*जब बामसेफ से लगा बसपा राजनैतिक संगठन बना, तब मान्यवर डी.के. खापर्डे साहब बामसेफ़ राष्ट्रीय अध्यक्ष बने!*
*बामसेफ़ की ताकत आगे बढ़ती गई तो इनमें से कुछ लोग अपने गुट बनाकर अलग हुए!*
*जब अनुयायी नेता की अंध भक्ति में लीन हो जाते है और दिशा से भटक जाते है तब बहुजनो का राष्ट्रव्यापी आंदोलन तबाह होता है!*
*1991 में बामसेफ़ के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजेंद्र सिंह झल्ली थे, फुलटाइमर की भर्ती को लेकर खापर्डे साहब से झल्ली के मतभेद हुए!*
*51 सदस्य की CEC सदस्यों में से 49 सदस्य जल्ली के पक्ष में हो गए! खपर्डेजी के पास विचारधारा और केवल दो साथी!*
*और मान्यवर खापर्डे साहब के पक्ष में केवल दो सदस्य थे! इस प्रकार पूरा बामसेफ़ जल्ली के हाथ मे और खापर्डे जी के पास केवल विचारधारा थी!*
*सारे लोगो ने अध्यक्ष नेता तेजेन्द्र सिंग जल्ली को पकड़ा जब कि खापर्डे साहब ने विचारधारा को पकड़े रखा, और अकेले होने के बाद भी विचारधारा नही छोड़ी!*
*खापर्डे जी चाय की कैंटीन पर आकर अपने दो साथी को लेकर आये, वँहा उन्होंने दोनों को कहा कि आप दोनों भी चाहे तो मेरा साथ छोड़ सकते हो, लेकिन उद्देश्य से समझौता हरगिज नही किया जाएगा!*
*जैसे दीवार फ़िल्म का डायलॉग है "तुम्हारे पास क्या है? मेरे पास माँ है" ठीक उसी तरह विचारधारा आंदोलन की माँ को नही छोड़ा!*
*जिन लोगो ने विचारधारा की जगह व्यक्ति को पकड़ा वो अलग थलग होकर बिखरने लगे, झल्ली ने अपना एक सीमित संगठन बना लिया और भीड़ में गुम हो गया!*
*तीनो ने मिलकर कैेडर को तैयार किया, कैेडर कैेम्प लगाए, दिन रात मिशन के काम मे लगे रहे, सतत रेल की सीट पर दिन रात की परवाह किए बगैर राष्ट्रव्यापी संगठन बनाने में जुड़ गए!*
*इसी बीच बामसेफ़ अध्यक्ष मान्यवर खापर्डे साहब का देहांत हो गया, और उनके दो साथी में से एक युवा प्रभावशाली नेतृत्व, होनहार वक्ता को बामसेफ़ की कमान दी गई!*
*इसके बाद ही दूसरे सदस्य जो बामसेफ़ संस्थापक सदस्य थे उनका भी देहांत हो गया, तब तो बामसेफ़ ने अपनी रफ्तार पकडली थीं!*
*बामसेफ़ को राष्ट्रव्यापी संगठन बनाने उस होनहार लीडरशिप ने कोई कसर नही छोड़ी, कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर बंगाल तक रेल की सीट पर घूमकर बामसेफ़ को एक ऊंचे मकाम तक पहुचाया!*
*बहुत सारे लोग आए जुड़े कही ने धोखा भी दिया कही लोगो ने राजनैतिक पार्टी जॉइन की, लेकिन बामसेफ़ आगे बढ़ता गया, लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया!*
*संगठन में कही उतार चढ़ाव के बाद भी महापुरुषों की विचारधारा और संघर्ष से प्रेरणा लेते हुए नेतृत्व और केडर ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा, अब बामसेफ़ देश का राष्ट्रव्यापी संगठन प्रस्थापित हो चुका था!*
*तो जो लोग व्यक्ति की जगह विचारधारा को पकड़े रहते है वो न थकते है न हारते है न पीछे मुड़कर देखते है न दौलत से बिकते है, इस बात को सिद्ध कर दिया!*
*बामसेफ़ संस्थापक सदस्य मान्यवर खापर्डे साहब के साथ विपरीत स्थिति में खड़े रहने वाले दो साथी में एक थे बामसेफ़ संस्थापक सदस्य मान्यवर दीना भाणा जी, और बामसेफ़ को दुनिया मे पहचान दिलाने वाले वर्तमान बामसेफ़ राष्ट्रीय #वामन_मेश्राम जी थे!*
*इसलिए जो चमन #तीये मान्यवर काशीराम जी को धोखा देने की अफवाह फैलाकर अपनी विघ्नसंतोषी वृति को शांत कर सकते है लेकिन हकीकत को नही बदल सकते!*
*आज मान्यवर वामन मेश्राम के नेतृत्व में बामसेफ़ भारत का सबसे बड़ा शोषित बहुजन समाज का सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन आंदोलन है इसमे कोई संदेह नही!*
*जय भीम! जय मूलनिवासी! ब्राह्मण विदेशी!*