कमलपुष्प बुद्धत्व का प्रतीक है और कमल की कली बोधिसत्व का प्रतीक है.

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कमलपुष्प बुद्धत्व का प्रतीक है और कमल की कली बोधिसत्व का प्रतीक है|

बुद्धत्व का पुर्ण रुप बुद्ध है, इसलिए बुद्ध को हमेशा पुर्णतः खिले हुए कमलपुष्प पर बैठे दिखाया जाता है| पुर्ण रुप से खिला कमलपुष्प "बुद्धत्व या बोधिप्राप्ति" का प्रतीक है| 

इसके विपरीत, बोधिसत्व को बुद्धत्व प्राप्ति (बोधि) के राह पर आरंभ करनेवाला व्यक्ति (सत्व)समझा जाता है, इसलिए उसके हाथ में कमलपुष्प की बंद कली दिखाई जाती है| कमलपुष्प पुर्णतः खिलने से पहले कली के रूप में अविकसित रहता है, इसलिए बुद्धत्व प्राप्ति का आरंभिक प्रतीक के तौर पर कमल की कली दिखाई जाती है| 

कलीयुग मतलब बोधिसत्व का युग और कली मतलब बोधिसत्व होता है| कलियुग के बौद्ध चक्रवर्ती सम्राट को "कल्कि या कल्किन" कहा जाता है| (Buddhism in practice, Donald Lopez, 2015, p. 202-202) भविष्य के बोधिसत्व को बौद्ध धर्म में "मैत्रेय बोधिसत्व" कहा जाता है| कलियुग में बोधिसत्व मैत्रेय कल्कि अवतार धारण कर धरती पर धम्मराज्य को स्थापित करेगा, ऐसा बौद्ध साहित्य में बताया गया है| बोधिसत्व मैत्रेय को कल्कि अवतार के रूप में सबसे पहले बौद्ध साहित्य में इसा की पहली सदीं (1st AD) में बताया गया है| (New Age Messiah identified, Troy Lawrence, 1990, p. 62) 

बौद्ध धर्म से चुराकर बाद में गुप्तोत्तर काल में ब्राम्हणों ने कल्कि अवतार को विष्णु का दसवाँ अवतार घोषित किया था| 8 वी सदीं तक विष्णु के 8 ही अवतार समझें जाते थे|  9 वी सदीं में आदि शंकराचार्य ने बुद्ध को विष्णु का 9 वा अवतार बताया था|इस तरह विष्णु का दसवाँ कल्कि अवतार बहुत बाद में ब्राह्मणवादी साहित्य में बताया गया है| 18 वी सदी में बंगाल में कल्कि पुराण लिखा गया और उसमें कल्कि को विष्णु का दसवाँ अवतार बताया गया| (Textual sources for the study of Hinduism, Wendy Doniger, 1988, p. 5) 

इस तरह, कमलपुष्प, कमल की कली, कलियुग, कल्कि अवतार यह सभी बौद्ध संकल्पनाएँ हैं|

- जय मूलनिवासी 

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