श्रीलंका के दो शास्त्रीय ग्रंथ हैं, दीपवंश और महावंश इन ग्रंथों के अनुसार पौष पूर्णिमा को तथागत बुद्ध श्रीलंका द्वीप पधारे थे. यद्यपि भारतीय त्रिपिटक इस बारे में मौन हैं. दरअसल नालंदा के महाविहार की आग में बहुत कुछ जल गया विहार जला सो जला, पूरी की पूरी एक संस्कृति/ विरासत/ ग्रंथ/ धरोहर जल गयी. साक्ष्य जल गये. भगवान बुद्ध एक सुत्त में अपने धम्म की तुलना सागर से करते हैं. जैसे सागर में आठ गुण होते हैं वैसे ही धम्म में भी आठ गुण होते हैं. इसी सुत्त में तथागत की देशना है, कि जैसे सागर में मिल कर नदियाँ अपना नाम खो देती हैं ऐसे धम्म में आकर व्यक्ति अपनी जाति/ वंश/ गोत्र खो देता है. इस एक बात ने भारत के संविधान शिल्पी डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को सर्वाधिक प्रभावित किया कि दुनिया का एकमात्र यही बौद्ध धम्म है जिसमें जातियाँ नहीं हैं. बोधिसत्व बाबासाहेब ने भारत को जातिविहीन बनाने के लिए बुद्ध धम्म का अंगीकार किया था.
यह प्रश्न अक्सर लोगों की जिज्ञासा का विषय होता है कि आखिर हिंदू धर्म छोड़ने के बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया? इसके बारे में कई तरह के भ्रम हैं. इस संदर्भ में अक्सर यह प्रश्न भी पूछा जाता है कि आखिर उन्होंने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा और ईसाई या इस्लाम या सिख धर्म क्यों नहीं अपनाया? इन प्रश्नों का मुकम्मल जवाब डॉ. आंबेडकर के लेख ‘बुद्ध और उनके धम्म का भविष्य’ में मिलता है. इस लेख में उन्होंने बताया है कि क्यों बौद्ध धम्म उनकी नजरों में श्रेष्ठ है और क्यों यह संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी है. मूलरूप में यह लेख अंग्रेजी में बुद्धा एंड दि फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन (Buddha and the Future of his Religion) नाम से यह कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में १९५० में प्रकाशित हुआ था. यह लेख डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर राटिंग्स एंड स्पीचेज के खंड १७ के भाग २ में संकलित है. इस लेख में उन्होंने विश्व में सर्वाधिक प्रचलित चार धर्म बौद्ध धम्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम की तुलना की है. वे इन चारों धर्मों को अपनी विभिन्न कसौटियों पर कसते हैं. सबसे पहले वे इन चारों धर्मों के संस्थापकों पैगंबरों और अवतारों की तुलना करते हैं. वे लिखते हैं कि ‘ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह खुद को ईश्वर का बेटा घोषित करते हैं और अनुयायियों से कहते हैं कि जो लोग ईश्वर के दरबार में प्रवेश करना चाहते हैं उन्हें उनको ईश्वर का बेटा स्वीकार करना होगा. इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद खुद को खुदा का पैगम्बर (संदेशवाहक) घोषित करते हुए घोषणा करते हैं कि मुक्ति चाहने वालों को न केवल उन्हें खुदा का पैगम्बर मानना होगा, बल्कि यह भी स्वीकार करना होगा कि वह अन्तिम पैगम्बर हैं.इसके बाद डॉ. आंबेडकर हिंदू धर्म की बात करते हैं. हिंदू धर्म के बारे में वे कहते हैं कि ‘इसके अवतारी पुरुष ने तो ईसा मसीह और मुहम्मद से भी आगे बढ़कर खुद को ईश्वर का अवतार यानी परमपिता परमेश्वर घोषित किया है. इन तीनों की तुलना बुद्ध से करते हुए डॉ. आंबेडकर लिखते हैं, कि ‘बुद्ध ने एक मानव के ही बेटे के तौर पर जन्म लिया, एक साधारण पुरुष बने रहने पर संतुष्ट रहे और वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपने धम्म का प्रचार करते रहे. उन्होंने कभी किसी अलौकिक शक्ति का दावा नहीं किया और न ही अपनी किसी अलौकिक शक्ति को सिद्ध करने के लिए चमत्कार दिखाए. बुद्ध ने मार्ग-दाता और मुक्ति-दाता में स्पष्ट भेद किया. ईसा, पैगंबर मुहम्मद और कृष्ण ने अपने को मोक्ष-दाता होने का दावा किया, जबकि बुद्ध केवल मार्ग-दाता होने पर ही संतुष्ट थे. डॉ. आंबेडकर जी ऐसा कोई भी धर्म स्वीकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे, जिसमें ईश्वर या ईश्वर के बेटे, पैगम्बर या खुद ईश्वर के अवतार के लिए कोई जगह हो. गौतम बुद्ध एक मानव हैं और बौद्ध धम्म एक मानवता धम्म , जिसमें ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं है.बाबासाहेब लिखते हैं, कि ‘वे चाहते थे कि उनके समाज पर भूतकाल के मुर्दा बोझ न लादे जायें. उनका बौद्ध धम्म सदाबहार रहे और सभी लिए उपयोगी हो.’ यही कारण था की, बोधिसत्व बाबासाहेब ने भारत को जातिविहीन बनाने के लिए बुद्ध धम्म दिया।
जय मूलनिवासी