बौद्धों को बाहर निकाल दिया और ब्राह्मण धर्म को पुनर्स्थापित किया।

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शंकराचार्य ने जो काम नेपाल में किया, वही काम कुमायूं और गढ़वाल में भी किया। उन्होंने बौद्धों को बाहर निकाल दिया और ब्राह्मण धर्म को पुनर्स्थापित किया।
डैनियल राईट ने अपनी किताब  "हिस्ट्री ऑफ़ नेपाल"  तथा रिज डेव्हिड्स ने अपनी किताब "बुद्धिस्ट इंडिया" में स्पष्ट तौर पर बताया है कि, केदारनाथ और बद्रीनाथ बौद्ध स्थल है। आदि शंकराचार्य ने सन 820 ईसवी के आसपास केदारनाथ और बद्रीनाथ में स्थित बुद्ध-मूर्तियों को उठाकर नजदीक के जलाशय (नारद कुंड) में फेंक दिया था। केदारनाथ तथा बद्रीनाथ बौद्ध विहारों को शैव मंदिरों में परिवर्तित कर दिया था|  इतना ही नहीं, बल्कि शंकराचार्य ने महाराष्ट्र से जोशी ब्राह्मणों को वहाँ पर बसाया था।

राहुल सांकृत्यायन ने अपनी "मेरी जीवन यात्रा" और  कई अन्य पुस्तकों के केदारनाथ और बद्रीनाथ को बुद्धिस्ट विहार बताया है। 

"मेरी जीवन यात्रा" के भाग 4 में पृष्ठ 40 में राहुल लिखते हैं--"19 मई को निर्वाण दर्शन करना था। सवेरे करीब 7 बजे मैं मंदिर के करीब पहुँच गया। गर्भगृह में नंबूदरी रावल और उनके सहायक डिमरी पुजारी को छोड़ और कोई नही जा सकता, न कोई मूर्ति को हाथ लगा सकता । ......स्नान  कराने के लिए मूर्ति नंगी कर दी गई थी। इसी को निर्वाण दर्शन कहते हैं। मूर्ति काले पत्थर की थी। आंख नाक मुँह लिए एक बड़ा पत्थर का खंड मालूम होता है , किसी ने तराशकर निकाल दिया है। लेकिन इसे तराशा नही कहना चाहिए, शायद हथौड़े से जान-बूझकर तोड़ा गया है या पत्थरो में फेकते यह हिस्सा निकल गया। ..  पद्मासनस्थ मूर्ति के इस हाथ की हथेली पैरो पर थी। मूर्ति पदमानस्थ भूमि स्पर्श मुद्रायुक्त बुद्ध की है, इसमें मुझे कोई संदेह नही। मैंने सारनाथ और अन्य जगह इस तरह की मूर्तियां देखी हैं।  नीचे अलकनंदा के साथ सटे हुए नारद-कुंड में और भी मूर्तियां हैं। जय मूलनिवासी 

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