भूख का
गहराता संकट
50
सालों की सबसे भयावह मानवीय त्रासदी के दौर में भारत
‘‘गांव में
रहने वाले अपने परिवार का खर्च अभी तक प्रवासी मजदूर उठा रहे थे, लेकिन आज जब प्रवासियों को खुद गांव
लौटना पड़ा है, परिवार के
ऊपर भोजन के इंतजाम का दबाव बढ़ गया है. दिहाड़ी मजदूर, बुनकर, घरों में काम करने वाले लोग, रिक्शा चालक और रेहड़ी-पटरी वालों का
जीवन पहले भी खुशहाल नहीं था, लेकिन अब वे भूख के संकट का बहुत गहराई
के साथ सामना कर रहे हैं.’’
ऐसा
दिखाने की कोशिश हो रही है कि जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं
और अधिकतर प्रवासी मजदूर अपने गांव लौट गए हैं, तब भूख और रोजी-रोटी की समस्या खत्म हो
गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है. सच तो सिर्फ इतना है कि अचानक से थोपे
गए लॉकडाउन ने पहले से ही मंदी में चल रही हमारी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है और
यह लंबे समय तक नुकसान पहुंचाता रहेगा. गांव में रहने वाले अपने परिवार का खर्च
अभी तक प्रवासी मजदूर उठा रहे थे, लेकिन आज जब प्रवासियों को खुद गांव लौटना पड़ा है, परिवार के ऊपर भोजन के इंतजाम का दबाव
बढ़ गया है. दिहाड़ी मजदूर, बुनकर, घरों में काम करने वाले लोग, रिक्शा चालक और रेहड़ी-पटरी वालों का
जीवन पहले भी खुशहाल नहीं था, लेकिन अब वे भूख के संकट का बहुत गहराई के साथ सामना कर रहे हैं. भूख की इस
चपेट में अब कई नए वर्ग के लोग भी जुड़ गए हैं.
गूगल से ली गई छायाचित्र
छोटे
उद्योगों से नौकरी गंवाने वाले लोग, रेस्तरां में काम करने वाले, घरेलू कामगार, सेक्स वर्कर्स और यहां तक कि प्राइवेट
स्कूल के शिक्षक और ट्यूशन पढ़ाने वाले लोग भी भूख के संकट का सामना करने लगे हैं.
ये सभी लोग भुखमरी की स्थिति से दूर रहने के लिए उन तरीकों को ईजाद कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल हाशिए पर खड़े लोग
सदियों से करते आ रहे हैं. भोजन के प्लेट से महंगे व्यंजन जैसे कि दाल, दूध, सब्जियां, फल, अंडे और मांस कम होने लगे हैं. कई
परिवारों ने बताया है कि वे सिर्फ चावल, रोटी और नमक खाकर अपना गुजारा कर रहे
हैं. भोजन की मात्रा और एक दिन में किए जाने वाले भोजन की संख्या में कमी हो रही
है. मजबूरन कई लोगों को रात में भूखे पेट सोना पड़ रहा है. जिन बच्चों को स्कूलों
या आंगनबाड़ी केंद्रों पर मिलने वाले मध्याह्न भोजन से एक वक्त का भोजन नसीब होता
था, आज उन्हें
काम के लिए निकलना पड़ रहा है. बच्चे कूड़ों के बीच फेंका हुआ बासी खाना या बेचने का
कोई सामान ढूंढ रहे हैं.
कई
वैश्विक रिपोर्टों का कहना है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से करोड़ों लोग
भयानक गरीबी और भूख की चपेट में हैं. संयुक्त राष्ट्र का एक अध्ययन कहता है कि
लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव यह है कि 40 करोड़ नए लोग अत्यंत गरीबी का जीवन जी
रहे हैं और आने वाले दिनों में यह संकट और विशाल रूप लेने वाला है. सबसे चिंताजनक
बात तो यह है कि नए गरीबों में आधे से अधिक लोग दक्षिण एशिया खासकर भारत के हैं.
कोरोना या लॉकडाउन का इतना बुरा असर देश पर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां नागरिकों की
सामाजिक सुरक्षा जैसी चीज पहले से ही बुरी स्थिति में है और आने वाले कई सालों तक
इसके सुधार की गुंजाइश नहीं दिखती है.
भूख के
मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर फिलिप अल्सटन का अनुमान है कि आज 25 करोड़ से अधिक लोग तीव्र भूख के संकट का
सामना कर रहे हैं. उनका भी मानना है कि गरीबी का यह संकट लंबे समय तक चलने वाला
है. फिलिप अल्सटन गरीबी खत्म करने वाली सरकारी नीतियों के ध्वस्त होने की तीखी
आलोचना करते हैं. कोरोना महामारी के प्रभाव को रोक पाने में नाकाम सरकारी नीतियों
पर फिलिप अल्सटन का गुस्सा बिल्कुल जायज है. भारत सरकार के बड़े अधिकारी अभी भी भूख
और आजीविका के संकट को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. हमारी सरकार राहत पैकेज पर जीडीपी
का मात्र 1 फीसदी
हिस्सा खर्च कर रही है जो दुनिया में सबसे कम है. अर्थव्यवस्था खासकर लघु व मध्यम
उद्योग को उबारने के लिए हमारे देश की वित्त मंत्री लोन बांटने का फैसला करती हैं.
अब सवाल
यह है कि क्या वित्त मंत्री को इस बात का अंदाजा नहीं है कि आज जब हर सेक्टर मंदी
की मार झेल रहा है तब लोन लेने और उसे चुकाने का रिस्क कोई नहीं लेना चाहेगा? अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के नाम
पर सरकारें मजदूरों के अधिकारों का भी गला घोंट रही हैं. बेसहारा कामगारों को मदद
देने की बजाय कई राज्य सरकारों ने इस महामारी को एक अवसर के रूप में लेने की कोशिश
की, जिससे
मजदूरों का अधिकार छीन लिया जाए. कुछ राज्य सरकारों ने मजदूरों से 12 घंटे काम लेने का नियम बनाने की कोशिश
की, कुछ
सरकारों ने मजदूरों के अधिकार अगले तीन साल के लिए निरस्त करने का फैसला सुनाया.
क्या
सरकारें गरीबी और भूख को भुला चुकी हैं?
इस
महामारी से पहले भी भारत भूखे पेट सोने वालों और कुपोषित बच्चों के मामले में
दुनिया के सबसे बदहाल देशों में शामिल था.119 देशों की सूची में भारत 102 नंबर पर था जो एशिया के सबसे गरीब
देशों से भी बुरी स्थिति है. 45 सालों में सबसे अधिक बेरोजगारी के साथ अर्थव्यवस्था भी अभूतपूर्व संकट से
गुजर रही थी. ऐसी स्थिति में हमारी सरकार ने रातोंरात दुनिया का सबसे कड़ा लॉकडाउन
लगाने का फैसला किया. अचानक से सारी व्यवस्थाएं ठप कर दी गईं. अब जब कोरोना का
संक्रमण बिहार-यूपी जैसे स्वास्थ्य के मामले में बदहाल राज्यों तक पहुंच गया है और
शहरों के बेघर-गरीब प्राइवेट चिकित्सा व्यवस्थाओं से महरूम हैं, इस मानवीय त्रासदी के कम होने के कोई
आसार नजर नहीं आते. इन सभी परिस्थितियों के बीच देश का राजनीतिक तबका, मीडिया और मध्यम वर्ग एक अलग ही राग
अलाप रहा है.
एक
राजनीतिक दल दूसरे दल के विधायकों की खरीद-फरोख्त करके सरकार गिराने की जुगत में
है, कहीं रफाल
के भारत पहुंचने की खुशी मन रही है तो कहीं सरकार से असहमति रखने वाले लोगों को
जेल भेजा जा रहा है. मध्यकालीन मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का शिलान्यास करके
विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़़ाने की कोशिश हो रही है. दूसरी ओर करोड़ों लोग गरीबी
और भुखमरी की चपेट में जा रहे हैं. इससे साबित होता है कि भारत पिछले 50 साल के सबसे भयावह मानवीय त्रासदी के
दौर में प्रवेश कर चुका है.@Nayak1
Exacerbation of hunger
India in the most
terrible human tragedy of 50 years
"The migrant laborers were yet to bear
the expenses of their family living in the village, but today when the migrants
themselves have to return to the village, the pressure of food arrangements has
increased on the family. The lives of daily wage laborers, weavers, household
people, rickshaw pullers and street vendors were not happy before, but now they
are facing the hunger crisis very deeply. "
It is being tried to
show that when all the systems in the country are gradually opening up and most
of the migrant laborers have returned to their villages, then the problem of
hunger and livelihood has ended. While the truth is quite the opposite. The
truth is that the sudden lockdown has broken the back of our economy already in
recession and it will continue to hurt for a long time. The migrant laborers
were yet to bear the expenses of their family living in the village, but today
when the migrants themselves have to return to the village, the pressure of
food arrangements has increased on the family. Day laborers, weavers, people
working in the houses , The life of rickshaw drivers and street vendors was not
happy before, but now they are facing the hunger crisis with great depth. Many
new classes of people have also joined this hunger.
Photograph taken from Google
People losing jobs from
small industries, restaurant workers, domestic workers, sex workers, and even
private school teachers and tuition teachers have started facing hunger crisis.
All these people have been devising methods which have been used for centuries
by marginalized people to avoid starvation. Expensive dishes such as lentils, milk,
vegetables, fruits, eggs and meat have started to decrease from the food plate.
Many families have told that they are making a living by eating only rice,
bread and salt. The amount of food and the number of meals taken in a day are
decreasing. Many people are forced to sleep hungry at night. The children, who
used to get a one-time meal from the mid-day meal available in schools or
Anganwadi centers, today they have to leave for work. Children are searching
for stale food or any items sold for sale among the garbage.
Many global reports say
that millions of people are in the grip of terrible poverty and hunger due to
Corona epidemic and lockdown. A United Nations study says that the economic
impact of the lockdown is that 400 million new people are living a life of
extreme poverty and this crisis is going to take a huge form in the coming
days. The most worrying thing is that more than half of the new poor are from
South Asia, especially India. Corona or lockdown had such a bad effect on the
country because things like social security of citizens are already in bad
condition and there is no scope for its improvement for many years to come.
United Nations Special
Rapporteur on hunger matters Philip Alston estimates that today more than 250
million people are facing acute hunger crisis. They also believe that this
crisis of poverty is going to be long lasting. Philip Alston strongly condemns
the collapse of government policies that end poverty. Philip Alston's anger at
government policies that failed to curb the impact of the Corona epidemic is
justified. Major officials of the Indian government are still not accepting the
hunger and livelihood crisis. Our government is spending only 1 percent of GDP
on the relief package, which is the lowest in the world. The Finance Minister
of our country decides to distribute loans to boost the economy especially
small and medium scale industries.
Now the question is
whether the Finance Minister has no idea that today, when every sector is
facing recession, no one would want to take the risk of taking loan and
repaying it? In the name of bringing the economy back on track, governments are
also strangling the rights of workers. Instead of providing help to the
destitute workers, many state governments tried to take this epidemic as an
opportunity from which the rights of workers could be taken away. Some state
governments tried to make rules for workers to take 12 hours of work, some
governments ruled to revoke the rights of workers for the next three years.
Have governments
forgotten poverty and hunger? Even before this pandemic, India was among the
world's most malicious countries in terms of starving stomach sleepers and
malnourished children. India was ranked 102 in the list of 119 countries which
is worse than the poorest countries of Asia. The economy was also going through
an unprecedented crisis with the highest unemployment in 45 years. In such a
situation, our government decided to impose the world's toughest lockdown
overnight. Suddenly all the arrangements were stopped. Now that the corona
infection has reached a state of disastrous states like Bihar-UP and the
homeless and poor in cities are bereft of private medical systems, there is no
hope of reducing this humanitarian tragedy. In the midst of all these circumstances,
the political section of the country, the media and the middle class have a
different rant.
A political party is in
the process of demolishing the government by buying and selling the MLAs of
another party, somewhere there is happiness of Rafal reaching India and
somewhere people who are in disagreement with the government are being sent to
jail. An attempt is being made to advance the divisive agenda by laying the
foundation stone of the Ram temple at the site of the medieval mosque. On the
other hand, crores of people are going through poverty and starvation. This
proves that India has entered the most terrible human tragedy of the last 50
years. @ Nayak1
Thank you Google