सजा-ए-मौत ?
देश में मौत की सजा पाए कैदियों में सबसे ज्यादा सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक
रूप से पिछड़े वर्ग के लोग : रिपोर्ट
भारत उन देशों की सूची में शामिल है, जहां जघन्य अपराधों के लिए मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है. लेकिन, मौत की सजा पाए जाने वाले कैदियों में आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है. किसी भी मामले में आरोपी की गिरफ्तारी से लेकर, उसकी हिरासत अवधि, मामले के ट्रायल की प्रक्रिया, दोषी ठहराए जाने और फिर मृत्युदंड दिए जाने तक उसे और उसके परिवार को किन परिस्थितियों से जूझना पड़ता है. इसे बेहतर तरीके से समझाने के लिए नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोजेक्ट 39ए ने हिंदी में ‘डेथ पेनल्टी इंडिया‘ नामक रिपोर्ट जारी की है, जिसके तहत जून 2013 से जनवरी 2015 के बीच मृत्युदंड की सजा पाए कैदियों और उनके परिवार की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का दस्तावेजीकरण करना और न्याय प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को सामने रखना है. इस रिपोर्ट को कैदियों और उनके परिवार के साथ बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है. देश में मृत्युदंड की सजा पाए 385 कैदियों में से 373 कैदियों को इस रिपोर्ट का हिस्सा बनाया गया है. ये कैदी 20 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश से हैं, जिनमें 361 पुरुष और 12 महिलाएं हैं.
देश में मृत्युदंड की सजा
देश के 18 केंद्रीय कानूनों में से 59 धाराओं में सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान है. देश में जिन 373 कैदियों को इस रिपोर्ट का हिस्सा बनाया गया है, उनमें से उत्तर प्रदेश और बिहार की संख्या सबसे अधिक है. जबकि, यौन अपराधों के लिए मृत्युदंड पाए 84 कैदियों में से 17.9 फीसदी महाराष्ट्र से और 16.7 फीसदी मध्य प्रदेश से हैं. रिपोर्ट बताती है कि मृत्युदंड की सजा वर्ग, जेंडर, जाति, धर्म और शैक्षिक स्तर से जुड़ी हुई है और समाज में हाशिये पर रहने वाला एक विशेष वर्ग ही इसे झेलता है.
मृत्युदंड पाने वालों में
आर्थिक-सामाजिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि सर्वाधिक क़ैदी
रिपोर्ट बताती है कि देश में मृत्युदंड
की सजा पाने वालों में आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर लोग अधिक हैं. आमतौर पर यह
सजा ज्यादातर उन लोगों को मिली है जो गरीब हैं और समाज के पिछड़े वर्गों से आते
हैं. इसके साथ ही कैदी की सजा निर्धारित करने में उसकी उम्र और उसका पूर्व आपराधिक
रिकॉर्ड भी अहम है. रिपोर्ट बताती है कि मृत्युदंड की सजा पाए 74 फीसदी कैदी आर्थिक तौर पर कमजोर
पृष्ठभूमि से थे, इनमें से 63.2 फीसदी कैदी परिवार में एकमात्र कमाने
वाले शख्स थे.
राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश
में आर्थिक रूप से कमजोर कैदियों की संख्या सर्वाधिक 48 है, जिसके बाद बिहार 39 और कर्नाटक 33 हैं. रिपोर्ट से पता चला है कि देश में
मृत्युदंड की सजा पाए अधिकतर कैदियों की शैक्षणिक स्थिति अच्छी नहीं है. शिक्षित न
होने की वजह से उन्हें कानूनी प्रक्रिया और कार्यवाही समझने में अधिक दिक्कतों का
सामना करना पड़ता है.
रिपोर्ट बताती है कि मृत्युदंड की सजा
पाए 23 फीसदी
कैदी कभी स्कूल नहीं गए. वहीं, 9.6 फीसदी
कैदी स्कूल तो गए लेकिन उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की, जबकि 61.6 फीसदी कैदियों ने माध्यमिक स्कूली
शिक्षा बीच में ही छोड़ दी. कभी स्कूल न गए कैदियों में सबसे ज्यादा संख्या बिहार
में 35.3 फीसदी और
उसके बाद कर्नाटक में 34.1 फीसदी है.
वहीं, 364 कैदियों
में से 200 यानी 54.9 फीसदी कैदी ऐसे थे, जो दोनों स्थितियों से वंचित थे यानी
उन्होंने माध्यमिक शिक्षा भी पूरी नहीं की थी और वे आर्थिक रूप से भी कमजोर थे.
कैदियों की जाति और धर्म
मृत्युदंड पाए 76 फीसदी कैदी पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक
समुदाय से हैं. इनमें मृत्युदंड पाए गए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कैदियों
का अनुपात 24.5 फीसदी है.
ऐसे कैदियों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की भागीदारी, जिन राज्यों में सबसे अधिक है, वे गुजरात 79 फीसदी, केरल 60 फीसदी और कर्नाटक 31.8 फीसदी हैं. इस अध्ययन में 373 कैदियों में से 31 कैदियों को आतंकी गतिविधियों के लिए
मौत की सजा सुनाई गई थी, जिनमें 29 कैदी अनुसूचित जाति एवं धार्मिक अल्पसंख्यक
समुदाय से थे, जिनमें से
61.3 फीसदी मुसलमान थे.
अध्ययन के अनुसार मृत्युदंड की सजा
प्राप्त 12 महिला
कैदी हैं, इनमें से
सात महिलाएं 26 से 40 वर्ष आयु के बीच की थीं, जबकि दो 21 से कम और एक 60 साल से ऊपर की थीं. सामाजिक स्थिति के
संदर्भ में देखें तो मृत्युदंड पाने वाली सभी महिला कैदी पिछडे वर्ग या मुस्लिम
समुदाय से जुड़ी हुई हैं. इनमें से सात पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जबकि तीन अनुसूचित
जाति/अनुसूचित जनजाति से जुड़ी हुई हैं. वहीं, बाकी की दो मुसलमान हैं. महिला कैदियों
की शैक्षणिक स्थिति के विश्लेषण से पता चला कि इनमें से छह कभी स्कूल नहीं गईं
जबकि सात ने माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं की. इन महिला कैदियों की आर्थिक स्थिति की
बात करें तो इनमें से नौ बेरोजगार थीं, एक मजदूर और अल्प आय वाली महिला थीं.
जेल में कैदियों के साथ हिंसा
रिपोर्ट में कैदियों की गिरफ्तारी के
समय के अनुभव और ट्रायल से पहले उनके साथ पुलिस और जांच एजेंसियों द्वारा किए गए
बर्ताव का विवरण भी है. कैदियों के इन अनुभवों से जेल में साथी कैदियों द्वारा की
जा रही हिंसा, जेल
कर्मचारियों की मिलीभगत या सबसे बदतर जेल के अधिकारियों द्वारा हिंसा का पता चलता
है. अध्ययन में 204 कैदियों
में से 120 ने
स्वीकार किया है कि पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है और धमकी भी दी है.
अध्ययन में शामिल 80 फीसदी कैदियों ने स्वीकार किया कि
पुलिस हिरासत में उन्हें यातनाएं सहनी पड़ी हैं. पुलिस द्वारा यातना देने के तरीके
अमानवीय, अपमानजनक
और शारीरिक एवं मानसिक पीड़ादायक रहे हैं, जिनका कैदियों के शारीरिक और मानसिक
स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है.
कैदियों के मुताबिक, इन यातनाओं से स्थाई रूप से उनकी आंख
और कान को नुकसान पहुंचा है, उनके
शारीरिक अंगों को क्षति पहुंची है. रीढ़ की हड्डी आदि पर गंभीर चोटें आई हैं. बिजली
के झटकों के कारण कैदियों को गंभीर सिर दर्द से गुजरना पड़ा है. रिपोर्ट में
कैदियों को दी जाने वाली जो अन्य प्रकार की यातनाएं बताई गई हैं, उनमें नाखूनों को खींचकर निकलाना, शौचालय में मुंह डालना, हीटर पर पेशाब करने के लिए मजबूर करना, सिर को दीवार या कांच पर दे मारना, बहुत देर तक बैठने नहीं देना आदि शामिल
हैं.
परिवार को गिरफ्तारी की सूचना के
अधिकार से वंचित रखना
सीआरपीसी की धारा 50 ए के तहत किसी शख्स की गिरफ्तारी पर
पुलिस अधिकारी को तुरंत उसके परिवार, दोस्त या किसी जानकार को सूचित करने का
प्रावधान है लेकिन अध्ययन के दौरान 195 ऐसे परिवार मिले, जिनमें से सिर्फ 20 परिवारों ने कहा कि उन्हें पुलिस ने
गिरफ्तारी के बारे में जानकारी दी थी. एक अन्य महत्वपूर्ण कारक जिस पर ध्यान देना
चाहिए, वह कैदी
की गिरफ्तारी के बारे में न बताए जाने के कारण परिवार पर पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक
प्रभाव है.
कैदियों
के मानवाधिकारों का उल्लंघन
संविधान का अनुच्छेद 22 (2) स्पष्ट करता है कि हर व्यक्ति जिसे
गिरफ्तार कर हिरासत में रखा गया है, उसे 24 घंटे की अवधि के भीतर निकटतम
मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए. मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना किसी को हिरासत
में नहीं रखा जा सकता लेकिन रिपोर्ट कहती है कि 166 कैदियों का कहना है कि उन्हें 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश
नहीं किया गया. ट्रायल के दौरान अदालत में अभियुक्त की मौजूदगी आपराधिक न्याय
प्रणाली के लिए जरूरी है, निष्पक्ष
सुनवाई की दिशा में यह पहला कदम है क्योंकि इससे आरोपी को अपने खिलाफ मामले को
समझने का अवसर मिलता है.
सीआरपीसी की धारा 273 में यह प्रावधान है कि ट्रायल की
कार्यवाही के दौरान सभी सबूत आरोपी की मौजूदगी में लिए जाने चाहिए और अगर आरोपी
मौजूद नहीं है तो उसके वकील की उपस्थिति में ऐसा किया जाए. अध्ययन के दौरान 225 कैदियों में से सिर्फ 57 कैदियों ने कहा कि वे सुनवाई के दौरान
मौजूद थे.@Nayak 1
Death sentence ?
People from socially, economically and educationally backward classes
among death row inmates in the country: report
India is included in the list of countries where there is a provision of
capital punishment for heinous crimes. However, among the prisoners who are
found to be sentenced to death, the number of economically, socially and educationally
backward classes is the highest. In any case, from the arrest of the accused,
the period of his detention, the process of trial of the case, the conviction
and then the death penalty, what circumstances he and his family have to deal
with. To understand this better, Project 39A of National Law University has
released a report called 'Death Penalty India' in Hindi, under which the social
and economic status of the prisoners sentenced to death between June 2013 and
January 2015 and their families. To document and put forward various aspects of
the justice system. This report has been prepared on the basis of interaction
with the prisoners and their families. Of the 385 prisoners sentenced to death
in the country, 373 prisoners have been made part of this report. These
prisoners are from 20 states and one union territory, of which 361 are males
and 12 females.
Death penalty in the country
Out of 18 central laws of the country, 59 sections have the provision of
capital punishment as punishment. Uttar Pradesh and Bihar have the highest
number of 373 prisoners in the country who have been made part of this report.
Whereas, out of 84 prisoners sentenced for sexual offenses, 17.9 percent are
from Maharashtra and 16.7 percent are from Madhya Pradesh. The report states
that capital punishment is linked to class, gender, caste, religion and
educational level and only a particular section of the marginalized in society
faces it.
Economist-socially weak background most inmate
The report says that there are more economically and socially weaker
people in the country who get capital punishment. Usually this punishment is
mostly given to those who are poor and come from the backward sections of the
society. Along with this, his age and his prior criminal record are also important
in determining the prisoner's sentence. The report states that 74 per cent of
the prisoners sentenced to death penalty were from financially weak background,
out of which 63.2 per cent of the prisoners were the only earning person in the
family.
Talking about the states, Uttar Pradesh has the maximum number of
financially weak prisoners, followed by Bihar 39 and Karnataka 33. The report
has shown that most of the prisoners sentenced to death in the country are not
in good academic condition. Due to not being educated, they face more
difficulties in understanding the legal process and proceedings.
The report states that 23 per cent of the prisoners sentenced to death
have never gone to school. At the same time, 9.6 percent of the prisoners went
to school but they did not complete elementary education, while 61.6 percent of
the prisoners left secondary schooling in the middle. The highest number of
inmates who never went to school is 35.3 percent in Bihar and 34.1 percent in
Karnataka. At the same time, out of 364 prisoners, 200 i.e. 54.9 percent were
prisoners who were deprived of both the conditions i.e. they did not complete
secondary education and they were financially weak.
Caste and religion of prisoners
76 per cent of the prisoners sentenced to death are from backward castes
and minority communities. The proportion of SC / ST prisoners found guilty of
death penalty is 24.5 percent. The participation of religious minorities among
such prisoners, the states which have the highest, are Gujarat 79 percent,
Kerala 60 percent and Karnataka 31.8 percent. In this study, 31 out of 373
prisoners were sentenced to death for terrorist activities, of which 29 were
from scheduled caste and religious minority communities, 61.3 percent of whom
were Muslims.
According to the study, there are 12 female prisoners sentenced to death
penalty, out of which seven women were between 26 and 40 years of age, while
two were under 21 and one was above 60 years. In terms of social status, all
the women prisoners who get death penalty are associated with backward class or
Muslim community. Of these, seven belong to the Backward Classes (OBC) while
three belong to the Scheduled Castes / Scheduled Tribes. At the same time, the
remaining two are Muslims. An analysis of the educational status of women
prisoners revealed that six of them never went to school while seven did not
complete secondary education. Talking about the economic condition of these
women prisoners, nine of them were unemployed, a laborer and a low-income
woman.
Violence with Prisoners in Jail
The report also details the inmates' experience at the time of arrest
and the treatment done by police and investigative agencies before the trial.
These experiences of prisoners reveal the violence being carried out by fellow inmates
in prison, collusion of prison staff or worst of all by prison officials. Out
of 204 prisoners in the study, 120 have admitted that they have been abused and
threatened by the police.
80 per cent of the inmates admitted in the study admitted that they had
to suffer torture in police custody. The methods of torture by the police have
been inhumane, abusive and physical and mental torture, which have adversely
affected the physical and mental health of the prisoners.
According to the prisoners, these tortures have permanently damaged
their eyes and ears, their body parts have been damaged. There have been
serious injuries on the spinal cord etc. The prisoners have suffered severe
headaches due to electric shocks. Other types of torture given to inmates in
the report include pulling out nails, pouring mouths in toilets, forcing them
to pee on heaters, slapping heads on walls or glass, not sitting for too long.
Giving etc.
Depriving the family the right to notice of arrest
Under Section 50A of the CrPC, there is a provision for immediately
informing the police officer of his family, friend or any information on arrest
of a person, but during the course of the study 195 such families were found,
out of which only 20 families said that they were arrested by the police. Was
given information about Another important factor that should be noted is the
psychological impact on the family due to not being informed about the
prisoner's arrest.
Prisoners' human rights violations
Article 22 (2) of the constitution makes it clear that every person who
is arrested and detained must be produced before the nearest magistrate within
a period of 24 hours. No one can be held in custody without the permission of
the magistrate but the report says that 166 inmates say that they were not
produced before the magistrate within 24 hours. The presence of the accused in
the court during the trial is necessary for the criminal justice system, this
is the first step towards a fair trial as it gives the accused an opportunity
to understand the case against him.
Section 273 of the CrPC provides that during the trial proceedings all
the evidence should be taken in the presence of the accused and if the accused
is not present, it should be done in the presence of his lawyer. Only 57 of the
225 inmates said during the study that they were present during the hearing. @
Nayak 1
Thank you Google