मौत का अस्पताल : राजस्थान-कोटा में हर साल होती है हजारों बच्चों की मौत
गूगल से ली गई छायाचित्र
कोटा के जेके लोन अस्पताल में एक बार फिर बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया है. यहां पिछले 24 घंटे के दौरान नौ नवजात अपनी जान गँवा चुके हैं और हर बार की तरह चिकित्सक और राज्य सरकार लीपापोती में लगी हुई है. गौर करने वाली बात यह है कि जेके लोन अस्पताल में हर साल सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है, लेकिन प्रशासन सिर्फ टालमटोल के अलावा कुछ नहीं करता. इस रिपोर्ट में जानते हैं कि ‘मौत का अस्पताल’ कैसे बन गया जे के लोन अस्पताल और यहां बच्चों की मौत होने की असल वजह क्या है? साथ ही, इस मसले पर राज्य सरकार और प्रशासन का रुख कैसा रहता है?
ग़ौरतलब है कि कोटा का जे के लोन अस्पताल हर साल सुर्खियों में रहता है और हर बार इसकी वजह नवजात बच्चों की मौत होती है.परिजनों के मुताबिक, अस्पताल की हालत ऐसी है कि यहां सफाई ही नहीं होती, जगह-जगह चूहे घूमते रहते हैं. अस्पताल के शिशु वॉर्ड समेत बाकी वार्डों में खिड़कियों से ठंडी हवा आती रहती है, जिससे बच्चों की हालत बिगड़ जाती है. अस्पताल में संसाधनों की काफी कमी है और जो मशीनें हैं, उनमें से काफी काम ही नहीं करती हैं.
मालूम हो कि बताया जा रहा है कि जेके लोन अस्पताल में सबसे बड़ी दिक्कत डॉक्टरों की कमी है. आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल यहां नवंबर-दिसंबर के दौरान 107 बच्चों ने जान गंवाई थी, जिसके बाद यहां नए चिकित्सक तैनात किए गए थे, लेकिन बाद में उन सभी का तबादला कर दिया गया. इस वक्त एक प्रोफेसर और एक असोसिएट प्रोफेसर के भरोसे पूरा अस्पताल चल रहा है, जो 230 बच्चों की जान का जिम्मा अकेले नहीं उठा सकते हैं.
अस्पताल का स्टाफ बेहद लापरवाह
पिछले 24 घंटे के दौरान जान गंवाने वाले नौ बच्चों के परिजनों का आरोप है कि जेके लोन अस्पताल का स्टाफ बेहद लापरवाह है. रात के वक्त जब बच्चे तड़प रहे थे, तब उसे देखने कोई भी नहीं आया. नर्सिंग स्टाफ ने सुबह डॉक्टर को दिखाने की बात कहकर भगा दिया. परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों को बच्चे की परेशानी बताई गई तो उनका जवाब था कि बच्चा तो रोता ही है. इसके अलावा एक महिला ने कि कर्मचारी ड्रिप लगाकर चाय पीने चले जाते थे, वहां बैठकर हंसी-मजाक करते रहे हैं. अगर कोई कुछ कहते थे तो भी हम पर ही चिल्लाते थे कि आ रहे हैं अभी, मर नहीं रहा तुम्हारा बच्चा.
हर साल होती हैं हजारों बच्चों की मौत
आंकड़ों पर गौर करें तो जेके लोन अस्पताल में हर साल सैकड़ों बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं. साल 2014 में यहां कुल 1198 बच्चों की मौत हुई थी और 2015 में यह आंकड़ा 1260 तक पहुंच गया था. 2016 में इस अस्पताल में 1193 बच्चों ने जान गंवाई, जबकि 2017 में 1027 बच्चे काल के गाल में समा गए. 2018 में बच्चों की मौतों की संख्या कम हुई, लेकिन आंकड़ा एक हजार से नीचे नहीं गया. इस साल 1005 बच्चों की मौत हुई. वहीं, 2019 में 963 बच्चों ने अपनी जान गंवाई, जबकि 2020 में 10 दिसंबर तक 917 बच्चों की मौत हो चुकी है.
हर महीने
होती है 100 बच्चों की
मौत
अस्पताल अधीक्षक डॉ. एससी दुलारा के
मुताबिक, यह बेहद
पुराना अस्पताल है. यहां कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ से मरीज आते हैं. जब
मरीज ज्यादा गंभीर हो जाता है तो उसे जेके लोन ही भेजा जाता है. बच्चा 3-4 घंटे सफर करके अस्पताल पहुंचता है, जिससे केस बिगड़ जाता है. अस्पताल में
हर महीने करीब 60 से 100 बच्चों की मौत होती है. रोज के लिहाज
से ये आंकड़ा 2 से 5 के बीच रहता है.@Nayak 1
Hospital of death: thousands of children die every year in Rajsthan- Kota
Photograph taken from Google
Once again, the process of death of children has started in JK Lone
Hospital in Kota. During the last 24 hours, nine newborns have lost their lives
and like every time, the doctor and the state government are engaged in a daub.
It is worth noting that hundreds of children die every year in JK Lone
Hospital, but the administration does nothing other than just avoidance. In
this report we know how the 'hospital of death' became JK Lone hospital and
what is the real reason for the death of the children here? Also, how does the
state government and administration stand on this issue?
It is worth mentioning that JK Lone Hospital of Kota remains in the
headlines every year and every time it is due to the death of newborn children.
According to the family, the condition of the hospital is such that there is no
cleanliness here, mice roam from place to place . In the other wards, including
the hospital's infant ward, cold air keeps coming in from the windows, which
worsens the condition of the children. There is a shortage of resources in the
hospital and many of the machines which do not work at all.
It is known that it is being told that the biggest problem in JK Lone
Hospital is the lack of doctors. According to the data, 107 children lost their
lives during November-December last year, after which new doctors were deployed
here, but all of them were later transferred. At present, the entire hospital
is running on the trust of a professor and an associate professor, who cannot
take the responsibility of 230 children alone.
Hospital
staff extremely careless
The families of
nine children who lost their lives during the last 24 hours have alleged that
the staff of JK Lone Hospital is extremely negligent. When the children were
suffering at night, no one came to see him. The nursing staff drove away in the
morning, asking to see the doctor. The family members alleged that if the doctors
were told the problem of the child, their answer was that the child cries.
Apart from this, a woman said that the employees used to go to drink tea after
dripping, sitting there and laughing and joking. Even if someone used to say
something, they used to shout at us that they are coming now, your child is not
dying.
Thousands of children die every year
If you look at
the figures, every year hundreds of children lose their lives in JK Lone
Hospital. In 2014, a total of 1198 children died here and in 2015 the figure
had reached 1260. In 2016, 1193 children lost their lives in this hospital,
while in 2017, 1027 children died in Kaal's cheek. In 2018, the number of child
deaths decreased, but the figure did not fall below one thousand. This year
1005 children died. At the same time, 963 children lost their lives in 2019,
while 917 children have died by December 10 in 2020.
100
children die every month
According to Hospital Superintendent Dr. SC Dulara, this is a very old hospital. Here patients come from Kota, Bundi, Baran and Jhalawar. When the patient becomes more serious, he is sent to JK Loan only. The child travels 3-4 hours to the hospital, which worsens the case. About 60 to 100 children die every month in the hospital. In daily terms, this figure is between 2 and 5. @ Nayak 1
Thank you Google