छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले में महानदी के किनारे बसा छोटा-सा कस्बा सिरपुर ! ऐसा विश्वविद्यालय था जहाँ से बौद्ध दर्शन और करुणा का संदेश पूरी दुनिया तक फैलाया जाता था।

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छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले में महानदी के किनारे बसा छोटा-सा कस्बा सिरपुर ! ऐसा विश्वविद्यालय था जहाँ से बौद्ध दर्शन और करुणा का संदेश पूरी दुनिया तक फैलाया जाता था।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले में महानदी के किनारे बसा छोटा-सा कस्बा सिरपुर आज भले ही एक शांत गाँव की तरह दिखाई देता हो, लेकिन इसकी धरती पर चलते ही लगता है जैसे इतिहास की परतें खुल रही हों। यहाँ के हर खंडहर, हर स्तूप और हर विहार की दीवारें उस स्वर्णिम युग की गवाही देती हैं, जब सिरपुर बौद्ध धम्म का एक प्रमुख केंद्र था। छठी से दसवीं शताब्दी के बीच सिरपुर दक्षिण कोसल की राजधानी रहा। यह वही समय था जब बौद्ध धम्म अपनी लोकप्रियता और प्रभाव के चरम पर था। इस क्षेत्र के शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन ने बौद्ध धम्म को संरक्षण दिया। उन्होंने भिक्षुओं को भूमि और अनुदान दिए, विहारों का निर्माण कराया और साधना व शिक्षा को बढ़ावा दिया। इतिहास की एक और अहम गवाही चीन के यात्री ह्वेनसांग के लेखों में मिलती है। सातवीं शताब्दी में जब उन्होंने भारत की यात्रा की, तो सिरपुर का विस्तार और यहाँ की शिक्षा व्यवस्था देखकर वे अभिभूत हो गए। उन्होंने लिखा कि इस नगर में सौ से अधिक बौद्ध विहार और हज़ारों भिक्षु मौजूद थे, जो दिन-रात साधना और अध्ययन में लीन रहते थे। ह्वेनसांग का यह विवरण हमें यह समझाता है कि सिरपुर नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा केंद्रों की श्रेणी में आता था। यह केवल धार्मिक स्थल नहीं था, बल्कि एक ऐसा विश्वविद्यालय था जहाँ से बौद्ध दर्शन और करुणा का संदेश पूरी दुनिया तक फैलाया जाता था।
सिरपुर की सबसे बड़ी पहचान यहाँ मिले बौद्ध विहार और स्तूप हैं। आनंदप्रभु कुटी विहार, स्वस्तिक विहार और कई छोटे-बड़े मठ यहाँ की खुदाई से सामने आए हैं। आनंदप्रभु कुटी विहार की संरचना और प्रांगण बताते हैं कि यह स्थान केवल पूजा-अर्चना के लिए नहीं, बल्कि अध्ययन और साधना के लिए भी इस्तेमाल होता था। यहाँ भिक्षु रहते थे, वे बुद्ध के उपदेशों का अध्ययन करते और अनुशासन के साथ जीवन जीते। स्वस्तिक विहार का नाम इसकी संरचना से पड़ा है। यह विहार अपने स्थापत्य की वजह से अनोखा है। यहाँ की दीवारों पर बनी नक्काशियाँ बौद्ध प्रतीकों – धर्मचक्र, कमल और बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं – को दर्शाती हैं।
इन विहारों के अलावा यहाँ अनेक स्तूप भी मिले हैं। स्तूप बौद्ध धम्म का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह न केवल बुद्ध के अवशेषों को संजोए रखने का स्थान होता था, बल्कि यह श्रद्धा और साधना का भी केंद्र था। बुद्ध का दर्शन सरल था – मध्यम मार्ग अपनाओ, करुणा और अहिंसा को जीवन का आधार बनाओ। सिरपुर के भिक्षु इस संदेश को जीते थे और समाज तक पहुँचाते थे। यहाँ भिक्षु ध्यान साधना करते, बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करते और एक-दूसरे के साथ ज्ञान साझा करते। यहाँ से अनेक भिक्षु दक्षिण-पूर्व एशिया तक गए और बुद्ध का संदेश दूर-दूर तक फैलाया। सिरपुर इस दृष्टि से केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक वैश्विक केंद्र था जिसने बौद्ध धम्म के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप को मजबूत किया।

nayak1news: निष्कर्ष :

सिरपुर केवल छत्तीसगढ़ की धरोहर नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता की धरोहर है। यहाँ की ईंटें और खंडहर हमें अतीत की उस आवाज़ को सुनाते हैं, जिसमें बुद्ध की करुणा और साधना की गूंज अब भी मौजूद है। आज समय की मांग है कि हम सिरपुर जैसे स्थलों को न केवल संरक्षित करें, बल्कि उनसे सीख भी लें। क्योंकि बुद्ध का मार्ग केवल धम्म का मार्ग नहीं, बल्कि मानवता का मार्ग है।

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