समाज में मनुवादी व्यवस्था के समय महामानव गौतम बुद्ध द्वारा दिया हुआ दिशा निर्देश प्रचलित हुआ और क्रांति आयी। एक क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन हुआ। ब्राह्मणों ने अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये कुछ धारणाए बनाई और समाज में उसको मान्यता प्राप्त करवाई। जैसे कि कर्मकांड के माध्यम से जब तक मूलनिवासियों से धन अर्जन नहीं करते, भाग्यवाद, नसीबवाद का विस्तार नहीं करते हैं, तब तक भारतीय परिप्रेक्ष्य में 3.5% ब्राह्मण मूलनिवासी समाज के 90% लोगों पर अपना मजबूत शासन स्थापित नहीं कर पायेंगे। इस बात को ध्यान में रखकर समाज को विभाजित कर उनके ऊपर राज करने हेतु बहुसंख्यक समाज को चार वर्षों में विभाजित किया। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण बनाकर इनमें असमानता डाली गई। ऊँच-नीच की भावना भरी गई। ब्राह्मण के नीचे क्षत्रिय, उसके नीचे वैश्य, वैश्य के नीचे शूद्र और शूद्र के नीचे अतिशूद्र (अछूत) का प्रयास किया गया।
ओ०बी०सी० में ज्यादातर लोग ब्राह्मणवादी मानसिकता के हैं। कुछ तो ब्राह्मणों से भी अपने आपको महान मानते हैं। ओ०बी०सी० के लोग ऐसे प्रतीत होते हैं मानों ब्राह्मणवादी विचार का प्रचार प्रसार करने का बीड़ा उन्होंने उठाया है और समाज को अनजाने में विखंडित किया। पिछड़ों में जो अगड़ी जातियाँ हैं वह ब्राह्मणी विचारधारा के वाहक की तरह, ज्यादा गंभीरता से काम करती हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती जिन्होंने "आर्य समाज" की स्थापना की और ओबीसी के लोगों में जाकर प्रचार किया कि जनेऊँ और यज्ञ की रक्षा करने से राष्ट्र बचेगा, यह कार्य करने वाले को पुण्य मिलेगा और पुण्य से मोक्ष। इस प्रकार की भ्रांतिया फैलाकर ओबीसी के लोगों को झाँसे में लिया गया।धीरे-धीरे ओबीसी का और ब्राह्मणों का अनुकरण करते-करते अनुसूचित जातियाँ एवं जनजातियाँ भी उनके झाँसे में आने लगी। विडंबना की बात है कि अतिशूद्रों में छुआ- छूत बड़े पैमाने पर फैलाकर उनके ऊपर अत्याचार करने के लिये ओबीसी में ही ब्राह्मण पैदा कर दिया गया। निश्चित तौर पर एक विशाल समुदाय को अल्पसंख्यक बनाने का यह सुनियोजित षड्यंत्र था। यह ओबीसी को समझना चाहिये कि वर्णव्यवस्था में ओबीसी को उनके अधिकार कभी नहीं मिलने वाले, मिलेगी तो केवल सामाजिक असामनता और घृणा। ओबीसी को चूसकर ही ब्राह्मण अपनी आलिशान जिंदगी बसर कर रहे हैं। मूलनिवासी समाज की जातियों में जब तक दार्शनिक हृदय से परिवर्तन नहीं होंगे तब तक हम धार्मिक और रुढीवादी परंपरा से ग्रसित होते रहेंगे, और हमारा शोषण होता रहेगा। वे ब्राह्मणवादी व्यवस्था के लोग फलते-फूलते और अनंत काल तक शासन में बने रहेंगे। यह सामाजिक चेतना, सामाजिक जागृति बगैर संभव नहीं। आशा थी कि कोई राजनैतिक पार्टी या हमारी राजनैतिक सत्ता हमारी परिस्थिति में कोई परिवर्तन लायेगी, परंतु राजनैतिक सत्ता आने के बाद भी हमारे राजनीति चलाने वाले लोग ब्राह्मणों के सामने हाथ फैलाते नजर आते हैं। इस विषय पर चर्चा करने से पहले हमें गंभीरता से समझना होगा कि हमें पहले केवल दुश्मनों से डर था परंतु अब हमारे अपने समाज में अनेक लोग बैठे हुए हैं, लोग हमारे हैं लेकिन काम उनका करते हैं। ओबीसी समाज को यह समझना होगा कि हमें मनुवादी व्यवस्था, यज्ञ की व्यवस्था, पुरोहितवाद और भाग्यवाद को अपने घर से निकाल फेंकना होगा। भाग्यवाद पर निर्भर रहने से उन्नति नहीं होती है केवल सत्यानाश होता है। यह समझाने के लिये उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि एक बार हम रेल से यात्रा कर रहे थे, तब रेल में बैठे लोग गरीब लोगों को अपने कंर्पाटमैन्ट में चढ़ने नहीं दे रहे थे फिर भी लोग चढ़ आये।
कंर्पाटमैन्ट के लोग उनके साथ बदसलुखी कर रहे थे और कह रहे थे कि ये पीड़ित लोग हैं, गंदे लोग हैं, ट्रेन को गंदा कर देंगे। तब हमने हसीं मजाक करते-करते उस विषय पर चर्चा की और निश्चय किया कि क्यों न एक प्रायोगिक स्तर का रिसर्च किया जाये। 10-10 महिलाओं का सैम्पल निर्धारित किया गया और हमने उनसे पूछा कि "आपकी गरीबी का कारण क्या है? तो 90% महिलाओं ने जवाब दिया कि "हमारे नसीब में सुंदर जीवन कहाँ? अच्छे-अच्छे कपड़े पहनें, बच्चों को स्कूल भेजें। हमारा नसीब मुठ की कलम से लिखा गया है" इसका अर्थ यह है कि वह सारा दोष भाग्य को देते हैं। नसीब को देते हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि बचपन से ही उनके दिमाग में भाग्य पर निर्भर रहना सिखाया गया है। बचपन से ही उनके दिमाग में स्वयं के प्रति हीन भावना बोई जाती है। काश, उनके जन्मदाता उनको बताते कि भाग्य से कुछ नहीं मिलता, सत्कर्म व स्वयं कर्म करने से, प्रयास करने से अपने भाग्य को लिखा जा सकता है, नसीब बदला जा सकता है तो परिस्थिति कुछ और होती इस प्रकार से उनका विचार परिवर्तन करने से क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है।
ब्राह्मणवादियों ने हम ओबीसी समाज को जो गुलाम बनाया है उसका खात्मा वैचारिक परिवर्तन से ही किया जा सकता है। इसके लिए अथक प्रयास की जरुरत है, संगठित प्रयास की जरुरत है। निश्चित रुप से बामसेफ द्वारा ऐसे ही प्रयास किये जा रहे हैं। जितनी जल्दी हो सके हमें बामसेफ के आन्दोलन से जुड़ना चाहिए। जय मूलनिवासी