#फातिमा_शेख प्रथम मुस्लिम शिक्षिका राष्ट्रमाता के जयंती के अवसर पर उन्हे विनम्र अभिवादन

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पहली महिला शिक्षिका फातिमा शेख की जयंती पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं मंगलकामनाएं।
#फातिमा_शेख
21-9-1832----9-10-1900
प्रथम मुस्लिम शिक्षिका राष्ट्रमाता के जयंती के अवसर पर उन्हे विनम्र अभिवादन 

भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक फातिमा शेख का आज जन्मदिन है. फातिमा शेख ने लड़कियों खासकर अनुसूचित जाति, ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को शिक्षित करने में सन्‌ 1850 के दौर में अहम योगदान दिया था. हालांकि आज फातिमा शेख के कार्यों के बारे में बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस बात से सभी वाकिफ हैं कि फातिमा शेख ने अनुसूचित जाति की महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास करने वाली सावित्री बाई फुले और महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ काम किया था और उन्हें भरपूर सहयोग दिया था.  पहली बार व्यावहारिक नज़रिये से सभी संप्रदायों की महिलाओं को शिक्षा के ज़रिये ताकत देने की शुरुआत कराने वाली इन दो महिलाओं की चिर ऋणी हैं हम सभी पढी लिखी भारतीय महिलायें, कोटी कोटी नमन।🌺  
जिस वक्त सावित्री बाई फुले ने अनुसूचित जाति,ओबीसी के उत्थान के लिए लड़कियों को शिक्षित करने का काम शुरू किया था, उन्हें घर से निकाल दिया गया था, उस वक्त फुले दंपती को फातिमा शेख ने अपने घर में जगह दी थी. सावित्री फुले ने जब स्कूल खोला उस वक्त बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं मिल रहे थे, लेकिन फातिमा शेख ने उनकी मदद की और स्कूल में लड़कियों को पढ़ाया. उनके प्रयासों से ही मुस्लिम लड़कियां स्कूल जाने लगीं. फातिमा शेख को अनुसूचित जाति–ओबीसी—मुस्लिम एकता के सूत्रधारों में से एक माना जाता है.
जिन्होंने क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों में 175 वर्ष पहले शिक्षा की मशाल जलाई🔥
फ़ातिमा शेख़ मियां उस्मान शेख की बहन थी, जिनके घर में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था जब फुले के पिता ने अनुसूचित जाति,ओबीसी के लोगो और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था। वह  आधुनिक भारत में सभ से पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक थी और उसने फुले स्कूल में अनुसूचित जाति,ओबीसी के बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख के साथ, अनुसूचित जाति,ओबीसी समुदायों में शिक्षा फैलाने का आरोप लगाया।

फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया, स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें धमकी दी गई। उनके परिवारों को भी निशाना बनाया गया था और उन्हें अपनी सभी गतिविधियों को रोकना या अपने घर छोड़ने का विकल्प दिया गया था उन्होंने स्पष्ट रूप से बाद का चयन किया।

जब फूले दम्पत्ती को उनकी जाति और न ही उनके परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने उन्हें उनके इस काम में साथ नहीं दिया। आस-पास के सभी लोगों द्वारा त्याग दिया गया, जोड़ी ने आश्रय की तलाश में रहने और समाज के उत्पीड़न के लिए अपने शैक्षिक सपने को पूरा करने के लिए। अपनी खोज के दौरान, वे एक मुस्लिम आदमी उस्मान शेख में आए, जो पुणे के गंज पेठ में रह रहे थे (तब पुना के नाम से जाना जाता था)। उस्मान शेख ने फुले के जोड़ी को अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में, उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था।

यह कोई आश्चर्य नहीं था कि पूना की ऊंची जाति से लगभग सभी लोग फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ थे, और सामाजिक अपमान के कारण उन्हें रोकने की भी कोशिश थी। यह फातिमा शेख था जिसने हर संभव तरीके से दृढ़ता से समर्थन किया और सावित्रीबाई के समर्थन का समर्थन किया।

फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया। सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई के साथ थे, जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और नेता बन गए थे। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे। उस अवधि के अभिलेखागारों के अनुसार, यह उस्मान शेख था जिन्होंने अपनी बहन फातिमा को समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

जब फातिमा और सावित्रीबाई ने ज्योतिबा द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरू कर दिया, तो पुणे से लोग स्वयं को परेशान करते थे और उन्हें दुरुपयोग करते थे। वे पत्थर फेकते थे और कभी-कभी गाय का गोबर उन पर फेंका गया था क्योंकि यह अकल्पनीय था।

आज से लगभग 175 सालों तक भी शिक्षा बहुसंख्य लोगों तक नहीं पहुंच पाई थी जब विश्व आधुनिक शिक्षा में काफी आगे निकल चुका था लेकिन भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे लडकियों की शिक्षा का तो पूछो मत क्या हाल था ज्योतिराव फुले पूना (अब पुणे) में 1827 में पैदा हुए उन्होंने बहुजनों की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था उन्हें पता था कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी ही है इसी लिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना ही चाहिए विशेषतः वे लड़कियों के शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया उन्होंने सबसे पहले अपनी संगिनी सावित्रीबाई को शिक्षित किया ज्योतिराव अपनी संगिनी को शिक्षित बनाकर अपने कार्य को और भी आगे ले जाने की तैयारियों में जुट गए यह बात उस समय के सनातनियों को बिलकुल भी पसंद नहीं आई उनका चारों ओर से विरोध होने लगा ज्योतिराव फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे ज्योतिराव नहीं माने तो उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया गया अंततः पिता को भी प्रस्थापित व्यवस्था के सामने विवश होना पड़ा मज़बूरी में ज्योतिराव फुले को अपना घर छोड़ना पडा उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे उन्होंने ज्योतिराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया यहीं ज्योतिराव फुले ने-1848 में अपना पहला स्कूल शुरू किया उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे उनकी एक बहन फातिमा थीं  जिसे वे बहुत चाहते थे उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रुचि निर्माण की सावित्रीबाई के साथ वह भी लिखना-पढ़ना सीखने लगीं बाद में उन्होंने शैक्षिक सनद प्राप्त की क्रांतिसूर्य ज्योतिराव फुले ने लड़कियों के लिए कई स्कूल कायम किए सावित्रीबाई और फातिमा ने वहां पढ़ाना शुरू किया वो जब भी रास्ते से गुजरतीं तो लोग उनकी हंसी उड़ाते और उन्हें पत्थर मारते दोनों इस ज्यादती को सहन करती रहीं लेकिन उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया फातिमा शेख के जमाने में लड़कियों की शिक्षा में असंख्य रुकावटें थीं ऐसे जमाने में उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त की दूसरों को लिखना-पढ़ना सिखाया वे शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं जिनके पास शिक्षा की सनद थी फातिमा शेख ने लड़कियों की शिक्षा के लिए जो सेवाएं दीं उसे भुलाया नहीं जा सकता घर-घर जाना लोगों को शिक्षा की आवश्यकता समझाना लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों की खुशामद करना फातिमा शेख की आदत बन गई थी आखिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी लोगों के विचारों में परिवर्तन आया वे अपनी घरों की लड़कियों को स्कूल भेजने लगे लड़कियों में भी शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण होने लगी स्कूल में उनकी संख्या बढती गयी मुस्लिम लड़कियां भी खुशी-खुशी स्कूल जाने लगीं विपरीत परिस्थितियों में प्रस्थापित व्यवस्था के विरोध में जाकर शिक्षा के महान कार्य में ज्योतिराव एवं सावित्रीबाई फुले को मौलिकता के साथ सहयोग देने वाली एक वीर मानवतावादी शिक्षिका फातिमा शेख को दिल से सलाम,,
#माता_फातिमा_शेख
जय मूलनिवासी 

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