मनरेगा की असफलता और बेरोजगारी में जीवन बसर
असम में 87 फीसदी ग्रामीणों को
नहीं मिला कोई चिकित्सा उपचार : सर्वे
भारत में अचानक लॉकडाउन न केवल करोड़ों को बेरोजगार बना दिया, बल्कि करोड़ों को भुखमरी की खाई में भी झोंक दिया है. इसका असर, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों पर पड़ा है. खासकर ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा मेडिकल और पानी समस्या रही है. ग्रामीण भारत पर लॉकडाउन के प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण करने के लिए 22 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया हुआ, जिसमें पांच पूर्वोत्तर राज्यों में त्रिपुरा, असम, मणिपुर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की ग्रामीण आबादी शामिल थी.
सर्वे के मुताबिक, पूर्वोत्तर राज्य असम में 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिला. वहीं अरुणाचल प्रदेश में लगभग 41 प्रतिशत ग्रामीणों लॉकडाउन के दौरान कई बार पूरे दिन तक भूखे रहना पड़ा है. जबकि, असम में 87 प्रतिशत लोगों को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम रहना पड़ा है तो त्रिपुरा में 60 प्रतिशत महिलाओं को पानी की किल्लत झेलनी पड़ी है. सर्वे के अनुसार, त्रिपुरा में 74 प्रतिशत ग्रामीणों में बेरोज़गारी की स्थिति गंभीर है. इसके अलावा 66 प्रतिशत लोगों को परिवार का आय का स्त्रोत समाप्त हो जाने से बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.
अगर बात मनरेगा की करें तो मनरेगा ग्रामीण आबादी को काम देने का वादा करता है, लेकिन, त्रिपुरा में सर्वेक्षण में शामिल 73 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिला. जबकि, अरुणाचल, असम में यह आंकड़ा क्रमशः 71 और 80 प्रतिशत रहा. यही नहीं देश में कम पोषण और भूखमरी के परिदृश्य के बीच, कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने इसे और भी गंभीर बना दिया. ग्रामीण परिवारों को अपने लिए दो जून की रोटी का प्रबंध करना भी मुश्किल हो गया और पूर्वोत्तर इसका अपवाद नहीं है.
सर्वे से पता चलता है कि अरुणाचल प्रदेश में 41 प्रतिशत ग्रामीणों ने लॉकडाउन के दौरान कई बार बिना भोजन किए बिताए तो वहीं असम में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत सामने आया. इसके साथ ही, ऐसे संकटपूर्ण समय में खाद्यान्न के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) पर निर्भर ग्रामीण आबादी को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा. महामारी के बीच यह भी पाया गया कि लोग बुनियादी खाद्य पदार्थों जैसे- आटा, चावल और दाल पर भी कम खर्च करने लगे. त्रिपुरा में 53 प्रतिशत ग्रामीणों ने इस पर कम खर्च किया, जबकि अरुणाचल प्रदेश में यह आंकड़ा क्रमशः 40 और 53 प्रतिशत है.
चौंकाने वाली बात तो यह है कि देश में महामारी फैलने के बाद प्राथमिक और समुदायिक स्तरों पर डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारियों की बड़ी संख्या को इससे निपटने में लगा दिया गया, जिससे अन्य बीमारियों से ग्रसित लाखों लोगों को लॉकडाउन के दौरान काफ़ी मुश्किलों को सामना करना पड़ा है. इसमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं, जिन्हें निरंतर स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण और प्रसवपूर्व जांच की जरूरत होती है. सर्वेक्षण के अनुसार, असम में लगभग 45 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं प्रसवपूर्व जांच और टीकाकरण से चूक गईं. सर्वेक्षण में ग्रामीण परिवारों द्वारा दवाओं को प्राप्त करने में आईं कठिनाईयों का भी पता लगाने का प्रयास किया गया है. सर्वेक्षण में कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं. असम में प्रत्येक 10 घर में से लगभग 9 घरों यानी 87 प्रतिशत को लॉकडाउन के दौरान आवश्यक चिकित्सा उपचार के बिना रहना पड़ा. जबकि अरुणाचल प्रदेश में यह आंकड़ा 66 और त्रिपुरा में 58 प्रतिशत है.
अब वित्तीय संकट और कर्ज की भी बात करें तो सर्वे के अनुसार 70 प्रतिशत ग्रामीणों को पैसों के संकट से जूझना पड़ा है. असम में 82 प्रतिशत और अरुणाचल में 68 प्रतिशत लोगों को घरेलू आय के साधान समाप्त हो जाने से उनका गुजारा करना भी मुश्किल था. है. क्योंकि, लॉकडाउन के दौरान ऋण चुकता करने का परिदृश्य बिगड़ गया और पैसे कमाने का जरिया ही नहीं रहा. इसलिए ग्रामीण और पैसे उधार लेने के लिए मजबूर हो गए. सर्वे के मुताबिक, असम में 31 प्रतिशत ने उधार लिया, 16 प्रतिशत ने जमीन या गहने को बेचा या गिरवी रखा और 11 प्रतिशत लोगों ने बेशक़ीमती संपत्ति बेच दी. जबकि त्रिपुरा में यह आंकड़ा क्रमशः 13, 15 और 20 प्रतिशत रहा.
बता दें कि लॉकडाउन के दौरान लाखों महिलाओं को अपने परिवार के लिए पानी की किल्लत से जूझना पड़ा है. सर्वे के अनुसार, त्रिपुरा में 60 प्रतिशत महिलाओं को अतिरिक्त पानी की व्यवस्था के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी. जबकि असम में 41 प्रतिशत ने कहा कि वे पानी की व्यवस्था करने के लिए अतिरिक्त मेहनत कर रहे हैं. वहीं अरुणाचल प्रदेश में 44 फीसदी और महिलाओं को अतिरिक्त पानी का प्रबंधन करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी.@Nayak 1
MNREGA failure and
unemployment lead to life
87% of villagers in
Assam did not receive any medical treatment: survey
Photograph taken from Google
The sudden lockdown
in India has not only made crores of unemployed, but has also thrown crores
into the hunger of hunger. This has affected both rural and urban areas.
Especially in rural areas, there has been most medical and water problems. A
national survey was carried out in 22 states and 3 union territories to
document the effects of lockdown on rural India, including the rural population
of Tripura, Assam, Manipur, Sikkim and Arunachal Pradesh in five northeastern
states.
According to the
survey, 80 percent of the respondents in the northeastern state of Assam could
not find any work under the MNREGA during the lockdown. At the same time, about
41 percent of the villagers in Arunachal Pradesh have to stay hungry for
several days during lockdown. Whereas, in Assam, 87 percent of the people have
to live without necessary health facilities, in Tripura, 60 percent of the
women have to face water shortage. According to the survey, the unemployment
situation is serious among 74 percent of the villagers in Tripura. Apart from
this, 66 percent of the people have faced immense difficulties due to the
depletion of the family's source of income.
If we talk about
MNREGA, MNREGA promises to provide work to the rural population, but, in
Tripura, 73 percent of those surveyed said that they did not get any work under
MNREGA. Whereas, in Arunachal, Assam this figure was 71 and 80 percent
respectively. Not only this, amidst the scenario of low nutrition and hunger in
the country, the lockdown imposed to prevent the spread of corona epidemic made
it even more serious. Rural families also found it difficult to manage the
bread of June 2 and the Northeast is no exception to this.
The survey shows
that 41 percent of the villagers in Arunachal Pradesh spent many times without
food during the lockdown, while in Assam, this figure was 34 percent. In
addition, the rural population dependent on the Public Distribution System
(PDS) for food grains suffered a lot in such critical times. Amidst the
epidemic, it was also found that people started spending less on basic food
items like flour, rice and pulses. 53% of the villagers in Tripura spent less
on this, while in Arunachal Pradesh the figure is 40 and 53% respectively.
Shockingly, after
the outbreak of the epidemic in the country, a large number of doctors and
health workers were employed to deal with it at the primary and community
levels, causing millions of people suffering from other diseases to face
difficulties during the lockdown. is. It also includes pregnant women who need
continuous health care, vaccination and prenatal check up. According to the
survey, about 45 percent of pregnant women in Assam missed prenatal screening
and vaccination. The survey has also attempted to find out the difficulties
faced by rural families in obtaining medicines. The survey has revealed some
startling findings. About 9 out of every 10 households in Assam, ie 87 percent
had to live without the necessary medical treatment during lockdown. While this
figure is 66 percent in Arunachal Pradesh and 58 percent in Tripura.
Now even talking
about financial crisis and debt, according to the survey, 70 percent of the
villagers have to face money crisis. 82 percent of people in Assam and 68
percent in Arunachal were also difficult to make ends meet after the dilution
of household income. is. Because, during the lockdown, the scenario of repaying
debt deteriorated and there was no way to earn money. So the villagers were
forced to borrow more money. According to the survey, in Assam 31 percent
borrowed, 16 percent sold or mortgaged land or jewelry, and 11 percent sold
valuable property. Whereas in Tripura this figure was 13, 15 and 20 percent
respectively.
Let us know that
during lockdown, millions of women have had to face water shortage for their
family. According to the survey, 60 percent of women in Tripura had to work
hard for additional water arrangements. In Assam, 41 percent said that they are
working extra hard to make water arrangements. In Arunachal Pradesh, 44 percent
more women had to work hard to manage excess water. @Nayak 1
Thank you google