"जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे"

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"जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे"
इस संसार में सबसे पहले भगवान बुद्ध ने यह उदघोष किया था- जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे. यही सनातन सत्य है, प्रकृति का नियम है, यही धम्म है.
धम्मपदं गाथा -69. 
मधुवा मञ्जति बालो, याव पापं न पच्चति।
यदा च पच्चति पापं, अथ बालो दुक्खं निगच्छति।। 
    जब तक पाप (अकुशल, बुरे कर्म) का फल नहीं आता तब तक अज्ञानी मनुष्य उसे मधु (शहद)के समान मधुर (मीठा) मानता है और जब पाप का परिणाम प्राप्त हो जाता है, फल मिलता है तब वह दुखी होता है।
    पाप कर्म क्या है? चंचल मन पर संयम नहीं रखना, इंद्रिय विषयों (रुप, गंध, स्वाद, शब्द, मन) के सुख में डूबे रहना और मन, वाणी, शरीर से दूसरों को दुख पहुंचाना, सताना आदि पाप कर्म है। ऐसा व्यक्ति अपनी अज्ञानता के कारण करता है।
      सांसारिक भोग बहुत सुखदायी लगते हैं, मीठे लगते है। दूसरों का अपमान करना, सताना, अन्याय, अत्याचार, शोषण, बेईमानी करने में लोगो को बड़ा आनंद मिलता है लेकिन जब इन बुरे कर्मों का देर-सवेर फल मिलता है तो वे दुखी होते हैं, रोते हैं लेकिन तब तक वे स्वयं और दूसरों का बहुत बुरा कर चुके होते हैं। प्रज्ञावान, जाग्रत और साधना में लगा हुआ व्यक्ति ऐसा नहीं करता है।
     बुरे कर्म के कड़़वे बीज बोते समय व्यक्ति उसके कड़वे फलों का स्वाद को नजरअंदाज कर देता है। बीज बोने के बाद पेड़ बड़ा होने और कड़वे फल लगने में समय लगता है। 
    जब कड़वे फल पक जाते हैं जहर से भर जाते हैं। पेड़ के फल ही नहीं बल्कि हर डाल, हर पत्ते में कड़वाहट भरी होती है। तब वह रोता, चिल्लाता है। फिर वह काल्पनिक शक्तियों, किस्मत, समाज, शत्रु और दूसरों को कोसता है।
      अपने बुरे कर्मों को छुपाने के लिए दूसरों को दोष देता है। जबकि बीज उसी ने बोया था। इस पृथ्वी पर तथागत बुद्ध ने सबसे पहले यह उदघोष किया था, 'जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे. यही सनातन सत्य है, प्रकृति का नियम है, यही धम्म है.
     सबका मंगल हो........सभी प्राणी सुखी
   जय मूलनिवासी 

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