जैसे ही हमारे लोग हिन्दू बने कि वे मुसलमान का घर जलाते हैं, दूसरा कोई जलाता ही नहीं। अगर कोई High Court में मुझसे Affidivate पर लिखवाना चाहता है तो मैं लिखने के लिए तैयार हूँ। गुजरात में इसके साक्ष्य (Evidences) हैं और सारे देश में इसके साक्ष्य (Evidences) मिलेंगे। इसलिए यह पहचान (Identity) मिटाने का मामला साधारण मामला नहीं है। इसलिए ये जो पहचान (Idenitiy) मिटाने का मामला है और गुलाम बनाने का षड्यंत्र है इसे विफल करने के लिए ये विषय रखा गया है। यह बहुत महत्वपूर्ण मामला है। बहुत बार हम चर्चा करते रहते हैं। मैं इसलिए बार-बार इसके पीछे क्या मकसद है यह बताता रहता हूँ। बामसेफ कोई भी कार्य बिना मकसद के नहीं करती। हर सोच के पीछे एक निश्चित मकसद है तो यहाँ मूलनिवासी (वनवासियों) को वनवासी कहा जाता है। जब झारखण्ड बना तो वीजेपी के लोग झारखण्ड शब्द मानने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने झारखण्ड का नाम वनांचल दिया था। जो आदिवासियों को वनवासी कहते हैं, देखिये हमारे लोगों को ठीक से भाषा बोलनी नहीं आती। भाषा भी एक हथियार है। आपको कहेंगे राष्ट्रभक्ति के नाम पर कहेंगे कि बच्चों को हिन्दी में पढ़ाओ और अपने बच्चों को अंग्रेजी में पढ़ाएंगे। तो भाषाशास्त्र की बात तो दूर की है ये आदिवासी औन वनवासी शब्द का विश्लेषण करते हैं। आदिवासी का अर्थ है प्राचीन समय से रहने वाला। मैं कोई भाषा शास्त्र का विद्यार्थी नहीं हूँ। मैं धक्के खा-खाकर सिखा हूँ। मैंने किसी शास्त्री से नहीं पढ़ा। आदिवासी शब्द से ध्वनि निकलती हैं। जैसे हमारे यहाँ उत्तर प्रदेश या नागपुर में कहते हैं कि चाय पियेंगे और अगर बिहार में आप जाएंगे तो वहाँ कहते हैं कि चाय पिजीएगा। उच्चारण शब्द की ध्वनि हैं। तो उसी तरह से आदिवासी से भी ध्वनि निकलती है। यदि आदिवासी आरंभ से रहता चला आ रहा है तो वह कौन है जो प्रारंभ से यहाँ नहीं रह रहा। भाषा शास्त्रों को इस बात से खतरा लगा। जो लोग ये Claim करते हैं कि हम यहाँ के रहने - वाले हैं। जब वे आदिवासी को वनवासी कहते हैं।
तो सबूत देते हैं कि वे खुद आदिवासी नहीं हैं, वे विदेशी हैं। वे स्वयं जानते हैं कि हम यहाँ के रहने वाले नहीं हैं और वे इसी बात की डर से वे आदिवासी को वनवासी कहते हैं। वनवासी का अर्थ हुआ जगंल में रहने वाला जगंली। जगंली एक किस्म की गाली है। जब से हमने यह विश्लेषण करना शुरु कर दिया ऐसा कहने वालों लोगों को लगा कि ये तो मामला उलटा पड़ गया तो उन्होंने वनवासी कहने की अपेक्षा वनबन्धु कहना शुरु कर दिया। बहुत चालाक लोग हैं। वनबन्धु का अर्थ है वन-बंधु, ये बराबर नहीं बन रहा। जगंल को बन्धु नहीं कह सकते। जंगल-बंध गु के मामले का अगर विशलेषण करे तो उनको घूमा फिरा करके क्योंकि जो फँसे हुए लोग हैं वे निकलने के प्रयास में प्रयोग करते हैं और दूसरी जगह फँस जाते हैं। केवल जानकार लोग होने चाहिए। ये समझना साथियों बहुत जरुरी है। वनबन्ध 1, वनवासी के शब्द से उनके सामने सकंट है और वे सकंट से निकलने का प्रयास कर रहे हैं और यही प्रयास उनके लिए नए सकंट का दरवाजा है। हमने फैजाबाद में, फैजाबाद का ही नाम साकेत है जहाँ ब्रहद्रथ की हत्या पुष्यमित्र शुंग ने की। पुष्यमित्र शुंग ही राम है। वह पाटलिपुत्र से राजध् गानी उठाकर साकेत ले गया और वहाँ नाम रखा अयोध्या। वहीं तुलसी दास ने रामचरित्र मानस लिखी उसमें एक चौपाई है "ढोल, गवाँर, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी" जिसका अर्थ है ढोल, अनपढ़, शूद्र, पशु और स्त्री पीटने के लायक हैं। तुलसी दास ने इन सभी को पीटने के लिए कहा और हमने इसे विषय बनाया अयोध या के पास, मैंने कहा इधर-उधर कहाँ उधर ही चलकर कर बनायाऔर फिर हमने इतना विश्लेषण किया और ये मामला चर्चा में आया। तो बताने लगे कि ताड़न का अर्थ रक्षण करना। तो एक आदमी मेरे पास इलाहाबाद में आया और कहने लगा कि मैं विश्व हिन्दू परिषद् की बैठक में गया तो मैंने पूछा कि हम हिन्दू कैसे बने रह सकते हैं जब इसमें पिटाई का आदेश दिया है तो उन्होंने कहा कि भाई इसका अर्थ ताड़ना नहीं रक्षण करना है। तो वह उसका जबाव नहीं दे सका और वह मेरे पास आया। तो मैंने उसको बताया कि हमने माना कि पशु, शूद्र, गवाँर, नारी की रक्षा करना है लेकिन ढोल की रक्षा करने को कहा और क्यों कहा। बचने के लिए रास्ता निकाला और फँस गये। तुलसी दास जी को पता था कि लोग ऐसा अर्थ निकाल सकते हैं। क्योंकि इसका अर्थ ऐसा नहीं निकालना चाहिए। इसलिए उन्होंने ढोल शब्द जोड़ा क्योंकि ढोल तभी आवाज करता है जब उसे पिटा जाता है। अब हमको भी थोड़ा समझ में आ रहा है। वे कहते हैं कि ब्रह्म ही सत्य है। ब्रह्म चाहे सत्य हो या नहीं हो लेकिन ब्राह्मण सत्य जरुर है। तो मैंने सोचा कि जो लोग ब्राह्मण सत्य जरुर है। तो मैंने सोचा कि जो लोग ब्राह्मण को सत्य मानते हैं वे ऐसा बताने में संकोच करते होंगे तो वे कहते हैं कि ब्रह्म ही सत्य है। साथियों ये जानने का विषय है ये जो आदिवासी के साथ हो रहा है। ये बचने के जो रास्ता निकाल रहे हैं ये और ज्यादा उलझता जा रहा है। मैंने आपको काग्रेस की 55 सालों की धोखेबाजी आदिवासियों के साथ हुई, वह बताया। आदिवासी को वनवासी कहते थे वे वास्तव में कांग्रेसी नहीं है और ये बदमाशी करने वाले लोग हैं जो आदिवासियों को वनवासी कहते हैं। दोनों शासक जाति के लोग हैं और दोनों का बदमाशी करने का तरीका भिन्न है। इसलिए इन लोगों के बारे में अपने लोगों को सतर्क करना बहुत जरुरी है। हम 2 हजार साल, 4000 वर्ष पूर्व जाते है लेकिन ये मसला, समस्या आज के समय की हैं। इसके बारे में हम चुप है। इस लड़ाई को अगर हम आज जीत लेते हैं तो हम अपने भूतकाल को सुधार सकते हैं। इसलिए यह जो मामला है इतना साधारण नहीं है जितना कि आप लोग समझते हैं। जो लोग इस तरह के शब्दों का प्रयोग करते है वे लोग वास्तव में आदिवासियों को गाली देते हैं। अगर वे आदिवासी को गाली-गलौच करते हैं तो इसकी जानकारी आदिवासियों के बीच जा कर करनी होगी। साथियों एक ओर समस्या है कि जैसे-जैसे लोगों को इसकी जानकारी हो रही है, ब्राह्मणवादियों को लग रहा है कि उनके आंदोलन को खतरा पैदा हो रहा है। उन्होंने मूर्ख बनाने का दूसरा तरीका निकाला कि सेवा करेंगे। जगंल में जाकर मेडिकल खोलेंगे, एकल शिक्षा की स्कूल खोलेंगे, ज्ञान देंगे। वह अलग बात है कि वे क्या पढ़ाएंगे। जो दिमागी रुप से गुलाम बनाने के पाठ पढ़ाएगे। वह क ख ग घ तो समझेंगे मगर उसके अन्दर जो आशय व अर्थ है वे इसका प्रयोग उसके दिमाग को गुलाम बनाने के लिए प्रयोग व उपयोग होगा। इसका नाम उन्होंने दिया कि सेवा कर रहे हैं और अभी अखबार में छप कर आया कि आदिवासियों ने भी मोदी को बड़े पैमाने पर वोट दिया। तो इसलिए दिया कि उन्होंने इनकी सेवा की। अगर सेवा करवा के वोट दिया है तो यह वोट आने वाले समय में कितना भयंकर हो सकता है यह हमारे लोगों को समझना होगा। गुजरात में प्रचार किया गया मुसलमानों के कत्लेआम करने का। यह मुसलामानों के कत्लेआम का जितना ज्यादा प्रसार होगा, उतना ज्यादा दुश्मनों को फायदा होगा और इसलिए मैं कहता हूँ यहं गुजरात का मामला कत्लेआम का मामला नहीं है। यह अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी के इस्तेमाल का मामला है। यह मुसलमानों का इशु नहीं है। अगर अनुसूचित जाति/जनजाति, ओबीसी के लोग मुसलमानों का कत्लेआम करने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो मुसलमानों का कत्लेआम संभव नहीं है, इसलिए मुसलमान पर परिणाम हो रहा है। कारण मुसलमान नहीं है कारण अनुसूचित जाति/जनजाति और ओबीसी के अंदर है। कारण उधर नहीं है, कारण इधर है। मामला अनुसूचित जाति/जनजाति/ओबीसी के इस्तेमाल होता है वे सबसे ज्यादा भयानक शिकार होते हैं। जो कट जाता है, मर जाता है, उसका दुःख तो खत्म हो गया। पर जो जिन्दा रह गया उसकी एक भी समस्या का समाधान नहीं होने वाला। उसको और उसके परिवार को सामूहिक आत्महत्या करनी पड़ेगी। अहमदाबाद में जाओ हर महीने कोई न कोई अनुसूचित जाति/ जनजाति/ ओबीसी के परिवार के लोगों को सामुहिक आत्महत्या करते देखोगे, सुनोगे। हमारे बामसेफ के जे॰डी॰चन्द्रपाल अहमदाबाद में हैं, एन॰के॰ परमार जी भी हैं वे आपको बतायेंगे। लगभग हर महीने ऐसा होता है लोग सामूहिक आत्महत्या कर रहे हैं। यह तो एक उदाहरण मैं आप को बता रहा हूँ यह अब सारे देश में होने वाला है। जनसंख्या कम होने वाली है। यह बहुत बढ़िया तरीका अटल जी ने खोजा है जनसंख्या कम करने का। बहुत आसान है, जब खाने को अनाज ही नहीं मिलेगा तो पता नहीं लोग बचेंगे कैसे। अटलजी ने शत्रुघन सिन्हा को बोल के रखा है कि भाई जनसंख्या कम करने के बारे में सोचो मत मैंने सोच के रखा है। जब 20-25 लोग भुखमरी से मर जायेंगे तो इतनी तेजी से घट जायेगा कि बोलो मत। तो इस प्रकार से हर संभव प्रबंध हो रहा है कि आप लोगों को गुलामी ढ़ोने के लिए मजबूर किया जाये। इन बातों पर आप सोचेंगे और अमल करेंगे
इस उम्मीद के साथ धन्यवाद। जय मूलनिवासी