ईवीएम ने किया बिहार में जनमत का अपहरण
आंकड़ों की
जुबानी : बिहार चुनाव के नतीजे नीतीश की पार्टी के लिए सूर्यास्त की शुरुआत?
गूगल से ली गई छायाचित्र
भले ही बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी को मिलाकर ईवीएम के सहारे नैया पार कर ली है. लेकिन बिहार चुनाव के नतीजे नीतीश कुमार की पार्टी के लिए सूर्यास्त की शुरूआत है. यह बात किसी अनुमान पर नहीं कही जा रही है, बल्कि आंकड़े बता रहे हैं कि जदयू का वोट प्रतिशत लगातार नीचे गिरता जा रहा है. हालांकि, इसके पीछे लालू यादव से दूरी बनाने का कारण बताया जा रहा है. लेकिन आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जदयू से बिहार की जनता का मोहभंग होता जा रहा है. यही कारण है कि दिन व दिन वोट प्रतिशत गिरता जा रहा है. इस चुनाव में ईवीएम साथ नहीं दिया होता था जेडीयू बुरी तरह से हार गई होती. लेकिन ईवीएम ने जेडीयू की नैया पार लगाकर नीतीश को चौथी बार सीएम बनाने का रास्ता साफ कर दिया. हालांकि, बीजेपी नेताओं की ही ओर से मांग उठ रही है कि नीतीश को सीएम बनाने के बजाए बीजेपी का सीएम बनाया जाए.
जेडीयू का स्ट्राइक रेट खराब!
सीट बंटवारे के दौरान
एनडीए में शामिल बीजेपी के हिस्से जहां 121 सीटें आई थी, वहीं जनता दल
युनाइटेड के हिस्से 122 सीटें आई थी. इसमें से जेडीयू ने खुद के हिस्से की आई सीटों में से
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को सात सीटें दी जबकि बीजेपी ने अपने हिस्से की 11
सीटें विकासशील इंसान
पार्टी को दे दी. अब 122 सीटों में से 15.4 फीसदी वोट शेटर के साथ जेडीयू ने 43 सीट ही हासिल किए
हैं. पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो पार्टी कम सीटों पर लड़ी थी,
101 सीटों पर लड़कर 71
हासिल किए थे, वोट शेयर भी 16.8
फीसदी रहा था.
अगर नीतीश कुमार के
राजनीति की बात करें तो पहली बार बिहार की राजनीति में मार्च 1990
में उभरकर सामने आए
जब
उन्होंने जनता दल में
अपने सीनियर लालू यादव को मुख्यमंत्री बनने में मदद की थी. साल 1994
में नीतीश और जॉर्ज
फर्नांडिस ने समता पार्टी के नाम एक नई पार्टी बनी ली और खुद को मुख्यंत्री के
चेहरे के तौर पर सामने रखा. साल 1995 के संयुक्त बिहार की 324
सदस्यीय विधानसभा में
समता पार्टी ने 310 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन, नीतीश समेत समता
पार्टी के सिर्फ 7 प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए. इसके बाद नीतीश का सीएम बनने का सपना धरा का
धरा रह गया. जबकि लालू यादव 1995 में दूसरी बार
मुख्यमंत्री पद पर चुने गए.
साल 2000
में उस वक्त नीतीश
कुमार का सीएम बनने का सपना पूरा हुआ जब उन्हें एनडीए का नेता चुना गया. 3 मार्च को उन्होंने
पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन सात दिन में ही
उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. दरअसल, 324 सदस्यीय विधानसभा में
एनडीए और उसके सहयोगी दलों के पास 151 विधायक थे जबकि लालू
यादव के बाद 159 विधायक. दोनों ही गठबंधन 163 के बहुमत के आंकड़े से
दूर थे. नीतीश ने बहुमत साबित करने से पहले ही 10 मार्च को इस्तीफा दे
दिया.
नीतीश कुमार ने राज्य
के मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरी बार 24 मार्च 2005
को शपथ ली और भारतीय
जनता पार्टी के साथ बिहार में अपनी सरकार का पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके
बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू सहयोगी बीजेपी के साथ दोबारा
सत्ता में आई. जून 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दूरियों के चलते नीतीश ने
बीजेपी के साथ 17 साल से पुराने गठबंधन को तोड़ लिया. इसके साथ ही, नीतीश ने एनडीए से
अलग होने का ऐलान कर दिया. 2014 के चुनाव में नीतीश
कुमार अकेले दम पर लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ उन्हें 2 सीट मिली. 17
मई 2014
को नीतीश कुमार ने
लोकसभा चुनाव में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राज्यपाल को इस्तीफा सौंप
दिया. नीतीश की सिफारिश पर जीतन राम मांझी को 9 महीने के छोटे
कार्यकाल के लिए सीएम बनाया गया.
लेकिन, लालू की आरजेडी और
कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाने के बाद नीतीश फिर 2015 के विधानसभा चुनाव
में जीत गए और रिकॉर्ड पांचवीं बार सीएम पद की शपथ ली. हालांकि, उन्होंने जुलाई 2017
में उनके डिप्टी सीएम
और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई के केस दर्ज करने पर सफाई न देने के
चलते नीतीश ने फिर सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इसके 2 दिन बाद वे पुराने
सहयोगी बीजेपी की मदद से 6ठी बार सीएम पद की शपथ ली. अब 2020 में जीत के बाद वह
अगर सीएम बनते हैं तो राज्य में सातवीं पर सीएम पद की शपथ लेंगे. ऐसे में 2010
के बाद जिस तरह से
जेडीयू की सीटों के आंकड़ों में हर चुनाव में कमी आ रही है, ऐसे में यह कहीं ये
संकेत तो नहीं कि यह नीतीश की पार्टी के लिए बिहार में सुर्यास्त की शुरुआत है?
चिराग तले अंधेरा, बीजेपी को मजबूत कर
गई लोजपा
इस बात से इनकार नहीं
किया जा सकता है कि बिहार में चिराग पूरी तरह से बुझ चुकी थी, लेकिन लोक जनशक्ति
पार्टी ने एक सीट हासिल करके ‘‘चिराग तले अंधेरा’’ वाली कहावत का चरिचार्थ कर दिखाया है. बिहार विधान सभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली और पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. चौंकाने वाली बात तो यह है कि
बुझता हुआ चिराग तेजस्वी यादव की लालटेन भी बुझाते चले गए. चिराग पासवान ने खुद
हारकर भाजपा को बड़ी जीत दिला दी. चिराग पासवान की वजह से ही बीजेपी को बिहार चुनाव
में 74 सीटों पर जीत मिली, जबकि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 43 सीटों पर जीत दर्ज
की. यानी चिराग पासवान ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया है.
15 साल से लगातार बिहार में नीतीश कुमारकी सरकार है और
जनता को सरकार से बहुत नाराजगी थी. ऐसे में वोटर्स महागठबंधन के पक्ष में जा सकते
हैं थे, लेकिन लोजपा ने इन वोटों को महागठबंधन में जाने से रोक दिया. हालांकि, चिराग पासवान की
पार्टी ने दो दर्जन से अधिक सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाते हुए इसका सीधा फायदा
बीजेपी को दिया. चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद चिराग पासवान ने अकेले चुनाव
लड़ने का फैसला किया और नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जबकि हालांकि वह कभी
भी बीजेपी के खिलाफ नहीं थे. लोजपा ने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे, जबकि बीजेपी के कई
बागी नेताओं को टिकट दिया. इसके बाद यह बात सामने आ गई कि नीतीश सरकार से नाराज
वोटर्स को विपक्षी खेमे में जाने से रोकने के लिए बीजेपी ने यह रणनीति बनाई है.
बिहार में सात लाख से अधिक मतदाताओं ने चुना नोटा का विकल्प
ईवीएम न केवल 2004-2009
से लेकर 2014
और 2019
में जनमत का अपहरण
किया है. बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव में भी जनमत का अपहरण कर दिया है. इस बात का
अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 7 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने
नोटा को चुना इसके बाद भी एनडीए को 125 सीटें मिलीं. यही
नहीं बीजेपी और जेडीयू के साथ न तो जनता थी और न ही उनकी रैली सफल हई, ऐसे में 125
सीटें पाना ईवीएम के
बगैर मुमकिन ही नहीं है. कुल मिलाकर यह बिहार की जनता का अपहरण किया गया है.
सूत्रों से मिली
जानकारी के अनुसार, बिहार में सात लाख से अधिक मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में ‘इनमें से कोई
नहीं’ या नोटा का विकल्प चुना. यह जानकारी खुद चुनाव आयोग ने दी है. चुनाव आयोग की
तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 7 लाख 6 हजार 252
लोगों ने या 1.7
फीसदी मतदाताओं ने
नोटा के विकल्प को चुना, जिसके तहत उन्होंने किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं किया. तीन चरणों में
हुए विधानसभा चुनावों में चार करोड़ से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल
किया. सात करोड़ 30 लाख से अधिक मतदाताओं में से 57.07 फीसदी ने मतदान किया
था. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में ‘नोटा’ का विकल्प 2013
में शुरू किया गया था, जिसका चुनाव चिह्न
बैलेट पेपर है जिस पर काले रंग का क्रॉस लगा होता है.
दोपहर तक ठीक था, शाम होते-होते बुझने
लगी लालटेन
बिहार विधानसभा की
सभी 243 सीटों के परिणाम बुधवार को तड़के चार बजे के बाद घोषित हो गए. इस चुनाव में
नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (छक्।) को साफ बहुमत मिल चुका है. सबसे अंत में एक सीट
का परिणाम घोषित हुआ जिस पर जनता दल यूनाईटेड ने जीत हासिल की. एनडीए को 125
और महागठबंधन को 110
सीटें मिली हैं.
एनडीए ने 125 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर लिया. तेजस्वी यादव की आरजेडी 75
सीटों के साथ सबसे
बड़ी पार्टी बन गई है. वहीं बीजेपी 74 सीटों के साथ दूसरी
सबसे बड़ी पार्टी बनी गई है.
चुनाव आयोग से
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बिहार में सत्ताधारी एनडीए में शामिल बीजेपी ने 74
सीटों पर, जेडीयू ने 43,
विकासशील इंसान
पार्टी 4, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा 4 सीटों पर जीत दर्ज की
है. दूसरी तरफ महागठबंधन में शामिल आरजेडी ने 75 सीटों पर, कांग्रेस ने 19,
भाकपा माले 12,
भाकपा एवं माकपा 2-2
एआईएमआईएम 5,
लोजपा एवं बसपा ने
एक-एक सीट जीती है. एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहा है.@Nayak 1
EVM kidnapped
public opinion in Bihar
Speak of
data: Bihar election results sunset for Nitish's party?
Photograph
taken from Google
JDU's strike
rate is poor!
During the
seat sharing, where the BJP's share in the NDA came to 121 seats, Janata Dal
United's share came to 122 seats. Out of this, JDU gave seven seats to Hindustani Awam Morcha
(Hum) out of the seats of its own part, while BJP gave 11 seats of its share
to the Vikas Insan Party. Now JDU has secured 43 seats with a vote
share of 15.4 per cent out of 122 seats. Talking about the last assembly election, the party fought on
fewer seats, won 71 by fighting 101 seats, the vote share was also 16.8 percent.
If we talk
about Nitish Kumar's politics, then for the first time in Bihar politics
emerged in March 1990 when
He helped his
senior Lalu Yadav to become the Chief Minister in the Janata Dal. In the year 1994, Nitish and George
Fernandes formed a new party named Samata Party and put themselves in front of
the Chief Minister. The Samata Party fielded candidates for 310 seats in the 324-member Bihar
assembly in 1995. However, only 7 candidates of Samata Party including Nitish could win the election.
After this, Nitish's dream of becoming CM became a reality. While Lalu Yadav
was elected to the post of Chief Minister for the second time in 1995.
Nitish
Kumar's dream of becoming CM was fulfilled in the year 2000 when he was elected
the leader of NDA. On March 3, he took the oath of office of the Chief Minister of the state for the
first time, but had to resign within seven days. In fact, in the 324-member Assembly, the
NDA and its allies had 151 MLAs while Lalu Yadav was followed by 159 MLAs. Both
coalitions were far from the majority figure of 163. Nitish resigned on 10 March before
proving majority.
Nitish Kumar
was sworn in as the Chief Minister of the state for the second time on 24 March 2005 and completed the
five-year term of his government in Bihar with the Bharatiya Janata Party.
After this, Nitish Kumar's JDU partner came back to power with BJP in the 2010 assembly elections.
In June 2013, Nitish broke the 17-year-old alliance with BJP due to the distance with Gujarat Chief
Minister Narendra Modi. With this, Nitish announced his separation from the
NDA. In the 2014 elections, Nitish Kumar single-handedly contested the Lok Sabha
elections but got only 2 seats. On 17 May 2014, Nitish Kumar took moral responsibility for the defeat in the Lok Sabha
elections and submitted his resignation to the Governor. On Nitish's
recommendation, Jitan Ram Manjhi was made CM for a short tenure of 9 months.
But, after
forming a grand alliance with Lalu's RJD and Congress, Nitish again won the 2015 assembly elections
and took the oath of CM post for a record fifth time. However, in July 2017, Nitish again
resigned from the post of CM due to his lack of explanation for filing a CBI
case against his deputy CM and RJD leader Tejashwi Yadav. After this, 2 days later, he took
oath of the post of CM for the 6th time with the help of old ally BJP. Now if he becomes CM after
victory in 2020, he will take oath of the post of CM in the state at seventh position.
In such a way that after JDU seats are decreasing in every election after 2010, is there any
indication that this is the beginning of Nitish's party in Bihar?
Darkness
under lamp, LJP strengthened BJP
It cannot be
denied that Chirag was completely extinguished in Bihar, but the Lok Janshakti
Party has garnered the adage "dark under the lamp" by securing a
seat. In the Bihar Legislative Assembly elections, Lok Janshakti Party got only
one seat and the party had to face defeat badly. The surprising thing is that
the extinguished Chirag went on extinguishing the lantern of Tejashwi Yadav.
Chirag Paswan himself gave the BJP a big victory by losing. Due to Chirag
Paswan, BJP won 74 seats in Bihar elections, while Nitish Kumar's party JDU won 43 seats. Which means
Chirag Paswan has benefited the BJP.
There has
been a Nitish Kumar government in Bihar continuously for 15 years and people
were very angry with the government. In such a situation, the voters could go
in favor of the Grand Alliance, but the LJP stopped these votes from entering
the Grand Alliance. However, Chirag Paswan's party gave its direct benefit to
the BJP, harming the JDU in more than two dozen seats. After the election
notification was issued, Chirag Paswan decided to contest the election alone
and opened a front against Nitish Kumar. However, he was never against the BJP.
LJP fielded candidates against JDU, while giving tickets to many rebel leaders
of BJP. After this, it came to light that the BJP has made this strategy to
prevent the angry voters from the Nitish government from going into the
opposition camp.
More than
seven lakh voters opted for NOTA in Bihar
EVMs have not
only kidnapped public opinion from 2004-2009 to 2014 and 2019. Even in the Bihar assembly elections, public
opinion has been abducted. This can be gauged from the fact that more than 7 lakh voters chose
NOTA even after this, the NDA got 125 seats. Not only this, neither the public nor the rally was successful
with BJP and JDU, in such a situation, it is not possible to get 125 seats without EVM.
Overall, the people of Bihar have been kidnapped.
According to
information received from sources, more than seven lakh voters in Bihar opted
for 'None of these' or NOTA in the assembly elections. This information has
been given by the Election Commission itself. According to the data released by
the Election Commission, 7 lakh 6 thousand 252 people or 1.7 percent voters opted for NOTA, under which they did not like any
candidate. More than four crore voters exercised their franchise in the
three-phase assembly elections. Out of more than seven crore 30 lakh voters, 57.07 percent voted. In
electronic voting machines, the option of 'NOTA' was introduced in 2013, whose election
symbol is ballot paper with black cross.
It was fine
till noon, the lantern started getting extinguished by evening
The results
of all 243 seats of Bihar Assembly were declared after four o'clock in the
morning. In this election, the National Democratic Alliance (VI) has got a
clear majority. Finally, the result of one seat was declared, on which Janata
Dal United won. NDA has got 125 seats and Mahagathbandhan has got 110 seats. The NDA
achieved a majority figure by winning 125 seats. Tejashwi Yadav's RJD has become the largest party with 75 seats. At the same
time, BJP has become the second largest party with 74 seats.
According to
the information received from the Election Commission, in the ruling NDA in
Bihar, BJP has won 74 seats, JDU has won 43, Vikas Insan Party 4, Hindustani Awam Morcha 4 seats. On the other hand, the RJD, which is part of the Grand Alliance,
has 75 seats, Congress 19, CPI Male 12, CPI and CPI 2-2 AIMIM 5,
LJP and BSP
have won one seat each. Independent candidate has been successful in winning
one seat. @ Nayak 1
Thank you
Google