ऊपर इंगित किये गये विशिष्ट दृष्टान्तों के अलावा हमें यह भी देख लेना चाहिए कि आमतौर पर स्त्रियों के प्रति भगवान् बुद्ध का दृष्टिकोण क्या था ? कहीं ऐसा तो नहीं था कि कुछ विशेष महिलाओं के प्रति ही उन्होंने उदारता दिखाई हो तथा अन्य सामान्य स्त्रियों को वे हेय दृष्टि से देखते रहे हों। इस कसौटी पर भी हमें विश्वास है कि बौद्ध साहित्य में स्त्रियों के सम्बन्ध में व्यक्त किये गये भगवान् बुद्ध के विचारों को पढ़ने के बाद प्रत्येक व्यक्ति इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि किसी भी प्रकार से स्त्रियों को निम्न कोटि का समझने के बजाय, उन्होंने सदा ही स्त्रियों को सम्मान प्रदान करने तथा उनकी स्थिति को उन्नत बनाने का प्रयत्न किया। इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण देना आवश्यक प्रतीत होता है।
भारत में सामान्य रूप से कन्या का जन्म पुरातन काल से दुर्भाग्य-सूचक (दुखद) माना जाता रहा है। परन्तु क्या तथागत भी इसी विचार के थे ? कन्या-जन्म के प्रसंग में महाराज प्रसेनजित को दिये गये उपदेश से हमें उनके क्रान्तिकारी विचारों का पता लगता है। श्रावस्ती में एक बार जब महाराज प्रसेनजित तथागत के पास जेतवन विहार में उपस्थित थे, तो उसी समय रनिवास से एक दूत ने आकर समाचार दिया कि महारानी मल्लिका ने एक कन्या को जन्म दिया है। इस समाचार को सुनकर प्रसेनजित उदास हो गये और उनके चेहरे का रंग उतर गया। तथागत ने महाराजा के चेहरे के इस रंग परिवर्तन को देखकर उनसे उदासी का कारण पूछा। प्रसेनजित द्वारा अपनी उदासी का कारण बताने पर भगवान् ने उन्हें सम्बोधित करके कहा'।
"इसमें उदास होने की क्या बात है, राजन् । कन्या एक पुत्र से भी बढ़कर सन्तान सिद्ध हो सकती है। क्योंकि वह भी बड़ी होकर बुद्धिमान् तथा शीलवान् बन सकती है तथा वह ऐसे पुत्र को जन्म दे सकती है, जो महान् कार्य करने वाला तथा विशाल साम्राज्य का स्वामी बन सकता है।......"
भिक्खुओं द्वारा एक बार यह प्रश्न करने पर कि कुछ परिवारों के उन्नति कर जाने तथा कुछ के विनष्ट हो जाने का क्या कारण होता है, भगवान् बुद्ध ने निम्न उत्तर दिया था-
"भिक्खुओ ! जो भी परिवार समृद्ध होकर फिर शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। उसके इन चार में से कोई एक या अधिक कारण होते हैं। अर्थात वे अपनी क्षति-पूर्ति की चिन्ता नहीं करते, टूट-फूट की मरम्मत नहीं करते, खान-पान में उच्छृंखलता बरतते हैं और चरित्रहीन स्त्री या पुरुष के इशारे पर चलते हैं।"2
'और भिक्खुओ ! जो परिवार समृद्ध होकर उन्नति करते रहते हैं, उनके भी इन चार में से कोई एक या अधिक कारण होते हैं.
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1. अंगुत्तर निकाय।
2. अंगुतर निकाय।
अर्थात् वे अपनी क्षति-पूर्ति करते रहते हैं। टूट-फूट की मरम्मत कर लेते हैं, खान-पान में संयम बरतते हैं और अपना नेतृत्व गुणी व सदाचारी स्त्री-पुरुष के हाथ में सौपते हैं।""
संसार में किसी चक्रवर्ती सम्राट के उद्भव के समय की स्थिति का वर्णन करते हुए, भगवान् बुद्ध भिक्खुओं से कहते हैं।2
"जब कभी किसी चक्रवर्ती सम्राट का उद्भव होता है, तो सप्त-सम्पदाएं भी आती हैं। ये सप्त-सम्पदाएं रथ, हाथी, घोड़े, रत्न, महिलाएं, गृहपति तथा उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त होती हैं।"
एक दूसरे अवसर पर संसार में स्त्री के महत्व के विषय में भगवान् ने कहा था-
"स्त्री संसार की महानतम् विभूति है। क्योंकि उसकी अपरिहार्य महत्ता है। उसके द्वारा ही बोधिसत्व तथा विश्व के अन्य शासक जन्म ग्रहण करते हैं।"
जो महापुरुष कन्या के जन्म को दुख के बजाय हर्ष का अवसर मानता हो, जो यह मानता हो कि वही परिवार उन्नति करते हैं, जो स्त्रियों के हाथों में अपना नेतृत्व सौंप देते हैं, जो स्त्रियों की सप्त सम्पदाओं में गणना करता हो, और स्त्रियों की अपरिहार्य महत्ता स्वीकार करता हो, उसे नारी जाति का द्वेषी तथा हीनभाव से देखने वाला किस प्रकार कहा जा सकता है ? ऊपर दिये गये उद्धरण भगवान् के स्त्रियों के प्रति उनके अपने विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। क्या यह विचार स्त्रियों के प्रति किसी असम्मान या घृणा के सूचक हैं ?