हम आजादी के लिए आंदोलन चला रहे हैं :वामन मेश्राम साहब
‘‘1848 से लेकर 1956 यानी 108 साल तक हमारे महापुरुषों ने जो आंदोलन चलाया उनकी बदौलत संविधान के माध्यम से आरक्षण सहित सारे अधिकार मिले. जिन लोगों को आरक्षण मिला जो लोग डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस बने. जबकि, 1848 से 1956 तक आंदोलन करने वाले लोगों को नौकरी नहीं मिली. जो लोग आंदोलन में शामिल नहीं थे उन लोगों को नौकरियाँ मिली. इसलिए पढ़े-लिखे, नौकरी करने वाले और हर प्रकार का फायदा लेने वाले लोगों के ऊपर समाज का कर्ज है. समाज का यह कर्ज चुकाने के लिए ‘पे बैक टू सोसाइटी’ के तहत फंड देना बहुत जरूरी है.’’
उत्तराखंड
में बामसेफ के द्वारा बड़ा आंदोलन चलाने की जरूरत है. आज यह आंदोलन 31 राज्यों, 550 जिलों, 4500 तहसीलों एवं लगभग 2 लाखों में फैला हुआ है. उत्तराखंड
के लोगों को इस आंदोलन में सक्रिय होना होगा. अगर शामिल होते हैं तो सत्ता भी
हासिल कर सकते हैं. यह बात बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम साहब ने
उत्तराखंड के उत्तरकाशी और टिहरी जिले के वर्चुअल अधिवेशन को संबोधित करते हुए
कही. बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम साहब ने कहा जो राजनीतिक आरक्षण है
इस राजनीतिक आरक्षण के बारे में उत्तराखंड के लोगों को जानकारी नहीं होगी कि
राजनीतिक आरक्षण किस तरह से एससी, एसटी के
लोगों को मिला. संविधान में चार प्रकार का आरक्षण है. पहला, रिजर्वेशन इन सर्विसेज, दूसरा रिजर्वेशन इन एजुकेशन, तीसरा रिजर्वेशन इन प्रमोशन और
चौथा है कि रिजर्वेशन इन पॉलिटिकल. इसमें रिजर्वेशन इन सर्विसेज, रिजर्वेशन इन एजुकेशन और रिजर्वेशन
इन प्रमोशन में 10 साल का कोई मर्यादा नहीं है. केवल
राजनीतिक आरक्षण के लिए 10 साल की मर्यादा है. इस बात को आधार
बनाकर ब्राह्मण प्रोपेगंडा कर रहे हैं कि आरक्षण केवल 10 साल के लिए था. जो लोग ऐसा प्रचार
कर रहे हैं उन लोगों को पता नही है कि आर्टिकल 15 (4) और 15 (4) के तहत जो
आरक्षण दिया जाता है और जो आर्टिकल 330-332 के तहत राजनीति आरक्षण दिया जाता है इनमें फर्क है.
यह बात एससी, एसटी को जानकारी नहीं है या जो
अपने को उच्च मानते हैं उनको भी ये जानकारी नहीं है. यह बात संविधान में लिखित है.
उन्होंने
कहा, 1885 में अगरकर, तिलक, गोखले ने कांग्रेस बनाया. इसके तहत
वे लोग अधिवेशन लेते थे और अपने लोगों को जागृत करके अंग्रेजों के विरोध में
आंदोलन निर्माण करते थे. जब यह आंदोलन बढ़ने लगा तो अंग्रेजों ने सोचा कि ये जो लोग
है ये लोग पापुलेशन गर्वमेंट में प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं. यदि हम लोग
उनको आरक्षण नहीं देते हैं असंतोष और ज्यादा बढ़ता जायेगा. इसलिए साउथ बरो कमीशन
बनाया गया और 1918 को भारत आया. उस समय भारत में
छत्रपति शाहूजी महाराज बड़े पैमाने पर सक्रिय थे और 1916 में डॉ. बाबासाहब अंबेडकर विदेश से शिक्षा लेकर भारत
आये थे. 1918 में जब साउथ बरो कमीशन आया तो उस
समय डॉ.बाबासाहब अंबेडकर उनको लिखित मेमोरेंडम दिया कि खासकर जो समाज के द्वारा
अछूत बनाए गये लोग हैं उनको प्रशासन में रिप्रजेंटेंशन होना चाहिए. उस समय
छत्रपति शाहूजी महाराज से प्रेरणा लेकर भास्कर राव जाधव ने भी मांग की थी. उस समय
कांग्रेस के बड़े नेता बाल गंगाधर तिलक ने ‘‘तेली, तमोली को संसद में जाकर क्या हल चलाना है?’’ इस तरह से विरोध किया. बालगंगाधर
तिलक ओबीसी के लोगों को अधिकार नहीं देना चाहते थे. वे आंदोलन में सभी लोगों को
समर्थन लेना चाहते थे, लेकिन सभी लोगों को अधिकार मिलना
चाहिए उसके समर्थक नहीं थे.
इस तरह से
बाबासाहब अंबेडकर ने अछूतों के लिए मांग की थी इसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ और
साउथ बरो कमीशन के द्वारा हमारे लोगों को कोई रिकमंडेशन नहीं किया गया. 1919 का जो कानून पास हुआ उस कानून में
हमारे लोगों को पॉपुलर गर्वमेंट में इलेक्शन के द्वारा प्रतिनिधित्व देने की बात
को अस्वीकार कर दिया गया. और अंग्रेज गर्वमेंट में गर्वनर के द्वारा हमारे लोगों
को नॉमिनिटेड रिप्रजेंटेशन देने का काम किया. 1919 के दौरान जब विधि मंडल का गठन हुआ तो उसमें
डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर सदस्य बन गए और हमारे लोगों की बातों को उठाना शुरू किया. 1924 को बहिष्कृत हितकारिणी सभा नाम का
संगठन बनाया और उसके द्वारा लोगों को जागृत करने का काम शुरू किया और 1927 को चावदार तालाब का आंदोलन किया.
इस आंदोलन में ब्राह्मणों ने अन्याय और अत्याचार किया. 1919 के कानून में एक प्रावधान था कि
जो भारतीय लोगों को पहला अधिकार दिया गया है उन अधिकारों में हर 10 साल बाद समीक्षा होगी. समीक्षा के बाद लोगों को और
कितना अधिकार बहाल किया जाए इसका अभ्यास करने के लिए अंग्रेजों ने 1928 में साइमन कमीशन को भारत भेजा.
वामन मेश्राम साहब ने कहा आगे कहा कि साइमन कमीशन भारत आने के बाद सारे देशभर में ढूंढ-ढूंढ कर अभ्यास करने लगा. उस दरम्यान गांधी ने विरोध में ‘साइमन कमीशन वापिस जाओ’ का आंदोलन शुरू किया. गांधी के आंदोलन के पीछे गांधी का मकसद यह था कि जो साइमन कमीशन के द्वारा एससी, एसटी ओबीसी के लोग है उन लोगों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाना था. क्योंकि 1919 के कानून में ये प्रावधान नहीं किया गया था. इस बात को ध्यान में रखते हुए गांधी ने सोचा कि आजादी का आंदोलन हम चला रहे हैं और अधिकार इन लोगों को मिल रहा है. इन लोगों को ये अधिकार नहीं मिलना चाहिए, इसलिए गांधी ने तिलक की तरह विरोध किया. लेकिन अछूत समुदाय से डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर और तमोली जाति से शिव दयाल सिंह चौरसिया ने साइमन कमीशन का स्वागत किया. तब तक अछूतों के लिए सेड्यूल कास्ट शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था.
जब गांधी के
द्वारा साइमन का विरोध हुआ तो अंग्रेजों ने इस बात का ध्यान रखा और ध्यान में रखते
हुए गांधी से पूछा आप क्यों विरोध कर रहे हो? साइमन कमीशन पर भारतीय प्रतिनिधित्व नहीं लिया गया है
इस वजह से मैं विरोध कर रहा हूं. इस पर साइमन ने कहा यह अंग्रेजों का सरकारी कमीशन
है और सरकार के द्वारा सरकारी प्रतिनिधियों को उन्होंने नियुक्त किया है. इसलिए
इसमें भारतीय प्रतिनिधित्व नहीं लिया गया है तो जब इसमें रिकमंडेशन आयेगा तब इस पर
आप लोगों की राय ली जायेगी. तब गांधी ने इस विरोध आंदोलन को पीछे लिया, उसके बाद साइमन कमीशन ने रिपोर्ट
दे दिया. तब बाबासाहब अम्बेडकर ने 1930 में काला राम मंदिर सत्याग्रह शुरू किया. उस समय
उन्होंने बहुत बड़ी बात कही कि चावादार तलाब के सत्याग्रह में हमने जिन लोगों के
लिए समान अधिकारों की मांग थी वह पत्थर से सिर टकराने वाली बात थी. पहले हम ऐसा
मानते थे कि अस्पृष्यता हिन्दू धर्म पर लगा हुआ कलंक है, लेकिन अब हम ऐसा मानते हैं कि यह
अछूतों की नरदेह पर लगा हुआ कलंक है और इसे धोने की ज़िम्मेदारी केवल अछूतों पर
है. इसलिए अब हम अपने अधिकार अलग से हासिल करेंगे.
उन्होंने कहा जो साइमन कमीशन के द्वारा रिकमंडेशन किया था उप पर राय लेने के लिए लंदन में 1930 में प्रथम राउंडटेबल कांफ्रेंस आयोजित किया गया. इसके लिए बाबासाहब सहित गांधी को भी बुलाया गया लेकिन, गांधी यह सोचकर नहीं गए कि यह कांफ्रेंस भारत में होता तो इसका विरोध करने का मौका मिलता, इसलिए गांधी नहीं गये. बाबासाहब वहां गये और अपने लोगों के लिए सेपरेट इलेक्ट्रोरेट की मांग की. लेकिन, इस कांफ्रेंस में कोई फैसला नहीं हुआ. जब दूसरी बार राउंडटेबल कांफ्रेंस किया गया तो गांधी जी गये क्योंकि उनको लगा अगर हम नहीं गए तो इस बार फैसला ले लिया जायेगा. वहां जाकर गांधी ने कहा कि अगर अंग्रेज हम लोगों को आजादी देना चाहते हैं और अछूतों को अधिकार देते हैं हमें ऐसी आजादी नहीं चाहिए, हम इसका विरोध करते हैं. इस पर बाबासाहब ने गांधीजी के मुह पर गांधीजी का कड़ा विरोध किया. जब बाबासाहब ने गांधी के बातों को काटते हुए अपनी बात रखी तो गांधी ने अंग्रेजों से कहा आप लोग इस कांफ्रेस को दो दिन के लिए स्थगित करिए हम लोग आपस में राय मसवरा करेंगे. इस तरह से गांधी ने जो बाबासाहब सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग की थी और मिल भी गया था लेकिन, गांधी ने इसके विरोध में आमरण अनशन करके पूना पैक्ट के माध्यम से हमारे ऊपर ज्वाइंट इलेक्टोरेट थोप दिया. आजाद भारत में यह थोपा गया. डॉ. बाबासाहब ने इस ज्वाइंट इलेक्टोरेट को खत्म करने की कोशिश, अंग्रेजों ने भी वादा किए थे, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने धोखा दे दिया और ब्राह्मणों के ऊपर छोड़कर चले गए.
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, आजाद भारत में हमारी समस्या क्या है? हमारी समस्या यह है कि आजाद भारत में हमें गुलाम बनाकर रखा गया है. 1952 में बाबासाहब ने पटियाला में अपने भाषण में कहा ‘‘आजाद भारत में हम लोग आजाद नहीं है. आजाद भारत में हम लोगों को गुलाम बनाकर रखा गया है. यह गुलामी हमारी वजह से नहीं है, बल्कि हमारी गुलामी उनके द्वारा थोपी गई गुलामी है.’’ यही ज्वाइंट इलेक्टोरेट ओबीसी में लागू कर दिया, मुसलमानों में भी लागू कर दिया. यानी आजाद भारत में एससी, एसटी, ओबीसी एवं मायनॉरिटी को सच्चा प्रतिनिधित्व का अधिकार नहीं है. अगर, हम थोपी हुई गुलामी के विरोध के आंदोलन करते हैं हमारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा. और जो आरक्षण का मसला है हम उसे हल कर सकते हैं. अगर हम आरक्षण का आंदोलन करते हैं तो गुलामी का मामला आरक्षण के आंदोलन में शामिल नहीं किया जा सकता है. हम आजादी के आंदोलन में आरक्षण के आंदोलन को शामिल कर सकते हैं. गरीबी हटाने का भी मामला शामिल कर सकते हैं. बाबासाहब अम्बेडकर ने आरक्षण के लिए आंदोलन नहीं चलाया था, लेकिन आरक्षण मिला. क्योकि, गुलामी खत्म करने के लिए आंदोलन चला रहे थे इसलिए आरक्षण मिला. अगर हम लोग गुलामी खत्म करने के लिए आंदोलन चलाते हैं तो आने वाले समय में आरक्षण बच सकता है.
वामन मेश्राम साहब ने अंत में कहा कि उत्तराखंड के पढ़े-लिखे लोगों के पास इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए ‘पे बैक टू सोसाइटी’ के तहत फंड के लिए लोग जाते हैं तो वे लोग कहते हैं हम फंड क्यों दें? उनको ये मामूल नहीं है कि 1848 से लेकर 1956 यानी 108 साल तक हमारे महापुरुषों ने जो आंदोलन चलाया उनकी बदौलत संविधान के माध्यम से आरक्षण सहित सारे अधिकार मिले. जिन लोगों को आरक्षण मिला जो लोग डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस बने. जबकि, 1848 से 1956 तक आंदोलन करने वाले लोगों को नौकरी नहीं मिली. जो लोग आंदोलन में शामिल नहीं थे उन लोगों को नौकरियाँ मिली. इसलिए पढ़े-लिखे, नौकरी करने वाले और हर प्रकार का फायदा लेने वाले लोगों के ऊपर समाज का कर्ज है. समाज का यह कर्ज चुकाने के लिए ‘पे बैक टू सोसाइटी’ के तहत फंड देना बहुत जरूरी है.@Nayak1
We are Leading the Movement for Independence: Waman Meshram Saheb
Virtual
session of Bamsef in Uttarkashi and Tehri district
There is a need to launch a big movement through BAMCEF in
Uttarakhand. Today this movement is spread in 31 states, 550 districts, 4500
tehsils and about 2 lakhs. People of Uttarakhand have to be active in this
movement. If you join then you can also gain power. This was stated by Bamsef
national president Vaman Meshram Sahab while addressing the virtual session of
Uttarkashi and Tehri districts of Uttarakhand. Bamsef national president Vaman
Meshram Saheb said that this political reservation will not be known to the
people of Uttarakhand about how the political reservation was received by the
people of SC, ST. There are four types of reservation in the constitution. The
first is Reservation in Services, the second Reservation in Education, the
third Reservation in Promotion and the fourth is Reservation in Political.
There is no limit of 10 years in reservation in services, reservation in
education and reservation in promotion. 10 years is only for political
reservation. On the basis of this, the Brahmins are propagating that the
reservation was only for 10 years. Those who are doing this propaganda are not
aware that there is a difference between the reservation given under Articles
15 (4) and 15 (4) and the politics reservation given under Articles 330-332.
This thing is not known to SC, ST or even those who consider themselves high,
do not have this information. This thing is written in the constitution.
He said, in 1885, Agarkar, Tilak, Gokhale formed the
Congress. Under this, they used to take a session and awaken their people and
create an agitation against the British. When this movement started growing,
the British thought that these people, who are these people, are demanding
representation in the Population Government. If we do not give them
reservation, dissatisfaction will increase further. Hence the South Borough
Commission was created and came to India in 1918. At that time Chhatrapati Shahuji
Maharaj was active in India on a large scale and in 1916 Dr. Babasaheb Ambedkar
came to India with education from abroad. When the South Borough Commission
came in 1918, Dr. Babasaheb Ambedkar gave a written memorandum to him that
especially those who are untouchable by the society, they should have
representation in the administration. At that time, Bhaskar Rao Jadhav also
sought after taking inspiration from Chhatrapati Shahuji Maharaj. At that time,
Congress leader Bal Gangadhar Tilak protested in this way, "Teli, Tamoli
have to go to Parliament?" Balgangadhar Tilak did not want to give rights
to OBC people. He wanted to support all the people in the movement, but not all
his supporters should get the rights.
In this way, Babasaheb Ambedkar had demanded for the
untouchables, there was widespread opposition and no recollection was done to
our people by the South Borough Commission. The law passed in 1919, in that
law, the representation of our people by election in the popular government was
rejected. And in the British government, through the governor, he gave the
nominee representation to our people. When the Law Board was formed during
1919, Dr. Babasaheb Ambedkar became a member in it and started raising the talk
of our people. In 1924, organized an organization called Bahishkrit Hitkarini
Sabha and started the work of awakening the people and in 1927 started the
movement of Chavdar Talab. In this movement, Brahmins committed injustice and
atrocities. There was a provision in the 1919 law that the first rights given
to the Indian people would be reviewed after every 10 years. After review, the
British sent Simon Commission to India in 1928 to practice how much more people
should be restored.
Waman Meshram Saheb said further that after the Simon
Commission came to India, it started to search and search all over the country.
In the meantime, Gandhi started the 'Simon Commission Go Back' protest in
protest. Gandhi's motive behind Gandhi's movement was that the people who
belong to SC, ST OBC were to be given representation by Simon Commission.
Because this provision was not made in the 1919 law. Keeping this in mind,
Gandhi thought that we are running the freedom movement and these people are
getting rights. These people should not get this right, so Gandhi protested
like Tilak. But Dr. Babasaheb Ambedkar from untouchable community and Shiv
Dayal Singh Chaurasia from Tamoli caste welcomed Simon Commission. Till then
the term sedul cast was not used for untouchables.
When Simon was opposed by Gandhi, the British kept this in
mind and keeping in mind, asked Gandhi, why are you opposing? I am protesting
because Indian representation has not been taken on the Simon Commission. On
this, Simon said that this is the British government commission and he has
appointed government representatives through the government. Therefore, Indian
representation has not been taken in it, so when it comes to recommandation,
your opinion will be taken on it. Then Gandhi overtook this protest movement,
after which the Simon Commission gave the report. Then Babasaheb Ambedkar
started the Kala Ram Temple Satyagraha in 1930. At that time, he made a very
big point that in the Satyagraha of Chavadar Talab, the people for whom we
demanded equal rights was a matter of hitting the head with a stone. Earlier we
used to believe that untouchability is a stigma on Hindu religion, but now we
believe that it is a stigma on the untouchables' narcotics and the
responsibility of washing it is only on the untouchables. So now we will get
our rights separately.
He said that the first roundtable conference was held in
London in 1930 to seek opinion on the submissions which were done by the Simon
Commission. For this, Gandhi along with Babasaheb was also called, but Gandhi
did not go thinking that had this conference been in India, he would have got a
chance to oppose it, so Gandhi did not go. Babasaheb went there and demanded
Separat Electorate for his people. But, no decision was taken in this
conference. When the roundtable was held for the second time, Gandhiji went
because he felt that if we did not go, the decision would be taken this time.
Going there, Gandhi said that if the British want to give freedom to the people
and give rights to the untouchables, we do not want such freedom, we oppose it.
On this Babasaheb strongly opposed Gandhiji on Gandhiji's mouth. When Babasaheb
kept talking about Gandhi's words, Gandhi told the British that you guys
postpone this conference for two days, we will exchange opinions among
ourselves. In this way, Gandhi had demanded the Babasaheb Separate Electorate
and was also found, but in protest against this, Gandhi went on fast unto death
and imposed a joint electorate on us through Poona Pact. It was imposed in
independent India. Dr. Babasaheb promised to end this joint electorate, the
British also promised, but later the British cheated and left the Brahmins.
The national president said, what is our problem in
independent India? Our problem is that we have been enslaved in independent
India. In 1952 Babasaheb said in his speech in Patiala, "We are not free
in independent India. We have been enslaved in independent India. This slavery
is not because of us, but our slavery is slavery imposed on them. That is, in
independent India, SC, ST, OBC and minorities do not have the right to true
representation. If we protest against forced slavery, we will have a nationwide
movement. And we can solve the reservation issue. If we do the movement for
reservation, then the issue of slavery cannot be included in the reservation
movement. We can include the movement for reservation in the freedom movement.
You can also include the case of poverty removal. Babasaheb Ambedkar did not
agitate for reservation, but got reservation. Because, they were running
agitation to end slavery, so got reservation. If we run a movement to end
slavery, then reservation can be saved in the coming time.
Waman Meshram Saheb finally said that educated people of
Uttarakhand go to fund under 'Pay Back to Society' to pursue this movement, so
they say why should we fund? They do not have any chance that the movement that
our great men started from 1848 to 1956 i.e. 108 years, gave them all rights
including reservation through the Constitution. People who got reservation,
people who became doctors, lawyers, engineers, IAS, IPS. However, those who
agitated from 1848 to 1956 did not get jobs. Those who were not involved in the
movement got jobs. Therefore, the debt of the society is on the educated, the
working and the people who take every kind of benefit. To pay this debt of the
society, it is very important to give fund under 'Pay Back to Society'. @
Nayak1
Thank you Google
Jay mulnivasi
ReplyDeletejay mulnivasi
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