मिड-डे मील से वंचित बच्चों में पोषण की कमी अधिक राशन देकर
पूरी हो सकती हैः विश्व खाद्य कार्यक्रम
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (यूएनडब्ल्यूएफपी) के भारत के लिए कंट्री डायरेक्टर बिशो पराजुली ने कहा है कि कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन में बच्चों को मध्याह्न भोजन नहीं मिल पाने के कारण पोषक तत्वों की जो कमी हुई है उसे पोषक भोजन शुरू करके, पोषण जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान देकर तथा राशन की मात्रा बढ़ाकर कम किया जा सकता है. पराजुली ने हमें पता है कि महामारी के बीच स्कूलों को खोलना और संचालित करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है. लेकिन, मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए भोजन एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा मार्ग है, इससे बच्चों की भोजन संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.
गौरतलब है कि सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध करवाने के संबंध दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिसमें कहा था कि इन्हें सूखे राशन के रूप में अथवा खाद्य सुरक्षा भत्ते के रूप में मुहैया करवाया जाए जिसमें अनाज का खर्च, भोजन पकाने का खर्च लाभांवितों के खातों में भेजा जाए. पराजुली ने कहा कि योजना को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है और सभी बच्चों तक नहीं पहुंच सका है. उन्होंने कहा कि इसलिए खुद और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए बाल श्रम के बढ़ने की संभावना अधिक हो गई है. उन्होंने कहा,
मालूम हो कि लॉकडाउन के दौरान बीते जुलाई महीने में बिहार के भागलपुर ज़िले में मिड-डे मील बंद होने के कारण ग़रीब परिवार से आने वाले स्कूली बच्चों के कूड़ा बीनने और भीख मांगने के साथ ठेकेदारों के पास काम करने का मामला सामने आया था. ये मामला ज़िले के बडबिला गांव के मुसहरी टोला का था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस संबंध में नाराजगी जाहिर की थी और केद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा बिहार सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.
द वायर ने अपनी कई रिपोर्टों में बताया था कि किस तरह मिजोरम के अलावा पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उत्तराखंड और त्रिपुरा में भी लॉकडाउन के दौरान मिड-डे मील योजना का सभी बच्चों को लाभ नहीं मिल पाया है. उत्तराखंड राज्य ने अप्रैल और मई महीने में लगभग 1.38 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुहैया नहीं कराया है, जबकि त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने मिड-डे मील के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि ट्रांसफर करने का आदेश दिया था, जो कि सिर्फ खाना पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है. वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बच्चों को अप्रैल से लेकर जून तक मिड-डे मील योजना के तहत खाद्यान्न या खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) नहीं दिया गया है.
पश्चिम बंगाल लॉकडाउन के दौरान बच्चों को सिर्फ आलू और चावल दिया है. कोरोना महामारी के बीच उत्तर-पूर्व के राज्य मिजोरम के बच्चों को मिड-डे मील के तहत अप्रैल से लेकर जून तक खाना पकाने की राशि अभी नहीं मिली है. इसके अलावा मार्च-अप्रैल में लॉकडाउन के दौरान बंद हुए स्कूलों के हर तीन में से लगभग एक बच्चे को मिड-डे मील के तहत पका हुआ भोजन या इसके एवज में राशन और खाना पकाने की राशि नहीं मिली है. @Nayak1
Children
lacking mid-day meal can be overcome by giving more ration to nutritional
deficiency: World Food Program
Bisho
Parajuli, the country director for the United Nations World Food Program
(UNWFP), has said that due to the lack of nutrients due to lack of mid-day
meals in children in the lockdown caused by Kovid-19, by introducing nutritious
food, It can be reduced by focusing on meeting nutritional needs and increasing
the amount of ration. Parajuli tells us that opening and operating schools in
the midst of an epidemic is a very challenging task. But, mid-day meal is the
best way to ensure food and nutritional security for children, this will help
in meeting the food needs of children.
It is
noteworthy that the government had issued guidelines to all states and union
territories to provide mid-day meals to children, which said that these should
be provided in the form of dry rations or food security allowances in which
food grains are provided. The expenses, cooking expenses should be sent to the
accounts of the beneficiaries. Parajuli said that the scheme has not been
implemented effectively and could not reach all children. He said that hence
the possibility of increasing child labor for the maintenance of himself and
his family has become more. They said,
It is
known that during the lockdown, in the last July, due to the closure of the
mid-day meal in Bhagalpur district of Bihar, there was a case of working with
contractors with the pickup and begging of school children coming from poor
families. This case was about Mushari Tola of Badbila village in the district.
The National Human Rights Commission (NHRC) had expressed its displeasure in
this regard and issued a notice to the Union Human Resource Development
Ministry and the Government of Bihar seeking an answer.
In
several of its reports, The Wire had told how apart from Mizoram, all the
children of Mid-day meal scheme have not been benefited during the lockdown in
West Bengal, Delhi, Uttarakhand and Tripura. The state of Uttarakhand has not
provided mid-day meal to about 1.38 lakh children in April and May, while the
BJP government of Tripura ordered transfer of some amount to the students'
account in lieu of mid-day meal, which is Just for cooking is less than the
prescribed amount. At the same time, children of the national capital Delhi
have not been given food grains or food security allowance (FSA) under the
mid-day meal scheme from April to June.
During
the West Bengal lockdown, children have been given only potatoes and rice.
Amidst the corona epidemic, children in the northeastern state of Mizoram have
not yet received the amount of cooking from April to June under the mid-day
meal. Apart from this, almost one out of every three children of schools closed
during the lockdown in March-April have not received the amount of food cooked
under mid-day meal or ration and cooking in lieu of it. @ Nayak1
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