मोरपंख

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 "#मोरपंख" (#Peacock_feathers) #वास्तव_में_ बुद्धत्व" #का_प्रतीक_है|



तथागत बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्त हुआ था और वो बुद्ध बन गए थे| बोधिवृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्त होने के कारण बोधिवृक्ष उनके बुद्धत्व का प्रतीक बन गया| इसलिए हम देखते हैं कि, प्राचीन बौद्ध शिल्पों में बुद्ध के पीछे बोधिवृक्ष दिखाया जाता है| 

बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद तथागत बुद्ध के सिर पर गोलाकार तेजस्वी प्रभावलय निर्माण हुआ था| इसलिए, बुद्ध के मुर्ति में पीछे बोधिवृक्ष और सिर के पास गोलाकार प्रभावलय दिखाया जाता है| 

बुद्ध से संबंधित यह सभी खुबियां मोरपंख में मौजूद है| मोरपंख के मध्य में गोलाकार प्रभावलय रहता है और उस प्रभावलय के उपर बोधिवृक्ष की शाखाओं की तरह मोरपंख की पंखुड़ियाँ रहतीं है| इस तरह, मोरपंख में बुद्धत्व के प्रतीक मौजूद होने के कारण उसे तथागत बुद्ध के बुद्धत्व का प्रतीक समझा गया| मोरपंख बुद्धत्व का प्रतीक होने के कारण मोर को बुद्ध का वाहन भी समझा जाता है| मोर पंछी बुद्ध से संबंधित होने के कारण मौर्य सम्राटों उसे अपनाया था और उसके शिल्प भी बनवाए थे|

#बौद्ध_अनुयायी_बुद्ध_के_बुद्धत्व_के_प्रतीक_अपने_साथ #हमेशा_रखना_चाहते_थे_लेकिन_इतना_बड़ा_बोधिवृक्ष_का #प्रतीक_सिर_पर_लगाकर_घुमना_संभव_नहीं_था| #इसलिए_बौद्धों_ने_मोरपंख #को_बुद्धत्व_का_प्रतीक_मानकर_उसे_अपने_सिर_पर_लगाना_शुरू_किया_यहीं_कारण_है_कि_वासुदेव_लोग_सिर_पर #मोरपंख_लगाकर_घुमते_थे_और_धम्म_का_प्रचार_करते_थे|

अकेला मोरपंख सिर पर लगाना कठिन है, इसलिए मोरपंख की पगड़ी (टोपी) बनाकर बौद्ध लोग अपने सिर पर लगाकर घुमते थे| आज भी अनेक प्राचीन बौद्ध स्थलों पर वहाँ के बहुजन पुजारी भक्तों के सिर पर मोरपंख की टोपी पहनाते है और उन्हें बुद्ध अनुयायी बनाते हैं| मैं पिछले साल जब औंढा नागनाथ के मंदिर में गया था, तब वहाँ के बहुजन पुजारीयों ने मेरे सिर पर मोरपंख की पगड़ी रखीं थीं| उस समय मैं उसका मिथकीय अर्थ नहीं समझ पाया, लेकिन अब संशोधन करने के बाद पता चला है कि वह मोरपंखी पगड़ी बुद्ध के बुद्धत्व का प्रतीक है|

कुषाणकालीन बोधिसत्व के सिर पर भी शिल्पों में यह गोलाकार मोरपंखी पगड़ी दिखाई देती है| इसका मतलब यह है कि, मोरपंखी पगड़ी सिर पर रखना मतलब बोधिसत्व बनकर धम्म का प्रचार करना है| यही कारण है कि, वासुदेव लोग मोरपंखी पगड़ी सिर पर रखकर धम्म का प्रचार करते हैं| बुद्ध को वसुदेव भी कहा जाता है, और बुद्ध के प्रचारक मतलब वासुदेव होता है| 

मोरपंख बुद्धत्व का प्रतीक होने के कारण उसे अत्यंत शुभ और पवित्र प्रतीक समझा जाता है| #लोग_अपने_घरों_के_दरवाजों #पर_मोरपंख_लगाते_हैं_बच्चे_अपने_किताबों_में_मोरपंख #रखते_हैं| #मोरपंख_साथ_में_रखना_मतलब_बुद्ध_को_निरंतर_अपनी #यादों_में_रखना_है| कृष्ण के सिर पर भी मोरपंख दिखाया जाता है, क्योंकि कृष्ण वास्तव में बोधिसत्व कान्हा है (कान्हा जातक) लेकिन बाद में पुराणों के माध्यम से बोधिसत्व कृष्ण का विकृतीकरण किया गया और उन्हें माखनचोर, गोपियों को छेडनेवाला, रणछोड़दास जैसे जैसे अपमानजनक विशेषण लगाए गए हैं|

बुद्धत्व प्राप्ति के बाद बुद्ध के शरीर से अलग अलग रंग निकलने लगे (बुद्धरश्मि) और संपुर्ण आकाश जगमगा उठा| मोरपंख में अलग अलग रंग दिखाई देतें है, जो बुद्धत्व के बुद्धरश्मि के रंग है| यहीं रंग बुद्धिस्ट फ्लैग में अपनाए गयें है, जो मोरपंख में भी मिलतें है|

इस तरह, मोरपंख वास्तव में बुद्ध के बुद्धत्व प्राप्ति (Enlightenment) का एक परिपूर्ण प्रतीक है| इसलिए, मोरपंख को बुद्धत्व का प्रतीक समझा जाता है|

#जय मूलनिवासी 

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