वह कभी देवता और कभी राक्षस बन जाता है । अभी तुसलीदास प्रसंग में लोग तुलसीदास का बचाव रावण को ब्राह्मण बता कर कर रहे हैं ,जबकि ग्रंथो में लिखा है कि रावण राक्षस था ।
अर्थ यह है कि नायक भी आप और खलनायक भी आप ,बाकी सब वानर ,रीछ हैं । आदमी हैं हीं नहीं । उन पर मनुष्यता का कोई गुण लागू नहीं होता ।