भारत में एजुकेशन का लॉकडाउन
लॉकडाउन के
कारण शैक्षणिक संस्थानों के बंद रहने से 154 करोड़ छात्र-छात्राएं प्रभावित : यूनेस्को
गूगल से ली गई छायाचित्र
कोरोना संकट के चलते वैश्विक स्तर
पर घोषित लॉकडाउन का असर भले ही दुनिया के अन्य देशों पर भी पड़ा है, लेकिन यह बात पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि
भारत से कम ही असर पड़ा होगा. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. क्योंकि जहां
दुनिया के अन्य देश इस महमारी को लेकर न केवल सतर्क थे, बल्कि पूरी तैयारी के साथ लॉकडाउन घोषित किया. लेकिन
वहीं भारत में इस महामारी को लेकर शुरू से ही लापरवाही होती रही और अंत में अचानक
लॉकडाउन घोषित कर दिया गया, जिससे करोड़ों गरीबों को बेरोजगारी से लेकर भुखमरी तक
भीषण संकट झेलना पड़ा जो लगभग 8 महीने के
बाद भी जारी है. जबकि हजारों गरबों को अपनी जानें तक गंवानी पड़ी. इतना ही नहीं
मोदी सरकार जहां देश के सभी मंदिर, शराब का ठेका, मॉल, सिनेमा हॉल
आदि को खोल दिया है तो वहीं दूसरी तरफ शिक्षा का मंदिर (स्कूल और कॉलेज) 8 महीने से बंद पड़े हैं. सरकार की मंशा देखकर ऐसा लगता
है कि सरकार अभी शिक्षा का द्वार खोलने के मूड में नहीं है. यानी मोदी सरकार ने
एजुकेशन को ही लॉकडाउन कर दिया है.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यूनेस्को ने कहा है कि कोविड-19 महामारी ने शिक्षा के क्षेत्र में संकट पैदा कर दिया
है तथा लैंगिक भेदभाव पर आधारित गहरी एवं विविध असमानताओं ने उसमें अहम भूमिका
निभाई है. यूनेस्को ने वैश्विक शिक्षा निगरानी नामक एक रिपोर्ट में कहा है कि
कोविड-19 महामारी के चलते परिवारों के घरों पर ही रहने के
दौरान लैंगिक हिंसा, किशोरावस्था में गर्भधारण एवं समय से पूर्व शादी में
संभावित वृद्धि, विद्यालयों एवं महाविद्यालयों से बालिकाओं के एक बहुत
बड़े वर्ग के निकल जाने की संभावना, ऑनलाइन शिक्षण के चलते लड़कियों को नुकसान होने तथा उन पर घरेलू कामकाज की
जिम्मेदारियां बढ़ जाना जैसे कई प्रभाव सामने आए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 की संक्रामकता एवं प्राणघातकता पर अनिश्चिततता के
कारण दुनियाभर में सरकारों को लॉकडाउन लगाना पड़ा, आर्थिक गतिविधियां बिल्कुल सीमित करनी पड़ी तथा विद्यालय एवं महाविद्यालय
बंद करने पड़े. रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल में 194 देशों में 91 फीसदी विद्यार्थी प्रभावित हुए. कोविड-19 महामारी ने शिक्षा का संकट पैदा कर दिया, जिसमें विविध तरह की असमानताओं ने भूमिका निभाई. उनमें से कुछ असमानताएं
महिला-पुरुष भेदभाव पर आधारित हैं.
रिपोर्ट में कहा है कि वैसे तो इन
प्रभावों के हद का सटीक आकलन करना मुश्किल है, लेकिन उसकी कड़ी निगरानी आवश्यक है. रिपोर्ट में कहा, इन प्रभावों में यह है कि लॉकडाउन के दौरान परिवारों
के घरों में लंबे समय तक ठहरने से लैंगिक हिंसा बढ़ी. चाहे ऐसी हिंसा मां को
प्रभावित करे या लड़कियों को, लड़कियों की
शिक्षा जारी रखने की समर्थता पर उसके परिणाम स्पष्ट हैं. यूनेस्को की रिपोर्ट में
चिंता व्यक्त की गई है कि समय-पूर्व शादियों से शीघ्र गर्भधारण में वृद्धि हो सकती
है, जो महामारी के चलते परिवारों के गरीबी के दलदल में
फंस जाने का परिणाम है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है, कोरोना वायरस के कारण एक करोड़ 13 लाख बाल विवाह अगले 10 वर्षों में बढ़ सकते हैं. यूनेस्को का सुझाव है कि उप-सहारा अफ्रीका में
निम्न माध्यमिक विद्यालय की 3.5 प्रतिशत और
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की 4.1 प्रतिशत
लड़कियों के स्कूल न लौटने का खतरा है. विश्व बैंक का हवाला देते हुए रिपोर्ट में
कहा गया है कि कम और निम्न मध्य आय वाले देशों में लड़कों की तुलना में 12 से 17 साल की
लड़कियों के स्कूल न लौट पाने का खतरा है.
रिपोर्ट ने सिफारिश की गई है कि
देशों को महामारी के दौरान लड़कियों के स्कूल वापस लौटने को लेकर उनस संपर्क बनाए
रखने की आवश्यकता को पहचानने की जरूरत है. यूनेस्को का अनुमान है कि कोरोना वायरस
के कारण शैक्षणिक संस्थानों के बंद रहने से 154 करोड़ छात्र-छात्राएं प्रभावित हैं. @Nayak 1
Education lockdown in India
Closure
of educational institutions affected 154 million students due to lockdown:
UNESCO
Photograph taken from Google
According
to information received from sources, UNESCO has said that the Kovid-19
epidemic has created a crisis in education and deep and diverse disparities
based on gender discrimination have played an important role in it. UNESCO, in
a report called Global Education Monitoring, said that due to the Kovid-19
epidemic, the potential increase in sexual violence, adolescent pregnancies and
premarital marriage while staying at home, a large number of girls from schools
and colleges The possibility of dropping out of class, loss of girls due to
online education and increased responsibilities of domestic work on them have
brought many effects.
The
report said that due to uncertainty over the infectivity and fatalism of
Kovid-19, governments worldwide had to impose lockdowns, restrict economic
activities altogether and close schools and colleges. According to the report,
91 percent of students in 194 countries were affected in April. The Kovid-19
epidemic created an education crisis, in which a variety of inequalities played
a role. Some of them are based on gender discrimination.
The
report said that although it is difficult to assess the extent of these effects
accurately, strict monitoring is necessary. These effects, the report said,
were that prolonged stay in families' homes during lockdown increased sexual
violence. Whether such violence affects the mother or the girls, its
consequences on girls' ability to continue education are clear. The UNESCO
report has expressed concern that premature marriages may lead to an increase
in early pregnancies, which is the result of families getting caught in the
morass of poverty due to the epidemic.
According
to the news agency PTI, the report says that one crore 13 lakh child marriages
can increase in the next 10 years due to the corona virus. UNESCO suggests that
3.5 percent of lower secondary school and 4.1 percent of higher secondary
school girls in sub-Saharan Africa are at risk of not returning to school. The
report, citing the World Bank, states that girls aged between 12 and 17 are at
risk of not returning to school compared to boys in low and low middle income
countries.
The
report recommends that countries need to recognize the need to maintain contact
with girls when they return to school during an epidemic. UNESCO estimates that
154 million students are affected by the closure of educational institutions
due to the corona virus. @ Nayak 1
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