प्राचीन बौद्ध स्तूप, गुफाएं तथा स्मारकों को शासक जातियों से बचाने के लिए विशाल आंदोलन खड़ा करना होगा : प्रो. विलास खरात
प्रो. विलास खरात
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सहायता
से ब्राह्मणों द्वारा बौद्ध स्तूप, मठ और मूलनिवासी बहुजनों की विरासत को
नष्ट करने का कार्य बड़ी तेजी से किया जा रहा है. बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क के
राष्ट्रीय प्रभारी प्रो. विलास खरात ने शासक वर्ग ब्राह्मणों पर निशाना साधते हुए
यह बात बामसेफ भवन पूना में बृहस्पतिवार 24 सिबंतर 2020 को ग्रंथ प्रकाशन एवं महाराष्ट्र में
प्राचीन बौद्ध स्तूप, गुफाएं
तथा स्मारकों को शासक जातियों से बचाने के लिए चरणबद्ध आंदोलन की ऐतिहासिक घोषणा
करते हुए कही.
प्रो. विलास खरात ने कहा, प्राचीन भारत में ट्रेड़ होता था और
दक्षिण पथ के सेंटर पर दो मुख्य सेंटर थे. एक तगर है जिसे बोली भाषा में तेर कहा
जाता है. वहीं दूसरा इंटरनेशन टेड सेंटर एक समय में सातवान लोगों की राजधानी थी, जिसे आज पैठन कहा जाता है. अशोका के
सयम शिला लेखों में उसका जिक्र पतिठान से किया जाता है. पतिठान शब्द से ही
प्रतिष्ठान शब्द बना और प्रतिष्ठान का ही अपभ्रंश शब्द है पैठन. उस समय में
सातवाहक यहां के शासक थे, वे नाग
लोग थे ये उनकी राजधानी थी. ये दक्षिण पथ पर सेंटर है और उत्तर पथ पर वाराणसी
सेंटर है. वाराणसी में कपड़ों का ट्रेड होता था, इसीलिए उत्तर पथ के लोग दक्षिण पथ पर
व्यापार करने के लिए आते थे. जो भरूच की तरफ रास्ता जाता है जो गुजरात में है. और
सोपारा के किनारे से होकर समुंद्र मार्ग पर भी यह ट्रेड का रास्ता आर्कलॉजिकल
डिपार्टमेंट के रूट मैप में दिखाएं गए हैं. दूसरी शताब्दी में ग्रिक किताब का
जिक्र आया है, जिसमें
नगर का जिक्र आता है. इस केंद्र की तरफ लोगों का ध्यान तब आकर्षित हुआ जब वहां
ग्रीक लोगों की क्वाइंस मिलने शुरू हुए. अमूल्य धातु मिले. कनिंगहम जैसे
ऑकिलॉजिस्ट ने इस पर ध्यान दिया है.
उन्होंने कहा, लॉकडाउन शुरू होने के दरम्या ही एक खबर
आई कि तुलजापुर में एक स्तूप मिला है. हम लोगों ने इस पर पहले ही रिचर्स कर चुके
थे. मा.वामन मेश्राम साहब ने हमें वहां जाने के लिए कहा. जब वहां गए तो तुलजापुर
के पास तीन बड़े स्पूत मिले, लेकिन, एएसआई के लोगों ने आत तक सार्वजनिक
नहीं किया. वहां जाने से पहले हमने लोगों ने सोचा कि इसके बारे में हिस्टोरिकल
बातें पढ़नी चाहिए. 1957-58 की
रिपोर्ट के पेंज नंबर पर लिखा है कि बड़गांव को जो स्थान है उस स्थान पर ईंटों से
बना हुआ एक स्तूप देखा, जिसकी
ऊंचाई जमीन से 35 फुट ऊंची
है. यह स्तूप मौर्यकालीन बुद्ध स्तूप है. आश्चर्य तो इस बात का है कि उस स्तूप पर
हाल में एक मंदिर बन रहा है. यानी 1957-58 में एएसआई मान्य करता है कि यह बुद्ध
स्तूप है जो अत्यंत प्राचीन है. लेकिन आज ब्राह्मणों ने उस पर कब्जा कर लिया है.
जब हम तेर में गए तो वहां एक स्तूप नहीं कई स्तूप है. 1960 में दीक्षित नामक ब्राह्मण
ऑर्किलॉजिस्ट ने इसका खनन किया और रिपोर्ट भी तैयार कर दिया था. लेकिन उनकी मृत्यु
हो गई. इसके बाद भी उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया.
प्रो.
खरात ने कहा, जब हमने
वहां के स्थानीय लोगों से पूछा कि एसा क्यों हुआ? तो उन्होंने बताया कि यह सरकार की
मर्जी है. सरकार चाहे तो सार्वजनिक करे नहीं चाहे तो नहीं करे. हमने उनसे सूची
मांगी की ऐसी कितनी जगह है? ऐसे कई
हैं. इतनी बड़ी जो विरासत है उसके 25 साल हो गए उसका आज तक पब्लिक
डाक्यूमेंट ही नहीं बना. ऐसा ही हाल तेर में हुआ है, जहां बुद्धा के अनगिनत स्तूप हैं, यह प्राचीन में बहुत बड़ा केन्द्र था, यहां लोग व्यापार के लिए आते थे. जो
यहां पर एक स्तूप मिला है वह सांची के स्तूप इतना बड़ा है. जब उसका खनन किया गया तो
वहां पर दक्षिणापद भी मिला. लेकिन आज भी वो स्तूप दफन है. जबकि, एएसआई के लोग स्वीकार करते हैं यह ढ़ाई
हजार पुराना स्तूप है. इसके बाद जो सातवाहन लोग थे इन्होंने भी स्तूपों का निर्माण
किया. मगर जो सबसे बड़ा स्तूप था इसको आज भी उजागर नहीं किया गया. अगर वह उजागर हो
जाता तो जैसे विदर्भ में, पवनी, भंडारा और नागपुर में बुद्धिज्म बुद्धा
के समय में ही आया था और महावंश में भी इस बात का जिक्र है कि नांदेड के पास जो
पूर्णा है वहां पर कुछ बुद्ध के शिष्य आए थे और महावंश जो श्रीलंका से आए थे इनका
भी इस ग्रंथ में जिक्र है.
कोकण में भी अशोका ने अपने प्रतिनिधि
भेजे थे, इसके
रिकॉर्ड हैं. इसलिए ब्राह्मणों को ऐसा लग रहा है कि मराठवाड़ा जो बुद्धिस्ट सेंटर
है, सातवाहनों
का सेंटर है. अगर यह एक्सपोज हो गई तो ब्राह्मणों के लिए खतरा हो सकता है. शायद
इसीलिए इस बात का खुलासा नहीं कर रहे हैं. वहां पर जो स्तूप है वहां पर लामतूरे
नामक एक लिंगायत व्यक्ति था इसको और पूरे गांव के लोगों को आर्कोलॉजी देव बोलते थे
कि अगर आपको कोई चीज मिली तो मुझे दे देना, मैं आपको अनाज दूंगा. इस तरह से
लामतूरे धन्यवाद के लिए पात्र है कि उन्हें जो चीजें मिलती थी वे वहां एक लामतूरे
नाम से संग्रहालय में कलेक्शन करके रखा. आर्कोलॉजी देव साहब ने एक किताब लिखी और जो
रिपोर्ट के आधार पर उस जानकारी मिली. वहां इतना बड़ा स्तूप होने के बाद भी वह
असुरिक्षत है.
वहां गांव के बीचोबीच त्रिविक्रम मंदिर
है. उसमें क्या है? ब्राह्मणों
की मान्यता है कि विष्णु ने वामन अवतार लिया और बलि के सिर पर पैर रखा. वहां एक
प्रतिमा है. यह प्रतिमा नववी दसवीं शताब्दी में बनाई गई है. मगर वह तो स्ट्रक्चर
है वह बुद्ध स्तूप का है. उसका पीरियड हीनयानी है. हीनयानी परंपरा के समय में
मूर्ति का प्रचलन नहीं था, बुद्ध के
प्रतीकों को ही माना जाता था और पूजा जाता था.
जैसे बोधि वृक्ष का प्रतीक, त्रिरत्न बुद्ध पद के चिन्ह, हाथी का प्रतीक आदि यह हीनयानी परंपरा
में बुद्ध के प्रतीक माने जाते थे. इस स्तूप पर नवी दशवी शताब्दी में ब्राह्मणों
ने उस पर आक्रमण करके मंदिर में कन्वर्ट कर दिया. यह बात जब लोगों में चर्चा शुरू
हो तो एएसआई को लगा कि अब हम पकड़ में आ जाएंगे. तब उन्होंने वहां से ब्राह्मणों का
नियंत्रण हटा दिया है और बाहर बोर्ड लगा दिया. अब वहां पर कोई नहीं जाता है और न
ही वहां कोई सुरक्षा गार्ड है. वह इंटरनेशनल हेरीटेज हो सकता है. मगर यह एएसआई
लोगों ने नहीं किया. इस तरह से उसको नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. चाहे वह
कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की सरकार हो, समय-समय पर वे लोग उसे नष्ट करने का
प्रयास कर रहे हैं. क्योंकि एएसआई ब्राह्मणों के नियंत्रण में है. इसके बचाने के
लिए हमारे पास आंदोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए इस महान विरासत को बचाने
के लिए बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क तीन चरणों में आंदोलन की घोषणा करता है. इस
आंदोलन को सफल बनाने के लिए मूलनिवासी बहुजनों को साथ सहयोग करना होगा. @Nayak 1
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