भारत में जंग खाने
लगा सूचना का अधिकार
देशभर में 3.33 करोड़ आवेदन, समय पर वार्षिक
रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर रहा सूचना आयोग
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद भी सूचना आयोगों में 38
पद खाली
गूगल से ली गई छायाचित्र
‘‘सूचना का
अधिकार निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार के उन्मूलन का कारगर हथियार है, लेकिन शुरू के कुछ वर्ष के बाद इस
कानून की धार को सभी सरकारों ने कम किया है, कोर्ट ने भी अपने फैसलों में आरटीआई
एक्ट को मजबूत करने के बजाय इस पर ब्रेक लगाने का काम किया है : रामनाथ झा
(कार्यकारी निदेशक ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशन इंडिया)’’
जिस देश
का कानून ही जंग खाने लगे उस देश की हालत क्या होगी? इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है.
खासकर सूचना का अधिकार (आरटीआई) जैसे कानून में जंग लगना देश व जनता के लिए सबसे
ज्यादा खतरनाक संकेत है. क्योंकि यही एक ऐसा कानून है जो सरकार की हर जानकारी जनता
को देता है. लेकिन जब से केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनी है तब से सरकार आरटीआई
में संशोधन करके इसको इतना ज्यादा कमजोर बना दिया है कि देशभर में 3.33 करोड़ आवेदन दायर किये गए हैं लेकिन
सूचना आयोग समय पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर रहा है. इतना है ही नहीं
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी देशभर के सूचना आयोगों में लगभग 38 पद खाली पड़े हैं.
गौरतलब है कि एक तरफ विभिन्न सरकारें
इस कानून में संशोधन करके या समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न करके या कई
महत्वपूर्ण विभागों को इसके दायरे से बाहर रखकर इसे कमजोर करने की कोशिश कर रही
हैं तो दूसरी तरफ इसमें पदों को भरने से कतरा भी रही है.
पारदर्शिता
एवं भ्रष्टाचार की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी
इंटरनेशनल इंडिया’ (टीआईआई) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2005-06 से लेकर 2019-20 तक केंद्र एवं राज्य सरकारों में कुल 3.33 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं.
हालांकि ये आरटीआई आवेदनों की न्यूनतम संख्या है, क्योंकि इसमें उत्तर प्रदेश और
तेलंगाना के आंकड़े शामिल नहीं है. इसके साथ ही इसमें कई राज्यों का अपडेटेड आंकड़ा
उपलब्ध नहीं है. आरटीआई एक्ट की धारा 25 (2) के तहत सभी केंद्रीय एवं राज्य के
विभागों को साल भर में दायर किए गए आरटीआई आवेदनों एवं इसके निपटारे की जानकारी
संबंधित सूचना आयोग को देनी होती है, जिसे आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट में
शामिल करता है. इसके बावजूद देश के कई सूचना आयोग समय पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित
नहीं कर रहे हैं. आलम ये है कि उत्तर प्रदेश एवं तेलंगाना ने आज तक एक भी वार्षिक
रिपोर्ट जारी नहीं किया है.
आंकड़ों के मुताबिक इसमें से सबसे
ज्यादा 9,263,816 आरटीआई
आवेदन केंद्र सरकार के लिए दायर किए गए हैं. इसके बाद महाराष्ट्र में पिछले 15 सालों में 6,936,564, कर्नाटक में 3,050,947, तमिलनाडु में 2,691,396, केरल में 2,192,571, गुजरात में 1,388,225, राजस्थान में 1,212,827, उत्तराखंड में 969,511, छत्तीसगढ़ में 896,288, बिहार में 884,102, आंध्र प्रदेश में 804,509, पंजाब में 792,408 और हरियाणा में 613,048 आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं. इसके
अलावा हिमाचल प्रदेश में 484,356, ओडिशा में
411,621, मध्य प्रदेश में 184,112, असम में 182,994, पश्चिम बंगाल में 98,323, जम्मू कश्मीर में 73,452, झारखंड में 67,226, त्रिपुरा में 42,111, गोवा में 32,283, नगालैंड में 28,604, अरुणाचल प्रदेश में 26,152, मेघालय में 18,527, मिजोरम में 16,115, सिक्किम में 5,120 और मणिपुर में 4,374 आरटीआई आवेदन दायर किए जा चुके हैं.
आरटीआई एक्ट के तहत सबसे ज्यादा आवेदन
प्राप्त करने वाले बड़े राज्यों में पहले नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां पिछले 15 सालों में हर साल औसतन 630,596 आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं. इसके
बाद कर्नाटक में करीब 338,994, तमिलनाडु
में 244,672 और केरल
में 219,257 आवेदन
दायर हुए हैं. इस श्रेणी में मध्य प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में
इसकी जनसंख्या के मुकाबले काफी कम आवेदन दायर किए गए हैं. यहां हर साल क्रमशः 18,411, 14,076 और 8,193 आरटीआई फाइल किए गए हैं. वहीं छोटे
राज्यों में हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा का प्रदर्शन अच्छा रहा है, जहां हर साल औसतन 44,032 और 3,509 आवेदन दायर किए गए हैं. सिक्किम एवं
मणिपुर इस मामले में काफी पीछे हैं, जहां हर साल औसतन महज 1,024 और 397 आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं.
सूचना आयोगों में शिकायतों का अंबार
आरटीआई एक्ट के तहत जनसूचना अधिकारी
द्वारा सूचना देने से इनकार किए जाने पर कानून में ये व्यवस्था दी गई है कि आवेदन
संबंधित सूचना आयोग में इसके खिलाफ अपील और शिकायत दायर कर सकते हैं, जो इस पर निर्णय लेगा कि सूचना दी जा
सकती है या नहीं. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2005-06 से लेकर 2019-20 तक केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों
में कुल 21.86 अपील एवं
शिकायतें दायर की गई हैं. सबसे ज्यादा तमिलनाडु सूचना आयोग में 461,812 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं.
इसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग का नंबर आता है, जहां पिछले 15 सालों में कुल 302,080 शिकायतें एवं अपीलें दायर की गई हैं.
इसी तरह महाराष्ट्र सूचना आयोग में 277,228, कर्नाटक में 164,627, बिहार में 158,218, राजस्थान में 87,124, गुजरात में 92,860, हरियाणा में 77,343, पंजाब में 67,408 और उत्तर प्रदेश में 65,035 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं.
इनके अलावा असम में 61,161, ओडिशा में
57,625, आंध्र प्रदेश में 54,843, मध्य प्रदेश में 47,003, छत्तीसगढ़ में 51,335, उत्तराखंड में 41,861, केरल में 33,218, झारखंड में 32,481, पश्चिम बंगाल में 20,108, तेलंगाना में 10,619, हिमाचल प्रदेश में 8,549, गोवा में 4,579, जम्मू कश्मीर में 2,499, अरुणाचल प्रदेश में 1,995, मणिपुर में 1,746, त्रिपुरा में 1,064, मेघालय में 646, सिक्किम में 439, नगालैंड में 338 और मिजोरम सूचना आयोग में कुल 206 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं.
केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में
खाली पद
देश भर के विभिन्न सूचना आयोगों में
समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने के कारण सरकारें सवालों के घेरे में
हैं. इसे लेकर पिछले साल फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने समय पर नियुक्ति करने
के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, लेकिन इसके बावजूद कोई खास परिवर्तन
नहीं आया है. देश भर में केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में कुल 160 पद हैं, जिसमें से 29 पद मुख्य सूचना आयुक्त और 131 पद सूचना आयुक्तों के हैं. हालांकि आलम
ये है कि इस समय मुख्य सूचना आयुक्तों के चार पद और सूचना आयुक्तों के 34 पद खाली पड़े हैं.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की
रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय सूचना आयोग में कुल 11 पद हैं, लेकिन इसमें से पांच पद खाली हैं. हालत
ये है कि मुख्य सूचना आयुक्त का भी पद यहां रिक्त है. राज्यों को अगर देखें तो
आंध्र प्रदेश सूचना आयोग में कुल छह पद हैं, जिसमें दो अक्टूबर 2020 तक सभी पद भरे हुए थे. वहीं अरुणाचल
प्रदेश में पांच में से तीन पद, छत्तीसगढ़
में चार में से एक पद, गोवा में
तीन में से एक पद, हरियाणा
में 11 में से
तीन पद, हिमाचल
प्रदेश में दो में से एक पद, झारखंड
में दो में से दोनों पद खाली पड़े हैं. इसके अलावा कर्नाटक में 11 में से एक पद, केरल में छह में से एक पद, महाराष्ट्र में नौ में से चार पद, मणिपुर में तीन में से दो पद, ओडिशा में छह में से दो पद, पंजाब में 11 में से दो पद, राजस्थान में पांच में से दो पद, तमिलनाडु में सात में से दो पद, त्रिपुरा में दो में से एक और उत्तर
प्रदेश में 11 में से एक
पद खाली हैं.
केंद्रीय सूचना आयोग, गोवा, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मुख्य
सूचना आयुक्त का पद खाली पड़ा हुआ है. सीआईसी समेत सिर्फ आठ सूचना आयोगों में महिला
सूचना आयुक्त हैं. आरटीआई के क्रियान्वयन एवं निष्पादन के आधार पर ट्रांसपेरेंसी
इंटरनेशनल इंडिया द्वारा किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 के दौरान अधिकांश राज्य सूचना आयोग ने
अपनी वार्षिक रिपोर्ट के प्रकाशन की समयसीमा का पालन नहीं किया गया है.
केंद्रीय सूचना आयोग सहित कुछ राज्यों
ने ही साल 2017-18 एवं 2018-19 तक अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित किया
है. छत्तीसगढ़ ने 2019 तक के सभी
वार्षिक रिपोर्ट पेश किए हैं,, जबकि मध्य
प्रदेश, झारखंड, बिहार एवं कुछ राज्यों के सूचना आयोग
ने वार्षिक रिपोर्ट बनाने या प्रकाशित करने में काफी विलंब किया है. उत्तर प्रदेश
राज्य सूचना आयोग ने साल 2005 से अब तक
एक भी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है. साल 2017-18 में 28 में से सिर्फ 9-10 राज्यों ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट
विधानसभा के पटल पर रखी है.
आरटीआई के
पालन को लेकर वैश्विक रैंकिंग में सातवें पायदान भारत
आरटीआई के पालन को लेकर जारी वैश्विक
रैंकिंग में भारत का स्थान नीचे गिरकर वर्ष 2018 में सातवें पायदान (साल 2020 में भी) पर पहुंच गया है, जबकि पूर्व में भारत दूसरे स्थान पर
था. खास बात ये है कि जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला है, उनमें से ज्यादातर देशों ने भारत के
बाद इस कानून को अपने यहां लागू किया है.@Nayak 1
Right to information started rusting in India
3.33 crore applications across the country, Information Commission is not publishing annual report on time 38 posts vacant in information commissions despite Supreme Court directive
Photograph taken from Google
"Right to information is definitely an effective weapon for
eradication of corruption, but after few years, the edge of this law has been
reduced by all governments, instead of strengthening the RTI Act in its
decisions, the court also Have worked the brakes: Ramnath Jha (Executive
Director Transparency International India)
What will be the condition of the country whose law itself starts
rusting? It is difficult to guess. Particularly, a war of laws like Right to
Information (RTI) is the most dangerous sign for the country and the public.
Because this is such a law that gives every information of the government to
the public. But ever since the BJP government has been formed at the Center, the
government has made it so weak by amending the RTI that 3.33 crore applications
have been filed across the country but the Information Commission is not
publishing the annual report on time. Not only this, despite the order of the
Supreme Court, about 38 posts are lying vacant in the information commissions
all over the country.
Significantly, on the one hand, various governments are trying to weaken
it by amending this law or by not appointing information commissioners in time
or keeping many important departments out of its purview, on the other hand,
there was a reluctance to fill the posts. is.
According to a recent report by Transparency International India (TII),
a non-governmental organization working towards transparency and corruption, a
total of 3.33 crore RTI applications were filed in the central and state
governments from 2005-06 to 2019-20. Huh. However, this is the minimum number
of RTI applications, as it does not include data from Uttar Pradesh and
Telangana. Along with this, updated data of many states is not available in it.
Under Section 25 (2) of the RTI Act, all central and state departments are
required to give information about the RTI applications filed in a year and its
disposal to the Commission, which the Commission includes in its annual report.
Despite this, many information commissions of the country are not publishing
the annual report on time. The situation is that Uttar Pradesh and Telangana
have not released a single annual report till date.
According to the data, the maximum 9,263,816 RTI applications have been
filed for the central government. After this, in the last 15 years in
Maharashtra, 6,936,564, 3,050,947 in Karnataka, 2,691,396 in Tamil Nadu,
2,192,571 in Kerala, 1,388,225 in Gujarat, 1,212,827 in Rajasthan, 969,511 in
Uttarakhand, 896,288 in Chhattisgarh, 884,102 in Bihar, 804,509 in Andhra
Pradesh, 792,408 in Punjab. And 613,048 RTI applications have been filed in
Haryana. Besides, 484,356 in Himachal Pradesh, 411,621 in Odisha, 184,112 in
Madhya Pradesh, 182,994 in Assam, 98,323 in West Bengal, 73,452 in Jammu and
Kashmir, 67,226 in Jharkhand, 42,111 in Tripura, 32,283 in Goa, 28,604 in
Nagaland, 26,152 in Arunachal Pradesh. , 18,527 RTI applications have been
filed in Meghalaya, 16,115 in Mizoram, 5,120 in Sikkim and 4,374 in Manipur.
Maharashtra ranks first among the largest states receiving the most
applications under the RTI Act, where an average of 630,596 RTI applications
have been filed every year in the last 15 years. After this, about 338,994
applications have been filed in Karnataka, 244,672 in Tamil Nadu and 219,257 in
Kerala. In this category, far less applications have been filed in states like
Madhya Pradesh, Assam and West Bengal than its population. Here 18,411, 14,076
and 8,193 RTIs have been filed every year respectively. On the other hand,
Himachal Pradesh and Tripura have performed well in smaller states, where on an
average 44,032 and 3,509 applications have been filed every year. Sikkim and
Manipur are far behind in this case, where on an average only 1,024 and 397 RTI
applications have been filed every year.
Complaints in information commissions
Under the RTI Act, when the Public Information Officer refuses to give
information, the law provides that applications can file appeals and complaints
against it in the concerned Information Commission, which will decide on
whether the information can be given or not. . According to the report of
Transparency International India, a total of 21.86 appeals and complaints have
been filed in the Central and State Information Commissions from 2005-06 to
2019-20. Maximum Tamil Nadu Information Commission has 461,812 appeals and
complaints filed. After this comes the number of the Central Information
Commission, where a total of 302,080 complaints and appeals have been filed in
the last 15 years.
Similarly, 277,228 in Maharashtra Information Commission, 164,627 in
Karnataka, 158,218 in Bihar, 87,124 in Rajasthan, 92,860 in Gujarat, 77,343 in
Haryana, 67,408 in Punjab and 65,035 in Uttar Pradesh have been filed. Apart
from these, 61,161 in Assam, 57,625 in Odisha, 54,843 in Andhra Pradesh, 47,003
in Madhya Pradesh, 51,335 in Chhattisgarh, 41,861 in Uttarakhand, 33,218 in
Kerala, 32,481 in Jharkhand, 20,108 in West Bengal, 10,619 in Telangana, 8,549
in Himachal Pradesh, A total of appeals and complaints have been filed with
4,579 in Goa, 2,499 in Jammu and Kashmir, 1,995 in Arunachal Pradesh, 1,746 in
Manipur, 1,064 in Tripura, 646 in Meghalaya, 439 in Sikkim, 338 in Nagaland and
Mizoram Information Commission.
Vacant posts in Central and State Information Commissions
Due to non-appointment of information commissioners in various
information commissions across the country, governments are under questions.
Regarding this, in February last year, the Supreme Court gave an important
order for appointment on time, but in spite of this, no significant change has
come. There are a total of 160 posts in the Central and State Information
Commissions across the country, out of which 29 posts are of Chief Information
Commissioner and 131 posts of Information Commissioners. However, the situation
is that at this time four posts of Chief Information Commissioners and 34 posts
of Information Commissioners are vacant.
According to the report of Transparency International India, there are a
total of 11 posts in the Central Information Commission, but out of this five
posts are vacant. The condition is that the post of Chief Information
Commissioner is also vacant here. If we look at the states, there are a total
of six posts in the Andhra Pradesh Information Commission, in which all the
posts were filled till October 2, 2020. On the other hand, three out of five
posts in Arunachal Pradesh, one out of four posts in Chhattisgarh, one out of
three posts in Goa, three out of 11 posts in Haryana, one out of two posts in
Himachal Pradesh, both out of two posts in Jharkhand. Are empty Apart from
this, one out of 11 posts in Karnataka, one out of six posts in Kerala, four
out of nine posts in Maharashtra, two out of three posts in Manipur, two out of
six posts in Odisha, two out of 11 posts in Punjab, Two out of five posts are
vacant in Rajasthan, two out of seven posts in Tamil Nadu, one out of two in
Tripura and one out of 11 posts in Uttar Pradesh.
The post of the Chief Information Commissioner is lying vacant in the
Central Information Commission, Goa, Jharkhand and Uttar Pradesh. Only eight
information commissions, including CIC, have women information commissioners.
The analysis conducted by Transparency International India, based on the implementation
and execution of RTI, states that most of the State Information Commission has
not adhered to the publication of its annual report during FY 2017-18 and
2018-19.
Only a few states, including the Central Information Commission, have
published their annual reports by the year 2017-18 and 2018-19. Chhattisgarh
has submitted all the annual reports till 2019, while the information
commissions of Madhya Pradesh, Jharkhand, Bihar and some states have delayed
much in preparing or publishing the annual reports. Uttar Pradesh State
Information Commission has not published a single annual report since 2005. In
the year 2017-18, only 9-10 out of 28 states have put their annual report on
the floor of the assembly.
India ranks seventh in global ranking on RTI compliance
In the global ranking of RTI compliance, India has fallen down to the seventh position in 2018 (also in 2020), while India was second in the past. The special thing is that most of the countries which have been ranked above India, have implemented this law after India.
@ Nayak 1
Thank you google