भारत में अभी सुलझे हुए और उलझे हुए लोगो के बीच में आपस में झगड़ा लगाने का कार्यक्रम चला रहे है.

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*जातिगत गैरबराबरी की दीवारों को तोड़ने के लिए फूले-अम्बेडकरी विचारधारा का उपयोग और प्रयोग करना होगा.*

 विषय के संदर्भ में विचार रखते हुए आपने कहा कि आज जिस विषय पर चर्चा कर रहे हैं वह अति पिछड़े वर्ग की राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूची न बनाई जाना अति पिछड़े वर्ग की बहुत बड़ी राष्ट्रीय समस्या है। जो हमारी आज की राष्ट्रीय समस्या है। इसका मुख्य निर्माता कौन है? यह किसकी वजह से निर्माण हुई है? क्योंकि कोई भी आदमी अपने पतन के लिए नियम कानून नहीं बना सकता। इसलिए जब इस बात की छानबीन हम करते हैं और अध्ययन करते हैं तो हमें पता चलता है कि भारत के मूलनिवासी एक समृद्ध, सुखी जीवन यापन कर रहे थे तब विदेशी आर्य ब्राह्मणों ने यहाँ के मूलनिवासियों पर आक्रमण किया और आक्रमण करके उन्हें गुलाम बनाया। वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया। उस वक्त यहाँ के मूलनिवासियों को शूद्र घोषित किया गया। उस वक्त शूद्र एक वर्ण था। जिस वजह से बुद्धा ने विदेशी आर्य ब्राह्मणों के वैदिक व्यवस्था के विरोध में विद्रोह करके मूलनिवासी बहुजन समाज को जागृत किया और सर्वप्रथम इस देश में क्रांति का बिगुल बजाया। जिसे बुद्धा कि सामाजिक क्रांति के नाम से जाना जाता है। इसी सामाजिक क्रांति की वजह से बहुत से शूद्र राजाओं का उदय हुआ। जिसमें मुख्यतः चन्द्रगुप्त मौर्य थे। अशोक की राज्य क्रांति इसी सामाजिक क्रांति की देन है। इसके पश्चात विदेशी आर्य - ब्राह्मणों ने घुस पैठ करके बुद्धा की क्रांति को प्रतिक्रांति में तबदील किया और उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अगर शूद्रों का एक ही वर्ण रहता है तो ये संगठित रहेंगे और ये संगठित रहे तो उनका राजनीति, समाजनीति पर एकाधिकार बना रहेगा। इसलिए उन्होंने बाद में वर्ण व्यवस्था में परिवर्तन करके जाति व्यवस्था का निर्माण किया। जब आर्य ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया तब भी यह षड्यंत्र था। जब यह परिवर्तन हुआ तब ब्राह्मणों ने बहुत बड़ी चालाकी की कि वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण जो वर्ण था वह जैसे के वैसा जाति व्यवस्था में ब्राह्मण जाति के नाम पर बना रहा लेकिन वर्ण व्यवस्था में जो शूद्र वर्ण था उसको विभाजित कर हजारों जातियों में बाँट दिया गया। ताकि ये लोग दुबारा इकट्ठा न हो सके।

 आज उसी हजारों जातियों को, शूद्र-अतिशूद्रों को हिन्दू का नाम देकर ब्राह्मवादी लोग इकट्ठा करना चाहते हैं। हिन्दू का नाम देकर हमें झाँसे में लाना चाहते हैं। हिन्दू ऐसी कोई एक चीज नहीं है जिसे लोगों के सामने दिखाई जा सके। जिस तरह संतरे का ऊपर का छिलका होता है वह किसी काम का नहीं होता बल्कि अंदर की फाँके होती हैं उनका महत्व होता है। यही असली पहचान है। उन फाँकों को मिलाकर ही उसे संतरा नाम दिया। ब्राह्मणवाद को खत्म करने के लिए इसकी पहचान होनी जरुरी है।

ब्राह्मणवादी लोग हिन्दू का झाँसा देकर मूलनिवासी बहुजन समाज को मूर्ख बनाते हैं। अगर इस ब्राह्मणवाद को जड़ से खत्म करना है तो विभिन्न जगहों पर, विभिन्न समूहों में जो एस०सी०/एस०टी०/ओ०बी०सी० और एम० बी०सी० में लोग बिखरे हुए हैं उन्हें मूलनिवासियों के नाम पर इकट्ठा करना होगा। इसके लिए विभिन्न जातियों में ब्राह्मणवादियों ने जो शंकाओं की गलतफहमियों की, ऊँच-नीचता की जो दीवारें बनाई है उन दीवारों को गिराना होगा, तोड़ना होगा। यह कार्य फूले-अम्बेडकरी विचारों के हथौड़े से ही किया जा सकता है और जब तक हम यह कार्य नहीं करेंगे तब तक हम ब्राह्मणवाद के शिकार होते रहेंगे और हमारी समस्याएं बनी रहेगीं।

गुजरात के दंगों का विश्लेषण करते हुए आपने कहा कि यह बहुत बड़े पैमाने पर प्रचारित किया गया कि गुजरात का दंगा यह हिन्दू-मुसलमान का दंगा है। यह दो धर्मों का दंगा है। इस दंगे को धार्मिक मुखौटा पहनाया गया। अगर मान लिया जाए कि यह हिन्दू- मुसलमान धर्म का दंगा था तो ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) के ठेकेदार के तौर पर ब्राह्मण कहाँ था? जो रिपोर्ट सामने आयी है उसके तहत कोई भी ब्राह्मण दंगे में नहीं मारा गया जो भी मारे गये, काटे गये, जो इस्तेमाल होते गये ये सब या तो एस०सी० / एस०टी०/ ओ०बी०सी०/ एम०बी०सी०/ एन०टी०/ डी०एन०टी० (घुमंतू जातियाँ) थे और या फिर धर्म परिवर्तित मुसलमान (एस०सी० / एस०टी०/ ओ०बी०सी० एम०बी०सी० एन०टी०/ डी०एन०टी०) लोग थे। हमें आपस में ही भाई- भाई को मरवाया जाता है। धर्म परिवर्तित भाई को उसके ही धर्मपरिवर्तित नहीं हुए भाईयों से ही मरवाया जाता है। (उदाहरण, मोहम्मद सेवाराम को राम सेवा राम से मरवाया जाता है।) इससे हमको बचना होगा और हमारे समाज को बचाना होगा। आज जो अति पिछड़े वर्ग के लोग हैं वे अनुसूचित जाति के लोग नहीं हैं, वे अनुसूचित जनजाति के लोग नहीं हैं। जो इनके अलावा सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं वही लोग अति पिछड़ा वर्ग के लोग हैं। इन लोगों में आज भी हम ज्यादा विकास नहीं देखते। क्योंकि इन लोगों ने अपना मसीहा गाँधी को माना। अपना मसीहा शंकराचार्य को माना। इसलिए इनका विकास नहीं हो पाया। इस वजह से ये लोग रुढ़ि परम्परा में जकड़े गये और जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ गये। इससे इन्हें निकालना होगा। ब्राह्मणवादी लोग हमेशा यह षड्यंत्र करते रहते हैं कि डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के विचार से, राष्ट्रपिता जोतिराव फूले के विचार से सुलझे हुए लोग ब्राह्मणी व्यवस्था में उलझे हुए लोगों को बाहर निकालने का प्रयास कर सकते हैं। इसलिए वे लोग सुलझे हुए और उलझे हुए लोगों के बीच में आपस में झगड़ा लगाने का कार्यक्रम चलाते हैं और हमारे लोग झगड़ते रहते हैं। इस बात को भी हमें समझना होगा। इसका ताजा उदाहरण देते हुए आपने बताया कि आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जाति की दो प्रमुख जातियाँ हैं। एक माला और दूसरी मादिगा। माला जाति के लोग बाबा साहेब अम्बेडकर के आंदालेन से प्रेरित होकर जागृत हुए और मादिगा जाति के लोग गाँधीजी के भक्त बने रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि उनका अभी तक सामाजिक और शैक्षणिक विकास अवरुद्ध रहा। जब आज माला लोग उन्हें जागृत कर रहे हैं तब ये एक नहीं होने चाहिए इसके लिए चन्द्रबाबू ने अनुसूचित जाति के लोगों को दो भागों में बाँट दिया और माला और मादिगा को अलग किया। चन्द्रबाबू ने हक और अधिकार देने के लिए अलग नहीं किया बल्कि ये लोग इकट्ठा होकर व्यवस्था को चुनौती न दे। इसके लिए विभाजित किया।

बहुत से हमारे समाज के लोग वे कौन हैं? उसकी हैसियत क्या है? यह मालूम नहीं है। ओ०बी०सी० को वे ओ०बी०सी० हैं, यह पता नहीं है। एम०बी०सी० को वे एम०बी०सी० हैं, यह पता नहीं है। अनु० जनजाति के लोगों को यह पता नहीं है कि वे अनु० ज०जाति के हैं यह पता नहीं है। घुमंतू जातियों को वह घुमंतू जातियों के है, यह पता नहीं है। इस बात की जानकारी उस समाज तक पहुँचाना यह जानकार और जागृत लोगों की जिम्मेवारी ही नहीं बल्कि परम कर्तव्य है। ताकि हम आपस में भाई- चारा बनाकर एक मूलनिवासी समाज का निर्माण कर सकें। इसके लिए हमें ज्यादा से ज्यादा परिश्रम, त्याग और बलिदान की आवश्यकता होगी। जय मूलनिवासी

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