पीके रोजी

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अभी हाल में ही आपने पढ़ा/ सुना होगा कि शारुख खान की नई फिल्म का लोग बहिष्कार कर रहें थें। बहिष्कार का कारण हीरोइन द्वारा पहने कपड़ो का रंग था, पर क्या आपको पता है कि हिन्दू समाज ने एक बहुजन मूलनिवासी अभिनेत्री का सिर्फ इस लिए बहिष्कार कर दिया था क्यों कि फ़िल्म में उंसने एक सवर्ण महिला का किरदार निभा लिया था!!

बहिष्कार भी इस तरह का की सवर्ण कही जाने वाली जातीय भीड़ ने उसका घर फूँक दिया था ,थियेटर में फ़िल्म के पर्दे जला दिए जाते।यंहा तक कि उन्हें अपनी ही फ़िल्म देखने पर पाबंदी लगा दी गई थी,उन पर कई हमले हुए थें जिस कारण उसे रातों रात एक लारी में बैठ के परिवार सहित शहर छोड़ना पड़ा था। उसके बाद उन्होंने कोई फ़िल्म नही की और गुमनामी की जिंदगी बिताती रहीं। फ़िल्म की रील तक  जला दी गई थी,यही वजह है कि इंटरनेट सर्च इंजन पर भी उनकी एकमात्र तस्वीर ही उपलब्ध है। न तो उनकी फिल्म के प्रिंट उपलब्ध हैं और न ही रील।

वह बहुजन मूलनिवासी अभिनेत्री थीं पीके रोज़ी,वर्ष 1928 में मलयालम की पहली फीचर फिल्म 'वीगतथकुमारन' (द लॉस्ट चाइल्ड) में अभिनय किया। इस फिल्म का निर्देशन जेसी डेनियल ने किया था। इस फिल्म में  रोजी ने सरोजिनी नामक एक ऊंची जाति की नायर महिला का रोल अदा किया था। रोज़ी के साथ साथ डेनियल को भी इसका खमियाज़ा भुगतना पड़ा था, लोगो ने उनकी अन्य फिल्मों भी बहिष्कार किया जिससे उनकी आर्थिक हालत   ख़राब हो गई थी और बाद में उन्हें अत्यंत गरीबी में जीवन गुजारना पड़ा ।

पीके रोजी का जन्म साल 1903 में त्रिवेंद्रम के नंदांकोडे गांव में हुआ था। इनके माता-पिता पुलिया जाति से थे और उन्होंने इनका नाम राजम्मा रखा था। बहुजन मूलनिवासी जाति से होने के साथ-साथ रोजी का परिवार आर्थिक रूप से भी कमजोर था। पिता की मृत्यु कम उम्र में हो जाने की वजह से इनके घर की आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो गई थी। हालांकि इनके मन में कला के लिए हमेशा से विशिष्ट स्थान था। बहुत कम उम्र में ही रोजी ने अभिनय और एक लोक नृत्य-नाटक सीख लिया था।उनकी अभियान क्षमता देख डेनियल ने उन्हें अपनी फिल्म में मौका दिया।

वर्ष 1988 में लेखक वीनू अब्राहम ने  डेनियल और मलयालम सिनेमा जगत की पहली अभिनेत्री पीके रोजी के बारे में एक उपन्यास लिखा। इसके बाद वर्ष 2013 में कमल द्वारा इसी उपन्यास पर एक 'सेलूल्यॉड'  नामक फिल्म बनाई गई, जिससे लोगों को पीके रोजी के योगदान और उनके संघर्षों के बारे में पता चला। अफसोस कि रोजी को पहचान मिलने से पहले ही वह 1988 में दुनिया को अलविदा कह गईं। इससे पहले 27 अप्रैल 1975 को गुमनाम जिंदगी जीते हुए जेसी डेनियल का भी निधन हो गया ।

आप समझिए कि जातीय मानसिकता किस कदर लोगों पर हावी रही है कि आज भी बमुश्किल ही बहुजन मूलनिवासी अभिनेता या अभिनेत्री भारतीय फिल्मों में स्थापित हो पाते हैं।

जय मूलनिवासी 

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