मुंबई का नाम मुंबा देवी से पड़ा है

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बंब, बांबी या बांभि मतलब तथागत बुद्ध का अस्थिकलश|

बंब, बांबी, बांभि, बाम्हि इन शब्दों ने अनेक सालों से हमें उलझन में रखा था| अब नये संशोधन से इनके सही अर्थ का हमें पता चल गया है| 

बांबी, बांभि या बंब मतलब तथागत बुद्ध का अस्थिकलश होता है| तिब्बती, चीनी और मध्य एशियाई भाषाओं में बौद्ध पाली तथा बौद्ध संस्कृत शब्दों के वास्तविक अर्थ छुपे हुए हैं| ब्राम्हणों ने भारत में इन शब्दों के अर्थ बिगाड़ दिए है और उनका अपमानजनक अर्थ बताया है| जैसे कि, सम्राट अशोक के प्रियदर्शी शब्द का अर्थ संस्कृत में अपमानजनक है, लेकिन वास्तविक अर्थ सम्मानजनक है| इसीलिए, भारत का वास्तविक बौद्ध इतिहास ढुंढना हो, तो हमें भारत के बाहर बौद्ध इतिहास को खोजना होगा|

काल्मिक मंगोल भाषा में बुद्ध के अस्थिकलश को "बोंबो" कहा जाता है| तिब्बती भाषा में बुद्ध के अस्थिकलश को "बम पा" कहा जाता है| (Stupas and their consecration in contemporary Kalmykia, Valeria Gazizova, 2009, p. 42) इससे पता चलता है कि, बुद्ध के अस्थिकलश को "बोंबो, बम, बंब" कहा जाता था| मौर्य लोग अत्यंत प्रखर बुद्ध अनुयायी थे और वो बुद्ध के अस्थिकलश की पूजा करते थे इसलिए उन्हें बाद में "बंब मोरिया" कहा जाता था|
मौर्यों को महाराष्ट्र में "बंब मौर्य" कहा जाता था, जिनसे "बंबई" नाम एक शहर को मिला| बंबई मतलब बंब मौर्यों की नगरी, जहाँ पर बुद्ध के अस्थिकलश की पूजा होती है| बंबई से बॉम्बे, मुंबई नाम बने हैं|
मुंबई का नाम मुंबा देवी से पड़ा है ऐसा लोग बताते हैं| अब यह मुंबा देवी कौन हैं? मुंबा देवी और अंबा देवी एक ही है| बुद्ध के अस्थिकलश की मौर्योत्तर काल में देवी के रूप में पुजा होने लगी थी| बुद्ध का अस्थिकलश समस्त दुनिया के लिए पूजा का केंद्र बन चुका था, इसलिए बुद्ध अस्थिकलश को "जगतमाता, जगत् अम्मा, जगत् अंबा, जगदंबा, अम्मा, अंबा" ऐसे अलग अलग नामो से पुजा जाने लगा| (Buddhist jewels in Mortuary Cult, Arpitharani Sengupta, p. liii) 

बंब मौर्य अपनी नगरी में बुद्ध अस्थिकलश की पूजा करते थे, इसलिए उनकी मातृदेवता को "बंबमाता, बंबआई, बंबई" कहा जाने लगा| सम्राट अशोक ने बुद्ध की अस्थियों को 84000 भागों में विभाजित कर उन अस्थियों को पवित्र अस्थिकलशों में रखा और उनपर 84000 स्तुप बनवाए| इसलिए, अस्थिकलश मातृदेवता को अम्मा से "अंबा, अंबामाता" यह सामान्य नाम मिला और समाज में स्थापित हुआ| आज भी भारत के विभिन्न स्थानों पर हम अंबा माता की पूजा करते हैं, जो वास्तव में तथागत बुद्ध के अस्थिकलश की पूजा होती है|

त्रिअंबा मतलब जहाँ तीन अस्थिकलशों पर तीन स्तुप बनाए गए हैं वह स्थान| त्रेंबकेश्वर मतलब तीन बुद्ध अस्थिकलशों की तीन ईश्वर के रूप में पुजा का स्थान| बुद्ध के साथ धम्म और संघ इन त्रिरत्नों की पूजा अनेक जगहों पर की जाती है| जगन्नाथ पुरी में कृष्ण, बलराम, सुभद्रा; पंढरपुर में विठ्ठल, रुक्मिणी, सत्यभामा; इन त्रिरत्नों की पूजा की जाती है| इसमें कृष्ण और विठ्ठल वास्तव में बुद्ध है, सुभद्रा और रुक्मिणी वास्तव में धम्म है: और बलराम तथा सत्यभामा वास्तव में संघ के प्रतीक है| इस तरह वैष्णवों ने त्रिरत्नों की अलग अलग नामों से पुजा जारी रखी थी|
शाक्त लोग पुर्णतः मातृसत्ताक और महिलाप्रधान होने के कारण उन्होंने बौद्ध त्रिरत्नों की तीन माताओं के रूप में पुजा शुरू की, जिन्हें त्रिअंबा कहा जाता है| अंबा, अंबिका और अंबालिका यह तीन शाक्त मातृदेवता है, जिसमें अंबा मतलब बुद्ध, अंबिका मतलब धम्म और अंबालिका मतलब संघ होता है| महाभारत में अंबा, अंबिका और अंबालिका इन तीन मातृदेवताओं का भयंकर अपमान किया गया है| यह विषय काफी बड़ा है इसलिए उसे बाद में स्पष्ट करेंगे| 

राजस्थान के मेघवाल लोगों को "भांबि" कहा जाता है| भांबि, बांबी, बंब मतलब बुद्ध के अस्थियों की पूजा करनेवाले लोग| बुद्ध के अस्थियों को अस्थिकलश में रखकर पूजा जाता था| इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, राजस्थान के राजपूतों की तरह वहाँ के मेघवाल और महाराष्ट्र के मोरे लोग भी सम्राट अशोक के वंशज "बंब मौर्य" है और यह लोग बुद्ध के अस्थियों की अंबा माता के रूप में पुजा करते हैं| अस्थिकलश गोलाकार होता है, इसलिए आज भी अंबा माता, जगदंबा माता की मुर्तियाँ गोलाकार पत्थर की होती हैं|

बुद्ध की अस्थियों को जिस अस्थिकलश में रखा जाता था, उसे अस्थियों से "हड्डी, हांडी, हंडिया, हिंडिया, इंडिया" कहा जाता था| अफगानिस्तान में हड्डा शहर बुद्ध की अस्थियों से (हड्डीयों से) हड्डा कहा जाता था| 

इस तरह, बुद्ध के अस्थिकलश पूजा की परंपरा बेहद महत्वपूर्ण है, जो बाद में आंबामाता पूजा में तब्दील हुई थी| अर्थात, अंबामाता वास्तव में बौद्ध मातृदेवता है और वह बुद्ध के अस्थिकलश का प्रतीक है|

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