#स्पर्श....जिन हाथों से वो किसी परायी औरत को छूता है फिर क्यूँ उन्ही हाथों से अपनी पत्नी को छूता है अगर एक पुरुष के छूने से एक औरत अपवित्र होती है तो उस औरत को छूकर पुरूष कैसे पवित्र रह जाता है।

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#स्पर्श....
पुरूष का प्यार तब तक प्यार है, जब तक वो स्त्री को स्पर्श ना करले
जबतक वो स्त्री स्पर्श को छू नहीं पाता उसके लिए वो सबकुछ होती है
और जैसे ही स्त्री उसपर भरोसा करती है अपनी दुनिया समझने लगती है और सौप देती है 
सब कुछ 
अचानक से वो उसे घिनौनी लगती है ,चरित्र हीन लगने लगती है ,
क्यों
उस स्त्री ने तो उसे भगवान माना है अच्छा बुरा कुछ सोचा ही नहीं
लेकिन पुरूष तो प्यार करता ही नहीं था वो तो सिर्फ और सिर्फ उसके शरीर को पाना चाहता था 
उसके जज्बात उसका प्यार या उसका सम्मान उसके लिए सब एक दिखावा है 
वो बस यही तक आना चाहता है औरत के साथ 
अगर पुरूष इतना पवित्र है तो  क्यूँ वो हर औरत को वासना की नजर से देखता है 
क्यू छूना चाहता है हर औरत को
और जिन हाथों से वो किसी परायी औरत को छूता है फिर क्यूँ उन्ही हाथों से अपनी पत्नी को छूता है 
अगर एक पुरुष के छूने से एक औरत अपवित्र होती है तो उस औरत को छूकर पुरूष कैसे पवित्र रह जाता है
उन्हीअपवित्र हाथों के छूने से उसकी बीवी उसकी बेटी कैसे पवित्र रह सकती हैं 
जो खेल वो घर से बाहर हर दूसरी औरतों के साथ खेलना चाहते हैं 
अगर वही खेल उनकी अपनी बीवी या बेटी के साथ कोई खेल रहा हो तो
क्या वो उनको अपना पायेगा या फिर अपने आप को माफ कर पायेगा ??
👉 जय मूलनिवासी 🙏

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