबासाहब अंबेडकर ने दिनरात की कड़ी मेहनत के बाद समता, स्वतंत्रा, बंधुत्व एवं न्याय पर आधारित समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए भारत का संविधान खिलकर देश को एक नई दिशा दी और संविधान में मूलनिवासी बहुजन समाज को वो हर अधिकार दिए जो ब्राह्मणों ने मानवीय अधिकारों से वंचित कर रखा था. अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान पाठ मे संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया. 


साथ ही डॉ.बाबासाहब अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और मायनॉरिटी के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों-कॉलेजों और नौकरियों में संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व (आरक्षण) की लिखित व्यवस्था की. जिसे 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. इसके अलावा, 1951 में संसद में हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने और ओबीसी की पहचान न करने के विरोध में डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. यह बात बहुत से एससी, एसटी और ओबीसी के लोग नहीं जानते हैं. 14 अक्टूबर 1956 को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा लेकर, मूलनिवासी बहुजन समाज के उस इतिहास का पूर्नजीवित कर दिया, जिसे ब्राह्मणों ने समूल नष्ट कर दिया था.


संविधान निर्माता बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर का योगदान आमतौर पर मूलनिवासी बहुजनों के सामाजिक और राजनीतिक उत्थान में ही माना जाता रहा है, लेकिन यह जानकारी कम ही लोगों को है कि वह बड़े आर्थिक विद्वान भी थे. यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में उनका भी अहम योगदान था. एक राजनीतिक शख्सियत होने के साथ ही अंबेडकर शानदार स्कॉलर भी थे, जिनकी राजनीति से लेकर अर्थशास्त्र तक पर समान रूप से पकड़ थी. उन्होंने अपनी डॉक्टरेट की डिग्री अर्थशास्त्र में ही की थी. 


भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की बात की जाए तो उनकी ओर से हिल्टन यंग कमिशन को दिए गए सुझावों के तहत ही इस संस्था को गठित किया गया. हिल्टन यंग कमिशन को रॉयल कमिशन ऑन इंडियन करेंसी ऐंड फाइनेंस के नाम से भी जाना जाता था. अंबेडकर की पुस्तक ‘रुपये का संकट’ से भी हिल्टन यंग कमिशन को काफी मदद मिली थी. यही नहीं भीमराव आंबेडकर का श्रमिकों के लिए भी बड़ा योगदान था. देश में लेबर लॉ तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले भीमराव अंबेडकर के प्रयासों के चलते ही मजदूरों के लिए वर्किंग आवर्स को 12 से 8 घंटे तक किया जा सका. इसके अलावा आज प्रचलन में आए महंगाई भत्ते, लीव बेनिफिट, कर्मचारी बीमा, मेडिकल लीव, समान कार्य समान वेतन और न्यूनतम वेतन जैसी सुविधाओं को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के प्रयासों के चलते ही शुरू किया जा सका था. 


जानकर हैरानी होगी कि राजनीतिक जीवन की शुरुआत में किया था मजदूरों के लिए संघर्षः इसके अलावा समय-समय पर कर्मचारियों और मजदूरों के वेतनमान में सुधार भी भीमराव आंबेडकर की ही देन थे. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1936 में सबसे पहले इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी नामक दल क स्थापना के साथ शुरू की थी. इसके जरिए वह मजदूरों से जुड़े मुद्दों को उठाया करते थे. इसके बाद उन्होंने 1942 में ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट्स फेडरेशन का गठन किया था. इसी दल का नाम बदलकर बाद में रिपब्लिकन पार्टी कर दिया गया.


यही नहीं उन्होंने ही बिहार और मध्य प्रदेश के पुनर्गठन का सबसे पहले प्रस्ताव दिया था, जिसे 2000 में साकार किया जा सका, जब छत्तीसगढ़ और झारखंड का गठन हुआ. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने घोषणा की थी मैं बहुत जल्द ही पूरे भारत को बौद्धमय बनाने वाला हूँ. इस घोषणा के बाद कांग्रेस एवं उसकी पूरी मंडली डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की हत्या करने की साजिश करने लगे और साजिशन 06 दिसंबर 1956 को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की हत्या करने में ब्राह्मण सफल हो गये.


डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की हत्या के बाद उनके अनुयायियों को शक था की बाबासाहब की मौत स्वभाविक नहीं है. इसलिए उनके अनुयायियों ने डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की मौत की जांच करने की मांग की. उस वक्त डीआईजी सक्सेना ने इस पर जांच लगाई. लेकिन, उस रिपोर्ट को आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया. डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर रिसर्च सेंटर नई दिल्ली के प्रो. विलास खरात ने ‘‘डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर की हत्या क्यों, कैसे और किसने की?’’ नामक पुस्तक लिखी है. इस पुस्तक में उन्होंने इस षड्यंत्र का पर्दाफास किया है. लेकिन, आज तक ब्राह्मणों द्वारा इस पुस्तक पर विरोध दर्ज नहीं किया गया. @Nayak1

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