बहनजी मुझे जल्द से जल्द ठीक करो ताकि मैं देश के लिए फिर से बलिदान दे सकूं,'" यह कहना है 94 वर्षीय रमा खंडेलवाल का।

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"मुझे आज भी याद है कि एक सैनिक ने कहा था, 'बहनजी मुझे जल्द से जल्द ठीक करो ताकि मैं देश के लिए फिर से बलिदान दे सकूं,'" यह कहना है 94 वर्षीय रमा खंडेलवाल का।
आज़ादी की लड़ाई में रमा, आज़ाद हिन्द फ़ौज का हिस्सा थीं और अपनी काबिलियत के बल पर उन्होंने सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट होने का सम्मान प्राप्त किया था। एक समृद्ध परिवार से आने वाली रमा ने अपने देश के लिए सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया था। देशभक्ति की यह भावना उन्हें अपने दादाजी और माँ से मिली, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
रमा बतातीं हैं कि फ़ौज के सभी सैनिकों को ज़मीन पर सोना होता था और वो फीका खाना खाते थे। फिर पूरा दिन ट्रेनिंग करते, वह भी बिना आराम किए। अपना सभी काम खुद करने का नियम था। शुरू-शुरू में उन्हें मुश्किल ज़रूर हुई क्योंकि उन्हें ऐसे जीवन की आदत नहीं थी। लेकिन फिर धीरे-धीरे उन्होंने देश की आज़ादी की लड़ाई को ही अपना जीवन बना लिया।
उनका दिन झंडा फहराने, परेड करने और उबले हुए चने खाने के साथ शुरू होता। उन्हें आत्म-रक्षा, राइफल शूटिंग, मशीन गन चलाने की ट्रेनिंग दी जाती और फिर चाहे भीषण गर्मी हो या तेज बरसात, ये ट्रेनिंग कभी नहीं रुकीं। शाम को मनोरंजन होता था। देशभक्ति गानों से सभी सैनिकों का मनोबल बढ़ाया जाता। किसी की भी रैंक चाहे कोई भी हो लेकिन सभी को सैनिकों की तरह ही रहना होता था। सबको अपनी ट्रेनिंग के साथ-साथ कुछ अतिरिक्त ड्यूटी जैसे खाना पकाना, साफ़-सफाई, और रात को पहरा देना पड़ता था।
एक बार अपनी ड्यूटी के दौरान रमा एक गड्ढे में गिर गईं और उन्हें काफी चोट आई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया और तब पहली बार उनकी नेताजी से मुलाक़ात हुई। नेताजी ने देखा कि रमा का खून बह रहा है लेकिन फिर भी उनकी आँखों से एक भी आंसू नहीं गिरा। इलाज के दौरान भी वह संयमित रहीं और तब नेताजी ने उन्हें कहा, "यह सिर्फ शुरूआत है, आगे इससे भी बड़ी मुश्किलें होंगी। देश की लड़ाई में जाना है तो हिम्मत रखो।"
नेताजी के इस कथन को सुन रमा की आँखे नम हो गईं और उनका मन हौसले से भर गया। इसके बाद, अगले कई सालों तक भारत की यह बेटी लगातार ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ती रही। लड़ाई के दौरान उन्हें पकड़ लिया गया और बर्मा में नज़रबंद रखा गया।
साल 1946 में वह दिल में देश की आज़ादी की तमन्ना लिए बॉम्बे(अब मुंबई) पहुंचीं थीं। एक साल बाद उनका यह सपना पूरा हुआ। इसके बाद, उन्होंने शादी की और बतौर टूरिस्ट गाइड अपने जीवन की दूसरी पारी शुरू की।
50 बरसों से भी ज्यादा समय तक बतौर टूरिस्ट गाइड काम करने वाली रमा को नेशनल टूरिज्म अवॉर्ड से नवाज़ा गया है। वह कहतीं हैं, "अब जब मैं अपने जीवन की तरफ वापस मुड़कर देखती हूँ तो लगता है कि आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे खुशनुमा वक़्त बिताया। 'करो या मरो' सिर्फ युद्ध की घोषणा नहीं थी बल्कि यह मेरे जीवन का सार है। मैंने अपनी ज़िंदगी के ज़रूरी सबक नेताजी से सीखे जो हमेशा कहते थे, 'आगे बढ़ो।' उनके भाषणों ने मुझे आत्म-विश्वास और सकारात्मकता दी। उन्होंने हमें अपने गुस्से को काबू कर, आत्म-शांति का ज्ञान दिया। वह कहते थे कि अपनी ख़ुशी को खोना बिल्कुल भी ठीक नहीं। आज मैं जो कुछ हूँ, उनकी इन्हीं शिक्षाओं की वजह से हूँ।"
सभी सुख सुविधाओं को त्यागकर देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाली रमा खंडेलवाल को द बेटर इंडिया नमन करता है!
जय मूलनिवासी
@Nayak1

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