बलात्कार मामलों में न्याय की राह में रोड़ा बन रही पुलिस
यूपी में रेप के केस में आज भी एफआईआर दर्ज कराना मुश्किल काम
गूगल से ली गई छायाचित्र
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव और एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी
एंड लीगल इनिशिएटिव्स के एक साझा अध्ययन के
नतीजे बताते हैं कि यूपी में यौन हिंसा पीड़ित महिलाओं को शिकायत दर्ज करवाने के दौरान लगातार पुलिस के हाथों
अपमान झेलना पड़ा और एफआईआर भी पहले प्रयास में दर्ज नहीं हुई. जिस सुबह हाथरस में दरिदंगी की शिकार हुई
लड़की की सफदरजंग अस्पताल में मौत हुई उसके एक दिन पहले 28 सितंबर की शाम लखनऊ में दो संगठनों ने एक
रिपोर्ट जारी की. यह रिपोर्ट और हाथरस में लड़की के साथ जो हुआ उसको एक साथ देखिए-पढ़िए तो उत्तर प्रदेश में
महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाओं में यूपी की पुलिस किस तरह पेश आती है उसका परत दर परत खुलासा हो
जाएगा.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) और एसोसिएशन फॉर
एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स (आली)
ने रेप व गैंगरेप के 14 केस के अध्ययन पर एक रिपोर्ट ‘न्याय की पहुंच में बाधाएं’ जारी की. इस रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते
हैं कि यूपी में रेप के केस में आज भी एफआईआर दर्ज कराना ही कितना मुश्किल काम है. आरोपियों के खिलाफ
कार्यवाही तो दूर की बात है. रिपोर्ट दर्ज कराने के प्रयास में यौन हिंसा से जूझती महिलाओं-लड़कियों को पुलिस लगातार
अपमानित, हतोत्साहित और उत्पीड़ित करती है. सीएचआरआई अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है जबकि आली महिलाओं
द्वारा संचालित मानवाधिकार संगठन है, जो 1998 से काम कर रहा है.
दोनों संगठनों द्वारा जारी इस रिपोर्ट में अलीगढ़, अमरोहा, औरैया, लखनऊ, झांसी, जौनपुर और मुज़फ्फरनगर के 14 रेप केस
का अध्ययन किया गया है. इसमें 11 रेप और तीन गैंगरेप की घटनाएं थी. इनमें से एक को छोड़कर सभी घटनाएं 2017
से 2020 के बीच की हैं. एक घटना 2016 की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी मामलों में पहली बार में एफआईआर
दर्ज नहीं हुई, सिर्फ 11 मामलों में बहुत प्रयासों के बाद एफआईआर दर्ज हुई. जिन 11 मामलों में एफआईआर दर्ज हुई, उसमें
एफआईआर दर्ज कराने में दो दिन से लेकर 228 दिन तक लगे. इनमें से छह मामलों में एफआईआर तब दर्ज हुई, जब
यौन हिंसा से जूझ रही महिलाएं और उनकी पैरवी करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों तक पहुंचे.
रिपोर्ट कहती है कि एफआईआर दर्ज कराने के प्रयास में यौन हिंसा
से जूझ रही महिलाओं को लिंग-जाति के आधार पर
पुलिस के भेदभाव वाले रवैये का भी सामना करना पड़ा. पांच मामलों में अदालत के आदेश के बाद एफआईआर दर्ज हो
पाई. रिपोर्ट के अनुसार, अलीगढ़ के मई 2017 के एक रेप केस में एफआईआर दर्ज कराने में 181 दिन का समय लगा
. इसी तरह अमरोहा में तीन मार्च 2017 की रेप की घटना में एफआईआर 111 दिन बाद दर्ज हो पाई. औरैया में चलती कार
में हुए रेप के एक मामले में पुलिस ने 74 दिन बाद एफआईआर दर्ज की. झांसी के एक रेप केस में पुलिस ने 228 दिन
बाद एफआईआर दर्ज की. अमरोहा की घटना में पुलिस ने रेप के बजाय घटना को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की
धारा 354 यानी की यौन उत्पीड़न में दर्ज कर लिया. राजधानी लखनऊ में 17 अक्टूबर 2016 की एक घटना में पुलिस ने
69 दिन बाद एफआईआर दर्ज की. अभी हाल में हाथरस में हुई की घटना में पुलिस ने आठ दिन बाद गैंगरेप का केस दर्ज
किया गया. यही नहीं 11 दिन बाद सेंपल भी लिया गया.
बता दें कि आईपीसी में सभी यौन अपराधों, जिसे लिंग आधारित अपराध भी कहा जाता है, संज्ञेय अपराध माना गया हैं.
यौन अपराधों की शिकायतों में तुरंत एफआईआर दर्ज करना पुलिस के लिए कानूनन अनिवार्य है. आपराधिक कानून
(संशोधन) अधिनियम 2013 की 166 ए (सी) के अनुसार सार्वजनिक सेवक यदि यौन हिंसा की एफआईआर दर्ज नहीं करता
है, तो उसके खिलाफ कारावास और जुर्माने का दंडनीय अपराध बनाता है. इस अध्ययन में पाया गया कि लगभग सभी
मामलों में महिला की शिकायत पर पुलिस ने शुरू में अविश्वास किया. महिलाओं का कहना था कि पुलिस ने उन पर ताने
कसे और आरोपियों से ही समझौते का दबाव बनाया. उनसे कहा गया कि वे कानून का अनुचित लाभ उठाते हुए पुरुषों को
फंसाने के लिए झूठे दावे कर रही हैं. यौन हिंसा से जूझ रहीं अनुसूचित जाति की महिलाओं को लैंगिक आधार के साथ-
साथ जाति आधारित भेदभाव का भी सामना करना पड़ा. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अलीगढ़ में रेप
की एफआईआर दर्ज कराने जब एक घरेलू कामगार थाने पहुंचीं, तो प्रभारी अधिकारी ने उससे आवेदन लेने के बाद टिप्पणी
की, ‘तुम इतनी खूबसूरत भी नहीं हो कि तुम्हे कोई परेशान करेगा, तुम कोई .. भी नहीं हो जो तुम्हें कोई सेक्शुअली
असॉल्ट करे.
कुल मिलाकर सीएचआरआई और आली की इस रिपोर्ट को पढ़ने और आए दिन
हाथरस, बलरामपुर, भदोही, आजमगढ़,
उन्नाव, लखीमपुर सहित प्रदेश के कोने-कोने में में महिलाओं-लड़कियों और छोटी बच्चियों पर यौन हिंसा की घटनाओं को
देखते हुए स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में कुछ भी नहीं बदला है. न पुलिस का रवैया न सरकार का. @Nayak 1
Police is obstructing justice in rape cases
Difficult task to register FIR in case of rape in UP even today
Photograph taken from Google
The Commonwealth Human Rights Initiative (CHRI) and the Association
for Advocacy and Legal Initiatives (ALI) released a report 'Obstacles to Access
to Justice' on 14 case studies of rape and gang rape. The findings of this
report show how difficult it is to register an FIR in the rape case even today.
Proceedings against the accused are far off. The police continue to humiliate,
discourage and harass women and girls who are struggling with sexual violence
in an attempt to file a report. CHRI is an international human rights
organization while Aali is a human rights organization run by women, which has
been in operation since 1998.
In this report released by both organizations, 14 rape cases of
Aligarh, Amroha, Auraiya, Lucknow, Jhansi, Jaunpur and Muzaffarnagar have been
studied. There were 11 incidents of rape and three gang rapes. Except one of
these incidents are between 2017 and 2020. One incident is of 2016. This report
said that FIRs were not registered in all cases for the first time, in only 11
cases FIR was registered after much efforts. In 11 cases in which FIR was registered,
it took from two days to 228 days to file FIR. In six of these cases, an FIR
was registered when women battling sexual violence and senior police officers
appearing for them approached.
The report says that in an attempt to register an FIR, the women
who were facing sexual violence also faced the discriminatory attitude of the
police on the basis of gender and caste. In five cases, FIR was registered
after the court order. According to the report, it took 181 days to register an
FIR in Aligarh's May 2017 rape case. Similarly, in the incident of rape of 3
March 2017 in Amroha, FIR was registered 111 days later. Police registered an
FIR after 74 days in a case of rape in a moving car in Auraiya. In a rape case
in Jhansi, the police filed an FIR after 228 days. In the Amroha incident,
instead of being raped, the police registered the incident under Section 354 of
the Indian Penal Code (IPC) for sexual harassment. In an incident of 17 October
2016 in the capital Lucknow, police registered an FIR after 69 days. In the
recent incident in Hathras, police registered a gang rape case eight days
later. Not only this, a sample was also taken after 11 days.
Explain that all sexual offenses in the IPC, also called
gender-based crimes, are considered cognizable offenses. It is compulsory law
for the police to immediately file FIRs in complaints of sexual offenses. As
per 166A (C) of the Criminal Law (Amendment) Act 2013, if a public servant does
not register an FIR for sexual violence, he is punishable by imprisonment and
fine. This study found that the police initially mistrusted the woman's
complaint in almost all cases. The women said that the police taunted them and
pressurized them to compromise with the accused. They were told that they were
making false claims to implicate men, taking unfair advantage of the law.
Scheduled caste women facing sexual violence faced caste-based discrimination
along with gender grounds. This can be gauged from the fact that when a
domestic worker reached the police station to register an FIR for rape in
Aligarh, the officer in charge remarked after taking the application from him,
'You are not so beautiful that someone will bother you, you will There is not
even one who can give you a successor.
Overall, reading this report of CHRI and Aali and seeing the
incidents of sexual violence on women, girls and young girls in every corner of
the state including Hathras, Balrampur, Bhadohi, Azamgarh, Unnao, Lakhimpur, it
is clear that North Nothing has changed in the state. Neither the attitude of
the police nor that of the government. @Nayak 1
Thank You Google