250 साल से चला आदिवासियों की आज़ादी का अंदोलन विफल क्यों हुआ? वामन मेश्राम साहब IINAYAK1 II

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  1. वीडियो पूरा देखने बाद ही कमेंट दूंगा !

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  2. वामन मेश्राम ने बहुत ही विस्तार और बारीकी से विश्लेषण कर दिया कि हम आदिवासियों का यह 250 साल का मूवमेंट क्यों नाकाम रहा !
    यह सही बात है कि हमारा संकोची (segregation) स्वभाव और अविश्वास के चलते भी हम कई मुद्दों और विषयों पर एकमत नहीं होते ! कई लोग अब भी पुराने ढर्रे पर चलने को मजबूर है या कहें उन्होंने इसे अपनी नियति मान लिया है ! अभी भी हमारे आदिवासी बंधुओं को खुद का और बाकी समुदाय का इतिहास एवं संवैधानिक विशेषाधिकारों की जानकारी नहीं हैं ! मैं लगभग हर बहुजन समाज और सवर्ण समुदाय (जो देश की कुव्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाते हैं) की बातें सुनता हूं !
    वामन मेश्राम ने सही फरमाया कि जब तक हर चीज को लेकर हम पूर्वग्रह रखेंगे हमारी सोच और व्यवहार दोनों सीमित रहेंगे ! पुरानी धारणाओं को तोड़कर नए आविष्कार और व्यवस्था को सीखना होगा ! हमको एकजुटता दिखानी होगी तभी यह मूवमेंट सफल होगा !
    वर्ना सिर्फ रोजी-रोटी के लिए भागने वाला कभी बहुजन समाज का हिस्सा लायक नहीं रहेगा, वह सिर्फ 'भोजन समाज' का कहलाएगा !
    तो भरपूर आशा और विश्वास के साथ हमारा-आपका मूवमेंट कामयाब हो, हमारा प्रयास जारी रहेगा !
    जय जोहार
    जय भीम
    जय संविधान
    जय भारत

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  3. चुहाड़ आंदोलन का प्रारम्भ महान पुरुष रघुनाथ महतो के नेतृत्व में 1865 में शुरू किया गया था और चुहाड़ नामकरण बंगाल के ब्राह्णवादियों द्वारा दिया गया नाम है जिसका मतलब बुरे लोगों का आंदोलन होता है आज भी हम बुरे लोगों को... "चुहाड़ " कह कर कुड़मालि भाषा में गाली देते है l

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