पहचान ठीक ठीक नही कर पाते हैं

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अगर आप रतालू, गराडू, अघीटा, मटारु, पिढ़ी, माहवरी कंद, सुथनी, तरुड़, शहद कन्द, बराही कंद, डूकर कंद, डोगरी कंद, बेचाँदी, की पहचान ठीक ठीक नही कर पाते हैं तो फिर यह पोस्ट आपके लिए है...
Dioscorea spp.
पातालकोट, जिला छिंदवाडा (म.प्र.)
                    Dioscorea/ डायोस्कोरिया एक जंगली लता है, जिसकी जड़ों तथा लताओं में खाने योग्य कंद विकसित होते हैं। भूमिगत कन्द, कन्द ही कहलाते हैं जबकि हवाई कन्दों को बुलबिल्स कहा जाता है। ये जंगली/ पहाड़ी या ग्रामीण जनजीवन के लिए उत्तम भोजन स्त्रोत है। किंतु इसके गुणों और लोकप्रियता के कारण यह भोजन के शौकीन व्यक्तियों के बगीचों में भी देखने को मिल जाते हैं। कुछ एक सदस्यों की तो बाकायदा खेती होने लगी है। इसका गराड़ू  नामक सदस्य सर्वाधिक खाया है। मध्य प्रदेश के मालवा में तो यह शीतकाल में प्रत्येक गली- चौपाटी की शान है। dioscorea genus की सैकड़ो species अलग अलग स्थानों में पाई जाती हैं जिनमे केवल बेचाँदी (Dioscorea hispida) 3 पत्तियों वाले सदस्य को छोड़कर सभी किसी न किसी रूप में खाये जाते हैं। इनके लगभग सभी सदस्यों को आग में भूनकर या नमक के पानी मे पकाकर भोजनकी तरह खाया जाता है। इनके कुछ सदस्यों में थोड़ा विषैला प्रभाव होता है, इसीलिये इन्हें कच्चा नही खाया जाता है। नमक के पानी मे उबालकर इन्हें detoxify किया जाता है। लेकिन कुछ बहुत सामान्य हैं जैसे Dioscorea alata और  Dioscorea bulbifera इन्हें तो जैन समाज मे लगभग आलू की तरह ही सामान्य रूप से रसोई में स्थान प्राप्त   हैं, क्योंकि जैन धर्म मे आलू के सेवन से परहेज किया जाता है। ये आलू का अच्छा विकल्प होते हैं, लेकिन आलू से कहीं अधिक पौष्टिक। ये भी आलू की तरह ही व्रत- उपवास का आहार हैं।
              देखने मे Dioscorea की लता एक बड़े आकार की बेल (lineag) है, जिसका फैलाव बहुत ज्यादा होता है, इसके पत्तो का आकार पान के पत्तो की तरह होता है, किन्तु ये हलके रंग के होते हैं, जिनपर शिराएँ उभरी हुयी दिखाई देती हैं। 
इनके पुष्पक्रम बहुत ही आकर्षक दिखाई देते है, और इनसे बहुत ही मीठी मीठी सी खुशबु आती है। हालाकि अलग अलग जातियों में पत्तियों तथा कन्द के आकार में थोड़ी बहुत भिन्नता देखने को मिलती है। जड़ो में आलू  के आकार से लेकर बहुत बड़े मूली के आकार तक के tubers लग सकते है, जिनका आकार और रूप रंग इनकी अलग अलग प्रजातियों के अनुसार भिन्न भिन्न हो सकता है। इसी तरह शाखाओं पर भी गोल या लंबे सींग के आकार के बुलबिल्स लगते हैं। 
              अब मैं सबसे सामान्य Dioscorea genus के  खास सदस्यों से आपका परिचय कराता हूँ, जो हमारे क्षेत्र में  पातालकोट सहित ग्रामीण क्षेत्रो में भोजन के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। 

1) गराडू या रतालु (Dioscorea alata)
इसके भूमिगत कन्द गराड़ू कहलाते हैं जिसका आकार बहुत बड़ा हो सकता है, जबकि इसकी शाखाओं पर हवा में लटकने वाले सींग की तरह बुलबिल्स को रतालु कहा जाता है। दोनो ही भोजन के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।
                  गराड़ू का सबसे पसंदीदा व्यंजन है, गराड़ू चाट। इसे बनाने के लिए गराड़ू को छिलका निकालकर छोटे छोटे आयताकार टुकड़े काटकर तेल में पकने तक फ्राई करते है, और फिर इसे जीरावन और सॉस के साथ परोसा जाता है। यह एक फ़ास्टफ़ूड तो है ही लेकिन शरीर के लिए बहुत फायदेमंद भी है, क्योंकि इसमें कार्बोहायड्रेट के साथ साथ कई विटामिन्स, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं। इसकी ममसालेदार सब्जी भी बहुत स्वादिष्ट बनती है। बड़े बुजुर्ग इसे साल में कम से कम 1 बार ठण्ड के मौसम में जरूर खाने की सलाह देते हैं। इससे शरीर को आवश्यक पदार्थो की पूर्ति होती है, जिससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।

2) शहद कंद (Dioscorea oppositifolia):
यह बेहद कम जाना माना कन्द है, जो पातालकोट की गहराइयों वाले जंगलों में मिलता है। यहाँ के आदिवासी जंगल यात्रा के दौरान इसे  आग में भूनकर अपनी थकान और भूख मिटाते हैं। स्वाद में मिठास लिए होता है।

3) सुथनी, माहवरी कंद, पिढ़ी (Dioscorea esculanta):
यह छिंदवाडा के साथ साथ बालाघाट और सिवनी जिले के मढ़ई मेलो का मुख्य आकर्षण था। दीवाली के बाद जब फसल कटाई हो जाती है तब फिर ग्रामीण क्षेत्रो में मढ़ई मेलों का दौर शुरू होता है।  इन मेलों में सबसे अधिक यही बिकने आते थे लेकिन अब प्रचलन से बाहर हैं और दुर्लभ की श्रेणी तक आ गए हैं।

4) मटारू/ अगीटा/ बाराही कन्द (Dioscorea bulbifera):
यह गराड़ू के बाद सबसे अधिक खाया जाने वाला dioscorea जीनस का सदस्य है। इसे हवाई आलू के नाम से जाना जाता है। शाखाओं पर आलू के समान ही गोल गोल बुलबिल्स लगते हैं। हवाई आलू के साथ- साथ जड़ों के कन्द भी भोजन के रूप में खाने योग्य हैं। 

5) तरुड़ (Dioscorea deltoides)
यह पहाड़ी क्षेत्रों में मिलने वाला सदस्य है, इसके भी भूमिगत कन्द और हवाई कन्द सब्जी की तरह व आग में भूनकर भोजन के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। 

6) डोगरी कन्द (Dioscorea pentaphylla)
यह Dioscorea जीनस का अत्यन्त दुर्लभ सदस्य है, जिसे इसकी पाँच पत्तियों (पत्रफलको) के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। कभी कभी इस पर तीन पत्तियाँ लगती हैं लेकिन तब इसके और  बेचाँदी के बीच मे अंतर मालूम होना आवश्यक है क्योंकि यह तो खाने योग्य है लेकिन बेचाँदी जहरीला है। जिसकी थोड़ी सी मात्रा खाने से भी शरीर कुछ समय के लिए चेतनाहीन हो सकता है। बेचाँदी में भी तीन पत्तियाँ पाई जाती हैं।

इन जंगली डायोस्कोरीया परिवार के कन्दों की जानकारी आपको किसी लगी बताइयेगा। 
धन्यवाद 🙏
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