भारत मुक्ति मोर्चा
ब्राह्मणवाद से मुक्ति का राष्ट्रीय आंदोलन
बामसेफ से भारत मुक्ति मोर्चा तक का सफर
6 दिसंबर 1978 को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के सामने हुए पहले बामसेफ कन्वेंशन ने भारतीय समाज को नई दिशा दी। वामन मेश्राम के नेतृत्व में यह आंदोलन समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के आदर्शों पर आधारित है।
वामन मेश्राम के अनुसार:
"भारत को ब्राह्मणवाद से मुक्त करना हमारी प्राथमिकता है। वर्ण, जाति, अस्पृश्यता, आदिवासियों का अलगीकरण, स्त्री दासता और ओबीसी के शूद्रत्व को खत्म करना ही हमारा लक्ष्य है।"
भारत मुक्ति मोर्चा की प्राथमिकताएं
- 85% मूलनिवासी बहुजन समाज को संगठित करना
- गांव, तहसील, जिला और राज्य स्तर पर शाखाओं का निर्माण
- किसानों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं और बेरोजगारों के लिए समाधान
ब्राह्मणवाद से मुक्ति के लिए रणनीति
ब्राह्मणवाद की व्यवस्था जैसे वर्ण, जाति, अस्पृश्यता को खत्म करना ही हमारा मुख्य उद्देश्य है। यह आंदोलन केवल पढ़े-लिखे लोगों का नहीं बल्कि मूलनिवासी बहुजन समाज का भी है।
2030 का लक्ष्य
भारत मुक्ति मोर्चा का लक्ष्य 6 लाख गांवों तक पहुंचना है। बामसेफ के सदस्य इस आंदोलन को हर तहसील और गांव तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भारत मुक्ति मोर्चा के लक्ष्य और रणनीतियां
- 1. तहसील स्तर से गांव स्तर तक शाखाओं का निर्माण: 35 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की यूनिट। युवाओं, महिलाओं, किसानों और मजदूरों के लिए अलग-अलग शाखाएं।
- 2. साधन-संपन्नता पर जोर: आंदोलन को साधनों और संसाधनों से सशक्त करना। बामसेफ और भारत मुक्ति मोर्चा के बीच सामंजस्य।
निष्कर्ष
भारत मुक्ति मोर्चा केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए एक आशा की किरण है। यह संगठन डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के सपनों को साकार करने और समाज में समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध है। 2024 में, इस आंदोलन का हिस्सा बनकर आप भी भारत को ब्राह्मणवाद से मुक्त करने के इस ऐतिहासिक प्रयास में योगदान दे सकते हैं।