#बामसेफ
का क्या अर्थ है?
#BAMCEF संगठन के नाम का संक्षिप्त रूप है| उसका अर्थ Backward And Minority
Communities Employees Federation इस तरह से है अर्थात् B-Backward (S.C., S.T., OBC) A-and,
M-Minority, C-Communities, E-Employees, F-Federation| #बामसेफ के संक्षिप्त रूप का यह विस्तार है
जिससे संगठन के संपूर्ण नाम का पता चलता है| जैसे All India Backward (SC.,ST.,
OBC) And Minorities Communities Employees Federation यहॉ बैकवर्ड शब्द एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. के लिए समान रूप से प्रयुक्त किया
गया है और इसका अर्थ है एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. की सभी जातियॉ पिछड़ी (Backward)
हैं| इसका अर्थ यह नहीं है कि एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. समान रूप से पिछड़ी जातियॉ हैं| यह जातियॉ समान रूप से पिछड़ी नहीं है| कुछ ज्यादा पिछड़ी हैं और कुछ कम पिछड़ी हैं, मगर है सभी पिछड़ी, इसीलिए इन जातियों को बैकवर्ड (पिछड़ी) ही कहा
गया है|
जहॉ तक अल्पसंख्यकों का
सवाल है,
हम एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. से धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यकों को
इस दायरे में मानते हैं, यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि, ऐतिहासिक काल में एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. से ही अल्पसंख्यकों का वर्ग बना है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, बोद्ध, सिख समुदाय आते हैं, इस तरह से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी वर्ग और उनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक
को ही हम संगठित करना चाहते हैं|
#समस्यात्मक
दृष्टिकोण
हम
अनु. जाति, अनु.
जनजाति,
पिछड़ा वर्ग और
अल्पसंख्यक को ही क्यों संगठित करना चाहते हैं, उसके वास्तविक कारण उपलब्ध हैं| समस्यात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आज यह
वर्ग सबसे ज्यादा समस्याग्रस्त है| उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षणिक समस्यायें गंभीरतम रूप
में प्रकट हो चुकी हैं और अब यह समस्यायें विवाद का विषय नहीं रही| भारत सरकार के साथ-साथ विभिन्न राज्यों के
उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय ने भी इस बात को मान्यता प्रदान की है|अनु. जाति, अनु. जनजाति के लिए स्वयं भारत सरकार ने
अनुसूचित जाति जनजाति आयोग की स्थापना की और उसे संवैधानिक स्तर प्रदान किया| इससे इस वर्ग की विशेष समस्याओं की मान्यता, स्वयं भारत सरकार मानती है, यह इसका प्रमाण है| स्वयं भारत सरकार ने अनु. जाति, अनु. जनजाति के अलावा जिन जातियों को शासन और
प्रशासन में प्रतिनिधित्व को सुरक्षित करने के लिए मंडल कमीशन की नियुक्ति की और
इस कमीशन की रिपोर्ट को मान्यता प्रदान की है जिसको १६ नवम्बर १९९२ को भारत के
उच्चतम न्यायालय ने भी इस बात को मान्यता दी है| भारत सरकार के माध्यम से और विभिन्न राज्य
सरकारों के माध्यम से अल्पसंख्यकों के हक और अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए
विशेष अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया है, जिसके माध्यम से इनकी समस्याओं का निदान किया
जायेगा|
आयोगों के गठित करने से
अब इस बात में किसी तरह का विवाद नहीं बचा रहता है कि इनकी कुछ विशेष समस्याये हैं| यह समस्यायें सर्वमान्य हो चुकी हैं|
#व्यवस्थात्मक
दृष्टिकोण
व्यवस्थात्मक
दृष्टिकोण से देखा जाय, तो अनु. जाति, अनु. जनजाति, अल्पसंख्यक वर्ग इस देश की ब्राह्मणवादी समाज व्यवस्था से गंभीर रूप से
पीड़ित हैं, इसलिये
ज्योतिराव पुले, पेरियार
रामासामी और डा. बाबासाहब आम्बेडकर ने अपने आंदोलन का लक्ष्य गैरबराबरी की समाज
व्यवस्था में परिवर्तन करना रखा| इसलिए जो लोग इस व्यवस्था से पीड़ित हैं वही लोग
व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन में सक्रीय सहभागी हो सकते हैं, और यह स्वाभाविक भी है| जिनको इस व्यवस्था से लाभ होता है उनको संगठित
करने का कोई तर्क नहीं है| इसलिए गैरबराबरी की व्यवस्था को बदलने के लिए जो लोग इस व्यवस्था से पीडिात
हैं,
उनको ही संगठित करना
होगा|
इसलिए अनु. जाति, अनु. जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग को ही संगठित
किया जा रहा है|
#ऐतिहासिक
दृष्टिकोण
२१
मई २००१ के टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में खबर छपी कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भारतीय नहीं है, विदेशी है| यह शोध अमेरिका के वाशिंगटन में उटाह
विश्वविद्यालय है और उस उटाह विश्वविद्यालय की बायो टेक्नोलाजी डिपार्टमेंट के हेड, मायकल बामसाद ने डी.एन.ए के आधार पर यह शोध
किया|
यह शोध करने के लिए
उन्होंने Anthropological survey of India और मद्रास विश्वविद्यालय, विशाखापटनम विश्वविद्यालय के बायो टेक्नोलाजी
डिपार्टमेंट के लोगों के सहयोग से यह शोध करने का काम किया| इसलिए यह शोध पूर्वाग्रह से मुक्त है, यह बात पूर्णत: सिध्द हो गयी है| डी.एन.ए के आधार पर यह शोध निर्विवाद है| इस शोध को ब्राह्मणों ने विरोध न करते हुए
इसको मान्यता दी| बल्कि कुछ ब्राह्मणों ने इसके आधार पर विदेशों में अपनी जड़ों को भी ढूॅढाना
शुरू कर दिया उसमें प्रमुख नाम पूना के ब्राह्मण डा. जय दीक्षित का है| इस शोध के अनुसार रुस में जो काला सागर के पास
का क्षेत्र है| उस
युरेशियन विभाग में पाये जाने वाले लोगों का डी.एन.ए और भारत में रहने वाले
ब्राह्मण लोगों का डी.एन.ए ९९.९९ प्रतिशत मिल गया है| इस शोध की वजह से भारत का जो लिखित इतिहास है
उसका फिर से पुनर्लेखन करना जरुरी है| पुनर्लेखन किए बगैर अब इतिहास को नहीं माना जा
सकता|
इसलिए हमने इतिहास के
पुनर्लेखन का निर्णय किया है| उपरोक्त निर्णय के अनुसार अगर फिर से इतिहास लिखा
जाय तो ये लिखा जा सकता है कि युरेशिया में रहने वाले लोगों ने आक्रमण करने के
मकसद से भारत में प्रवेश किया| कुछ लोग कहते हैं वे लोग पशुपालन और खेती करने आये
थे|
परन्तु यह बात डी.एन.ए
की खोज ने झूठी सिध्द कर दी| माइटोकॉन्ड्रियल डी.एन.ए के अनुसार ब्राह्मणों के
घरों में पायी जाने वाली महिलाऍ भी मूलनिवासी हैं| इससे सिध्द होता है कि आक्रमण के उद्देश से आए
हुए युरेशियन अपने साथ में महिलाऍ नहीं लाए थे| यह बात सिध्द होती है| जब वे अपने साथ महिलाओं को नहीं लाए इस आधार
पर यह सिध्द हो गया कि युरेशियन लोगों का मकसद आक्रमण करना था और भारत के
मूलनिवासियों को परास्त करना था| आक्रमणकारी युरेशियन आक्रमण के मकसद से भारत में आये
मगर आमने-सामने की लड़ाई में परास्त करने में कामयाब नहीं हुए| इसलिए उन्होंने धोखाधडी, विश्वासघात, अविश्वासस, लालच, विभाजित करना, साम, दाम, दंड, भेद की नीति का सहारा लिया और उसके आधार पर
मूलनिवासियों को परास्त करने में कामयाबी हासिल की| ब्राह्मणों के धर्मग्रन्थों में धोखाधडी
विश्वासघात के ढेर सारे प्रमाण उपलब्ध है| परास्त किए हुए लोगों को दीर्घकाल तक गुलाम
कैसे बनाये रखा जाय यह समस्या आक्रमणकारी युरेशियन के सामने आई और इस तरह से
उन्होंने यहॉ के मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए वर्ण व्यवस्था का निर्माण
किया|
ऐसा लगता है, बहुसंख्यक मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए
और अपने आपको सबसे ऊपर रखने के लिए वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया होगा और
मूलनिवासियों के ही लड़ाई किस्म के लोगों को क्षत्रिय का दर्जा देकर अपने से नीचा
रखा होगा और व्यापारिक प्रवृत्ति के लोगों को वैश्य का दर्जा दिया होगा और बाकी
बहुसंख्यक लोगों को शूद्र बनाकर गुलाम बना देने के लिए वर्ण व्यवस्था का निर्माण
किया होगा| परन्तु
गणसंस्था के लोगों ने वर्ण संस्था की निर्मिती को जो गुलाम बनाने वाली व्यवस्था है, उसे अमान्य करना शुरू कर दिया होगा और इससे
संघर्ष उत्पन्न हुआ| बाद में लिच्छवी गण के महावीर ने इसका नेत्रत्व किया और शाक्य गण के
राजकुमार गौतम बुद्ध ने इस संघर्ष का नेत्रत्व किया होगा, ऐसा दिखाई देता है| इस संघर्ष में सबसे बड़ा रोल बुद्ध ने निभाया| उन्होंने वर्ण व्यवस्था जिस वैचारिक आधार पर
खडी की गयी थी, उस
वैचारिक आधार को ही चुनौती दी| इस चुनौती के लिए जिस विचार धारा का विकास बुध्द ने
किया वह विचारधारा बुद्ध की विचारधारा मानी जाती है और यह त्रिपिटकों के पाली
साहित्य में उपलब्ध है| बुद्ध के वर्ण व्यवस्था विरोधी अर्थात ब्राह्मण धर्म विरोधी आंदोलन ने
प्राचीन भारत में क्रांति कीब इस क्रांति का बहुत बड़ा परिणाम निकला|
परिणाम
नं. १) जिन मूलनिवासियों को युरेशियन ब्राह्मणों ने गुलाम बनाने का षड्यंत्र किया
था वह गुलाम बनाने का षड्यंत्र शूद्र के नाम पर किया गया था| शूद्र वर्ण अधिकार वंचित था और जो अधिकार
वंचित होता है वह गुलाम होता है| इस तरह से यह गुलाम बनाने का षड्यंत्र था| उन्हीं गुलाम प्रजा से राजा निर्माण हुए और
मौर्य साम्राज्य उसी प्रजा से निकला हुआ महान साम्राज्य है| जिसके चन्द्रगुप्त और अशोक जैसे महान सम्राट
हुए|
ऐसे कहा जाता है कि
मौर्य नागवंशी लोग थे|
२)
वर्ण व्यवस्था में समस्त स्त्रियों को शूद्र घोषित किया था| अर्थात गुलाम घोषित किया था| उन स्त्रियों को इस क्रांति ने आजाद घोषित कर
दिया|
और माना गया कि
स्त्रियों की आजादी के बगैर समस्त समाज को आजाद नहीं किया जा सकता|
३)
बुध्द कोई भी बात तर्क और दलील के बगैर नहीं करते थे और इसलिए ज्ञान और विज्ञान का
विकास हुआ| तर्क
और दलील के बाद प्रयोगशाला में ज्ञान का परिक्षण होने लगा| इसकी वजह से नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे महान विश्वविद्यालयों का
निर्माण हुआ|
प्रतिक्रांति की तैयारी
युरेशियन
ब्राह्मणों ने इस क्रांति को मानने से इन्कार कर दिया| उन्होंने फिर से अपना वर्चस्व स्थापित करने के
लिए प्रतिक्रांति की तैयारी शुरू कर दी है| युरेशियन ब्राह्मणों की भिक्षुसंघ में घुसपैठ
प्रतिक्रांति की पूर्व तैयारी थी| इस घुसपैठ से उन्होंने भिक्षुसंघ को अंदर से विभाजित
किया|
बुध्द की विचारधारा में
मिलावट किया और लोगों में भ्रांतियॉ फैलाई| बुद्धिझम को राजाश्रय मिला हुआ था इसलिए मौर्य
राज्य व्यवस्था में घुसपैठ की और मौर्य राज्य व्यवस्था को भी अंदर से खोखला किया| इसी परिस्थितियों का फायदा उठाकर पुश्यमित्र
शुंग ने प्रतिक्रांति की| इस प्रतिक्रांति द्वारा मौर्य साम्राज्य का आखिरी सम्राट ब्रहद्रथ की हत्या
कर दी|
प्रतिक्रांति के महत्वपूर्ण
अलग-अलग दो परिणाम निकले
बुद्धिझम
का राजाश्रय समाप्त कर दिया गया|
परिणाम
नं.
1. जाति
व्यवस्था का निर्माण
2. क्रमिक
असमानता का निर्माण
अस्पृश्यता
का निर्माण
आदिवासियों
का सेग्रीगेशन (अलगीकरण)
स्त्रीदास्य
और
ओबीसी
अर्थात शूद्रों का ब्राह्मण धर्म से समझैता इसका यह परिणाम हुआ कि प्रतिक्रांति के
बाद मूलनिवासी कई समूहों में विभाजित हो गए| आज की दृष्टी से
जिन
मूलनिवासियों ने ब्राह्मण धर्म को मानना स्वीकार किया उन लोगों को ब्राहमणों ने
शूद्रों का दर्जा दिया| पुराणों के द्वारा घोषणा की कि ब्राह्मणों के बाद बाकी सभी शूद्र है|
जिन
मूलनिवासियों ने ब्राह्मण धर्म मानने से इन्कार कर दिया उनको अछूत घोषित कर दिया
गया|
जिन
मूलनिवासियों ने समझैता नहीं किया परन्तु जंगलों में रहे वे आदिवासी कहलाए|
जो
अपने जीवन निर्वाह के लिए अपराध करते रहे उनको क्रिमिनल टाईब्स घोषित कर दिया गया| इस तरह की बुध्दिस्ट प्रजा जो वास्तव में
मूलनिवासी प्रजा थी उसको आज की दृष्टी से चार समूह में विभाजित करने में कामयाब हो
गए|
यह विभाजित प्रजा पहले
के बुध्दिस्ट और मूलनिवासी लोग थे| बाद में मुसलमान राजा भारत में आये उनके समय
में एससी,
एसटी, ओबीसी, क्रिमिनल टाईब्स का धर्मपरिवर्तन हुआ मुसलमान
हुए|
अंग्रेज आने के बाद
इसाई बने|
इस तरह से भारत में
मुस्लिम,
सिख, ईसाई, जैन, बुध्दिस्ट ये सभी मूलनिवासी लोग हैं|
शिक्षित
वर्ग को ही क्यों संगठित कर रहे हैं?
हम
शिक्षित वर्ग को ही संगठित कर रहे हैं, यह बात निश्चित रूप से विचारणीय है| इसके कई कारण बताये जा सकते हैं| मगर हम यहॉ कुछ महत्वपूर्ण कारणों की चर्चा
करेंगे|
शिक्षित वर्ग ही
बुद्धिजीवी वर्ग होता है और बुद्धिजीवी वर्ग की तीन विशेषताऍ होती है|
शिक्षित
वर्ग को जीवन के नये दृष्टिकोण का पता चलता है और इस दृष्टिकोण के तहत यह वर्ग
अपने वर्तमान जीवन और स्तर की समीक्षा करता है, जिससे उसे अपने स्तर का पता चलता है| अगर उसे जीवन स्तर घटिया नजर आये तो उसे बदलने
के लिये सोचता है और ऐसी व्यवस्था के सपने देखता है, जिसमें जीवन स्तर घटिया न हो, इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग नये समाज और व्यवस्था
का सपना देखता है|
घटिया
स्तर प्रदान करने वाली व्यवस्था कैसे निर्माण हुई, उसकी निर्मिती के क्या प्रमुख कारण हैं, वह किसके हित में कार्यरत है, उसी के हित में क्यों कार्यरत है, इन सब बातों का विश्लेषण करने के लिए एक
विशिष्ट दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसे समीक्षाशास्त्र कहते हैं, इस समीक्षाशास्त्र का निर्माण भी बुद्धिजीवी
वर्ग करता है|
जिस
व्यवस्था का बुद्धिजीवी वर्ग सपना देखता है, उसे स्थापित करने के लिए और सड़ी गली व्यवस्था
को बदलने के लिए संगठन का निर्माण भी बुद्धिजीवी वर्ग ही करता है क्योंकि वह जानता
है कि साध्य को प्राप्त करने के लिए साधन की आवश्यकता होती है| इस तरह से वह साधन की महत्ता को जानता है| यह तीन विशेषताऍ बुद्धिजीवी वर्ग की होती है| यही कारण है कि राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले और
बाबासाहब डा. आम्बेडकर ने अनु. जाति, अनु. जनजाति और पिछड़े वर्ग से बुद्धिजीवी वर्ग
की निर्मिती को प्राथमिकता दी| जो आंदोलन राष्ट्रपिता फुले ने १८४८ से १८९० तक
चलाया और जो आंदोलन १९१६ से १९५६ तक बाबासाहब डा. आम्बेडकर ने चलाया, उस आंदोलन से आज हम देखते हैं कि बुद्धिजीवी
वर्ग का निर्माण हुआ है| अत: बुद्धिजीवी वर्ग की इन विशेषताओं की वजह से ही इस वर्ग को संगठित कर
रहे हैं|
बुद्धिजीवी
वर्ग की निर्मिती का उद्देश
राष्ट्रपिता
ज्योतिराव फुले और बाबासाहब डा. आम्बेडकर ने बुद्धिजीवी वर्ग की निर्मिती को
प्राथमिकता क्यों दी? क्योंकि वह जानते थे कि जिस मनुवादी (ब्राह्मणवादी) व्यवस्था को बदलना है, उस व्यवस्था को बदलने के लिए बुद्धिजीवी वर्ग
का निर्माण आवश्यक है| बुद्धिजीवी वर्ग ही व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन को चला सकता है| इसलिए उसकी निर्मिती को प्राथमिकता दी गई| व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन चलाने के लिए
बुद्धिजीवी वर्ग महत्वपूर्ण साधन है और इस साधन की निर्मिती करना व्यवस्था
परिवर्तन के लिए आवश्यक है, यह बात ज्योतिराव फुले और बाबासाहब डा. आम्बेडकर जानते थे| इसी उद्देश की पूर्ति के लिए बुद्धिजीवी वर्ग
के निर्माण को प्राथमिकता दी गयी और यही उद्देश रखा गया|
क्या
बुद्धिजीवी वर्ग यह कार्य कर रहा है?
क्या
अनु. जाति, अनु.
जनजाति,
पिछड़ा वर्ग से निर्मित
बुद्धिजीवी वर्ग अपने निर्माताओं की इच्छा के अनुप कार्यरत हैं? इसकी समीक्षा करने के बाद पता चलता है कि यह
वर्ग ऐसे किसी कार्य में सक्रीय रूप से भागीदार दिखाई नहीं देता| इतना ही नहीं, जिस समाज से यह वर्ग आया है, उस समाज को भी यह उपेक्षित भाव से देखता है और
उससे दूर रहता है| यह अनुभव अपने जीवन काल के उारार्ध में बाबासाहब डा. आम्बेडकर को भी हुआ और
उन्होंने बड़े ही दुखी मन से १८ मार्च १९५६ को आगरा के रामलीला ग्राउंड में कहा कि, “मुझे पढो लिखे लोगों ने धोखा दिया है, मैं सोचता था कि पढालिखकर यह वर्ग अपने समाज
की सेवा करेगा, मगर
मैं देख रहा हूँ कि मेरे इर्द-गिर्द क्लर्कों की भीड़ इकट्ठा हुई हैं, जो अपना ही पेट पालने में लगी हुई हैं|” यह आहत भावना इस बात का सबूत है कि पढ़ा लिखा
बुद्धिजीवी वर्ग अपने समाज से और उसके स्नेहभाव से दूर-दूर जा रहा है| यही वजह है कि गॉवों में रहने वाले लोगों के
साथ अन्याय, अत्याचार
और भेदभाव का व्यवहार बढ गया है| जिस कार्य के लिए राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले और
बाबासाहब डा. आम्बेडकर ने इस वर्ग का निर्माण किया था, उस कार्य में यह वर्ग दिखाई नहीं देता| जिस वर्ग से नेतृत्व की अपेक्षा की गई थी, वह वर्ग सरकार का नौकर बनकर रह गया है आधे
अधूरे और कच्चे लोगों के हाथों में आंदोलन की बागडोर छोड दी गई है| इसका नतीजा हम देखते हैं कि राष्ट्रपिता
ज्योतिराव फुले और बाबासाहब डा. आम्बेडकर का आंदोलन आज चलता हुआ नजर नहीं आता|
बुद्धिजीवी
वर्ग को क्या करना चाहिए?
बुद्धिजीवी
वर्ग को वही कार्य करना चाहिए, जिसकी उसके निर्माताओं ने उनसे अपेक्षा की थी| देशभर में गैर बराबरी की व्यवस्था चल रही है| जब तक उस व्यवस्था में परिवर्तन नहीं होता, तब तक अनु. जाति, अनु. जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग
व्यवस्था में पिसते रहेंगे और उनके साथ हर तरह का भेदभाव होता रहेगा| इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग को व्यवस्था परिवर्तन
के लिए संगठित होना चाहिए, संगठित करना चाहिए और एक प्रभावी आंदोलन बनाना चाहिए| इस कार्य को करने के लिए बुद्धिजीवी वर्ग को
सामने आना चाहिए| अपने निर्माताओं की अपेक्षा और बुद्धिजीवी वर्ग की विशेषताओं को ध्यान में
रखते हुए बामसेफ उपरोक्त कार्य को अंजाम देने के लिए बुद्धिजीवी वर्ग को संगठित
करने का प्रयास कर रहा है|
उद्देश
- व्यवस्था परिवर्तन के लिए
इस
प्रयास में छ सगलतायें प्राप्त हुई| मगर वह व्यवस्था परिवर्तन के लिए पर्याप्त
नहीं है|
इसलिए यह प्रयास ज्यादा
गति से चलाने की आवश्यकता है| इस प्रयास को ज्यादा सुचारु रुप से चलाने के लिए और
व्यवस्था परिवर्तन के उद्देश को पूर्ण करने के लिए बामसेफ ने अपने सामने कुछ महत्वपूर्ण
उद्देश रखे हैं|
बुद्धिजीवी
वर्ग में सामाजिक ऋण से मुक्त होने की भावना का निर्माण करना|
मूलनिवासी
बहुजन समाज (अनु. जाति, अनु. जनजाति, पिछड़ा वर्ग और इन्हीं में से धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक) की गैर राजनीतिक
जड़ों को लगाना और मजबूत करना|
लक्ष्य
भेदी और लक्ष्यप्रेरित जाग्रति का निर्माण करना|
राष्ट्रपिता
फुले,
पेरियार रामासामी एवं
बाबासाहब डा. आम्बेडकर के विचारों का प्रचार-प्रसार करना|
ब्राह्मणवादी
समाज व्यवस्था से कम और अधिक पीड़ित ६,००० जातियों में जाग्रति लाकर, उनमें बंधुभाव पैदा करना और उन जातियों को आपस
में जोडना|
मूलनिवासी
बहुजन समाज का आंदोलन आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनसे ही बुध्दी, पैसा और हुनर का निर्माण करना|
नेतृत्वहीन
समाज में नेतृत्व निर्माण करना और उसकी व्यवस्था करना|
दिशाहीन
समाज को दिशा देना|
पूर्णकालिक
कार्यकर्ताओं का निर्माण करना और उनकी व्यवस्था करना| उपरलिखित उद्देश्यों की पूर्ति पर ही व्यवस्था
परिवर्तन के आंदोलन की सफलता निर्भर करती है, इस बात को समझाना जरुरी है|
बामसेफ
की मर्यादा
बामसेफ
शिक्षित सरकारी, गैरसरकारी
कर्मचारियों का संगठन है| इसलिए बामसेफ के सदस्य किसी राजनीतिक पार्टी में सक्रीय सहभागी नहीं हो
सकते और होने से सेवाशर्ती नियमों का उल्लंघन होता है| इसलिए बामसेफ को गैर राजनीतिक (Non-Political)
और असंघर्षात्मक (Non-Agitational)
रखा गया है| इसके साथ-साथ ६,००० जातियों का संगठन बनाने के उद्देश को
ध्यान में रखकर रणनीतिक दृष्टी से इसे धर्मनिरपेक्ष (Non-Religious)
रखा गया है|
बामसेफ
- व्यवस्था परिवर्तन का वाहक
राष्ट्रपिता
ज्योतिराव फुले, पेरियार
रामासामी नायकर और बाबासाहब डा. आम्बेडकर ने अपने आंदोलन का लक्ष्य व्यवस्था
परिवर्तन रखा था| व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य अभी तक पूर्ण नहीं हुआ है| उपरोक महानुभाव जीवनभर व्यवस्था परिवर्तन के
लिए लड़ते रहे और कुछ सफलतायें भी उन्होंने हासिल की| मगर अभी तक व्यवस्था परिवर्तन के आंदोलन की
तर्कसंगत समाप्ति नहीं हुई है| इसलिए बामसेफ, अपने आपको उन महानुभावों के अपूर्ण उद्देश्यों
की पूर्ति के लिए समर्पित करती है जिसमें व्यवस्था परिवर्तन मुख्य लक्ष्य होगा| व्यवस्था परिवर्तन का अर्थ संक्षिप्त में समाज
व्यवस्था की संरचना में मूलभूत परिवर्तन (Structural change in the
social System) करना
है|
इसलिए बामसेफ
कल्याणकारी कार्यों में (Welfare Activities)और धर्मार्थ कार्यों में भी (Charitable)
संलग्न नहीं है क्योंकि
वह साध्य नहीं हो सकते| साधन के तौर पर उचित समय पर आवश्यकता के अनुसार इनका उपयोग किया जा सकता है| ऐसा करते वक्त यह भी ध्यान में रखा जायेगा कि
ऐसे कार्य से उद्देश पूर्ति में मदद मिलती है या नहीं|
व्यवस्था
परिवर्तन - एक मिशन
व्यवस्था
परिवर्तन की कोशिश हजारों सालों से हो रही है, मगर आज तक पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो पायी| इसमें हजारों महान लोगों ने अपनी कुर्बानियॉ
दी,
शहीद हुए, मगर इस लक्ष्य को पूर्ण रुप से प्राप्त नहीं
किया जा सका| इसलिए
व्यवस्था परिवर्तन एक महान कार्य है, दुष्कर कार्य है| इसीलिए यह एक मिशन है और इस कार्य की पूर्ति
के लिए कार्यरत कार्यकर्ता को ‘मिशनरी’ कहा जा सकता है| इस मिशन की पूर्ति के लिए, हजारों लाखों लोगों की आवश्यकता है, तब कहीं यह मिशन पूर्ण हो सकता है| जिन लोगों को राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले, पेरियार रामासामी और डा. बाबासाहब आम्बेडकर के
आंदोलन से लाभ हुआ है, उनका यह प्रथम कर्त्तव्य है कि वह लोग इस कार्य को अंजाम देने के लिए
स्वप्रेरणा से सामने आयें| हमारी यह आशा और अपेक्षा व्यर्थ नहीं जायेगी, ऐसी आशा के साथ यह निवेदन समाप्त करते हैं|@Nayak1
What does #Bamcef mean?
#BAMCEF is an abbreviation for Organization Name. It means
Backward and Minority Communities Employees Federation in this way ie
B-Backward (S.C., S.T., OBC) A-and, M-Minority, C-Communities, E-Employees,
F-Federation | # This is an extension of the acronym BAMCEF which reveals the
full name of the organization. Such as All India Backward (SC., ST., OBC) and
Minorities Communities Employees Federation here backward words are SC, ST,
OBC. Is equally used for and means SC, ST, OBC. All the castes are backward.
This does not mean that SC, ST, OBC There are equally backward castes. These
species are not equally backward. Some are more backward and some are less
backward, but all are backward, that is why these castes have been called
backward. As far as minorities are concerned, we have SC, ST, OBC. Since we
consider religion-converting minorities in this area, it is also a historical
fact that, in the historical period, SC, ST, OBC. We have formed a class of
minorities, which includes Muslims, Christians, Buddhists, Sikh communities, in
this way we want to organize only scheduled castes, scheduled tribes, backward
classes and converts from them.
# Problematic approach
We Caste The real reasons for why tribes, backward classes
and minorities want to be organized are available. From a problematic point of
view, today this class is the most problematic. Their social, economic,
political, religious and educational problems have appeared in the most serious
form and now these problems are no longer a matter of controversy. Along with
the Government of India, the High Courts of various states and the Supreme
Court have also recognized this fact. Caste For the Tribes, the Government of
India itself established the Scheduled Castes and Tribes Commission and gave it
constitutional status. Due to this, the Government of India itself recognizes
the recognition of special problems of this class, this is its proof.
Government of India itself Caste Apart from the tribes, the castes whom the
Mandal Commission has appointed to secure representation in governance and
administration, and have recognized the report of this commission, which was
also recognized by the Supreme Court of India on 14 November 1962. To secure
the rights and rights of minorities through the Government of India and through
various state governments, a Special Minorities Commission has been formed,
through which their problems will be resolved. With the formation of
commissions, there is no dispute that there are some special problems. These
problems are well accepted.
# Systematic approach
If seen from an organizational perspective, then Anu. Caste
Tribes, minorities are seriously suffering from the Brahminical social system
of this country, so Jyotirao Pulay, Periyar Ramasamy and Dr. Babasaheb Ambedkar
aimed to change the social system of non-equality. Therefore, those who are
suffering from this system can be active participants in the movement of change
of the system, and this is also natural. There is no reason to organize those
who benefit from this system. Therefore, to change the system of non-equity,
only those who are suffering from this system will have to be organized.
Therefore Caste Tribes, backward classes and minority classes are being
organized.
# Historical View
In the Times of India dated May 21, 2001, the news was that
Brahmins, Kshatriyas and Vaishyas are not Indians, they are foreigners. This
research is based on the University of Utah in Washington, USA and Michael
Bamsad, Head of the Department of Biotechnology, University of Utah, conducted
this research on the basis of DNA. To do this research, he did this research in
collaboration with people from the Anthropological survey of India and the
Department of Bio-Technology of the University of Madras, Visakhapatnam. So
this research is free from bias, this thing has been fully proved. This
research is indisputable on the basis of DNA. The Brahmins recognized this
research without opposing it. Rather some Brahmins started searching for their
roots abroad on the basis of it, the main name of it is Dr. Jai Dixit, a
Brahmin of Poona. According to this research, in Russia, which is the area near
the Black Sea. The DNA of people found in that Eurasian department and the DNA
of Brahmins living in India is 9.7 percent. Due to this research, it is
necessary to rewrite the written history of India. History can no longer be
considered without rewriting. Therefore, we have decided to rewrite history.
According to the above decision, if history is written again, it can be written
that people living in Eurasia entered India for the purpose of invading. Some
people say that they came to do animal husbandry and farming. But this
discovery of DNA proved false.
According to the mitochondrial DNA, women found in the
homes of Brahmins are also indigenous. This proves that the Eurasians who had
come for the purpose of attack did not bring women with them. This is proved.
When they did not bring women with them, it was proved that the purpose of the
Eurasian people was to attack and defeat the indigenous people of India. The
invaders came to India for the purpose of the Eurasian invasion, but were not
able to defeat them in a face-to-face battle. So they resorted to the policy of
fraud, betrayal, distrust, greed, division, material, price, punishment,
discrimination, and based on that, they succeeded in defeating the indigenous
people. There is a lot of evidence of fraudulent betrayal in the scriptures of
Brahmins. The problem of how to keep the defeated people as slaves for a long
time came before the invading Eurasians and in this way they created the varna
system to enslave the indigenous people here. It seems, to enslave the majority
of the indigenous people and to keep themselves on top, the Varna system must
have been created and the lower caste people of the indigenous people should be
given the status of Kshatriya and lower the people of business instinct. Must
have been given the status of and the Varna system must have been created to
make the remaining majority people a Shudra. But the people of the republic
would have started to invalidate the system which enslaved the creation of
Varna institution, and this led to conflict. Later Mahavira of Lichchavi Gana
led it and it appears that Gautama Buddha, the prince of Shakya Gana, may have
led the struggle. Buddha played the biggest role in this struggle. He
challenged the ideological basis on which the Varna system was set up. The
ideology that Buddha developed for this challenge is considered the ideology of
Buddha and it is available in the Pali literature of the Tripitakas. Anti-Varna
system of Buddha, that is, anti-Brahmin religion movement resulted in a very
big result of revolution in ancient India.
Result no. 1) The indigenous people who had conspired to
enslave the Eurasian Brahmins were conspired to enslave the Shudra. The Shudra
varna was deprived of rights and the right which is deprived is a slave. In
this way it was a conspiracy to enslave. The same slave subjects were made
kings and the Maurya Empire is a great empire emanating from the same subjects.
Which had great emperors like Chandragupta and Ashoka. It is said that the
Mauryas were Nagavanshi people.
2) In the Varna system, all women were declared as Shudras.
That is, he was declared a slave. Those women were declared independent by this
revolution. And it is believed that without the freedom of women, the whole
society cannot be liberated.
3) Buddha did not do anything without arguments and
arguments and hence knowledge and science developed. After reasoning and
reasoning, knowledge began to be tested in the laboratory. Due to this, great
universities like Nalanda, Taxila, Vikramashila were built.
Preparation of revolution
Eurasian Brahmins refused to accept this revolution. They
have started preparing for the counter-revolution to establish their supremacy
again. The infiltration of Eurasian Brahmins into the monks was a
pre-preparation for retaliation. With this infiltration, he divided the monks
inside. Mixed in the ideology of Buddha and spread misconceptions among people.
Intellectuals had got royalty, so they infiltrated the Mauryan polity and
hollowed the Mauryan polity from within. Taking advantage of the same
circumstances, Pushyamitra Sung made a counter-revolution. By this
counter-revolution the last emperor of the Mauryan Empire, Brahadratha was
killed. The counter-revolution yielded significant different results.
The monarchy of wisdom was abolished.
Result no.
1. Construction of caste system
2. Construct Inequality
Manufacturing untouchability
Segregation of tribals
Feminine and
The result of OBC i.e. Shudras from the Brahmin religion,
is that after the counter-revolution, the indigenous people were divided into
several groups. From today's point of view
The Brahmins gave the status of Shudras to the indigenous
people who accepted the belief of Brahmin religion. The Puranas declared that
after Brahmins all others are Shudras.
The indigenous people who refused to follow the Brahmin
religion were declared untouchables.
The indigenous people who did not understand but lived in
the forests are called tribals.
Those who continued to commit crimes for their sustenance
were declared as criminal ties. Such Buddhist subjects, which were actually
indigenous people, managed to divide them into four groups in today's terms.
These divided subjects were earlier Buddhists and indigenous people. Later,
Muslim kings came to India during their time, SC, ST, OBC and criminal tibes
were converted to Muslims. Became Christian after the arrival of British. In
this way, all the indigenous people are Muslims, Sikhs, Christians, Jains,
Buddhists in India.
Why are you organizing the educated class?
We are organizing the educated class itself, this is
definitely worth considering. There are many reasons for this. But here we will
discuss some important reasons. The educated class is the intellectual class
and the intellectual class has three characteristics.
The educated class gets to know the new approach to life
and under this approach, this class reviews its current life and standard,
which makes it aware of its standard. If he finds the standard of living to be
poor, he thinks to change it and dreams of a system in which the standard of
living is not poor, hence the intellectual class dreams of a new society and
system.
A specific approach is needed to analyze all these things,
how the system providing poor quality is constructed, what are the main reasons
for its construction, why it is working in the interest of the person. The
reviewers say that the creation of this review is also done by the intellectual
class.
To establish the system which the intelligentsia dreams of,
and to change the rotten street system, the organization is also formed by the
intellectual class because it knows that means are needed to achieve the goal.
In this way he knows the importance of means. These three characteristics are
of the intellectual class. This is the reason that Father of the Nation
Jyotirao Phule and Babasaheb Dr. Ambedkar Caste Priority was given to the
creation of intellectual class from tribes and backward classes. Today, we see
that the intelligentsia has been formed by the movement which was run by the
Father of the Nation from 18 to 1890 and the movement which was organized by
Babasaheb Dr. Ambedkar from 1914 to 1957. Therefore, because of these
characteristics of the intellectual class, they are organizing this class.
Objective of the creation of intellectual class
Why did Father of the Nation Jyotirao Phule and Babasaheb
Dr. Ambedkar give priority to the creation of intellectual class? Because he
knew that the creation of an intellectual class is necessary to change the
system of Manuwadi (Brahminical). Only the intellectual class can carry out the
movement of system change. Therefore, his creation was given priority. Jyotirao
Phule and Babasaheb Dr. Ambedkar knew that the intellectual class is an
important tool for the movement of system change and creation of this tool is
necessary for system change. To fulfill this objective, priority was given to
the creation of intellectual class and this objective was kept.
Is the intellectual class doing this work?
What Caste Tribes, backward classes made up of intellectual
class, are working according to the wishes of their makers? After reviewing it,
it is found that this class does not appear to be an active participant in any
such work. Not only this, the society from which this class has come, it also
looks at the society with neglected attitude and stays away from it. Babasaheb
Dr. Ambedkar also had this experience during the first half of his life, and he
said with great sadness at the Ramlila Ground in Agra on March 14, 1956, that
"the people who read me have cheated, I thought that by reading this The
class will serve its society, but I see that a crowd of clerks have gathered
around me, who are engaged in feeding themselves. ” This hurt sentiment is a
proof that the educated class is going far away from its society and its
affection. This is the reason why injustice, atrocities and discrimination have
increased with the people living in villages. The work for which the father of
the nation Jyotirao Phule and Babasaheb Dr. Ambedkar created this class, is not
visible in that work. The class from which the leadership was expected, has
become a servant of the government, half the incomplete and raw people have
been left in the hands of the movement. As a result of this, we see that the
movement of Father of the Nation Jyotirao Phule and Babasaheb Dr. Ambedkar is
not visible today.
What should the intelligentsia do?
The intelligentsia should do the work that its makers had
expected from them. Non-equal arrangements are going on throughout the country.
Till the change in the system, Caste Tribes, backward classes and minorities
will continue to get crushed in the system and all kinds of discrimination will
be done with them. Therefore, the intellectual class should organize, organize
and create an effective movement for change of system. The intellectual class
should come forward to do this work. Keeping in mind the expectations of its
makers and the characteristics of the intellectual class, BAMCEF is trying to
organize the intellectual class to carry out the above work.
Purpose - to change the system
Six efforts were achieved in this effort. But that system
is not enough for change. Therefore, this effort needs to be run at a higher
speed. To run this effort more smoothly and fulfill the purpose of change of
system, BAMCEF has laid some important objectives in front of it.
To create a sense of being free from social debt in the
intellectual class.
To establish and strengthen the non-political roots of the
indigenous Bahujan Samaj (SC, ST, OBC and converts from these).
Creating goal-piercing and goal-driven awakening.
Disseminating the views of Father of Nation, Periyar
Ramasamy and Babasaheb Dr. Ambedkar.
Bringing awareness among 7,000 castes who are less and more
afflicted by Brahminical social system, instilling brotherhood in them and
connecting those castes among themselves.
To make the movement of the indigenous Bahujan society
self-reliant, to build intelligence, money and skills from them.
Creating and arranging leadership in a headless society.
To give direction to a directionless society.
Producing and arranging full-time workers. The success of
the movement of system change depends on the fulfillment of the above mentioned
objectives, it is necessary to explain this.
Bamsef's dignity
BAMCEF is an organization of educated government,
non-government employees. Therefore, the members of BAMCEF cannot be active
participants in any political party and being violated the conditions of
service. Therefore, BAMCEF has been kept non-political and non-agitational.
Along with this, it has been strategically kept secular (Non-Religious) keeping
in mind the objective of forming an organization of 4,000 castes.
BAMCEF - Bearer of system change
The father of the nation Jyotirao Phule, Periyar Ramasamy
Naicker and Babasaheb Dr. Ambedkar had set the aim of their movement to change
the system. The goal of system change has not been achieved yet. The aforesaid
noblemen kept fighting for system change throughout their life and they also
achieved some successes. But the movement of system change has not yet ended
logically. Therefore, BAMCEF dedicates itself to the fulfillment of the
imperfect objectives of those great personalities, in which system change will
be the main goal. In short, the meaning of system change is to make a
structural change in the structure of the social system. Therefore, Bamsef is
not involved in welfare activities (Charitable) and charitable works also
because they cannot be practicable. They can be used as per means at the
appropriate time. While doing this, it will also be kept in mind whether such
work helps in accomplishing the objective.
System change - a mission
Efforts to change the system have been taking place for
thousands of years, but till today we have not achieved complete success.
Thousands of great people gave their sacrifices in this, martyred, but this
goal could not be fully achieved. Therefore, change of system is a great task,
a difficult task. That is why it is a mission and the worker working to fulfill
this task can be called a 'missionary'. To fulfill this mission, thousands of
millions of people are needed, then somewhere this mission can be completed.
Those who have benefited from the movement of Father of the Nation Jyotirao
Phule, Periyar Ramasamy and Dr. Babasaheb Ambedkar, it is their first duty to
come forward with a motive to accomplish this task. Our hope and expectation
will not go in vain, with such hope we end this request.@Nayak1
....जय मूलनिवासी
Thank you Google