वो राजा जनक से पूछेगी, कि तुम कहाँ थे, जब तुम्हारी इकलौती बेटी, वनवास पे भेजी गयी, उसका अपहरण हुआ, वो प्रेगनेंसी में घर से निकाली गयी ?
तुमने उसे अपना उत्तराधिकारी क्यों नहीं बनाया ? राज्य बेटी को क्यों नहीं दिया ? उसे बच्चे जंगल में क्यों पालने पड़े ?
स्त्री जब ख़ुद लिखने लगेगी, तो ज़रूर पूछेगी।
तुम्हीं कहते हो न ! कि औरत की छाया पड़ने से ही, सांप तक अंधा हो जाता है।
फिर तुम ज़िंदगी भर, अपनी पत्नी की इतनी बुरी सोहबत में, क्यों रहे, कैसे रहे ?
वो कबीर को भी उसी कठघरे में खड़ा करेगी, जिसमें तुलसीदास होंगे।
उसके सवालों से राम भी नहीं छूटेंगे, अकेले सीता को अग्नि परीक्षा क्यों देनी पड़ी ? अलग तो दोनों रहे थे, तुमने तो नहीं दी ?
वो अपनी सीनियर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान को भी नहीं बख़्शने वाली। तुमने लक्ष्मीबाई को 'ख़ूब लड़ी मर्दानी' क्यों लिखा ? जनानी क्यों नहीं ?
आदिवासी लेखक एकलव्य के कटे अंगूठे और इंद्रप्रस्थ नगर बसाने के लिए, पांडवों के द्वारा जलाये गये जंगल और विरोध करने पर, उनके हाथों मारे गये अपने पुरखों का हिसाब मांगेंगे।
अछूत भी सवाल करेंगे ही कि तुम्हारी किताब में, शम्बूक को राम ने क्यों मारा ? या कर्ण को क्षत्रिय बताने के लिए, कुंती के कान से पैदा कराना ज़रूरी था ? अधिरथ सारथी का बेटा वीर क्यों नहीं हो सकता था ?
वंचितों के हाथ में कलम आएगी, तो वे पिछली लिखी गयी हर बात को, सिर के बल खड़ा कर देंगे।
~जय मूलनिवासी