शंभर_नाग_राजाओं_को_काउंटर_करने_के_लिए_पुराणों_में_शंभर_कौरवों_की_कथा_बनाई_हैं

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#शंभर_नाग_राजाओं_को_काउंटर_करने_के_लिए_पुराणों_में_शंभर_कौरवों_की_कथा_बनाई_हैं....!

“भारत में जितने भी सन , उत्सव , त्योहार हैं , उन सबका संबंध बौद्ध संस्कृति से हैं| बुद्ध कालखंड में लोग अत्यन्त उत्सव प्रिय लोग थें| राजा और महाराजा लोग कोई भी उत्सव हों  , वह अत्यन्त धूमधाम से मनाते थें| तथागत बुद्धा के समय “वप्प मंगल उत्सव” मनाया जाता था| बुद्ध कालखंड के लोग बड़े दयालु और प्रकृति के साथ लगाव/ जुड़ाव रखने वाले लोग थें| इसलिए वे खेती-बाड़ी , पशु-पक्षी , जीव-जंतु , पेड़-पौधे और अपने पुरखों से संबंधित उत्सव मनाते थें| किन्तु प्रतिक्रान्ति के बाद उन सभी उत्सवों का स्वरूप बदल गया , और उन उत्सवों का ब्राह्मणीकरण हो गया| पौराणिक साहित्य में जितने भी उत्सवों का उल्लेख हैं , उन सभी उत्सवों का य़दि ठीक से अध्ययन किया जाएं तों उसमें सिर्फ़ बौद्ध संस्कृति के दर्शन होंगे| वर्तमान में जितने भी लोग “नागपंचमी” का उत्सव मनाते हैं , वह सभी पूर्व के बुद्धिस्ट लोग हैं| नागपंचमी का निर्माण पांच बौद्ध नागवंशी राजाओं के सम्मान में हुआं हैं| जैसे बौद्ध साहित्य में तथागत बुद्ध के प्रथम पांच शिष्य को मानते हैं , बिल्कुल.! वहीं सम्मान इन पांच बौद्ध नागराजाओं के लिए भी हैं| बुद्ध के प्रथम पांच शिष्य और फ़िर सात शिष्य मानने की परंपरा हैं| वैसे ही नागराजा भी पहले पांच और फ़िर सात हुएं थें , इन सातों को अत्यन्त पूजनीय माना जाता था| नागराजाओं की यह संख्या बढ़कर शंभर याने सौ तक हुईं थीं| भारतीय इतिहास में शंभर नाग हुएं हैं| किन्तु उनका वास्तविक इतिहास उपलब्ध नहीं हैं , इन शंभर नागों को सामने रखकर ही महाभारत में कौरवों की संख्या शंभर बताईं हैं|

डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर ने नाग लोग पूर्व के बौद्ध लोग थें , और उनकी शत्रुता आर्यों से थीं , ऐसा कहा हैं| आर्य यह बौद्ध शब्द हैं , और यहीं शब्द का इस्तेमाल ब्राह्मण लोग ख़ुद के लिए करतें थें| इस विषय में बाबा साहब कहते हैं कि , ‘नाग लोग बहुत प्राचीन लोग थें| नाग लोग किसी भी प्रकार से असभ्य या जंगली लोग नहीं थें| वर्तमान के अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोग पूर्व के नाग लोग थें , और वे सभी बौद्ध लोग थें| किन्तु प्रतिक्रान्ति के बाद उनका अवनत दशा में राजकर्ता पुरोहित वर्ग ने उनका पतन किया| नाग लोगों का इन लोगों ने पतन इसलिए किया क्योंकी नाग लोगों की आर्यों से शत्रुता थीं| बाबा साहब आगे कहते हैं कि , ‘मन्दिरों में ब्राह्मण लोग शेषनाग की पुजा करतें हैं , और हमारे लोग उसके सामने माथा टेकते हैं , वह माथा ज़रूर टेकते हैं , पर वे वास्तविक सच्चाई नहीं जानतें| प्राचीन कालखंड में जब आर्य और नागवंशी लोगों के बीच युद्ध हुआ था , तब नागवंशी लोग पराजित हुएं थें , अगस्त नाम के मुनि ने एक नागवंशी व्यक्ति को बचाया था , वहीं शेष था , बाक़ी था/ जीवित था| वर्तमान में वहीं शेषनाग को पूजने की परम्परा चलीं आ रहीं हैं| हमारे लोग यहीं शेषनाग के वंशज हैं|

एक साल पूर्व हमने लेख लिखा था और उसमें कहा था कि , पांच नाग राजाओं को काउंटर करने के लिए पुराणों में पांच पांडवो की कथा बनाई हैं| इस विषय पर हमने कहा था कि , तथागत बुद्ध का पवित्र संदेश एवं उनका उपदेश अखंड जम्बूद्वीप में जिन नाग लोगों ने पहुंचाया , जिन्होंने बौद्ध धम्म का प्रचार और प्रसार किया , उनकी याद में “नागपंचमी” का यह उत्सव संपूर्ण भारत देश में मनाया जाता हैं| नाग लोग यह तथागत बुद्ध के अनुयाई , उपासक एवं बौद्ध धम्म के प्रचारक थें , तथागत बुद्ध के प्रथम पांच शिष्य भी नागवंशी थें| पांच नाग राजाओं के स्वतंत्र गणतांत्रिक राज्य थें , “अनंत नाग” यह सबसे बड़े थें , जम्मू-कश्मीर का अनंतनाग शहर उनकी स्मृति का प्रमाण हैं| दुसरे नागराज “वासुकी” यह कैलास मानसरोवर क्षेत्र के प्रमुख थें , तीसरे नागराज “तक्षक” थें , जिनकी स्मृति में आज तक्षशिला पाकिस्तान में स्थित हैं| चौथे नागराज “करकोटक” और पांचवें “ऐरावत” थें| पांच शक्तिशाली नाग राजाओं की स्मृति में उनके क्षेत्र के लोगों द्वारा आयोजित वार्षिक उत्सव को “नागपंचमी” के रूप में जाना जाने लगा , धीरे-धीरे यह उत्सव संपूर्ण भारत में मनाया जाने लगा , किन्तु पौराणिक साहित्यकारों ने नागराजाओं का वर्णन एक “सांप” के रूप में किया , इसलिए यह उत्सव सांपों की पंचमी बन गई और नाग लोगों की पंचमी गायब हो गईं| आज की समय में नागपंचमी का पर्व सांप को दूध पिलाना और उसकी पुजा करना यहां तक सीमित कर दिया हैं| आज भी गांव देहात की महिलाएं घर की दीवारों पर पांच नागों का चित्र बनातीं हैं , यह उन पांच नाग राजाओं की स्मृति का सबसे बड़ा प्रमाण हैं , बस्स वह उनका वास्तविक स्वरूप , उनकी पहचान एवं उनका इतिहास भूल गए हैं|नागपंचमी का संबंध सांप से नहीं , बल्कि नागपंचमी का संबंध पांच शक्तिशाली पराक्रमी नाग-राजाओं से हैं| तथागत बुद्ध के प्रथम पांच शिष्य नागवंशी थें , बौद्ध धम्म का प्रचार और प्रसार करनेवाले इन नाग राजाओं की संख्या भी पांच थीं , इसलिए पौराणिक साहित्यकारों ने “पांच पांडवों” की कथा बनाई हैं| इतना ही नहीं बल्कि बौद्ध साहित्य में ओर सौ (शंभर) नागों का जिक्र मिलता हैं , इसलिए पौराणिक साहित्यकारों ने “१०० कौरवों” की कथा बनाई , इस तरह से बौद्ध पात्रों का ब्राह्मणीकरण किया हुआं हैं| आनेवाले समय में हम “बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क” की तरफ से शंभर नागों का असली इतिहास दुनिया के सामने लाएंगे”.
जय मूलनिवासी 
नमो बुद्धाय...

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