डी० के० खापर्डे और कांशीराम ने मुझे बहुत मदद की।मेरी इसी लड़ाई ने और बामसेफ का यह विशाल रुप धारण किया।बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा० दीना भाना जी
November 25, 2024
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बामसेफ, नइ दिल्ली
बामसेफ के संस्थापक सदस्य मा० दीना भाना जी ने अपने भाषण में कहा कि मैं अपने आपको बहुत गौरवशाली अर्थात् गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। आप सब लोगों को यहाँ इतने बड़े पैमाने पर प्रतिनिधि के रुप में शामिल हुए देखकर मैं बहुत गर्व महसूस कर रहा हूँ। जब हम सब साथियों ने यह आन्दोलन शुरु किया तब मैं खुद यह नहीं सोचता था कि हमारी उस वक्त की पहल आज इतने बड़े आन्दोलन का स्वरुप धारण करेगी।
विषय के संदर्भ में बताते हुए आपने कहा कि यह पूर्णसत्य है कि मूलनिवासियों को आजादी के 55 सालों में धोखेबाजी के सिवाय कुछ नहीं मिला। धोखेबाजी तो मिली ही मिली और खुले आम अत्याचार, अन्याय, पीड़ा और ठोकरों के सिवाय कुछ नहीं मिला है। इसमें वाल्मीकि जातियों के बारे में जब हम सोचते हैं तब इस बात का पता चलता है कि उन्हें तो कुछ मिला ही नहीं है। इसका मैं भी व्यक्तिगत तौर पर शिकार हूँ। मैं राजस्थान का भंगी हूँ। मैं वर्ष 1937 में दिल्ली में अपने भाई के पास चला आया। उसके बाद वर्ष 1946 को मैं महाराष्ट्र राज्य में पूना चला गया। पूना में मैं दो वर्ष मजदूरी करता रहा। वहाँ कुछ समय बाद एक सरकारी नौकरी मुझे मिली, तब मुझे दिन का पगार 10 आने मिलता था। सरकारी नौकरी में भरती होने के पहले अपने नाम के साथ
साथ पहले जाति का भी नाम लिखना पड़ता था तो उस वक्त मैंने अपना नाम और जाति भंगी लिखा। मेरी जाति लोगों को पता चली। वैसे तो मैं वहाँ पर लेबर के तौर पर काम पर लग गया था मगर ऑफिस के लोग मुझसे झाडू लगवाने का कार्य करवाते थे। इसका सबसे बड़ा कारण मेरा भंगी होना था। मैंने 12 सालों तक वहाँ झाडू मारने का काम किया। मैं भी उस वक्त मजबूर और मुसीबत का मारा था। मुझे यह सहन नहीं होता था। दिल्ली में पँचकुईयाँ नामक एक क्षेत्र है वहाँ मैनें सन् 1944 में बाबा साहेब अम्बेडकर का भाषण सुना था। बाबा साहेब अम्बेडकर हमारे लोगों को कहते थे कि ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई करो। बाबा साहेब की इन बातों से मैं बहुत प्रेरित होता था मगर मैं पढ़ नहीं सका। पूना में जाने के बाद मैंने अपनी कुछ पढ़ाई शुरु की। थोड़ी बहुत अंग्रेजी पढ़ा। उसी के बदौलत वर्ष 1967 में मुझे पूना में डिफेन्स में निरीक्षक (Inspector) के पद पर प्रमोशन मिल गया। इससे मेरी स्थिति सुधर गई थी।
अपने विभाग में मैं हमारे अपने के साथ काम करता था तब मैं अपने वर्करों का प्रतिनिधित्व करता था। उनकी परेशानियाँ सुनता था। मैं उस वक्त वर्कर्स यूनियन का अध्यक्ष भी था। सन् 1964 में हमारी एक मिटिंग में छुट्टियों का सवाल आया तब मैं भी मिटिंग में बैठा था। मेरा बॉस ब्राह्मण था। उसने मुझे मिटिंग में छुट्टियों के बारे में कुछ भी नहीं पूछा। सब लोगों ने दशहरा, दिवाली, होली, तिलक जयंती की छुट्टियाँ ले ली। जब छुट्टियों के इस प्रस्ताव को पारित करने के समय उस पर हस्ताक्षर करने के लिए रजिस्टर घूमने लगा तो मैंने उस पर हस्ताक्षर नहीं किया। मुझे कहा गया कि हस्ताक्षर करो मगर मैंने हस्ताक्षर नहीं किये तो उन्होंने मुझे पूछा कि हस्ताक्षर क्यों नहीं कर रहे मैंने जवाब दिया कि आप लोगों ने अपनी अपनी छुट्टियाँ तो ले ली मुझे कुछ भी न मिला है। तब उन्होंने कहा कि आप तो राजस्थान के हो आपको क्या चाहिए? मैंने कहा कि अब तो महाराष्ट्र का नागरिक हूँ। उन्होनें साथ बहस करते हुए पूछा कि कहो तुम्हें क्यों चाहिए? मैंने कहा मुझे अपने महापुरुष बाबा साहेब अम्बेडकर के जन्मदिन की अथ जयंती की छुट्टी चाहिए, बाबा साहेब अनुयायी बौद्ध हो गये इसलिए इनको बुद्ध जयती की छुट्टी चाहिए और शिवाजी महाराज जो मर के बहुत बड़े राजा हुए उनकी जयंती की छुट्टी चाहिए। इसी तरह से क्रिश्चन भाईयों और मुसलमान भाईयों को भी उनके त्योहार की छुट्टी दी जाए। इस पर मिटिंग में हमारे ब ने कहा कि सारी छुट्टियाँ तो आप ही ले गये हम क्या करेंगे? मैंने कहा वह हम नहीं जान हमें हमारी छुट्टियाँ चाहिए तभी मैं इस रजिस में हस्ताक्षर करूँगा। मेरे हस्ताक्षर न करने की वजह से उनके सामने बहुत बड़ी समस्या ख हो गयी। फिर उन्होंने मुझे दबाव में लेना का शुरू किया। उन्होंने मुझे कहा कि तुम ज्यादा मत बोलो, तुम्हें तो बोलने का अधिकार भी नहीं क्या तुम कानून जानते हो? मैंने उनको उल्टा जवाब दिया कि बोलने का अधिकार मनुस्मृति के जमाने में नहीं था। आज हमें बाबा साहेब अम्बेडकर ने संविधान के माध्यम बोलने का अधिकार दिया है। उसने बाबा साहेब अम्बेडकर को गाली देना शुरु किया। मुझे कहा कि "Your Ambedkar was great raskal' उसके ऐसा कहने पर हम दोनों में झगड़ा गया। मुझे मिटिंग से निकाल दिया गया। मैं वर्किंग कमिटी से भी निकाल दिया गया और मुझे चार्जशीट भी दी गई। बाद में मुझे सस्पेड भी किया गया। उस वक्त डिपार्टमेंट से मेरी लड़ाई हुई उसमें डी० के० खापर्डे और कांशीराम ने मुझे बहुत मदद की।मेरी इसी लड़ाई ने और बामसेफ का यह विशाल रुप धारण किया।
जय मूलनिवासी
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BAMCEF, New Delhi
BAMCEF founder member Hon. Dina Bhana Ji said in his speech that I am feeling very proud. I am feeling very proud to see all of you participating here as representatives on such a large scale. When all of us started this movement, I myself did not think that our initiative at that time would take the form of such a big movement today.
While explaining the topic, he said that it is absolutely true that the natives have got nothing except deception in the 55 years of independence. They have got deception and nothing except open atrocities, injustice, pain and setbacks. When we think about the Valmiki castes in this, then it comes to light that they have got nothing at all. I am also a victim of this personally. I am a sweeper from Rajasthan. I came to Delhi to my brother in the year 1937. After that in the year 1946, I went to Pune in the state of Maharashtra. I worked as a labourer in Poona for two years. After some time I got a government job there, at that time I was paid 10 annas a day. Before joining a government job, along with your name, you had to write your caste too, so at that time I wrote my name and caste as Bhangi. People came to know about my caste. Although I had started working there as a labourer, but the office people used to make me sweep the floor. The biggest reason for this was that I was a Bhangi. I worked there sweeping for 12 years. I was also helpless and in trouble at that time. I could not bear this. There is an area called Panchkuiyan in Delhi, there I heard the speech of Baba Saheb Ambedkar in 1944. Baba Saheb Ambedkar used to tell our people to study as much as possible. I was very inspired by these words of Baba Saheb, but I could not study. After going to Poona, I started some studies. I studied a little English. Due to that, in 1967, I got promoted to the post of Inspector in Defence in Pune. This improved my situation.
I used to work with our own people in my department and I used to represent my workers. I used to listen to their problems. I was also the President of the Workers Union at that time. In 1964, the question of leaves came up in one of our meetings. I was also sitting in the meeting. My boss was a Brahmin. He did not ask me anything about leaves in the meeting. Everyone took leaves for Dussehra, Diwali, Holi, Tilak Jayanti. When the register was brought around for signatures on the proposal for leaves to be passed, I did not sign it. I was told to sign but I did not sign. Then he asked me why I was not signing. I replied that you people have taken your leaves but I did not get anything. Then he said that you are from Rajasthan, what do you want? I said that now I am a citizen of Maharashtra. He argued with me and asked me why do you want it? I said I want a holiday on the birthday or birth anniversary of our great man Baba Saheb Ambedkar. Baba Saheb's followers became Buddhists, so they want a holiday on Buddha Jayanti and Shivaji Maharaj, who died and became a great king, wants a holiday on his birth anniversary. Similarly, Christian and Muslim brothers should also be given holidays on their festivals. On this, in the meeting, my friend said that you have taken all the holidays, what will we do? I said that I don't know that, I want our holidays, only then will I sign this register. Due to my not signing, a big problem arose in front of them. Then they started pressurizing me. They told me that you don't speak too much, you don't even have the right to speak, do you know the law? I replied to him that the right to speak was not there in the times of Manusmriti. Today Baba Saheb Ambedkar has given us the right to speak through the Constitution. He started abusing Baba Saheb Ambedkar. He told me that "Your Ambedkar was a great raskal". On saying this, we both had a quarrel. I was thrown out of the meeting. I was also thrown out of the working committee and I was also given a charge sheet. Later I was also suspended. At that time I had a fight with the department in which D.K. Khaparde and Kanshiram helped me a lot. This fight of mine made BAMCEF take this huge form.
Jai Mulnivasi
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