उत्तर प्रदेश राज्य का 35वाँ बामसेफ एवं
राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ
का संयुक्त वर्चुअल राज्य अधिवेशन
अयोध्या, अयोध्या नहीं है, अयोध्या साकेत है : वामन मेश्राम साहब
अयोध्या, अयोध्या नहीं है, अयोध्या साकेत है. इसको जानने और समझने
के लिए इतिहास में जाना होगा. ईसापूर्व 185 के पहले पुष्यमित्र शुंग के द्वारा
सम्राट बृहद्रथ मौर्य की हत्या की जाती है. पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण है इसलिए
पुष्यमित्र शुंग ने धोखाधड़ी से अल्पवयी सम्राट बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर देता है.
हत्या करने के बाद वहां पर विद्रोह खड़ा हो जाता है. पुष्यमित्र शुंग को ऐसा लगता
है कि अब मुझे गद्दार घोषित किया जाएगा और मेरी हत्या कर दी जाएगी. इसलिए
पुष्यमित्र शुंग वहां से भागकर आज के उत्तर प्रदेश में जहां साकेत था वहां आता है, वहां आकर अपनी राजधानी बनाता है और
राजधानी का नाम अयोध्या रखता है. यह बात काल्पनिक नहीं है, हिस्टोरिकल है. अगर हम अयोध्या का संधि
विग्रह करने की कोशिश करें तो युद्ध किए बगैर बनाई गई राजधानी अयोध्या है, ऐसा उसका अर्थ निकलता है. क्योंकि
साकेत में कोई भी युद्ध जीतकर पुष्यमित्र शुंग ने राजधानी नहीं बनाई थी. पूरे
अयोध्या को प्राचीन में साकेत कहा जाता था. पंडित राहुल सांकृत्यायन ने वोल्गा से
गंगा में लिखा है कि यह अयोध्या नहीं, साकेत है. यह बात बामसेफ के राष्ट्रीय
अध्यक्ष वामन मेश्राम साहब ने
उत्तर प्रदेश राज्य का 35वाँ
बामसेफ एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ का संयुक्त वर्चुअल राज्य अधिवेशन को संबोधित
करते हुए कही.
उन्होंने कहा आज की तारीख में जो
राजघराना अयोध्या में उपलब्ध है और वहां अयोध्या में निवास करता है वह आज भी
ब्राह्मण है. पुष्यमित्र शुंग भी ब्राह्मण था और जो अयोध्या में राजघराना वह भी
ब्राह्मण है. उत्तर प्रदेश में यह इतिहास पढ़ाया जाता है कि अयोध्या के राजा का नाम
पुष्यमित्र शुंग है, अयोध्या
के राजा का नाम राम नहीं है. इस दृष्टि से अयोध्या का नाम साकेत के बाद में
निर्माण किया गया है. पुष्यमित्र शुंग के आगमन के बाद ही अयोध्या नाम सामने आता
है. साकेत में अयोध्या बसाई गई है. पुष्यमित्र शुंग कोई और नहीं है यह सम्राट
बृहद्रथ मौर्य की हत्या करने वाला ब्राह्मण है.
उन्होंने आगे कहा कि एक ब्राह्मण ने
सोशल मीडिया पर मुझे ऐसा लिखकर भेजा है कि अग्नि शर्मा नामक ब्राह्मण ने सरयू नदी
के किनारे बैठकर पुष्यमित्र शुंग को सामने रखकर रामायण लिखी है. उन्होंने कहा ऐसा
हो सकता है, क्योंकि
बाल्मीकि की जो कहानी है उस कहानी में जिस तरह से बातें जोड़ी गई है वह कथा
काल्पनिक लगती है. इसलिए यह वास्तविकता हो सकती है. हमने उससे सबूत मांगा, मगर उसने सबूत नहीं दिया. हो सकता है
कि दूसरे ब्राह्मणों ने उसको सबूत देने से मना कर दिया हो. क्योंकि उनको ऐसा लगा
होगा कि इससे हम लोग संकट में फंस सकते हैं. इसलिए उन्होंने सबूत नहीं दिया होगा.
वामन
मेश्राम ने कहा, बुद्ध के 700-800 साल बाद जब सम्राट बृहद्रथ मौर्य की
हत्या हुई. उसके कई शताब्दियों के बाद गुप्त काल आया और गुप्त काल में रामायण लिखी
गई.
सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने ब्राह्मणों के वकील
को पूछा कि रामायण कब लिखी गई? तो उन्होंने कहा गुप्त काल में लिखी हुई है. गुप्त काल बौद्धोत्तर है, मौर्योत्तर है. मौयोत्तर के 700-800 साल बाद यह गुप्त काल आया है तब रामायण
लिखी गई. उस रामायण में राम को राजा बताया गया है और इतिहास में पुष्यमित्र शुंग
राजा है. इसका मतलब है कि अगर पुष्यमित्र शुंग को सामने रखकर रामायण लिखी गई है तो
राम कोई और नहीं है, पुष्यमित्र
शुंग ही राम है. रामायण में राम के पुष्यमित्र शुंग होने के 1 से अधिक सबूत हैं. जैसे वर्ण व्यवस्था
में मौर्यों को ब्राह्मण शूद्र मानते थे. बुद्ध की क्रांति की वजह से शूद्र सम्राट
हो गए, राजा हो
गए, यह बुद्ध
की क्रांति का परिणाम था. इसीलिए इसे क्रांति कहा गया. जब शुद्र राजा हुए तो
स्वाभाविक है ब्राह्मणों का वर्चस्व समाप्त हो गया. ब्राह्मणों के वर्चस्व को
पुर्नस्थापित करने का काम पुष्यमित्र शुंग ने किया.
उन्होंने
कहा इस बात को ध्यान में रखते हुए रामायण में प्रतीकात्मक कथा आई है. सम्राट
बृहद्रथ मौर्य के हत्या की कथा रामायण में आई है. रामायण में शंभूक की हत्या
सम्राट बृहद्रथ मौर्य की हत्या का प्रतीक है. क्योंकि रामायण में बहुत सारी बातें
प्रतीकात्मक है और इस प्रतीकात्मक कथाओं को इंडोलॉजी का अध्ययन करने वाले लोग ही
समझ सकते हैं. इस तरह से यह सिद्ध होता है कि पुष्यमित्र शुंग द्वारा ही अयोध्या
बनाई गई. अयोध्या बनने के पहले वहां साकेत था और बाद में अयोध्या नामकरण किया गया.
साकेत को अयोध्या का नामकरण पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया, राम के द्वारा नहीं. इसलिए रामायण का
राम कोई और नहीं है पुष्यमित्र शुंग है. उन्होंने कहा, एक तरफ पुष्यमित्र शुंग राजा है और
रामायण में राम भी राजा है. पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म के अनुसार शुद्र सम्राट
बृहद्रथ मौर्य की हत्या करता है और राम भी शूद्र शंबूक की हत्या करता है. यह सामान
उदाहरण इस बात को सिद्ध करता है कि पुष्यमित्र शुंग ही राम है और कोई राम नहीं है.
आगे
उन्होंने कहा पुष्यमित्र शुंग को अवतार घोषित करने के लिए रामायण लिखी गई ताकि राम
के नाम पर पुष्यमित्र शुंग को अवतार घोषित किया जा सके. उन्होंने कहा, अवतार किसी को भी घोषित नहीं किया जा
सकता है. क्योंकि, अवतार
घोषित करने के लिए किसी न किसी असुर, दैत्य, दानव, राक्षस की हत्या करना जरूरी है. अब
सवाल है कि असुर, दैत्य, दानव, राक्षस कौन है? इसका सबूत ऋगवेद में मिलता है.
ब्राह्मणों ने यहां के मूलनिवासियों को असुर, दैत्य, दानव, राक्षस कहा है. अगर इनकी कोई हत्या
करता है तो हत्या करने वाला अवतार माना जाता है. इसका मतलब है जो सम्राट बृहद्रथ
मौर्य ब्राह्मण धर्म के अनुसार शूद्र था वह पूर्व में असुर, दैत्य, दानव, राक्षस था. उसकी हत्या पुष्यमित्र शुंग
ने की और रामायण में राम ने शंबुक की हत्या की. इस वजह से ब्राह्मणों ने राम को
विष्णु का अवतार घोषित किया और इसको अवतार घोषित करने के लिए रामायण लिखी. इसीलिए
इतिहास पर पर्दा डालने के लिए पुराण, रामायण, महाभारत में प्रतीकात्मक कथाओं का
वर्णन आता है.
राष्ट्रीय
अध्यक्ष ने आगे कहा दूसरा महत्वपूर्ण आधार यह है कि 1857 से पहले ब्राह्मणों और मुसलमानों के
बीच बाबरी मस्जिद को लेकर लड़ाई हुई थी. इस लड़ाई में मुसलमान और ब्राह्मण मारे गए
थे. उस समय अंग्रेजों का राज था, अंग्रेजों ने इसका अध्ययन किया और अपने अधिकारियां को इस काम के लिए लगाया.
मेजर जनरल कनिंघम को इसकी जिम्मेदारी दी. इन्होंने रिसर्च करके सिद्ध किया कि यह
भूमि मुसलमानों की नहीं है, यह भूमि
ब्राह्मणों की भी नहीं है. यह भूमि बुद्धिस्ट लोगों की है. इस पूरे साइट पर मेजर
जनरल कनिंघम ने 70 एकड़ जगह
का नक्शा तैयार किया और उस नक्शे पर खुदाई करने का काम चाइना प्रवासी हृवेनसांग और
फाहृयान को दिया. उस रिकॉर्ड के आधार पर खुदाई की और खुदाई में मिले अवशेषों के
आधार उन्होंने यह सिद्ध किया कि यह भूमि बुद्धिस्ट लोगों की है. इसका सारा का सारा
रिकॉर्ड पुरातत्व के द्वारा लिखकर रखा गया वह रिकार्ड आज भी हमारे पास है. ये सारी
बातें मैं सबूतों के आधार पर बोल रहा हूंँ. उन्होंने पूरे दावे के साथ कहा कि
बाबरी मस्जिद में जो रामलला की मूर्ति रखी गई उस मूर्ति को भी गोरखपुर से लाना
पड़ा. वे लोग अयोध्या में राम की मूर्ति भी हासिल नहीं कर सके. वहां कोई कतरा भी
राम का नहीं दिखा सके.
वामन
मेश्राम साहब ने ब्राह्मण शब्द पर जोर देते हुए कहा, यह भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि मैं
ब्राह्मण शब्द का उपयोग क्यों कर रहा हूँ कि मुसलमानों और ब्राह्मणों के बीच में
लड़ाई हुई थी. हिंदू और मुसलमानों के बीच लड़ाई नहीं हुई थी. क्योंकि हिंदू का मतलब
ब्राह्मण नहीं होता है, हिंदू का
मतलब है ब्राह्मण, एसटी, एससी, ओबीसी को भी हिंदुओं में जमा कर देते
हैं. मुसलमानों को भी यह बात समझ में नहीं आती है. इस वजह से ब्राह्मण इसमें
कामयाब हो जाते हैं. इसलिए मैं आपको यह बात समझा रहा हूँ. यह हिन्दू-मुसलमानों के
बीच की लड़ाई का मामला नहीं है यह ब्राह्मणों और मुसलमानों के बीच की लड़ाई का मामला
है. जब 21 लोगों का
राम मंदिर का ट्रस्ट बनाया गया तो इसमें केवल ब्राह्मणों रखा गया. एक भी ओबीसी को
नहीं लिया, जिन्होंने
इस आंदोलन में साथ सहयोग दिया उनको नहीं रखा, बल्कि कल्याण सिंह को जेल भी हुआ. एक
भी ओबीसी को क्यों नहीं लिया? क्योंकि, ब्राह्मण
मानते हैं कि उन्होनें तो केवल ओबीसी का इस्तेमाल किया है. ब्राह्मण जिनका
इस्तेमाल करते हैं उनको वे लायक नहीं मानते हैं. इसलिए ब्राह्मणों ने राम मंदिर की
लड़ाई लड़ने वाले एक भी ओबीसी के लोगों को ट्रस्ट में नहीं रखा. इसलिए यह मामला
हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था वह मामला ब्राह्मण और मुसलमानों के बीच था.
उन्होंने कहा, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ब्राह्मणों को कहा कि आप कहते हो कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ है तो इसका सबूत लाओ. जब हाईकोर्ट द्वारा सबूत मांगे गए तो विश्व हिंदू परिषद का जो मार्गदर्शक मंडल था वह हरिद्वार में 3 दिन तक मंथन किया. इसके बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि राम के जन्म का हमारे पास कोई भी सबूत नहीं है. इसलिए उन्होनें प्रेस के सामने कहा राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ है यह हमारी आस्था का प्रश्न है और आस्था का कोई सबूत नहीं होता है. इसका मतलब है कि विश्व हिंदू परिषद, मार्गदर्शक मंडल, आरएसएस और बीजेपी के पास उस समय कोई सबूत नहीं था और आज भी उनके पास कोई सबूत नहीं है. जब वे लोग हाइकोर्ट को सबूत नहीं दे पाये तो हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद के नीच खुदाई करने का आदेश दिया. जब पुरातत्व विभाग के लोगों ने खुदाई करने का काम शुरू किया तो खुदाई में केवल मौर्य और बुद्ध के अवशेष मिले. जो मिली हुई चीजों की लिस्ट बनाई गई उन सभी वस्तुओं की लिस्ट रिकॉर्ड की गई और वो लिस्ट हमारे पास है.
उन्होंने कहा, हैरान करने वाली बात यह है कि पुरातत्व विभाग के लोगों ने वह रिपोर्ट अभी तक पब्लिश नहीं की. क्यों नहीं की? क्योंकि ब्राह्मण जानते थे कि लिस्ट जारी करने से सारी दुनिया के लोग जान जायेंगे कि खुदाई में मिले सभी अवशेष बुद्ध के अवशेष हैं. इसलिए उस समय जब खुदाई हो रही थी तो उसी ?समय मुरली मनोहर जोशी ह्यूमन रिसोर्सेज डेवलपमेंट मिनिस्टर थे और उसी के अधीन यह विषय आता था. मुरली मनोहर जोशी, अटल बिहारी वाजपेई और उसके मंत्रिमंडल द्वारा पुरातत्व विभाग के लोगों को पब्लिश करने के लिए मना कर दिया. इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में लाने का काम नहीं किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज मुस्लिम थे वे बाबरी मस्जिद का केस लड़ने वाले पैरोपकार थे. लेकिन, इन लोगों ने भी सबूतों को पब्लिक डोमेन में लाने का काम नहीं किया. इस तरह से पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अयोध्या का नाम अयोध्या नहीं है, अयोध्या का नाम साकेत है.@Nayak1
Uttar Pradesh State
of 35th Bamcef And
Rashtriy Moolnivasi
Sangh
Joint of Virtual State
the convention
He said that the royal house which is available in Ayodhya today and resides there in Ayodhya is still a Brahmin. Pushyamitra Sunga was also a Brahmin and the royal family in Ayodhya is also a Brahmin. This history is taught in Uttar Pradesh that the name of the king of Ayodhya is Pushyamitra Sunga, the name of the king of Ayodhya is not Ram. With this view, the name of Ayodhya is constructed after Saket. The name Ayodhya appears only after the arrival of Pushyamitra Sunga. Ayodhya has been established in Saket. Pushyamitra Sung is nobody else, it is a Brahmin who killed Emperor Brihadratha Maurya.
Waman Meshram Saheb
said, 700-800 years after the Buddha when Emperor Brihadratha Maurya was
killed. After several centuries, the Gupta period came and Ramayana was written
in the Gupta period.
A Supreme Court judge
asked the Brahmins' lawyer when the Ramayana was written? So he said that it is
written in the Gupta period. The Gupta period is post-Buddhist, post-Mauryan.
This Gupta period has come 700–800 years after the post-Maui period when the
Ramayana was written. In that Ramayana, Rama is described as king and
Pushyamitra Sunga is the king in history. This means that if Ramayana is
written in front of Pushyamitra Sunga, then Rama is nobody else, Pushyamitra
Sunga is Rama. There is more than 1 evidence that Ram has Pushyamitra Sunga in
Ramayana. For example, in the Varna system, the Mauryas were considered as
Brahmin Shudras. Because of Buddha's revolution, Shudra became emperor, became
king, this was the result of Buddha's revolution. That is why it was called
revolution. When the Shudras became kings, it was natural that the supremacy of
the Brahmins ended. Pushyamitra Sung did the work to restore the supremacy of
Brahmins.
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