डीजे वाले बाबू जरा गाना बजादे...

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जब कुछ नही तो नाच गाना
आज का गुमराह युवा 
डीजे वाले बाबू जरा गाना बजादे...
*डीजे:अंधकार की तरफ बढ़ता आदिवासी युवाओ का भविष्य*

 डीजे नाम सुनते ही  सबके जहन में कानो में गूंजती तेज आवाज का ध्यान आता है जिसपे युवा थिरकते है।

मनोरंजन नाच गान प्रत्येक मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रहा है ।
प्राचीन काल मे मानव चमड़े से बने वाद्य यंत्र के साथ नाचते थे एवं अपनी किसी खुशी का इज़हार करते थे साथ दुख या संकट की घड़ी में बुलावा भी इन यंत्रों से करते थे ।

आधुनिक काल मे धीरे धीरे नए अविष्कार हुए जिसमे सबसे वर्तमान में डीजे का प्रचलन बड़ा । बांसवाड़ा संभाग की बात करे तो यहाँ सात से 10 वर्ष पूर्व डीजे को लोग जानते भी नही थे परंतु इसके उलट अब तस्वीर कुछ और ही है।मुख्य विषय ये की सभी को अपनी खुशी जाहिर करने नाचने गाने का अधिकार है परन्तु वो अधिकार दुसरो या पड़ोसियो या आने वाली पीढ़ी के भविष्य के दांव पर नही हो सकता है।
  मानव शरीर 120 डेसिबल से अधिक की ध्वनि नही सुन सकते है ।

60 डेसिबल से अधिक ध्वनि मानव के लिए बहुत हानिकारक है ।
अनुसंधान से पता चलता है कि यदि कोई गर्भवती लगातार 4 घण्टे रोज 2 महीने 70 डेसिबल से ज्यादा ध्वनि सुनती है तो होने वाला बच्चा कमजोर श्रवण शक्ति का या बहरा पैदा होगा।
बूढे लोग लगातार यदि इस ध्वनि में रहते तो उनके कान के पर्दे फट सकते है और हार्ट अटेक की रिस्क बढ़ जाता है ।

स्कूल जाते बच्चे यदि हमेशा तेज डीजे की ध्वनि में रहते तो धीरे धीरे उनके श्रवण शक्ति, एकाग्रता और यादशक्ति काम होती जाती है। तनाव भी बढता है जो अभी हमे क्षेत्र में युवाओं में बढ़ती आत्महत्या के रूप में देखने मिल राह है।

गावो में लोग दीवाली से लेकर बरसात तक डीजे बजाते है तो आप कल्पना करो कि गांव में पढ़ने वाले बच्चे केसे पढ़े।

मुझे लगता है शायद उनके लिए इन हालातों में पढ़ना मुश्किल है उसका परिणाम आप देख ही रहे गांव में पढ़ ने वाले बच्चे उतना अच्छा प्रदर्शन नही पा रहे है।

बडी बडी परीक्षाओ एवं नौकरी में भी लगातार ये बच्चे अभिजात्य वर्ग से पीछे छूट ते जा रहे है।

समय रहते नही ध्यान नही दिया जिम्मेदारों ने एक बहुत बड़ा वर्ग आर्थिक असमानता का शिकार होगा।

डीजे का नियमतिकरण अतिआवश्यक हो गया है
बजाने का समय और तीव्रता को कम करना होगा। परीक्षाओ के दिनों में बिल्कुल बंद करना होगा।
सरकारी नियम बहुत है परंतु आमजन इसके दुष्प्रभाव के बारे में जागरूक होंगे तभी ये सम्भव हो पायेगा।  वर्तमान और आने वाले पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित होगा साथ ही हमे प्राचीन वाद्य यंत्रों का बढ़ावा देना होगा।

जय मूलनिवासी
जय जोहार

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