ब्राह्मणवादी आतंकवाद: हेमंत करकरे की पड़ताल
“हिंदुत्व” की नक़ाब में ब्राह्मणवादी आतंकवाद
भारत में 2002 के बाद कथित हिंदुत्व की आड़ में सक्रिय ब्राह्मणवादी संगठनों ने आतंकवादी बम धमाके किए और इलज़ाम मुसलमानों पर थोपा गया।इन बम विस्फोटों को बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात जनसंहार की प्रतिक्रिया कहा गया। ।...
ब्राह्मणवाद और सांप्रदायिकता का इतिहास
"हू किल्ड करकरे?" नामक अपनी पुस्तक में मैंने 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक और 20 के दशक के दौरान भारत में हिंदू-मुस्लिम दंगों के कारणों का विवेचन किया है। इसमें बताया गया है कि ये दंगे दोनों समुदायों के बीच किसी प्रकार के विद्वेष, वास्तविक ग़लतफ़हमी, अचानक या आकस्मिक घटनाओं के परिणाम नहीं थे। यह वह समय था जब ऊंच-नीच पर आधारित ब्राह्मणवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ हिंदू समाज में नयी चेतना का संचार हो रहा था। ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलनों से जनता का ध्यान हटाने के लिए सांप्रदायिक ज़हर फैलाया गया। यह सिलसिला 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से प्रारंभ हुआ। ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ आंदोलन के सूत्रधार महात्मा ज्योतिबा फुले थे। उनके बाद रामास्वामी पेरियार ने इस आंदोलन की अगुआई की, नारायण गुरु और अन्य लोगों के नेतृत्व में यह आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में आगे बढ़ा। इस आंदोलन के नेता आम हिंदुओं को यह समझाने में काफ़ी हद तक कामयाब रहे कि ऊंच-नीच पर आधारित ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था ही उनके पिछड़ेपन का बड़ा कारण है। इस आंदोलन को मिल रहा व्यापक समर्थन ब्राह्मणवादियों के लिए चिंता का कारण बन गया। वे इस आन्दोलन से आम जनता का ध्यान हटाने में पूरे जतन से जुट गए। इसके लिए उन्होंने हिंदू-मुस्लिम मुद्दे को चुना, यह उनके लिए आसान मुद्दा था। आम हिंदू उनकी तिकड़मों और छल-प्रपंच को ठीक तरह से समझ नहीं पाए। वे सदियों से उनके फैलाए प्रपंच का शिकार होते रहे हैं। इन तत्वों ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए आम हिंदुओं को अपने पीछे संगठित करने के मकसद से सांप्रदायिक उन्माद भडकानाw, हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य उत्पन्न करना प्रारंभ किया। इस तरह देश में सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत हुई। प्रतिगामी ब्राह्मणवाद का आरंभिक लक्ष्य समाज पर अपना सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नियंत्रण कायम रखना था। समय बीतने के साथ उन्होंने महसूस किया कि हिंदू-मुस्लिम दंगे उनके लिए बहुत लाभकारी हैं। सामाजिक दृशि से इन दंगों का उनके लिए फ़ायदा यह था कि उनकी वर्चस्ववादी नीतियों से आम हिंदुओं का ध्यान हटता था। राजनैतिक रूप से भी ये लाभकारी थे। हर दंगे के बाद सभी जातियों के हिंदू युवा ब्राह्मणवादियों के इर्द-गिर्द गोलबंद होने लगते। इसने ब्राह्मणवादियों को राजनैतिक सत्ता की आकांक्षा को तीव्र किया। वे सांप्रदायिक उन्माद भड़काने लगे। इसी क्रम में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि जैसा भावनात्मक मुद्दा उठाया गया। अंत में अपनी इसी प्रकार की नीतियों के ज़रिए वे बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद केंद्र और कई राज्यों में सत्ता प्राप्त करने में कामयाब हुए। आज़ादी के बाद सांप्रदायिक राजनीति की ब्राह्मणवादी पराकाष्ठा इस तरह फलीभूत हुई . इसके बाद 2002 में गुजरात में सांप्रदायिकता के नाम पर वीभत्स जनसंहार हुआ। इसमें 2000 से अधिक मुसलमान, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, बेरहमी से क़त्ल किए गए, हज़ारों घायल और लाखों बेघर हुए। इस जघन्य कांड के बाद ब्राह्मणवादी संगठनों और आईबी के भीतर मौजूद विकृत तत्वों का मनोबल काफ़ी अधिक बढ़ गया। उन्हें इतमीनान हो गया कि वे अब चाहे जितना खुलकर आतंकवादी कुकृत्य करें, बम विस्फोट करें, उनपर संदेह नहीं किया जा सकेगा। संदेह के निशाने पर मुसलमान ही रहेंगे। इस प्रकार 'विस्फोट करो और मुसलमानों पर दोष थोपो' का खेल प्रारंभ हुआ। इसी दौरान अभिनव भारत नामक संगठन उभरा। इसका गठन आरएसएस के प्रतिबद्ध ब्राह्मणवादी तत्वों ने किया था। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान को नष्ट करना, देश में क़ायम लोकतांत्रिक व्यवस्था को अस्थिर करना और वेदों और स्मृतियों पर आधारित आर्यवर्त हिंदू राष्ट्र (Brahminist Rashtra) की स्थापना करना था। मुख्य मास्टर माइंड सेना में कार्यरत लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और जम्मू पीठ के महंत दयानंद पांडे थे। योजना यह बनी कि सैन्य ख़ुफ़िया विभाग में तैनात कर्नल पुरोहित सैन्य भंडार से आरडीएक्स (RDX) चुराएंगे। आरडीएक्स सख़्त प्रतिबंधित और अनुपलब्ध विस्फोटक पदार्थ है। षड्यंत्र में संलिप्त अन्य लोग युवकों को बम बनाने का अल्पकालिक प्रशिक्षण देंगे और इसके बाद देश भर में सक्रिय ब्राह्मणवादी आतंकवादी संगठनों के बीच इस आरडीएक्स को वितरित करेंगे। बाद के घटनाक्रम से पता चलता है कि 2003 से 2008 तक देश में हुए बम विस्फोटों की श्रृंखला इसी साज़िश का नतीजा थी। आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) देश की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसी है। इसके बावजूद, इसने ब्राह्मणवादी आतंकी संगठनों की मदद की। आईबी ने सरकार को अभिनव भारत और आरएसएस की ख़तरनाक योजनाओं के बारे में कभी सूचित नहीं i. The chargesheet of Malegaon 2008 case (Maharashtra ATS C.R. No. 18/2008) filed in MCOCA court in January 2009. ii. The statement of Sanatkumar Bhate, a retired merchant navy captain, recorded by the ATS Maharashtra on 20 April and 18 May 2006 in the Nanded (Maharashtra) blast case of 2006. iii. Narco-test reports in respect of Sanjay Choudhary and Rahul Pandey in Nanded blast case 2006. iv. Rakesh Dhawade's statement in Jalna (Maharashtra) 2004 blast case as reported, www.hindustantimes.com/india/rss-man-linked-to-bomb- making-camp-again/story-2gU0K01yISfp5fesqNSisO.html, 24 December 2008 (Accessed 20 February, 2019). किया। आरएसएस, अभिनव भारत और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए प्रत्येक बम विस्फोट के बाद, आईबी ने बिना देर किए सारा दोष जैश-ए-मोहम्मद (Jaish e-Mohammad,), हजी (HuJI), लश्कर-ए-तोएबा (Lashkar-e-Toiba) और सिभी (SIMI) जैसे मुस्लिम संगठनों पर मढ़ा। राज्यों की आतंकवाद विरोधी इकाइयों आईबी की पिड्डू थीं। उनको जरिया बनाकर कुछ मुसलमान लड़कों को गिरफ्तार करना, मीडिया में ब्राह्मणवादी तत्वों द्वारा पुलिस की मनगढंत कहानियों को नमक-मिर्च लगाकर व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार, गिरफ़्तार मुस्लिम युवकों से पुलिस हिरासत में इकबाले-जुर्म की तहरीर पर हस्ताक्षर कराना और इन इकबालिया बयानों तथा चतुराई से तैयार पंचनामों की बुनियाद पर निर्दोष युवकों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करना आम तरीक़ा बन गया। कुछ महीनों के बाद फिर धमाके होते, बम फूटते और यही सब दोहराया जाता। ऐसा माहौल बना दिया गया कि सभी बम धमाके मुसलमानों की ही करतूत हैं। स्थिति यहां तक आ गई कि खुद मुसलमानों में यह संदेह घर करने लगा कि उनके समुदाय के भीतर कुछ विकृत लोग हैं, जो इन आतंकवादी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। मुस्लिम समुदाय के संगठन हड़बड़ाहट में इस प्रकार के एलान करने लगे कि इस्लाम में इस तरह की हिंसा के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, इस्लाम में यह स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि ये वारदातें कुछ विकृत मुस्लिम युवाओं का काम है। इस सबसे आईबी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अभिनव भारत के षड्यंत्रकारी और अपराधी बेहद खुश थे। उनका अंतिम लक्ष्य अराजकता, अव्यवस्था उत्पन्न करना और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को अस्थिर करना था। अगर इस तरह के कुछ और धमाके हुए होते तो वे अपने इस मक़सद में शायद कामयाब भी हो जाते लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
मालेगांव विस्फोट: हेमंत करकरे की जांच
यही वह समय था जब हेमंत करकरे सामने आए और भारत में आतंकवाद की असली तस्वीर उजागर हो गई। उन्होंने जून 2008 में महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख का पदभार संभाला।
मालेगांव बम विस्फोट सितंबर 2008 में हुआ था। पिछले बम विस्फोट के मामलों में आईबी मुसलमानों का हाथ होने के बारे में सूचना भेजा करता था। इसी तरह आईबी ने इस मामले में भी मुसलमानों की संलिप्तता की सूचना भेजी। लेकिन बिना किसी साक्ष्य के इस तरह की किसी सूचना पर विश्वास करने के लिए करकरे सहमत नहीं हुए। उन्होंने आईबी का हुक्म मानने से इनकार पेज 5 कर दिया, पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ मामले की जांच करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अभिनव भारत की देशव्यापी राष्ट्रविरोधी साज़िश को उजागर किया। 2008 के मालेगांव विस्फोट के अन्वेषण में मुख्य तथ्य जिनसे यह पता चला कि अभिनव भारत, आरएसएस और अन्य दक्षिणपंथी समूह पहले भी बम विस्फोट की आतंकवादी वारदातों में संलिप्त रहे हैं इस प्रकार थे : i) लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित का नार्को परीक्षण, ii) अभिनव भारंत की बैठकों की वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग टेप, iii) लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य आरोपियों के बीच टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत का रिकॉर्ड आदि।'
मालेगांव के पहले हुए विस्फोटों में भी महत्वपूर्ण सुराग़ मिले थे परंतु ब्राह्मणवादी आतंकवादियों को बचाने के लिए उन्हें जान-बूझकर दबाया गया; दोबारा जांच हुई तो असलियत सामने आ गई : ऐसा नहीं है कि मालेगांव बम विस्फोट पहला मामला था जिसमें दक्षिणपंथी समूहों की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता उजागर हुई थी। इसके पहले के विस्फोट के मामलों की जांच में इस आशय के संकेत सामने आए थे, परंतु उन्हें दबा दिया गया था। फ़र्क़ यह था कि मालेगांव मामले में हेमंत करकरे ने उन्हें सार्वजनिक कर दिया। सच यह है कि राजरस्थान में अजमेर शरीफ़ (2007), हैदराबाद में मक्का मस्जिद (2007) और हरियाणा में समझौता एक्सप्रेस (2007) बम विस्फोट की आतंकवादी घटनाओं के कुछ ही दिनों के अंदर पुलिस को कई महत्वपूर्ण सुराग़ मिले थे। लेकिन आईबी तथा मामले में दिलचस्पी रखनेवाले ख़ास लोगों के दबाव के कारण इन सुराग़ों के आधार पर आगे कार्रवाई रोक दी गई। बहरहाल, हेमंत करकरे द्वारा मालेगांव 2008 मामले का जिस ज़बरदस्त तरीक़े से रहस्योद्घाटन 7 The Times of India, Pune, 7 November, 2008, 11 November, 2008, 12 November, 2008, 15 November, 2008 and 16 November, 2008; Pune Mirror (Times of India Group), 15 & 19 November, 2008; The Indian Express, Pune 14 & 24 November, 2008; Marathi dailies Sakal, Pune and Pudhari, Pune 15 November 2008 8 Volume No. IIIB enclosed with the chargesheet of Malegaon 2008 (ATS Maharashtra C.R. No. 18/2008). 9 Ibid. ...ओर आगे पढने के लिए कॉमेंट जरूर करे.