"दसबल" (दस बलो के स्वामी) -
देव नी मोरी गुजरात से प्राप्त इस अस्थि मंजूषा पर बुद्ध का नाम " दसबल " लिखा हुआ था।
मंजूषा डिब्बी में दशबल की अस्थियां रखी गई हैं। मंजूषा पर संपूर्ण प्रतित्यसमुत्पाद नियम भी लिखा है।
देव नी मोरी का अर्थ मोरियों के देव होता है और मोरियो के देव दसबल ही है।
सब्बे बुद्धस्स बिम्बे सकलदसदिसे केसलोमादिधातुं वन्दे।
सब्बेपि बुद्धं दसबलतनुजं बोधिचेत्तियं नमामि ।।
अर्थात~दस दिशाओं में व्याप्त बुद्ध के केश, लोम आदि अवशेषों के जितने भी रूप हैं उन सबको, सब बुद्धों को, दसबलतनुजों को और बोधिचैत्यों को मैं नमस्कार करता हूँ ।
दसबल सेलप्पभवा,निब्बान महासमुद्द परियंता।
अट्ठञ्गमग्ग सलिला, जिनवचन नदी चिरंवहतु।।
(चंदिमा सुत्त-देवपुत्त संयुक्त-संयुक्त निकाय)
अर्थात~
सम्यक संबुद्ध रूपी हिम पर्वत शिखर से,आर्य आष्टांगिक मार्ग रूपी निर्मल नीर से परिपूर्ण,बुद्ध-ज्ञान रूपी मनोरम-शीतल सरिता, निर्वाण रूपी महा समुद्र तक ,
सदा-सर्वदा निरंतर लोक मँगल हेतु प्रवाहित होती रहे।
दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है।
बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब "बुद्ध " कहलाते हैं।
जय मूलनिवासी