कुशीनगर की महापरिनिर्वाण प्रतिमा की खोज कार्लाइल ने साल 1877 के आरंभ में की थी ।

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कुशीनगर की महापरिनिर्वाण प्रतिमा की खोज कार्लाइल ने साल 1877 के आरंभ में की थी। यह ऊपरी सतह से जमीन में 10 फीट नीचे मिली थी। मूर्ति कई खंडों में टूटी - फूटी हुई थी।

कार्लाइल ने इस मूर्ति की मरम्मत कराई और मार्च 1877 में इसका वास्तविक स्वरूप प्रदान किया।

तथागत की यह महापरिनिर्वाण प्रतिमा एक ऊँचे सिंहासन पर है। सिंहासन 24 फीट लंबा, 5 फीट 6 इंच चौड़ा और 2 फीट ऊँचा है।

सिंहासन के अग्रभाग में तीन शोकसंतप्त मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ छोटे - छोटे ताखे में प्रतिष्ठित हैं। इन मूर्तियों की सही पहचान नहीं हो सकी है। लेकिन बीच की मूर्ति सुभद्र की है।

महापरिनिर्वाण प्रतिमा पर 5 वीं सदी का अभिलेख है। अभिलेख धम्म लिपि में है। अभिलेख से पता चलता है कि इस मूर्ति के प्रतिष्ठापक भिक्खु हरिबल थे और इसके शिल्पी मथुरा के शिल्पकार दिन्न थे।

5 वीं सदी के आरंभ में फाहियान जब कुशीनगर आए थे, तब यह मूर्ति उन्होंने नहीं देखी थी। लेकिन सातवीं सदी में जब ह्वेनसांग कुशीनगर आए थे, तब यह मूर्ति मौजूद थी। मूर्ति निश्चित फाहियान और ह्वेनसांग के आगमन के बीच बनी है।

कुशीनगर की यह महापरिनिर्वाण प्रतिमा 20 फीट लंबी है और चित्तीदार बलुए पत्थर की बनी है। तथागत का मुख पश्चिम की ओर है। सिर उत्तर की ओर है। उनका दाहिना हाथ सिर के नीचे है। बायाँ हाथ जंघे पर स्थित है। पैर एक - दूसरे के ऊपर हैं।
जय मूलनिवासी 

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