आप ये मान के चलो कि कांशीराम भी एक दिन बिक सकता है. मान्यवर साहेब कांशी राम

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आप ये मान के चलो कि कांशीराम भी एक दिन बिक सकता है ---साहेब कांशी राम।

घटना सितम्बर-अक्टूबर 1982 की है। रौशन ग्राउंड होशियारपुर के बिलकुल नज़दीक ही एक बामसेफ के सरगर्म मेंबर लाल चंद भट्टी (भगत नगर) के घर में साहेब का ट्रेनिंग का *कैडर ट्रेनिंग कैंप* के नाम से पांच दिन का कैडर कैंप लगा हुआ था. उसमे बामसेफ के महज़ 30-32 के करीब सदस्य थे। साहेब को उस दिन एक सदस्य ने सवाल किया कि आप जो भी संस्था बनाओगे उसमे डेमोक्रेसी किस तरह की होगी?

साहेब का जवाब था, *मैं जिस भी संस्था को खड़ी करूंगा, उसमें ‘डेमोक्रेसी’ भारत की डेमोक्रेसी से बढ़िया और हद दर्जे की पारदर्शी होगी।* उस में 10 मेंबर डिसिशन मेकर (फैसला लेने वाले) होंगे। अगर उसमें किसी भी मसले पर 8:2 के अनुपात से फैसला होगा तो मैं समझूंगा कि यह ठीक नहीं है क्यूंकि दो मेंबर भी अगर उस फैसले से सहमत नहीं हैं तो मैं गौर करूंगा कि वह दो मेंबर असहमत क्यूँ हैं आखिर या तो उन दो मेम्बरों को विचार से कायल करके सहमत करवाना ज़रूरी होगा, नहीं तो उस फैसले को रद्द कर देना ही बेहतर होगा। अगर कोई फैसला 9:1 के अनुपात से पास होगा तो वहां भी हमारी कोशिश होगी कि जो एक मेंबर भी असहमत है उसे भी सही तरीके से सहमत किया जाये।
उसके पश्चात् एक और सदस्य ने सवाल किया कि, “बाबू जी! आपकी दलीलें सुनकर लगता है कि क्रांति शायद बहुत जल्द इस मुल्क में आने वाली है। यहाँ मैं आपको सवाल तो नहीं करना चाहता था, लेकिन पता नहीं क्यूँ फिर भी मेरे मन में एक सवाल बार बार उठ रहा है , यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्यूंकि हमारा सेंटर-पॉइंट ही इस वक़्त सिर्फ और सिर्फ कांशी राम है यदि यूं ही सब कुछ चलता रहे तो बेहतर है लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि आप कहते हो कि मैं बिकने वाले नेता पैदा नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन यदि एक दिन खुद कांशी राम ही बिक गया तो फिर इस मूवमेंट का क्या होगा?”

साहेब इस बार थोड़ा संजीदा हो गए और फिर धीरेे से मुस्कुरा कर बाकि के सदस्यों से पूछने लगे कि इस बारे में उनकी राय क्या है?

इस बात पर सभी इनकार करते हुए कहा कि बाबू जी, हमारे मन में न तो इस तरह का सवाल है और न ही इस संबंध में हमारा कोई विचार ही है।
इसके पश्चात् साहेब ने जैसे दार्शनिक लहज़े में बोलते हुए कहा, “आप मानकर चलो कि एक दिन कांशी राम भी बिक जायेगा. क्यूंकि यहाँ हर इंसान ही बिकाऊ है. लेकिन कांशी राम की अपनी कोई कीमत है. याद रखो, *कांशी राम प्रधानमंत्री के ओहदे से कम कभी भी बिकने की सोच भी नहीं सकता!* यदि आपको इस कीमत से कम कभी कांशी राम के बिकने की खबर मिले तो आपकी तैयारी ही इतनी होनी चाहिए कि
 *मक्खन से जैसे बाल निकालकर बाहर रख दिया जाता है इसी तरह कांशी राम को मूवमेंट से बाहर रख देना।* लेकिन मूवमेंट को आंच नहीं आने देना चाहिए. क्यूंकि जितना इस मूवमेंट पर कांशी राम का हक है उतना ही हक आपका भी है.

कभी भी किसी व्यक्ति के पीछे भागना नहीं चाहिए बल्कि विचारधारा का पालन (follow) करना चाहिए।  
*व्यक्ति भाग सकता है लेकिन विचारधारा नहीं-
मान्यवर साहेब कांशी राम जी।*

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