आत्महत्या
करते अन्नदाता...
एक साल
में 42,480 किसान-मजदूरों
ने गंवाई जान
किसानों के आत्महत्या करने का सिललिसा कांग्रेस के समय में शुरू हुआ था अब वही सिलसिला बीजेपी में जारी है. सरकारें आती हैं, चली जाती हैं लेकिन किसनों के आत्महत्या करने का दौर जारी रहता है. किसान पहले सही कृषि और पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे थे लॉकडाउन ने किसानों की मुश्किलें और बढ़ी है. एक ओर जहां किसानों की फसलों का खरीद ना होने के कारण फसलें सड़ रही हैं तो दूसरी तरफ न तो उनकी फसल का उचित मूल्य मिल रहा है, न तो सस्ते खाद, बीज, बिजली, पानी और किटनाशक दवाएं ही उपलब्ध हो रही है. ऊपर बैंक से लेकर साहूकारों का कर्ज उनके ऊपर बोझ बन गया है. जिसके कारण वे आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं.
गौरतलब है कि सरकारें आती हैं, वादे करती हैं और किसानों की समस्या दूर करने के वादे पर सरकारें बनाती हैं पर किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाती हैं. अब तो कोविड-19 से मानो किसानों पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा है. महामारी का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन लगा, जिससे ग्रामीण अर्थव्य्वस्था की नींव हिल गई. पाई-पाई के लिए मोहताज किसान बच्चों के स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई का खर्च कैसे वहन करेंगे? हालात इतने बुरे हैं कि किसानों का धैर्य टूट गया और वे आत्महत्या करने को विवश हो गए हैं.
भारत में किसान और मजदूर आत्महत्या पर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नए डेटा के मुताबिक साल 2019 में 42,480 किसानों और दैनिक मजदूरों ने आत्महत्या की है. ये संख्या साल 2018 के आकंड़ों से 6 फीसदी अधिक है. इसमें किसान आत्महत्या के मामले में थोड़ी कमी आई है, मगर मजूदरों की आत्महत्याएं आठ फीसदी बढ़ गई है. डेटा के मुताबिक साल 2019 में 10,281 किसानों ने आत्महत्या की थी. हालांकि, ये 2018 में 10,357 किसान आत्महत्या से थोड़ा कम है. इस तरह से पिछले एक साल में 32,559 मजदूरों ने आत्महत्या की है जबकि 2018 में ये आंकड़ा 30,132 था. इस तरह से देश में कुल आत्महत्या के 7.4 फीसदी मामले कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. इसमें किसानों की संख्या 5,957 है जबकि खेतिहर मजदूरों की संख्या 4,334 है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में कुल आत्महत्या से जुड़े मामलों की संख्या 2019 में बढ़कर 1,39,123 तक पहुंच गई है जो 2018 में 1,34,516 थी.
एनसीआरबी डेटा के अनुसार आत्महत्या करने वाले में वालों में 5,563 पुरुष किसान और 294 महिला किसान थी. 2018 में ये आंकड़ा 3,749 और 575 था. रिपोर्ट में बताया गया कि पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, मणिपुर, चंडीगढ़, दमन-दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में किसान और खेतिहर मजदूरों से जुड़ा आत्महत्या का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया. ताजा आंकड़ों के मुताबिक आत्महत्या के मामलों में बिहार 44.7, पंजाब में 37.5, झारखंड में 25, उत्तराखंड में 22.6 और आंध्र प्रदेश में 21.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अगर शहरों की बात करें तो यहां आत्महत्या के मामले राष्ट्रीय औसत 10.4 फीसदी से अधिक 13.9 फीसदी रहा है. केरल के कोल्लम और पश्चिम बंगाल के आसनसोल में क्रमशः 41.2 और 27.8 फीसदी आत्महत्या की उच्चतम दर दर्ज की गई. रिपोर्ट में बताया गया है कि बड़े शहरों में चेन्नई 2,461, दिल्ली में 2,423, बेंगलुरु में 2,081 और मुंबई में 1,229 आत्महत्याओं के मामले दर्ज किए गए. इन चार शहरों में देश के 53 बड़े शहरों के 36.6 फीसदी आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं. कुल मिलाकर अगर सरकारें किसानों की समस्याओं का समाधान करती तो किसान आत्महत्या नहीं करते. इसक मतलब है कि सरकरें ही किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर रही हैं.
2019 में हर रोज 381 लोगों ने की खुदकुशी : एनसीआरबी डेटा में खुलासा
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2019 में हर दिन औसतन 381 लोगों ने आत्महत्या की है. इस तरह पूरे साल में कुल 1,39,123 लोगों ने खुद ही अपनी जान ले ली है. आंकड़ों के अनुसार, 2018 के मुकाबले 2019 में आत्महत्या के मामलों में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पिछले साल जहां 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं 2018 में 1,34,516 और 2017 में 1,29,887 लोगों ने अपनी जीवनलीला समाप्त की है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2019 में शहरों में आत्महत्या की दर 13.9 प्रतिशत थी जो पूरे भारत में आत्महत्या की दर 10.4 प्रतिशत से अधिक थी. आंकड़ों के अनुसार 2019 में आत्महत्या के मामलों में 53.6 प्रतिशत लोगों ने फांसी लगाकर जान दी, वहीं जहर खाकर 25.8 प्रतिशत लोगों ने अपना जीवन समाप्त किया. इसके साथ ही 5.2 प्रतिशत लोगों ने पानी में डूबकर आत्महत्या की तो 3.8 प्रतिशत लोगों ने आत्मदाह किया.
एनसीआरबी के अनुसार आत्महत्या के 32.4 प्रतिशत मामलों में लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते अपनी जिंदगी खत्म की तो 5.5 प्रतिशत लोगों ने वैवाहिक समस्याओं के चलते ऐसा कदम उठाया. वहीं, 17.1 लोगों ने बीमारी के चलते आत्मघाती कदम उठाया. आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या के प्रत्येक 100 मामलों में से 29.8 प्रतिशत महिलाएं और 70.2 प्रतिशत पुरुष अपना जीवन समाप्त करने वालों में शामिल रहे. इनमें से लगभग 68.4 प्रतिशत पुरुष विवाहित थे और विवाहित महिलाओं का अनुपात 62.5 प्रतिशत था.
बता दें कि आत्महत्या के सर्वाधिक मामले महाराष्ट्र में सामने आए जहां 18,916 लोगों ने अपना जीवन समाप्त की तो वहीं तमिलनाडु में 13,493, पश्चिम बंगाल में 12,665, मध्य प्रदेश में 12,457 और कर्नाटक में 11,288 लोगों ने 2019 में आत्महत्या की. इन पांच राज्यों में आत्महत्या के करीब 49.5 प्रतिशत मामले सामने आए, जबकि शेष 50.5 मामले अन्य 24 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में सामने आए. हालंकि, राहत की बात है कि सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में अपेक्षाकृत कम लोगों ने आत्महत्या की है. यूपी में आत्महत्या का आंकड़ा केवल 3.9 प्रतिशत रहा.
♦ किसान प्रकृति की मार तो जैसे-तैसे झेल जाते हैं लेकिन हमारी दोहरी आर्थिक नीतियां उनका मनोबल तोड़कर रख देती हैं
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के एक सर्वे के मुताबिक देश के आधे से ज्यादा किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं. और एक अन्य अध्ययन के अनुसार हर तरफ से निराश हो चुके देश के 76 फीसदी किसान खेती छोड़कर कुछ और करना चाहते हैं. आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के आंकड़े भी बताते हैं कि वर्ष 2016-17 की तुलना में कृषि की सकल मूल्य वृद्धि (जीवीए) में करीब 54 प्रतिशत की कमी देखी गई है.
♦ जब तक उपभोक्ताओं और उद्योगों के हितों
के लिए किसानों के हितों की अनदेखी होती रहेगी, इन आत्महत्याओं का रुकना संभव नहीं है.
विडंबना
यह है कि जब खाली जेब लिए किसान आंसू बहा रहा होता है, आम उपभोक्ता खुशियां मनाते हैं. दिसंबर
2018 में थोक महंगाई दर आठ महीने के सबसे
निचले स्तर पर जाकर 3.80 प्रतिशत
और खुदरा महंगाई दर अठारह महीनों के सबसे निचले स्तर पर जाकर 2.19 फीसद हो गई थीं. इस दौरान खाने-पीने की
वस्तुओं की कीमतों से लेकर लोन की दरें तो घट गईं लेकिन इसने कई किसानों को बर्बाद
भी कर दिया.
♦ भारत में करीब 90 फीसदी किसानों को उनकी फसलों के लिए तय
कीमतें नहीं मिलती हैं जो पहले ही सही तरीके से तय नहीं की जाती हैं
विश्लेषकों
की मानें तो भारत में 90 फीसदी से
ज्यादा किसानों को उनके उत्पादों के लिए सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) का लाभ नहीं मिल पाता है. आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में सरकार ने भी यह बात स्वीकारी थी कि
खाद्यानों के करीब एक तिहाई भाग की ही खरीद एमएसपी पर हो पाती है. आर्थिक सहयोग
विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट के हवाले से खेती-किसानी
से जुड़ी प्रमुख वेबसाइट गांव कनेक्शन का कहना है कि वर्ष 2000 से 2017 के बीच उत्पाद का सही मूल्य न मिलने की
वजह से देश के किसानों को करीब 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.
♦ तमाम जानकार और रिपोर्ट बताते हैं कि
विदेशी बीजों के इस्तेमाल ने किसानों की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
जानकार
बताते हैं कि विदेशी बीजों को प्रोत्साहन देने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाईं सीड
डेवलपमेंट-1988 और नेशनल
सीड पॉलिसी-2002 के अलावा
विश्व बैंक की नीतियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय बीज कंपनियां, जैसे कारगिल, मोन्सांटो और सिनजेंटा-भारत में बड़े
स्तर पर सेंध लगाने में सफल रहीं. फिर इन्होंने रातों-रात हमारे किसानी के ढांचे
को बदलकर रख दिया. इन कंपनियों के रासायनिक बीजों के लिए बड़ी मात्रा में रासायनिक
उर्वरक और कीटनाशक की जरूरत पड़ने लगी जिनके मंहगे दामों ने किसानों की कमर तोड़ कर
रख दी.@Nayak1
Suicide givers
The process of farmers committing suicide started during the
Congress time, now the same continues in the BJP. Governments come and go, but
the period of suicides continues. The farmers were earlier struggling with the
right agricultural and family problems, the lockdown has increased the
difficulties of the farmers. On the one hand, where the crops are rotting due
to lack of purchase of the crops of the farmers, on the other hand neither
their crops are getting fair price, neither cheap manure, seeds, electricity,
water and pesticides are available. Above all, the debt of the moneylenders
from the bank has become a burden on them. Due to which they are being forced
to commit suicide.
Significantly, governments come, make promises and form
governments on the promise of resolving the problems of the farmers, but are
not able to solve the problems of the farmers. Now, as if Kovid-19, a mountain
of troubles has broken down on the farmers. A lockdown was put in place to
prevent the epidemic of infection, shaking the foundations of the rural
economy. For the pie-pie, how will the farmers afford the expenses of school-college
education of children? The conditions are so bad that the patience of the
farmers is broken and they are forced to commit suicide.
Shocking statistics have come out on farmer and worker
suicides in India. According to new data from the National Crime Records
Bureau, 42,480 farmers and daily laborers have committed suicide in the year
2019. This number is 6 percent more than the figures of 2018. In this, there
has been a slight decrease in the case of farmer suicides, but the suicides of
the workers have increased by eight percent. According to the data, 10,281
farmers committed suicide in the year 2019. However, this is slightly less than
10,357 farmer suicides in 2018. In this way, 32,559 laborers have committed
suicide in the last one year whereas in 2018 this figure was 30,132. In this
way, 7.4 percent of total suicide cases in the country are related to
agriculture sector. The number of farmers in this is 5,957 while the number of
agricultural laborers is 4,334. Statistics show that the number of total
suicide related cases in India has increased to 1,39,123 in 2019 from 1,34,516
in 2018.
According to the NCRB data, there were 5,563 male farmers
and 294 female farmers among those who committed suicide. In 2018, this figure
was 3,749 and 575. The report said that in West Bengal, Bihar, Odisha,
Uttarakhand, Manipur, Chandigarh, Daman-Diu, Delhi, Lakshadweep and Puducherry,
not a single case of farmer and agricultural laborers was reported. According
to the latest figures, Bihar has increased by 44.7 in suicide cases, 37.5 in
Punjab, 25 in Jharkhand, 22.6 in Uttarakhand and 21.5 per cent in Andhra
Pradesh. If we talk about cities, the number of suicide cases here has been
13.9 percent, higher than the national average of 10.4 percent. Kollam in Kerala
and Asansol in West Bengal recorded the highest suicide rates of 41.2 and 27.8
percent respectively. The report said that 2,461 cases were reported in
Chennai, 2,423 in Delhi, 2,081 in Bangalore and 1,229 in Mumbai in major
cities. In these four cities, 36.6 percent suicide cases have been reported in
53 major cities of the country. Overall, if governments had solved the problems
of the farmers then the farmers would not have committed suicide. This means
that the government is forcing the farmers to commit suicide.
♦ Farmers suffer the brunt of
nature but our dual economic policies break their morale.
According to a survey by the National Bank for Agriculture
and Rural Development (NABARD), more than half of the country's farmers are
under debt burden. And according to another study, 76 percent farmers of the
country who are depressed from every side want to leave farming and do
something else. Statistics from the Economic Survey 2018-19 also show that
there has been a decrease of about 54 percent in the gross value of agriculture
(GVA) compared to the year 2016-17.
♦ As long as the interests of
farmers are ignored for the interests of consumers and industries, it is not
possible to stop these suicides.
Ironically, when the farmer is shedding tears for empty
pockets, the common consumers celebrate. In December 2018, the wholesale
inflation rate was 3.80 percent at the lowest level of eight months and the
retail inflation was at the lowest level of eighteen months, 2.19 percent.
During this period, from the prices of food and beverage to loan rates, but it
also ruined many farmers.
♦ Nearly 90% of farmers in India
do not get fixed prices for their crops which are not already fixed correctly.
According to analysts, more than 90 percent of the farmers
in India do not get the benefit of the minimum support price (MSP) set by the
government for their products. In the Economic Survey 2018-19, the government
also accepted that only one-third of food grains are procured at MSP. According
to a report by the Organization for Economic Cooperation Development and the
Indian Council of Agricultural Research, the village connection, the leading
agricultural-related website, says that between 2000 and 2017, about 45 lakh
farmers of the country were not getting the right price for the product. There
was a loss of crores of rupees.
♦ Many experts and reports show
that the use of foreign seeds has left no stone unturned to break the back of
farmers.
Experts say that apart from Seed Development-1988 and
National Seed Policy-2002 created by the Government of India to encourage
foreign seeds, international seed companies, such as Kargil, Monsanto and
Syngenta-have a large scale in India due to World Bank policies. Was successful
in making a dent. Then he changed our farming structure overnight. A large
amount of chemical fertilizers and pesticides were needed for the chemical
seeds of these companies, whose expensive prices broke the back of the farmers.
@ Nayak1
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