शर्मनाक ! मोदी सरकार
में देश की दुर्दशा
भूख की
‘गंभीर’ श्रेणी में भारत
हर चार
में से तीन ग्रामीण भारतीयों को नहीं मिल पाता है पौष्टिक आहार : रिपोर्ट
हम भले ही अपने आपको विश्व के बड़े देशों के समकक्ष स्थापित करें लेकिन हकीकत हमही जानते हैं कि हमारे देश का एक बड़ा समुदाय नंगा, भूखा और बहुत गरीब है जबकि मुट्टीभर लोगों के हाथ में बहुत कुछ आ गया है और वह देश की जनता को उंगलियों पर नचाने की ताकत भी रखता हैं. हां हम जिस प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं उसमें सत्तासीन कई लोगों की सपंत्ति से दूसरे देशों की तुलना करें तो यह उनसे कई गुना है जबकि जिनकी मदद से वे इस मुकाम पर पहुंचे हैं वे उनके सामने एकदम बौने हैं.
आजादी के बाद के वर्षो में ऐसे लोगों
की संपत्ति में जो इजाफा हुआ है वह आश्चर्यजनक ,अविश्वसनीय है शायद यही कारण है कि देश
में राजनीतिक दलों में घुसने और कुर्सी पाने की होड़ सी मची हुई है. इसमें भी वे
लोग हैं जिसके पास अकूट संपत्ति है या जिनके पास मैन पावर है. वह दिन दूर नहीं जब
गरीबी के साथ भूख भी बिकने लगेगी. दुनिया में तेल के भाव पानी से भी सस्ते हो जाने
तथा रिकॉर्ड स्तर पर गिर जाने के बावजूद भी मंहगाई से जनता को कोई राहत नहीं मिल
पा रही है. रोजमर्रा की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं और दाल गरीब की थाली में से
गायब होकर अमीरों का महंगा व्यंजन बन चुकी है कुछ क्षेत्रों में तो गरीब घास, फूस और बथुए के सेवन के सहारे जिंदा
रहने का प्रयास कर रहे हैं
इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च
इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एक पेपर में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में रहने
वाले हर चार में से तीन भारतीयों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है. हाल ही में
जारी वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में भारत 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है और भूख की ‘गंभीर’
श्रेणी में है. विशेषज्ञों ने इसके लिए खराब कार्यान्वयन प्रक्रियाओं, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का उदासीन दृष्टिकोण
और बड़े राज्यों के खराब प्रदर्शन को दोषी ठहराया है.
द हिंदू के अनुसार, पीअर रिव्यूड पत्रिका फूड पॉलिसी में
प्रकाशित अफोर्डबिलिटी ऑफ न्यूट्रिशियस डाइट्स इन रूरल इंडिया शीर्षक वाले
इस हालिया पेपर को संस्थान के अर्थशास्त्री कल्याणी रघुनाथन और शोधकर्ता डेरेक डी.
हीडे ने वरिष्ठ शोधकर्ता एना हरफोर्थ के साथ मिलकर लिखा है. 2011 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस)
से ग्रामीण खाद्य मूल्य और मजदूरी की जानकारी के आधार पर पेपर इस निष्कर्ष पर
पहुंचा है कि भारत में कुपोषण स्थानिक है. इस तथ्य के बावजूद कि 2015-16 में 38 फीसदी स्कूल जाने से पहले की उम्र वाले
बच्चों का विकास रुक गया और 21 फीसदी
कमजोर हो गए जबकि आधे से अधिक मां और बच्चे एनीमिया से ग्रसित हो गए, पेपर ने पाया कि आश्चर्यजनक रूप से
बहुत कम लोग आहार, विशेष रूप
से भारत में पौष्टिक आहार की उपलब्धता पर चर्चा करते हैं.
यह कितनी हैरान की बात है कि पिछले साल
भी वैश्विक भूख सूचकांक में 117 देशों की
सूची में भारत का 102वां स्थान
था. जबकि 2020 में भी
भारत की स्थिति वही रही. 2020 में भारत 117 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है. वहीं भारत के साथ-साथ
पड़ोसी देशों में बांग्लादेश, म्यांमार
और पाकिस्तान भी ‘गंभीर’ श्रेणी में हैं, लेकिन भूख सूचकांक में भारत से ऊपर
हैं. बांग्लादेश 75वें, म्यांमार 78वें और पाकिस्तान 88वें स्थान पर हैं. वहीं, नेपाल 73वें और श्रीलंका 64वें स्थान पर हैं. दोनों देश ‘मध्यम’
श्रेणी में आते हैं. पेपर में कहा गया कि ग्रामीण भारत में भयावह आहार परिदृश्य के
लिए जिम्मेदार समस्याओं में कम मजदूरी और भारत के कृषि क्षेत्र के सामने आने वाली
महत्वपूर्ण संरचनात्मक समस्याएं हैं.
पेपर के लेखकों ने कहा है कि साल 2001 से 2011 के बीच की अवधि में आहार की बढ़ती लागत
के बावजूद उस समय में ग्रामीण मजदूरी भी बढ़ी है. हालांकि, 2011 में पूर्ण रूप से पौष्टिक आहार अकुशल
मजदूरी की तुलना में महंगे थे, जहां लगभग
50-60 फीसदी पुरुष और लगभग 70-80 फीसदी महिलाएं मनरेगा में दैनिक मजदूरी
करते हैं. पेपर में पाया गया है कि औसत ग्रामीण परिवारों और अन्य गैर-खाद्य खर्चों
पर आश्रितों की संख्या को देखते हुए 45-64 फीसदी ग्रामीण गरीब भारत के राष्ट्रीय
खाद्य-आहार संबंधी दिशानिर्देशों को पूरा करने वाले पौष्टिक आहार नहीं ले सकते
हैं.
गौरतलब है कि पेपर नीति बनाने में पोषण
संबंधी आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और भारत की मौजूदा खाद्य नीतियों को
अनाज के प्रति अपने भारी पूर्वाग्रह से दूर करने का आह्वान करता है. द हिंदू के
अनुसार, लेखकों के
नजरिए और डेयरी, फल और
सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों पर ध्यान केंद्रित करने के उनके निर्णय और अकुशल
श्रमिकों के बीच इन चीजों की उपलब्धता भारत की खाद्य वास्तविकताओं की एक स्पष्ट
तस्वीर पेश करने में मदद करती है, जो आर्थिक
सर्वेक्षण की ‘थालीनॉमिक्स’ के विपरीत है, जहां खाने की कीमतों की खूबसूरत तस्वीर
पेश की गई है.@Nayak 1
Shame! Country's plight in Modi government
India in the 'severe' category of hunger
Three out of every four rural Indians do not get nutritious food: report
Photograph taken from Google
We may even establish ourselves at par with the big countries of the
world, but the fact is that we know that a large community of our country is
naked, hungry and very poor, whereas a lot of people have come in the hands of
the people and they are trying to put the people But they also have the power
to dance. Yes, in the democratic system in which we are living, when compared
to other countries with the support of many in power, it is many times more
than them, while with the help of which they have reached this point, they are
completely dwarfed in front of them.
The increase in the wealth of such people in the years after
independence is surprising, incredible, perhaps that is why there is a race to
enter political parties and get a chair in the country. In this too, there are
those who have tremendous assets or who have man power. The day is not far when
hunger will start selling along with poverty. Despite the price of oil becoming
cheaper than water in the world and falling to record levels, people are not
getting any relief from inflation. The prices of everyday things are
skyrocketing and pulses have disappeared from the plate of the poor and have
become expensive dishes of the rich, in some areas, the poor are trying to stay
alive with the help of grass, chaff and Bathu.
A paper published by the International Food Policy Research Institute
states that three out of every four Indians living in rural areas do not get
nutritious food. In the recently released Global Hunger Index 2020, India ranks
94th in the list of 107 countries and is in the 'severe' category of hunger.
Experts have blamed poor implementation procedures, lack of effective
monitoring, indifferent approach to tackle malnutrition and poor performance of
big states for this.
According to The Hindu, this recent paper, titled Affordability of
Nutritional Diets in Rural India, published in the peer reviewed journal Food
Policy, has been written by the institute's economist Kalyani Raghunathan and
researcher Derek D. Heide, along with senior researcher Ana Harforth. Based on
information on rural food prices and wages from the National Sample Survey
(NSS) of 2011, the paper has come to the conclusion that malnutrition is
endemic in India. Despite the fact that in 2015-16, 38 percent of pre-school-age
children stopped developing and 21 percent were weakened while more than half
of mothers and children suffered from anemia, the paper found, surprisingly,
Fewer people discuss the availability of nutritious food, especially in India.
It is so surprising that last year too, India was ranked 102 in the list
of 117 countries in the Global Hunger Index. Whereas in 2020, the situation of
India remained the same. In 2020, India ranked 94th in the list of 117
countries. At the same time, along with India, Bangladesh, Myanmar and Pakistan
are also in the 'severe' category in neighboring countries, but above India in
the hunger index. Bangladesh ranked 75th, Myanmar 78th and Pakistan 88th. At
the same time, Nepal is 73rd and Sri Lanka 64th. Both countries fall in the
'middle' category. The paper said that the problems responsible for the
frightening food scenario in rural India are low wages and significant
structural problems facing India's agricultural sector.
The authors of the paper have stated that despite the rising cost of
food in the period between 2001 and 2011, rural wages also increased during
that time. However, fully nutritious diets were costlier than unskilled wages
in 2011, where about 50–60 per cent of men and around 70–80 per cent of women
make daily wages in MGNREGA. The paper found that 45-64 per cent of rural poor
cannot take nutritious food that meets India's national food-food guidelines,
given the number of dependents on average rural households and other non-food
expenses.
Significantly, the paper calls for policy-making to raise awareness about nutritional requirements and to remove India's current food policies from its heavy bias towards food grains. According to The Hindu, the authors' perspective and their decision to focus on foods such as dairy, fruits, and vegetables and the availability of these things among unskilled workers helps to present a clearer picture of India's food realities, which is economic This is in contrast to the 'Thalinomics' survey, where a beautiful picture of food prices is presented.
@Nayak 1
Thank you Google