*फाह्यान का बुद्ध और बोद्ध ग्रंथों से प्रेम*

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*फाह्यान का बुद्ध और बोद्ध ग्रंथों से प्रेम* 
फाह्यान के भारत आने का उद्देश्य बुद्ध ग्रंथों की प्रतियों को एकत्रित कर अथवा उसका प्रतिलिपि तैयार कर उन्हें स्वदेश ले जाना था । वह बहुत कठिनाईयों को मात देकर भारत पहुंचे और यहाँ से मिली प्रतियों को लेकर अन्य प्रतियाँ खोजने भारत के बाद सिंहल गए। वहां उन्हें चार प्रतियाँ मिली । भारत और सिंहल से प्राप्त प्रतियों को लेकर नौका पर सवार हुए । तीन दिन चलकर तूफान आया । नौका में कहीं छेद होने से पानी भरने लगा था। सभी यात्री घबरा कर अपना भारी भारी गठरी, सामान उठाकर समुद्र में फेंकने लगे थे। फाह्यान ने भी अपना गगरा, लोटा और अन्य सामान समुद्र में फेंक दिया था। 

इसके बावजूद भी वह भयभीत थे, मन ही मन डर रहे थे कि कहीं लोग उसे बुद्ध धम्म से संबंधित वह पुस्तकों की गठरी भी समुद्र में फेंकने को मजबूर न करें, जिसमें उनके सारे श्रम के फलस्वरूप विनय पिटक और अन्य बोद्ध सूत्तों की प्रतियाँ बंधी थी । अथवा कोई बलपूर्वक छीनकर कहीं समुद्र में उन गठरियों को फेंक न दें ।

फाह्यान लिखते हैं कि "हृदय में अवलोकितेश्वर का ध्यान किया, हानदेश के भिक्खुसंघ को प्राण अर्पण किए —मैंने धम्म को ढूंढने के लिए सुदूर की यात्रा की है मुझे अपना तेज और प्रताप देकर लौटाकर अपने स्थान पर पहुंचाओ।"

तूफान 13 दिन तक रहा । संयोग से नाव 13वें दिन एक द्वीप के किनारे लगी ।... नोट- फाह्यान के यात्रा के कठिनाईयों का ये अभी अंत नहीं है ।

फाह्यान के योगदान को लोग भुलाए नहीं भुल सकते ।
नमन फाह्यान ! ☸🙏

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